शनिवार, 30 दिसंबर 2017

साहब का उपदेश

जीप से सायरन बजा, मदद की दरकार।
आकर रुक गई थाने पर डीएसपी की कार।।
कोई अचरज न करे निरीक्षण है औचक।
कमरे खाली देख के साहब हैं भौचक।।
कुछ वसूली पर हैं गए, कुछ करते आराम। आकर दरस दे जाते हैं आरक्षक सुबहोशाम।।
लॉकअप में जंग लगे ताले देखे। कुछ जम्भाई लेते मुखवाले देखे।।
क्या रिपोर्ट है, सनद होती देखकर तुम्हारे मुंडे। लोग यूं ही डर जाते हैं यहां देखकर वर्दी वाले गुंडे।।
कार्रवाई नहीं और वसूली, खुले घूमते पट्टे। यहां-वहां पर चल जाते हैं देसी-स्वदेसी कट्टे।।
कोई आसर न देखकर बोले जनाबे आली। कमाई सदा ईमान की नहीं कभी हो काली।।
ये जानो न कभी हों अपनी पहचान के चार दिव्य आधार। तोंद, खाकी कपड़े, मूंछे और डंडे की मार।।

साहिब, बीबी और विदूषक

राजकुमारी एलिन बचपन से आम लोगों से दूर रही न तो उसका कोई दोस्त था ना ही हमउम्र संगी-साथी। एक बार उनके महल का माली आया और अपने साथ अपने भतीजे को लाया जिसका इस दुनिया में कोई नहीं था। भतीजे के लिए राजा से दया मांगी तो राजा ने महल में रहने के लिए और खाने की अनुमति देदी पर शर्त थी कि वो जो काम दिया जाएगा वो करेगा। एलिन ने झरोखे से उस बालक को देखा वो बहुत शर्मीला था। राजा ने बालक को देखा तो उसे इस बात का भास हो गया कि वो बालक सामान्य नहीं था राजा ने अपनी शंका माली से कह डाली। इस पर माली ने बताया कि वो बालक जिसका नाम था क्रिस, पौरुषहीन था, पुरुष होकर भी वो पुरुष नहीं था। राजा को इस बालक में अपनी बेटी के प्रति एक सुरक्षा दिखाई दी। एलिन ने भी मां से कहा कि उसे वो बालक चाहिए।
अब राजा ने उस बालक को राजकुमारी एलिन के मनोरंजन के लिए नियुक्त किया। वो बालक शुरू में ही शर्मीला दिखा था पर वो था बहुत बतोड़ा वो बहुत मजेदार बातें करता, किस्से गढ़ता और राजकुमारी का मनोरंजन करता। हालांकि महल के पहरेदार उसका बहुत मजाक उड़ाते इस पर एलिन क्रिस को कहती कि वो एक एंजिल है और एंजिल पुरुष और स्त्री के भेद से परे होते हैं। दुखित क्रिस प्रसन्न हो जाता। किशोर हो जाने पर क्रिस राजदरबार भी जाता था और अपनी हरकतों से सबका मनोरंजन करता था। न जाने कब एलिन और क्रिस मन के मजबूत धागों में बंध गए उनको भी पता न चला।
एलिन ने एक दिन सुना राजा राजरानी से एलिन के विवाह की बात कर रहे थे इससे वो बेचैन हो गई। उसने क्रिस को बुलाया और ये बात बताई क्रिस ने इसे शुभसमाचार बताया और कहा कि वो दुखी न हो। एलिन ने कहा कि वो क्रिस से बिछडऩा नहीं चाहती इस पर क्रिस हंसा और बोला- मुझे स्त्रीधन में साथ ले चलना। आखिर वो दिन भी आ ही गया जब एलिन का विवाह दूर देश के युवराज ग्लैडिन से हो गया। एलिन ससुराल चली गई पर राजा ने क्रिस को उसके साथ जाने नहीं दिया। ग्लैडिन ने हर तरह से एलिन को खुश करने की कोशिश की पर वो हर बार विफल हुआ। एलिन ससुराल में सारे राजसी सुखों में भी खुश न थी वहीं क्रिस को अब एलिन की याद सताने लगी थी। वो राजदरबार जाता पर अब वो पहले जैसा मनोरंजन नहीं कर पाता था वो मन ही मन रोता था और पहरेदार और दूसरे लोग उसकी पुरुषहीनता का मजाक उड़ाते थे।
आखिर राजा ने क्रिस को काम से निकाल दिया। क्रिस भिखारियों की तरह यहां-वहां मारा-मारा फिरने लगा जो कुछ मिलता खा लेता जहां जगह मिल जाती सो जाता। एलिन की तबीयत बिगडऩे लगी उसने माता-पिता के पास जाने की बात कही। आखिर ग्लैडिन उसे लेकर उसके देश आ गया। अब एलिन ने राजा से क्रिस के बारे में पूछा। राजा कुछ कह न सके। एलिन ने क्रिस के लिए ढुंढाई मचाई। एक दिन उसे पता चला कि क्रिस समुद्र किनारे मरणासन्न अवस्था में पड़ा है। वो नंगे पांव दौड़ पड़ी। उसके पीछे ग्लैडन भी दौड़ा। वो समुद्र किनारे पहुंची और गीली रेत पर पड़े क्रिस के गले लग गई। क्रिस में कुछ प्राण बाकी थे। एलिन तुम! एलिन के आंसु उसके मुंह पर गिर पड़े।
क्रिस तुम मुझे वो गाना सुनाओ जो तुम मेरे लिए गाते थे, एलिन ने प्रार्थना की। क्रिस हल्की आवाज में बोला- छोटी चिडि़या तुम कहां उ.डोगी, क्या मेरे पास आओगी और मेरी हो जाओगी।
ग्लैडिन ये सब आश्चर्य से देख रहा था। मैंने कभी नहीं कहा, तुमने नहीं कहा पर वो अंजाना बंधन आज भी कायम है, एलिन ने कहा। लव टू प्रिंसेस! अब क्रिस निढाल हो गया। एलिन चीख-चीख रोने लगी और एकाएक वो भी क्रिस पर झुककर वहीं निढ़ाल हो गई। एलिन-क्रिस ने एक-दूसरे का हाथ थाम रखा था। बेवफा! ग्लैडिन ने कहा, दोनों को उठाकर समुद्र में फेंक दो। आदेश पूरा किया जाता उससे पहले ही एकाएक पता नहीं कहां से दोनों के शरीर में स्वत: ही आग लग गई और वो दोनों जलने लगे। प्रेम के अमर देवता रोने लगे और कुछ वर्षा सी हुई। ग्लैडन को आश्चर्य हुआ दोनों जिस्म जल गए पर राख तक न बची। कुछ जो बचा वो हवा में उड़कर फलक में घुल गया।
इतिहासकार ने ये लिखकर कलम तोड़ दी- प्रेम क्या है? ये अहसास क्या है? वासना के कीचड़ से विलग ये अमृत क्या है? तुम क्या हो? मैं क्या हूं? ईश्वर ही सबकुछ है तो ये दैवीयता क्या है? क्या एलिन और क्रिस प्रेम के अमर देवी-देवता थे? मैं न समझा...मैं न समझा.....मैं न समझा।

