बुधवार, 18 जुलाई 2018

एक गेट की कहानी

अनाज मंडी बंद हो चुकी थी। अभी-अभी मंडी प्रबंधक केशव प्रसाद जी के सामने वहां का गेट बंद कर दिया गया था। ये गेट मंडी की शान था और प्रसाद जी का गर्व। नेता जी से कहकर प्रसाद जी ने इस गेट को लगवाया था। इस गेट की कीमत 17 लाख रुपए थी। गेट को लगे अभी तीन-चार दिन ही हुए थे। इसका लोकार्पण भी खुद प्रभारी मंत्री कौशल कुमार जी ने अपने हाथों से किया था। किसान आते-जाते गेट को निहारते और मंडी प्रबंधक के गुनगाते... ये विकास का आरंभ है। इसी धार में वो मंडी के अंदर के गड्ढों और अव्यवस्था को भूल जाते थे।
मंडी के अंदर पिछले महीने शौचालय भी बना था पर इसका ताला आज तक तो नहीं खुला था। किसान -मजदूर उसे देखते वाह क्या इमारत है? पर ताला देखकर वो मन मसोस जाते और यहां-वहां निपटते रहते। प्रबंधक को फिक्र थी कि ये गांवड़े वाले अंदर जाकर कहीं गंदगी न कर दें या नए नल-टोंटी चुरा न लें। इससे पहले जो शौचालय था उसमें तो पाखाने और गुसरखाने से टोंटियां तो क्या लोग टाइल्स तक उखाड़ ले गए थे। प्रबंधक का डर जायज था। इसलिए उन्होंने टंकी और पाइप तक अंदर तालाबंदी में कर रखे थे। हालांकि चोर ताला तोड़ सकते थे पर ऐसा होना जरूरी नहीं था क्योंकि प्रबंधक का ऐसा मानना था। इसका भी लोकार्पण करवाना था। इसके लिए जरूरी था कि यहां से आते-जाते मंत्री को लघुशंका लग जाए और वो इसका लोकार्पण कर डालें। प्रभारी मंत्री से इसका भी लोकार्पण करवाना था पर ऐन मौके पर मंत्री जी को फोन आ गया और वो निकल गए। कुछ करके मंत्री जी के पेट में देव घुस जाएं और उनको इक्की लग जाए।
बात मंडी के गेट की चल रही है इसलिए वापस आ जाते हैं मुद्दे पर- प्रबंधक गेट बंद कर चले गए। अब से तीन दिन की छुट्टी थी। चौकीदार था सखाराम, कुछ गांव छोड़कर पत्नी और बच्चे रहते थे पर रात को तलब लगे तो, सखाराम का मंडी की ही जमादारिन से संबंध चल रहा था। ये जमादारिन तो क्या थी कचरा बीनने वाली थी झाड़ू लगाकर कुछ पैसा कमा लेती थी। सखाराम की पत्नी गर्भवती थी इसलिए जमादारिन ही सहारा थी पर वो भी मंडी में नहींं रहती थी। कुछ दूर एक बाड़ी में रहती थी। पति मजदूर था और अक्सर यहां-वहां मारा-मारा फिरता था। बच्चे छोटे थे सो जाते थे। वो चुपके से वहां पहुंच जाता था इसके बाद रात फूलों की...। शाम को चार बजे प्रबंधक चले गए तो सखाराम ने चिलम फूंकी और टर्रा चढ़ा लिया। अब उसका मन बेचैन हो गया। मुश्किल से घंटा भी न बीता होगा कि वो वहां से भाग निकला। पांच बजे रामकिशन वहां आया। वो अपने साथ मजदूर लेकर आया था। रामकिशन मंडी का व्यापारी था और अपना ट्रैक्टर लेने आया था जो मंडी के अंदर खड़ा था। गेट पर ताला देखकर उसका सिरघूम गया। ये कया हो गया भैये...। प्रबंधक ने उसे आश्वस्त किया था कि पांच बजे तक मंडी खुली रखेंगे। अब न तो वो हैं न चौकीदार। रामकिशन गांव का दबंग था। वो पूरे गांव का मुखिया जैसा ही था। कुछ सोच वो बोला- तोड़ दे ताला। साथी मजदूरों ने ताला तोड़ दिया। पर गेट खुला नहीं। अब रामकिशन का सिर फिर से घूम गया। गिरा गेट को निकाल ट्रैक्टर। आदेश मिलते ही साथी मजदूरों ने गेट के जोड़ों पर गेतियां मारी। कुछ देर की मेहनत के बाद गेट धराशायी हो गया। अब सवाल था गेट का क्या करें? रामकिशन ने उसे उठावाकर वहां पड़े अटाले में रखवा दिया और ट्रैक्टर लेकर चलता बना। आपको बता दूं कि मंडी प्रबंधक अभी-अभी आए थे इसलिए उनका मोबाइल नंबर रामकिशन के पास नहीं था और सखाराम मोबाइल रखता नहीं था। मंडी सूनसान थी।
