गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

तुम न आतीं तो...

निकाह की तारीख तय होते ही पूरेपरिवार माहौल गर्मा गया। अम्मी और बहन के साथ जनानियों का पूरा हुजूम बाजार की झख मारने लगा। इसलिए नहीं कि दुल्हन के लिए बाजारी हो रही थी। कौन महजबीं कौन सा लिबास पहनकर कयामत ढहाएगी किस तरह की किनारी चमक ली जाए इसको लेकर बाजारी हो रही थी। घर के आदमी ठोंका-पीटी कर माल कमाएं और घर की औरतें बेशर्मी से लुटाएं।
ये देख शब्बो, ये किनारी देख।
अरे भैया ये कपड़ा दिखाना।
हाय ये जाली, तो जान ही ले लेगी।
जिनका निकाह होना था उनको मर्दानगी के नितनए सबक सिखाए जा रहे थे। सबसे परेशान थे तो लड़की के बाप सुभानअली। घर की सबसे बड़ी बेटी का निकाह और वही पैसे की कमी। जिससे सभी लोग परेशान रहते थे। मौलाना साहब ने कहा था कि मेहर कम होगा तो दहेज कम करवा लेंगे। वैसे भी खानदानी है। जांचा-परखा परिवार है। यहां-वहां हाथ मारकर और बाप-दादाओं के जमाने की अटाला हो चुकी विरासतों को बेचकर चालीस हजार जुटे। लड़के वाले मान गए तो निकाह तय तारीख को होना मंजूर हो गया। खरीद-फरोख्त हो गई थी। सुभान अली बस ये चाहते थे कि पूरा मामला अमन-चैन से पूरा हो जाए हंगामा न हो क्योंकि उनका खून का दौरा यानी ब्लड प्रेशर हाई हो जाता था और उनके मन में शुब्हा था कि कहीं कुछ न कुछ तो होगा ही।
निकाह का दिन था। घर में जनानियों की भीड़। बाहर इंतजार करते घर के आदमी। यहां-वहां बेकार की फांका मस्ती करते बच्चे। तभी देखा तो सबसे खास मेहमान आए रज्जो खाला। उनके साथ वारिस भी था, जो उनका दूर का भतीजा था। रज्जो का इंतजार था। सुभान मिले तो बोले-आओ आओ तुम्हारा बेसब्री से इंतजार था। तुम न आती तो रंग न जमता। उन्होंने पूरा मूंह फाड़ा और हंसी। उनके पीले गंदे दांत ओफ्। वो अंदर चली गई। बारात आई और आगे कार्यक्रम शुरू हो गया। कोई आदमी बरक्कत ढोली को बुला लाया। ढोल पिटने लगा और यहां नाच की मल्लिका और डांस का बादशाह बनने के लिए बेकार के बेकरार लोग जुट गए। सुभान ने देखा। इसे क्यों बुला लाए? पैसे वैसे ही कम हैं। अरे चाचा, सौ-पचास में क्या जाता है? सौ-पचास नहीं पूरे ढाई सौ, ढोली बीच में बोला। लो- सुभान हो गए परेशान। ऐसा मौका बार-बार नहीं आता चाचा, दूसरी आवाज आई। अपनी जेब से निकलें तो बोले जनाब-सुभान की परेशानी की अंत नहीं। एक औरत आई- आपको बुला रहे हैं अंदर। सुभान अंदर आ गए। झखमारी करने के बाद समधी यूसुफ से बातचीत होने लगी। तभी चीख-पुकार मची। सभी बाहर दौड़े। देखा तो वारिस और किसी लड़के की मारपीट हो गई थी और किसी ने वारिस के हाथ में चाकू दे मारा था। किसने किया। सुभान ने पूछा। जुबेर ने..जुबेर ने। क्यों? अरे ये नाच रहा था वो भी नाचने लगा। टल्ला-वल्ला लग गया। पहले गाली फिर मारपीट फिर चाकू। जनाब यूसुफ ने सुभान का मुंह देखा तो वो शर्मा गए। कोई नहले पर देहला भी निकला, उसने पुलिस को बुला लिया। पुलिस आई। जुबेर तो भाग गया। वारिस मेडिकल के लिए गया। सुभान रपट लिखाने थाने आना तो नहीं चाहते थे पर रज्जो के कारण आना पड़ा। वैसे रज्जो से उनका पुराना आशिकाना भी था। खैर, निकाह हुआ और शाम को दावत भी हुई। दावत में रज्जो सुभान से मुखातिब हुई पर अब सुभान ने नहीं कहा कि तुम न आती तो रंग न जमता।

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