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

डुगडुगिया का तैश

भैयाजी की लाल डुगडुगिया जब से आई गांव में शान बढ़ गई। भैयाजी कहते अरे ये कार है कार। दद्दा जब उसमें बैठते तो छाती चौड़ी हो जाती। रोजना छुट्टन लंगोटा लगाकर उसे बोरिंग से पाइप से धोते। मंझली चोरी-चोरी कहती हमको भी ऐसी गाड़ी में विदा करना। अम्मा पूजा कर एक तिलक कार पर लगाती- बुरी नजर से बचाएं कान्हा जी।
ये डुगडुगिया पूरे परिवार को हर्षित करती। एक बार एक बच्चे ने छुट्टन से पूछा जब वो कार धो रहे थे। छुट्टन भैया ये कौन सी गाड़ी है? मारूती है मारूती। इस बच्चे की बहन पर छुट्टन की नजर थी। वो सोचते एक बार कार चला लूं तो उसे कार में बिठाकर गांव-गांव घुमाऊंगा। फिर ऐसा करूंगा-ऐसा करूंगा। आहा! भैया जी आए- छुट्टन हट कार ले जाना है। छुट्टन ने जैसे-तैसे कार पोंछी। भैयाजी कार ले गए। नगर पालिका भवन में काम था। खेती की जमीन का कुछ विवाद था वो वहीं गए थे। सुबह के गए भैयाजी शाम तक न लौटे तो घर में चिंता हुई। छुट्टन यहां-वहां दौड़े पर कुछ पता न चला। अम्मा ने मन्नतों पर मन्नतें कर डालीं। रात को नौ बजे भैयाजी लौटे। पैदल-पैदल। पता चला कि पालिका भवन में किसी ने कार को ठोंक दिया। इत्ती बड़ी खरोंच आई है- भैयाजी ने हाथ का पंजा बताया। कार पांच दिन बाद मिलेगी। भैयाजी घर में चले गए। वो बच्चा यही खड़ा था। वो शरारत में बोला- डुगडुगिया ठुंक गई। डुगडुगिया.... चल भाग यहां से- छुट्टन ने चांटा दिखाया तो वो बच्चा भाग गया। दूसरे दिन गांव में बात फैल गई। लोग बहाने से आते घर में आते-जाते, मंद-मंद मुस्काते। यहां बच्चे की बहना को भैयाजी की आंखमिचौनी से पता चला कि छुट्टन उसके आशिक हैं तो वो बहाने से वहां आई,कार का मजा करने के लिए। छुट्टन दरवाजे पर कुछ कर रहे थे तभी वो आई- अम्मा हैं। अरे हैं न आ..आ..। इतने में भैयाजी अंदर से बाहर आए न जाने क्यों वो तैश में आ गए- अरे ठुंक गई डुगडुगिया तो क्या पूरा गांव जमा हो जाएगा? लड़की घबरा गई और भाग गई। छुट्टन ने दयनीय दृष्टि से भैयाजी को देखा- अरे वो तो अम्मा से मिलने आई थी। खूब पता है अम्मा से मिलने आई थी- भैयाजी वापस अंदर चले गए। अरे डुगडुगिया गई तो गई हमारी प्रेमकथा को क्या ठुंकवां रहे हो- छुट्टन धीरे से बोले। जिसे भैयाजी ने सुन लिया- क्या हुआ हें? कुछ नहीं। कहते हुए छुट्टन फिर से काम में लग गए।

गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

भ्रष्टाचार पर विशेष अध्ययन

लेख सूचना के बाद है। पढऩा जरूर (जाहिर सूचना- सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि सबसे पहले आप लोगों को बता दूं कि इससे पहले मेरे लिखे हुए ब्लॉग अथ गब्बर कथा (गब्बर की वापसी और जीएसटी पर ठाकुर से संवाद)में से जीएसटी को गब्बर सर्विस टैक्स के निरूपित किया गया था। इसे गब्बरसिंह टैक्स के रूप में तोड़मरोड़कर राहुल गांधी द्वारा उपयोग किया गया है। मैंने इसका उपयोग पहले किया था इसलिए मैं राहुल गांधी पर कॉपीराइट एक्ट के तहत दावा ठोंकने की बात पर विचार कर रहा हूं। दावा करीब-करीब 100 हजार करोड़ का होगा। विदित हो अजय श्रीवास्तव)
भ्रष्टाचार पर मीडिया चीख रहा है, आमजन खीज रहा है, पीडि़त रो रहा है पर हम ये क्यों मान रहे है कि भारत में भ्रष्टाचार है। मैं तो भारत की हर डिक्शनरी में देख चुका हूं हिन्दी में भ्रष्टाचार तो क्या भ्रष्ट शब्द भी नहीं मिला और अंग्रेजी में करप्शन नाम का शब्द ढूंढे नहीं मिला। यानी किसी भी शब्दकोष में ये नहीं था माने साफ मतलब है ये भारत में पाया ही नहीं जाता।
प्रोफेसर करप्ट एंड भ्रष्टाचारी के अनुसार भारत नामक देश में किसी भी तरह का भ्रष्टाचार नहीं पाया जाता। क्योंकि भ्रष्ट होना भारतीयों की फितरत में ही नहीं है। टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले के सभी आरोपियों के बरी हो जाने के बाद इस बात में कोई संदेह नहीं रहा है। वैसे तो इस देश में भ्रष्टाचार है ही नहीं पर फिर भी यहां समय-समय पर अपवाद स्वरूप भ्रष्टाचार के मामले उठते रहे हैं। कुछ एक मामले में किसी को सजा भी हुई है पर इस बात को प्रयोगात्मक तौर पर लेना चाहिए कि ये एक पूर्व परीक्षा है यदि भ्रष्टाचार होता है तो क्या होगा? प्रोफेसर पोपट लाल पांजा इस बात पर विश्वास करते है कि कहीं भ्रष्टाचार हो सकता है। सेना में या सरकार में, हो सकता है जनता में भी हो! भ्रष्टाचार को लेकर पीएचडी करने वाले एक महापुरुष ने लिखा है कि -भ्रष्टाचार का पहला मामला चार अरब, बीस लाख- मोटे तौर पर चार सौ बीस अरब साल पुराना है। जब एक बच्चे ने एक अधेड़ को नीच कहा और अधेड़ ने इसे अपने जैसे लंगोट धारियों का अपमान समझा। हुआ यह था कि अधेड़ा लंगोटाधारी डायनासोरों के खाने में भ्रष्टाचार कर रहा था। जो घास या मांस आ रहा था उसे भालू के साथ बांटकर खा रहा था। अंत में डायनासोर भूखे मर गए। आज के वैज्ञानिक इस बात से अंजान हैं। उस बच्चे का लोगों ने प्यार से पप्पू कहा जो दुनिया का सबसे पहला नाम था जो किसी जीवधारी को मिला। हालांकि पप्पू टॉफियों की अफरातफरी करता रहा था। अधेड़ लंगोटधारी यही नहीं रुका उसने लोगों को भाषण देने शुरू कर दिए वो बोलता गया बोलता गया और उसकी आवाज से जंगलों में बैठे उस समय के विचित्र जीवजंतुओं और सरीसृपों में हड़कंप मच गया। किसी के बाल झड़ गए, कोई अपने सींग खो बैठा, किसी के तो नए-नए सींग निकलने लगे इसी बीच कुछ बंदरों की पुंछे झड़ गई। अधेड़ ने उसको अपने साथ ले लिया। बच्चे ने सोच लिया कि वो उसे नहीं छोड़ेगा चाहे कितने ही युग बीत जाएं।
खैर, ये साइंस की बात हैै। मूल पर आएं, आप लोग मुझे मुद्दे से भटकाने का प्रयास मत कीजिए, बात तो ये है कि भारत में भ्रष्टाचार नहीं है। इस बात को समझते हुए हमने भ्रष्टाचार शब्द को हटा दिया और उनसे उपजने वाले घोटालों को भूल गए। हालांकि घोटालों पर बहुत कुछ कहा जा सकता है। हर घोटाला करने वाला घोटाला हो जाने के बाद तुरंत ही अगले घोटाले की तैयारी में लग जाता है, कितना समर्पित व्यक्ति है। कालेधन की बात चली तो धन की कालक का जिक्र भी होना लाजमी है। पहले कहा गया था कि ब बालैंड में भारतीयों ने काफी कालाधन जमा कर रखा है। हमारे प्रधानजी ने कहा कि वहां से पैसा लौटेगा और सबके खाते में लाखों जमा हो जाएंगे। कालूराम कालिया ने ये सुनकर बैंक में अकाउंट बनवा लिया और सुनहरे जीवन के सपने देखने लगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ उलटा नोटबंदी हो गई और फिर जीएसटी लग गया। इस बात पर काड़ीलाल कांडी सवाल करता है कि क्या गरीबी पर भी जीएसटी लगेगा। बड़ा ही गंभीर प्रश्र है, प्रो. पोपटलाल पांजा आगे कहते हैं कि जीएसटी लगाने के लिए जरूरी है कि आपके पास कुछ हो। गरीबी में आपके पास कुछ भी नहीं होता इसलिए आप इस कर से बाहर हैं। पांजा कहते हैं कि आप तो भ्रष्टाचार और इसकी वर्तनी सहित अर्थ-अर्थागत पर चर्चा कीजिए। ज्यादा सोचते ही क्यों हो? क्योंकि आपको अक्ल नहीं है, वैसे भी प्रधानजी का कहना है कि न तो खाऊंगा न खाने दूंगा। यानी भूखेे ही रहना होगा। भूख भ्रष्टाचार को उत्तेजना प्रदान कर सकती है जिससे ये तत्व जो शायद भारत में नहीं है भविष्य में आ जाए। आश्चर्य है भ्रष्टाचार पूर्व में नहीं था अब शायद आ सकता है। पांजा कहते हैं कि ये अजब विरोधाभास है कि एक ओर स्पेक्ट्रम मामले में सभी बरी हो जाते हंै तो वहीं लालू चारा खाते पकड़े जाते हैं। बात वहीं है न खाने दूंगा। चारा ााया जा सकता है पर स्पेक्ट्रम नहीं।
वैसे खबर है कि प्रधानजी भ्रष्टाचार पर लगाम लगाकर ही रहेंगे भले ही बम्बानी और दूसरे पकड़े न जाएं क्योंकि वे खाते ही नहीं खिलाते भी हैं। प्रो. भ्रष्टाचारी ने मुझे धमकी दी है कि अगर मैंने भ्रष्टाचार पर कुछ और कहा तो वो मुझे भ्रष्ट साबित कर देंगे। मुझ पर वैचारिक घोटाले का आरोप लगाकर बदनाम कर देंगे यदि और दुश्मनी निकाली तो मिस भ्रष्टकुमारी के बौद्धिक शोषण का मामला लगवा देंगे। इसलिए मैं कलम को रोक रहा हूं।

सोमवार, 25 दिसंबर 2017

कौन है सुखी?

(ये कहानी एक लाक्षणिक कहानी है। इस कहानी में घर-आदमी-कुत्ता और छोटा सा लड़की का पात्र जीवन के विभिन्न पहलुओं का प्रदर्शित करते हैं। इस कहानी को एक वरिष्ठ साहित्यकार ने अद्वितीय कहा था। उनका नाम उनकी इच्छा से गुप्त रखा गया है। पेश है ये कहानी)-
एक घर था, एक आदमी था और एक था उसका कुत्ता। आदमी जब घर के बाहर होता तो घर उदास हो जाता, पर ये बात उस आदमी को मालूम नहीं थी। वो अपने कुत्ते के साथ दूर-दूर जाता जानवरों का शिकार करता। उनको शाम के वक्त घर लाता भूनता-खाता, अपने कुत्ते को खिलाता और सो जाता। दूसरे दिन वो अपने काम पर चला जाता।
एक रात घर उदास था, मालिक सो गया था और कुत्ता मांस के छिछड़ों और बोटियों को नोच रहा था। घर ने कहा- मुझसा अकेला कोई नहीं। जब मालिक छोटा था तब मैं चहका करता था। इसकी मां और इसका पिता दिन तो क्या रातों में भी जागते और मुझे सोने न देते। मैं उस वक्त ज्यादा खुश था। कुत्ता बोला- चुप रहो। मालिक को सोने दो। तुम्हारे दिन लद गए। अब मेरे दिन हैं। मालिक मुझे प्यार करता है और ये काफी है मेरे लिए। घर हंसा- अरे नादान मालिक किसी का नहीं। वो तो अपने लिए ही जीता है देखना एक दिन तेरे लाड़ भी खत्म हो जाएंगे। कुत्ता बोला- अपनी मनहूस जबान बंद कर।
रात बीत गई जैसे हमेशा बीत जाती है। दूसरे दिन मालिक चला गया। शाम को जब वो लौटा तो एक खूबसूरत लड़की उसके साथ थी। उसने मांस पकाया और सबसे पहले लड़की को दिया, कुत्ता ये देख रहा था। फिर उसने उसे शराब पिलाई, कुत्ता ये देख रहा था। फिर दोनों कमरे में चले गए। जाने से पहले मालिक ने जूठन कुत्ते के सामने डाल दी और चला गया। कुत्ते ने बेचारगी से यहां-वहां देखा। घर हंसने लगा। कुत्ते को ये बात बुरी लगी- हंसते क्यों हो? तुम मजबूर हो मैं नहीं। इतना कहकर कुत्ता जूठन छोड़कर भाग गया। वो भागता गया। भागता गया। अब वो जहां है वहां सुखी है या नहीं पता नहीं पर उस रात मालिक के घर में चोरी हो गई। चोर कीमती सामान ले गए। दूसरे दिन मालिक और लड़की में लड़ाई हो गई। वो उसे छोड़कर चली गई। अब मालिक महीनों घर के बाहर रहता है। घर अब भी है और शायद उदास भी है।