देर रात सखाराम लौटा तो गेट को न पाकर घबरा गया। उसने ऑफिस का ताला खोलकर पुलिस और प्रबंधक को फोन लगाया। पुलिस कुछ देर बाद आ गई। चोरी का मामला बन गया। तुम कहां थे? थानेदार ने पूछा। साहब बस यूं ही बाहर गए थे...बाहर गए थे। कहां गए थे? साहब पीने के बाद मन मचला तो चले गए। प्रबंधक भी भागे-भागे आए। रात हो चुकी थी। उन्होंने सखाराम पर विश्वास जताया। थानेदार ने प्रकरण दर्ज किया और चलता बना। गांव का पत्रकार मनीराम भी वहां आ पहुंचा। दूसरे दिन गेट चोरी का मामला उठ खड़ा हुआ। पेपर में खबर पढ़कर रामकिशन घबरा गया। उसने सोचा कि गेट कोई चुराकर ले गया है, वो गांव से भाग निकला। सरपंच को पता चला तो वो भी मंडी आए। प्रभारी मंत्री तक बात पहुंच गई। जांच में पता चला कि मंडी में लगे सीसीटीवी कैमरे भी सालों से बंद हैं। पूछताछ में पता चला कि रामकिशन वहां आने वाला था और उसका ट्रैक्टर भी अंदर से गायब था। पुलिस रामकिशन के घर पहुंची तो पता चला कि वो वहां नहीं है और उसके मजदूर भी भाग निकले हैं। यहां प्रबंधक के विरोधी सक्रिय हो गए और उनके खिलाफ दलबंदी शुरू हो गई। ये सब वाकया दो दिन में हो गया। तीसरे दिन जमादारिन लंबी झाड़ू लेकर आई। उसने सखाराम को देखा, वो परेशान बैठा था। अबही तलब न लगे तोके, वो हंसी और पैर पटका तो झांझ बज उठी। अकसर उसकी इस अदा पर सखाराम के अंदर का कामदेव जाग जाता था पर आज वो परेशान था। मंडी प्रबंधक ने उसे कह दिया था कि वो अब ज्यादा दिन का मेहमान नहीं है। हंसती-मुस्काती जमादारिन अंदर गई तभी उसे लघुशंका महसूस हुई। वो अटाले के पास चली गई। बाहर कोई देख सकता था इस लिए वो अंदर चली गई। उसने निवृत्त होने के दौरान वहां गेट रखे देखा तो वो मुस्काने लगी। वो साड़ी सम्हालती उठी और सखाराम के पास पहुंची। परेसान हो..सक्के बलमू (सखाराम का प्रेम का नाम जो जमादारिन ने दिया था। ) वो इठलाई-बलखाई। के करां छोरी...नौकरी पे बात आन पड़ी है। अबके सोना के करधनी दिलाव तो कहूं बात... नौकरी जोखिम में है रे पागली..ऐ बच जाए तो सोना में नहलाऊं तुझे...। ऐ लो, बगल में छोरा ने गांव में ढिंढोरा। मायने बोल छोरी...गेट तो ऐ रखा कबाड़े में। हें...सखाराम दौड़ा। उसने देखा। वाह... मेरी रबड़ी..अबके बार सोने के करधनी, सोने के पायल, सोने के चूड़ा सब लई ले। उसने प्रबंधक को फोन लगाया- साब, गेट तो अटाले में रखा है। लगता है रामकिशन उसे अटाले में रखवा गया। प्रबंधक ने अपने साब को फोन लगाया। उन्होंने कहा कि पुलिस से रिपोर्ट वापस ले लो और कह दो कि गेट चौकीदार ने रखवा दिया था और वो भूल गया था। वैसे भी वो नशेड़ी है ही, अब वो गेट मिल गया है। मामला रफा-दफा करो। बस मीडिया तक बात न पहुंचे और एक अपने लगे पत्रकार को पूरी कहानी बताकर अपने पक्ष में छपवा लो। प्रबंधक ने ऐसा ही किया। सखाराम नाराज हुआ- साहब, हमे नशेड़ी बताकर बदनामी क्यों करते हो। प्रबंधक ने धमकाया- अबे तेरी वजह से नाटक हुए। वो तो तेरी नौकरी बच रही है, इसके बाद भी बात करता है। चुप्पए रे...। सखाराम चुप रहा।
अब अंततोगत्वा जो हुआ वो जानते चलें- अखबार में खबर विश्लेषणात्मक छपी जिसमें प्रबंधक तक की टांग खिंच गई। बिना बात के सखाराम बदनाम हुआ, हालांकि वो वहां से जाता नहीं तो ये नौबत ही न आती, वो थोड़ा सा दोषी तो था पर इतना था पता नहीं। जमादारिन सोने से सजी या नहीं ये तो पता चल नहीं पाया पर रामकिशन पर सरकारी निर्माण में तोडफ़ोड़ करने का मामला दर्ज हो गया। रामकिशन वापस आ गया, जमानत हो गई पर कोर्ट में केस आ गया। गेट फिर लगाया गया पर अब वो तेढ़ा सा लगा था। इस तरह से गेट की कहानी पूरी हो गई।

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