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

मौत से मुकाबला4: अब खुशनुमा सुबह नहीं होगी

सुबह कितनी ही उजली हो, रात के अंधकार से कम ही होती है और अगर वो रात कभी न खत्म होने वाली हो तो?
एक बार तीन दोस्त एक बहुत ही छोटे जहाज में समुद्र में मछली पकडऩे को निकले। वो बहुत दूर आ गए एकाएक उनके जाल में एक तेज हलचल हुई। उन्होंने जाल खींचा तो हैरान रह गए जाल में एक जलपरी थी। बेहद खूबसूरत और कमनीय। तीनों ने उसे जहाज पर खींच लिया। उसका भोग करने के लिए तीनों में झगड़ा होने लगा। ये देखकर वो जलपरी मुस्काई और बोली- तुम तीनों आपस में लड़ लो जो जीतेगा उसे मैं खुद ही अपना सबकुछ दे दूंगी। सबकुछ। तीनों कामांध हो गए। पहले दो आपस में लडऩे लगे। तीसरा और वो जलपरी उनकी लड़ाई देखने लगे। पहले ने दूसरे को इतनी बुरी तरह मारा कि वो बेहोश होकर गिर गया। विजेता की पीठ तीसरे के मुंह की ओर थी और मुंह जलपरी की ओर जलपरी ने उत्साह के साथ हाथ ऊपर किए। तभी तीसरे ने उठकर नुकीला लंगर दूसरे की पीठ में घुसा दिया। वो वहीं ढेर हो गया। अब जलपरी तीसरे की थी। जलपरी रहस्यमय ढंग से मुस्कायी न जाने क्यों? इसके बाद वो जलपरी की ओर बढ़ा और उसकी समुद्र की आंखों में डूब गया। उसके सुर्ख होंठ। अचानक उसके खून से लाल हो गए। जलपरी ने उस आदमी के गले में अपने तीखे दांत गड़ा दिए। वो दूसरी तरफ पलट गया। धोखा क्यों किया? उसकी नजर धुंधली पडऩे लगी। तुम्हे मेरे जिस्म की भूख है और मुझे तुम्हारे मांस की। तुमने मुझे पकड़ा तो मैं खाने की तलाश में थी। यहां आकर मैं घबरागई पर तुम लोगों की हवस ने मुझे यह युक्ति दी। वो आदमी नीम बेहोशी में चला गया। ये आदमी मर गया है इस का मांस जल्दी सड़ जाएगा। ये कहते हुए जलपरी उस पर टूट पड़ी और उसे खा गई। इतने में दूसरा घायल कर्राया। जलपरी ने उसे देखा और उसके पास चली गई। वहां उसने उसके साथ सहवास सा कुछ किया। फिर उसके शरीर पर घाव बनाकर उसका रक्त चाटती रही। तीसरे के हाथ एक धातु का टुकड़ा लग गया उसने ये कहानी खोद-खोदकर लिखी और दूसरे दिन वो मर गया। मरने से पहले उसने उस जलपरी का भयाानक मुख देखाा जो अब उसे खाने वाला था।मौत की गहराईयों में भी उसे जलपरी के दांतों से काटे जाने का अहसास होता रहा। करीब 15 दिन बाद उस जहाज पर दूसरे जहाज के लोग पहुंचे और ये कहानी पता चली। जहाज से हड्डियां और एक मछली का विंग मिला।
मालखाने के अंधेरे में एडम ने इस कहानी को जैसे ही सुनाया मेरे रौंगटे खड़े हो गए। तभी एक धक्का लगा। मैं चौंका। हे....अब हम गहरे समुद्र में जा रहे हैं। मैं और वो काम खत्म करके ऊपर आए। सूची को नेवल की टेबल पर रखकर हम डेक पर आए। शाम गहरा रही थी। लहरो का शोर था। तभी वहां जोनाथन और एडम आए। क्या हो रहा है? एडम का सवाल था। बस यही लहरें और यही समुद्र, नोबल का जवाब था। ये अब तकदीर है, जोनाथन उदास हो गया। माल खाने में जो जमा है वो तो सिर्फ थोड़ा सा खाने का सामान है जो मुश्किल से पांच दिन तक चलेगा, हम तो लंबी ट्रिप पर हैं, मैंने पूछा। अरे वो खाना मुसीबत के लिए हम जहां से वहीं से फसल काटना है और खाना है, नोबल का जवाब था। मतलब, मैंने पूछ लिया। मछली पकड़ो, खाओ। वैसे मालखाने का माल बेचने के लिए है। हमें जो खाना मिलेगा वो इसके भी पीछे एक निचले गोदाम में बंद है, नोबल ने बताया। मतलब, खाने में क्या मिलेगा? जोनाथन की उत्सुकता जागी। फिलहाल वहां आलू जमा है, आलू उबाले जाएंगे और मसाला डालकर खाने होंगे। हमने सिर पकड़ लिया और नोबल हंसने लगा। कुछ देर बाद अपने आप को जीवित समझकर जब हमें शारीरिक जरूरतों का अहसास हुआ तो हमें प्यास महसूस हुई। हम मालिक स्पार्ट के पास पहुंचे। नोबल ने हमें पहले ही बता दिया था कि समुद्र में पीने का पानी मिलना रेगिस्तान में नखलिस्तान मिलने जैसा है। हमें एक बोतल मिलेगी जिसमें पीने का पानी होगा उसे एक बार में पी जाओ या दिन भर बारी-बारी पियो तुम्हारी मर्जी। पानी दो बार ही मिलेगा- सुबह और शाम जिसे दिन और पूरी रात चलाना होगा। नेवल ने ऐसा ही किया। एक कपड़े की बोतल मिली जिसमें पानी था। हमारे पास पानी का पर्याप्त भंडार था पर उसे सम्हलकर चलाना था। रात में हम नीचे जमा हो गए। एक छोटे किचन में हमें उबले आलू मिले जो हम निगल गए। यहां एक छोटा और गंदा वॉशरूम था जिसे सभी को इस्तेमाल करना था। सभी को हिदायत थी- गंदगी न करें। आपस में कम और मधुर व्यवहार करें। समुद्र में तनाव जल्दी होता है उससे सावधान रहें और आक्रमक न हों। हम रात को एक पर एक लगे बिस्तरों पर सो गए। नई हादसों से भरी सुबह के इंतजार में पर न जाने क्यों हमें डर था कि अब खुशनुमा सुबह नहीं होगी।

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

तुम न आतीं तो...

निकाह की तारीख तय होते ही पूरेपरिवार माहौल गर्मा गया। अम्मी और बहन के साथ जनानियों का पूरा हुजूम बाजार की झख मारने लगा। इसलिए नहीं कि दुल्हन के लिए बाजारी हो रही थी। कौन महजबीं कौन सा लिबास पहनकर कयामत ढहाएगी किस तरह की किनारी चमक ली जाए इसको लेकर बाजारी हो रही थी। घर के आदमी ठोंका-पीटी कर माल कमाएं और घर की औरतें बेशर्मी से लुटाएं।
ये देख शब्बो, ये किनारी देख।
अरे भैया ये कपड़ा दिखाना।
हाय ये जाली, तो जान ही ले लेगी।
जिनका निकाह होना था उनको मर्दानगी के नितनए सबक सिखाए जा रहे थे। सबसे परेशान थे तो लड़की के बाप सुभानअली। घर की सबसे बड़ी बेटी का निकाह और वही पैसे की कमी। जिससे सभी लोग परेशान रहते थे। मौलाना साहब ने कहा था कि मेहर कम होगा तो दहेज कम करवा लेंगे। वैसे भी खानदानी है। जांचा-परखा परिवार है। यहां-वहां हाथ मारकर और बाप-दादाओं के जमाने की अटाला हो चुकी विरासतों को बेचकर चालीस हजार जुटे। लड़के वाले मान गए तो निकाह तय तारीख को होना मंजूर हो गया। खरीद-फरोख्त हो गई थी। सुभान अली बस ये चाहते थे कि पूरा मामला अमन-चैन से पूरा हो जाए हंगामा न हो क्योंकि उनका खून का दौरा यानी ब्लड प्रेशर हाई हो जाता था और उनके मन में शुब्हा था कि कहीं कुछ न कुछ तो होगा ही।
निकाह का दिन था। घर में जनानियों की भीड़। बाहर इंतजार करते घर के आदमी। यहां-वहां बेकार की फांका मस्ती करते बच्चे। तभी देखा तो सबसे खास मेहमान आए रज्जो खाला। उनके साथ वारिस भी था, जो उनका दूर का भतीजा था। रज्जो का इंतजार था। सुभान मिले तो बोले-आओ आओ तुम्हारा बेसब्री से इंतजार था। तुम न आती तो रंग न जमता। उन्होंने पूरा मूंह फाड़ा और हंसी। उनके पीले गंदे दांत ओफ्। वो अंदर चली गई। बारात आई और आगे कार्यक्रम शुरू हो गया। कोई आदमी बरक्कत ढोली को बुला लाया। ढोल पिटने लगा और यहां नाच की मल्लिका और डांस का बादशाह बनने के लिए बेकार के बेकरार लोग जुट गए। सुभान ने देखा। इसे क्यों बुला लाए? पैसे वैसे ही कम हैं। अरे चाचा, सौ-पचास में क्या जाता है? सौ-पचास नहीं पूरे ढाई सौ, ढोली बीच में बोला। लो- सुभान हो गए परेशान। ऐसा मौका बार-बार नहीं आता चाचा, दूसरी आवाज आई। अपनी जेब से निकलें तो बोले जनाब-सुभान की परेशानी की अंत नहीं। एक औरत आई- आपको बुला रहे हैं अंदर। सुभान अंदर आ गए। झखमारी करने के बाद समधी यूसुफ से बातचीत होने लगी। तभी चीख-पुकार मची। सभी बाहर दौड़े। देखा तो वारिस और किसी लड़के की मारपीट हो गई थी और किसी ने वारिस के हाथ में चाकू दे मारा था। किसने किया। सुभान ने पूछा। जुबेर ने..जुबेर ने। क्यों? अरे ये नाच रहा था वो भी नाचने लगा। टल्ला-वल्ला लग गया। पहले गाली फिर मारपीट फिर चाकू। जनाब यूसुफ ने सुभान का मुंह देखा तो वो शर्मा गए। कोई नहले पर देहला भी निकला, उसने पुलिस को बुला लिया। पुलिस आई। जुबेर तो भाग गया। वारिस मेडिकल के लिए गया। सुभान रपट लिखाने थाने आना तो नहीं चाहते थे पर रज्जो के कारण आना पड़ा। वैसे रज्जो से उनका पुराना आशिकाना भी था। खैर, निकाह हुआ और शाम को दावत भी हुई। दावत में रज्जो सुभान से मुखातिब हुई पर अब सुभान ने नहीं कहा कि तुम न आती तो रंग न जमता।

एक अनोखा नाता.....

एलिस समुद्र किनारे से अपने घर की ओर जा रही थी। उसके एक हाथ में कुछ फूल और दूसरे में एक दूध से भरी आधी बाल्टी थी। तभी उसे अभिवादन करने की आवाज आई। उसने देखा तो उम्र में उससे कुछ बड़ा एक युवक वहां खड़ा था। युवक ने उसे कहा कि एलिस उसे किसी अपने की याद दिलाती है। एलिस ने जब पूरी बात जाननी चाही तो युवक ने बताया कि एलिस उसे उसकी छोटी बहन की याद दिलाती है जो महामारी की शिकार हो गई थी। उसका नाम हैरिस है और वो एक प्रीस्ट है। पास ही उसका घर भी है। क्या वो उससे दोस्ती करना चाहेगी? न जाने क्यों एलिस को हैरिस की बातों पर यकीन करने का मन हुआ और वो दोनों दोस्त बन गए। वो रोज वहीं मिलते और घंटों बातें करते।
हैरिस की बात बिलकुल सच्ची थी... वो एलिस को बहन की तरह मानता था। वो उससे अपने रोजमर्रा के जीवन के बारे में बातें करता था। कभी वो पादरी की नकल करता था तो कभी धर्मगुरुओं का मजाक उड़ाता था। वो उससे अपनी बहन की यादें भी बांटता। एलिस भी अपने दिनभर की गतिविधियां उसे बताती थी। ये दोनों का रोजनामचा था। हालांकि ये रिश्ता लोगों में चर्चा का विषय था पर अमरणशील दैवीय शक्तियों की इच्छा से ये जारी था। एलिस-हैरिस एकदूसरे को समझाते कि लोगों को जो कहना है कहें पर इस रिश्ते की पवित्रता को वो हीजानते हैं। कहते हैं मौसमों को बदले वक्त नहीं लगता वैसे ही जिंदगी में सबकुछ हमेशा एकसा सुखद नहीं रहता।
एक दिन समुद्र किनारे समुद्र का हवाई शैतान एरियल आ धमका। उसने एलिस और हैरिस को साथ में देखातो तो उसे अचंभा हुआ। वो एलिस की सुंदरता का मुरीद हो गया और उसे हैरिस रास्ते का कांटा जान पड़ा। पूरी तरह से विचार करने के बाद वो इस नतीजे पर पहुंचा कि एलिस का अपहरण कर लिया जाए। ये सबकुछ ऐसा ही था जैसा कि सेटन द्वारा पृथ्वी की पुत्री का हरण।
आखिर एक दिन भेडिय़े की नियत से मेमना मारा ही गया, हैरिस को समुद्र किनारे आने में विलंब हो गया। एलिस उसका इंतजार कर रही थी। मौके की ताक में बैठे एरियल को ऐसा स्वर्णिम मौका औरकहां मिलने वाला था। उसने एलिस का अपहरण कर लिया।
एरियल उसे अपने लोक में ले गया। एलिस ने वहां खाना-पीना छोड़ दिया। इस पर एरियल ने उसे चेतावनी देते हुए कहा कि ये उसकी दुनिया है यहां वही होगा जो वो चाहेगा। एलिस कुछ न खाए-पीये तो भी उसे पोषण मिलता ही रहेगा। एलिस निराश हो गई।
मौसम आते जाते हैं, एलिस की नफरत से परेशान एरियल ने उसे तोडऩे की कई कोशिशें कीं पर वो ऐसा नहीं कर पाया। अब परेशान एरियल ड्रैगन के पास सलाह लेने के लिए गया। ड्रैगन ने पूरी बात सुनकर उसे सलाह दी कि वो उसके पास हैरिस का रूप बनाकर जाए तो ही वो उसे पा सकता है। एरियल को बात जंच गई और वो हैरिस का रूप बनाकर एलिस के सामने जा पहुंचा।
एलिस ने उसे देखा तो वो गुब्बारे की तरह मुंह बनाकर हंसी। एरियल कुछ नहीं बोला और एलिस केपास जाकर उसे छूने की कोशिश की। इससे पहले ही एलिस ने एरियल को पहचान जाने की बात कहकर डांटा। उसने एरियल से कहा- मैं तुम पर शंंकास्पद थी सो मैं मुंह बनाकर हंसी । ऐसा चेहरा बहुधा हैरिस की बहन बनाती थी अगर तुम हैरिस होते तो मुझे अभिवादन करने के साथ ही इस बात का उल्लेख जरूर करते । एरियल तुम सामान्य मनुष्यों की तरह ही हो। तुम हैरिस का और मेरा रिश्ता नहीं जान सकते। तुम देह को अपनी वैचारिक क्षमता के अनुसार ही तौलते हो और व्यवहार करते हो पर गलती तुम्हारी नहीं तुम्हारे परिवेश और मानसिकता की है शायद तुमने रिश्ते समझे और महसूस किये ही नहीं हैं। एरियल अपराधी की भांति घुटनों पर बैठ गया...मुझे माफ कर दो...मैंअपने पाप का प्राश्चित करूंगा और तुमको ससम्मान वापस छोडक़र आऊंगा। वो उसे लेकर उसी समुद्र किनारे पहुंचा जहां वो और हैरिस मिलते थे वहीं से उसका अपहरण भी हुआ था। उन दोनों ने देखा कि वहां एक चट्टान पर हैरिस प्रार्थना की मुद्रा में बैठा था उसकी हालत खराब थी वो दोनों उसे पुकार कर उसके पास गए उसे हिलाया तो वो लुढक़ गया। एरियल ने उसका सिर अपनी गोद में ले लिया और उसे अपनी शक्ति से पुन पोषित कर दिया। हैरिस पहले की अवस्था में आ गया और उसे होश भी आ गया। उसने एरियल और एलिस को देखा तो अचंभे में पड़़ गया। एलिस ने उसे पूरी बात बताई। जिस पर हैरिस ने भी उनको बताया कि एलिस बहुत ढूंढने पर भी जब नहीं मिली तो वो बिना खाए-पिए यहां प्रार्थना करने बैठ गया।
तीनों अच्छे मित्र की तरह वहां बैठगए । हैरिस ने बताया कि वो ज्ञानप्राप्त करने के लिए पूर्व की ओर जा रहा है। वो यही बताने के लिए एलिस के पास आया था जब वो अपहृत हो गई थी। एरियल ने उससे कहा कि वो अगर पूर्व की ओर जाता है तो उसे भयंकर खतरों का सामना करना पड़ेगा शायद वो वापस ही न लौट पाए। इसलिए एरियल भी उसके साथ जाएगा। इस बात पर हैरिस राजी हो गया। एलिस ने एरियल से कहा कि उसका अपहरण होने की बात पर लोग उससे सवाल करेंगे इस पर वो क्या कहेगी? एरियल ने एलिस से कहा कि वो लोगों को असलित बताए अगर वो नहीं मानते हैं तो वो चर्च में जाए और वहां का घंटा बजाए जो स्वत: ही तुम्हारे अपमान के कारण किसी के द्वारा नहीं बज पाएगा। हैरिस से एलिस ने वादा कि या कि वो उसके मां-बाप ध्यान रखेगी। एरियल ने वादा किया कि वो समय - समय पर यहां आकर हैरिस और वापस जाकर हैरिस को यहां की बातें बताता रहेगा। अंतत: एरियल और हैरिस बतियाते हुए पूर्व की ओर चले गए। उनके सायों को क्षितिज पर ढलने तक एलिस देखती रही।
लौटने पर लोगों ने एलिस का विरोध किया और उसे अपनी पवित्रता की परीक्षा के लिए चर्च का घंटा बजाना पड़ा जो एकाएक बजना बंद हो गया था। इसके बाद लोगों ने उसे देवकन्या का उपनाम दे दिया। अब एलिस एक नन बन गई। समय का ऋतु चक्र चलता गया और कई साल बीत गए एरियल एक अच्छे संदेशवाहक की तरह काम करता रहा।
अंतत: एक दिन एरियल के साथ हैरिस वापस आ गया और वहीं समुंदर किनारे पहुंचा जहां वो एलिस से मिला था। एलिस अब कहां होगी उसे पता नहीं था। एरियल ये जानता था पर उसने इस बारे में हैरिस को कुछ नहीं बताया था कुछ देर बाद वहां से एक महिला निकली जिसे हैरिस पहचान गया वो एलिस ही थी। एलिस अब आकर्षक युवती से एक शालीन महिला में परिवर्तित हो गई थी। वो दोनों मिले और प्रसन्न हुए पर हैरिस ने देखा कि एलिस के चेहरे का तेज हैरिस के चेहरे से अधिक था। उसने उससे कारण पूछा तो उसने बताया कि जब वो वहां अध्ययन कर भगवान की प्राप्ति के मार्ग को ढूंढ रहा था तब एरियल के बताए मार्ग से जो उसने वहीं प्राप्त किया था मैंने अपने अंतर में भगवान को पा लिया। हैरिस आश्चर्यजनक प्रसन्नता से भर गया। एरियल ने बातों-बातों में पूर्व से मिले ज्ञान को एलिस से बांटा था। एलिस अविवाहित होकर एक नन थी जो हैरिस के लिए एक आश्चर्य सा था।
अब कुछ कहने की बारी एरियल की थी। वो बोला कि उसने करीब दस साल से अधिक का समय उन दोनों का समर्पित किया है अब उन दोनों को चाहिए कि वो उसे क्षमा करें और जाने की आज्ञा दें। एलिस और हैरिस ने प्रसन्नता पूर्वक उसेे जाने की आज्ञा दी। एरियल ने जाते समय उनको आश्वासन दिया कि विशेष मौकों और बुलाए जाने पर वो उन दोनों के पास आएगा।
अब एरियल ने एक विशाल बवंडर का रूप लिया और भयंकर स्वर में गाते हुए वहां से चला गया। वो दोनों उसे जाते हुए देखते रहे। काफी देर तक एरियल के गीत की आवाज वातावरण में कौंधती रही- एक रिश्ता आसमानों से ऊंचा, समुद्र सा गहरा- उसे न भय भले हो मौत का पहरा। मुक्ति से जो मुक्त कर जाता है- वो जो एरियल का भाग्यविधाता है- जहां पवित्रता पर ब्रम्हांड सिर झुकाता है- ऐसा एलिस-हैरिस का नाता है।

शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

मौत से मुकाबला 3: हादसों की दुनिया में प्रवेश

एक मजबूर लड़की अपने मालिक हब्शी के से साथ जा रही है। उसने बड़ी आशा से भरी निगाहों से तीन दोस्तों को देखा। उसकी नजर को भांपकर हब्शी ने उन तीनों को देखा उसकी लाल क्रूरता से भरी आंखें। एक गडरिया बालक जिसने तीनों को बताया कि वो लड़की एक डायन है और सबकुछ छलावा था। इसके साथ ही वो ये कहकर गायब हो गया कि वो भी छलावा है। वो लड़की पेरिस, एक डायन।
हड़बड़ाकर मैं बिस्तर से उठा, पेरिस का भयानक चेहरा मेरी नींद उड़ा चुका था। रात गहरी थी और कुछ ही दूर में एक भेडिय़ा भयानक आवाज कर रहा था। किसी तरह से रात बीत गई। मैं सो नहीं पाया। मैं दूसरे दिन उठा और सुप्रीम स्कूल जा पहुंचा। आज मुझे मास्टर ऑनर्स की उपाधि मिलने वाली थी जो मिल भी गई। अब एक सवाल था जिससे रोज ही दो-चार होना कि अब क्या करना है? परिवार का बड़ा था मैं, और पिता के साथ हाथ बंटाने की जिम्मेदारी मुझ पर थी, जिससे मैं लंबे समय से बचता ही आ रहा था। मास्टर्स की डिग्री सिर्फ इतना भर सहारा थी कि लोग मुझे अनपढ़ नहीं समझते थे। मैंने निश्चय किया कि शहर में काम ढूंढा जाए और मैं शहर आ गया। यहां-वहां मारा-मारा फिरा। कुछ नहीं मिला तो समुद्र के किनारे के एक छोटे से पुल पर जा बैठा। ये हिस्सा लोगों से भरा हुआ था और तमाम तरह के तमाशबीन और बाजीगर यहां-वहां अपनी किस्मत आजमा रहे थे। मैं परेशान था तभी किसी आते-जाते दो युवकों के बोल मेेरे कान में पड़े- अरे वहां जल्दी चल वहां खलासी का काम है। मैं बिना कुछ सोचे-समझे पास लगे छोटे जहाजों की ओर चला गया। वहां एक जहाज पर कुछ लोगों की लाइन देखकर मंै वहां जा पहुंचा और अंतत: भर्ती करने वाले के सामने जा पहुंचा।
नाम।
ऐज।
पढ़े हो।
मास्टर ग्रेजुएशन।
ऊंची डिग्री सुनकर उसने मुझे आपने मालिक के पास भेजा जो वहीं खड़ा होकर लहरें निहार रहा था।
कौन हो तुम? एज।
क्या चाहते हो?
काम।
पढ़े हो।
मास्टर।
ओह, देखो ये काम हम्माली और मेहनत का है। कर सकोगे।
कर लूंगा।
कर लूंगा नहीं। अभी कह दो। बीच समंदर में नहीं की कोई गुंजाइश नहीं होती।
करूंगा, बेझिझक, करूंगा।
अच्छा।
उस आदमी ने कुछ सोचा और एक चिट्ठी लिखकर मुझे दी और पास ही एक जहाज पर भेजा। मैंने चि_ी पढऩे की कोशिश की पर पढ़ न सका क्योंकि वो ऑस्ट्रियन भाषा में लिखी थी और वो मेरी समझ के बाहर थी। हालांकि ये भाषा बहुतायत से बोली जाती थी मगर मेरा अध्ययन ब्रिटिश अंग्रेजी में हुआ था। मैं चिट्टी लेकर जहाज पर पहुंचा। जहाज का मालिक था नेवल स्पार्ट उसने चिट्ठी देखी और एक हिसाब करने का चार्ट मुझे दिया। इसमें बहुत सी गलतियां थी जो मैंने ठीक करके बताईं तो उसने मुझे नौकरी पर रख लिया एक शर्त के साथ कि उसके किसी भी काम को मैं मना नहीं करूंगा। अगले हफ्ते सेल शुरू हो रही थी। मुझे उनके साथ जाना था। वक्त मुकर्रर था, करीब तीन महीने पर शायद यह चार से छह महीने भी हो सकता था, जिंदगी रही तो वर्ना शायद कभी नहीं। उसनें मुझे कुछ चांदी के सिक्के दिए। मैं घर लौटा। पैसे दिए, सामान लिया और निकल पड़ा। मां और पिता को सबसे ज्यादा चिंता थी वो तो कह रहे थे कि पैसे वापस करके कोई दूसरा काम ढूंढ लो पर मैं जानता था कि नौकरी ढूंढना कोई आसान काम नहीं था।
मैं वापस लौटा और जहाज सेल के लिए निकल पड़ा। ये जहाज छोटा सा था। इस पर मेरे सिवाय चार आला दर्जे के सहायक थे और दो मेरे समान खलासी थे। हमारा मालिक था नेवल स्पार्ट।
मेरे अन्य दो साथियों के नाम एडम और जोनाथन थे। बाकी चार आला दर्जे के सहायक थे जो हम पर रौब झाड़ते थे। इनमें एक बैन ब्रिटिश था, फारेसो फ्रेंच, जैमी जर्मन था और आखरी कौन था उसकी राष्ट्रीयता क्या थी उसको लेकर वो खुद ही भ्रमित था। उसका नाम था- नोबल। इन चारों में वास्तव में वो नोबल था। उसका ज्ञान प्रभावित करने वाला था और व्यवहार दीवाना बनाने वाला।
जहाज ने किनारा छोड़ा और मैंने ये आशा कि मैं शायद वापस लौट पाऊंगा। कुछ देर किनारा दिखा फिर सिर्फ और सिर्फ समुद्र। नेवल ने मुझे एक बुकलेट दी और कहा कि जहाज के मालखाने में जाकर सामान को चेक करके लिस्ट बनाकर उसे दी जाए। मैं मालखाने में पहुंचा। मालखाना पूरा-पूरा तहखाना था। यहां एक छोटा कांच था जिससे बाहर दिख सकता था। मैंने उससे बाहर देखने की कोशिश की। बाहर कुछ नहीं दिख रहा था। यहां अंधेरा था सो एक लालटेन लेकर मैं यहां आया था। तभी भारी कदमों की आहट हुई।
कौन, मैंने पूछा?
कौन है यहां? सवाल के जवाब में सवाल कता हुआ वहां नोबल आया।
मैं एज।
अच्छा।
पर इस समय तुम्हें यहां नहीं होना चाहिए।
मगर क्यों?
तुम नहीं समझोगे। खैर, लाओ तुम्हारी मदद कर देता हूं। उसने मेरी मदद की और जो काम समयखाने वाला था वो शीघ्र ही मजे के साथ हो गया। नोबल ने कई मजेदार बातें बताईं और किस्से सुनाए। हम दोनों ही इस बात से अंजान थे कि ये मजा कुछ समय का ही मेहमान है।

रविवार, 3 दिसंबर 2017

अथ गब्बर कथा- वर्तमान राजनीति पर गब्बर-सांभा संवाद और पद्मावती पर ठाकुर से वाकयुद्ध

गब्बर इस बात से चिंतित था कि रामगढ़ में यदि उसकी वापसी नहीं हुई तो दूसरे डाकू वहां घुस पड़ेंगे और उसका रहा-सहा खौफ भी फाख्ता हो जाएगा। वो अपनी चट्टान पर बुलेटों का वो बेल्ट घुमा रहा था जिसमें कभी गोलियां हुआ करती थी पर आज वो खाली था। इतने में सांभा वहां से गुजरा और गब्बर को परेशान देखकर उससे उसका मन बहलाने को बातें करने लगा।
जय मां काली सरदार
जय मां काली कराली
सरदार परेशान हो...
हां, सांभा..अगर हम रामगढ़ में वापसी न कर पाए तो क्या होगा सांभा?
सरदार तुम एक काम करो।
क्या?
तुम यहां-वहां डाकुओं के डेरों पर जाकर उनसे दुआ-सलाम करके यारी-दोस्ती गांठ लो...
सांभा, हम यहां परेशान हैं और तू दिल्लगी कर रहा है
सरदार, तुम्हारी हालत तो लोधी जैसी हो गई .....
मतलब, खोल कर बता सांभा।
सरदार, केंद्र में लोधी सरकार है, लगभग सभी जगह ये सरकार काबिज है पर अपनी करनी के चलते अब इनकी सत्ता उखड़ रही है। चुलबुल की आंधी जोर पकड़ रही है या कि लोगों में असंतोष फैल रहा है उसका नतीजा है कि लोधी सरकार को नुकसान हो रहा है।
इससे घूमने का संबंध क्या है सांभा?
सरदार, लोधी सरकार को नुकसान हो रहा है और वो विदेशों में जाकर टाइम पास कर रहे हैं।
आगे घूमना नहीं मिलेगा न सांभा इसलिए ये घूमना फिरना हो रहा है।
सरदार, रामगढ़ में ठाकुर ने कहा कि वो लोधी को जितवाकर रहेगा।
वो कैसे सांभा?
सरदार, ठाकुर ने मेहबूबा के साथ मिलकर लोधी के दुश्मनों की हार्दिक इच्छा को खत्म करने के लिए उनकी सीडी बाजार में उतारी है।
सीडी, कितने खरीददार मिले हैं सांभा।
सरदार इसका रिस्पांस तो ठाकुर ही जानता है।
ठहरजा मैं ठाकुर को फोन लगाता हूं।
गब्बर ने ठाकुर को फोन लगाया। वो सीडी देख रहा था इस लिए फोन नहीं उठाया। परेशान गब्बर का जीएसटी (जब सब्र टूटने) होने लगा तब ठाकुर ने फोन उठाया।
सीडी.....
सीडी, हां है कितनी चाहिए और कहां चाहिए
अड्डे पर (गुज) रात में
कौन सा अड्डा....
डूंडे ठाकुर .. मैं गब्बर बोल रहा हूं
गब्बर अगर व वहां तेरे पास होता तो तुझे कटेहाथ से कसकर तमाचा मारता, परेशान मत कर, अभी मजा आ रहा है। काम करने दे।
अबे ओ करणीसेना के छुटभैये नेता,
गब्बर, हम संजय को पाजीराव बनाकर हम थप्पड़ मारचुके देवदास।
खामोशी: द कंफ्यूजिकल हथकटे ठाकुर..जब अकबर को जोधा ब्याही तब कहां थे तुम, जब विदेशी आक्रांता मुगलों के दरबार के ऊंचे लोगों ने सिर झुकाया तब कहां थे तुम? एक संजय की बात पर तुमने ये लीला रची। बहुत नाइंसाफी है ये.... हमारी फुलवा सी फूल को तुम्हारे लोगों ने फूलन बनाया तब औरतों की इज्जत कहां गई थी ठाकुर। एक अकेेले को थप्पड़ मार के और एक हसीना पीपीका की नाक काटने की बात कहकर तुमने बता दिया कि तुम लोग औरतों की कितनी इज्जत करते हो। राजा पतनसिंह कमजोर हो गया तो अपनी औरतों को आग में झोंक मारा। बहुत नाइंसाफी है ये ठाकुर। ये एकता उस समय कहां थी जब औरतें जल रही थी। तब तो अपनी-अपनी मूंछों और नाक के लिए तुम्हारे भाई-भाई आपस में मां की आंख कर रहे थे। करणी तो स्वयं देवी हैं औरत का सबसे बड़ा रूप। देवी के नाम पर औरत की नाक काटकर तुम खाजपूत बन गए हो ठाकुर।
गब्बर तुम भी तो सिंग हो ना?
सिंग नहीं सिंह हूं मैं ठाकुर औरतों की इज्जत जो करता है वो सिंह है गब्बर। सिंग घुसेगा खाजों के पिछवाड़े। मैंने बसंती की नाचने की प्रतिभा को पहचाना और मेहबूबा को पर्दे के बाहर किया। तुम इतना हंगामा अपनी बुराइयों को हटाने में क्यों नहीं करते ठाकुर? तुम औरतों की इज्जत की बात करते हो उन पर अत्याचार करके। तुम तो शुरू से महिला अधिकारों की टांग तोड़ रहे हो आज कैसे रखवाले बन गए। तुमने अपनी बहू को विधवा रखा और उसके जय के साथ हनीमून मनाने के सपनों को कटे हाथों से चकनाचूर कर दिया। आज भी तेरी बहू अटारी पर लालटेन जलाकर जय के भूत से आंखे चार करती है।
वो बातें बीत गईं गब्बर। मैं तो घोषणा करने वाला हूं पीपीका को कोई मेरे पास ले आए तो मैं उसे बसंती दे दूंगा।
बसंती कोई बकरी है जो किसी को दे देगा डूंडे ठाकुर।
नहीं वो घोड़ी यानी धन्नों की मालकिन है। वीरू से मैं बात कर लूंगा। तुम अपनी कहो गब्बर।
पीपीका के मामले में तुझसे बाद में बात करूंगा ठाकुर... डूंडे ठाकुर तू क्या सोचता है सीडी मार्के ट में लाकर लोधी जी दुश्मनों की हार्दिक इच्छा का क्रियाकरम कर देंगे हां? पार्टी के (गद्) दारों को कम मत समझ।
गब्बर, राजनीति तू समझेगा नहीं, जो राजनीति के लिए बिक जाए, लोकहित छोड़कर अपने लोगों का सिक्का जमाए उसकी सीडी ही खरीदनी चाहिए। हर जगह सिर्फ पार्टी के (गद्)दार नहीं होते सभी लोग होते हैं सभी का ख्याल करना होता है। गब्बर चिंता मतकर दिन किसी का हो (गुज) रात का वक्त तो भारतीय जुगाड़़ुओं का ही होगा। गब्बर शर्त लगा ले। हथकटे ठाकुर हारा तो क्या देगा?
सीडी ले लेना....
कौन सी?
लाघव जी और कामकुमार की
अरे खामोश,
इतनें में अचानक फोन कट गया। एक मैसेज सुनाई दिया। लाइन में फॉल्ट अपने की वजह से बीएसएनएल नेटवर्क कुछ समय के लिए अनुपलब्ध है। रुकावट केे लिए खेद है।

कुएं का रहस्य

दोनों लापता दोस्तों का आज तक पता नहीं चला है। पर लोगों को आज भी उस सड़क पर जाने में डर लगता है। कुछ दुस्साहसियों ने वहां से गुजरने की कोशिश ...