सोमवार, 30 मार्च 2020

किसी और की इज्जत

सिपाहीराम अपनी पत्नी मंदा को लेकर को लेकर गलियों में फिर रहा था। शाम का धुंधलका पडऩे में कुछ ही समय बचा था। कहीं से कोई टांगा या बैलगाड़ी मिल जाये तो स्टेशन तक पहुंच जाये और फिर वहां से शहर निकल जायें पर ऐसा कहां होना था? वो बदहवास जा ही रहा था उसके पीछे उसके दूधमुंहे बच्चे को गोद में दबायें उसकी महरू यानी पत्नी मंदा। तभी उसे घर के सामने से जाते देखकर बड़े घर के दरवाजे पर खड़ा ठाकुर का नौकर दत्तू चिल्लाया- अरे आज गाड़ी न मिली हो, तीज है आज रात गुजारने को अंदर आ जा महरू को भी ले आ। मंदा अंदर जाना न चाहती थी पर सिपाहीराम अंदर जा घुसा। उसने भी सोचा गाड़ी न मिली तो कहां रात का निर्वाह होगा? अंदर ठाकुर बैठा था आंच पर मुर्गा था और शराब की दावत होने वाली थी। ठाकुर के घर की औरतें रतजगे को देस की सारी औरतों के साथ माता मंदिर पर थीं। ठाकुर का नौकर दत्तू यूं तो सिपाहीराम को रोकता नहीं पर मंदा को देखकर उसका मन डोल गया। ठाकुर कहता था- शराबियों के तीन बाब- एक भी न हो तो मजा खराब-सुन रे मनवा कर रख याद-शराब-कबाब और मस्त शबाब।
सुसराल जाती मंदा रीत के मुताबिक सोलह श्रृंगारों से सजी थी। खूबसूरत तो वो गजब की थी ही उस पर ये नखरा। ठाकुर खुश हो जायेगा।
दोनों अंदर पहुंचे। मंदा ठाकुर से पर्दा कर रही थी। कोन है रे तू। यहां से दसवीं गली में जो रूपवती काकी है न मैं उनका जमाई सिपाहीराम और ये...
पता है..पता है- उसने हुक्का गुडग़ुड़ाया। आज तो तीज थी फिर क्यों ले जा रहा है? मंदिर पर रतजगा था वहां ना भेजा। सासुरी ने कहा नहीं आज त्यौहार है नहीं जाना है। रात रुक जाता कल चला जाता।
जो बात तो सही ठाकुर सा. पन मेरी चाकरी की खातिर जाना जरूरी है।
के काम करता है तू?
हुकम, सहर के चिट्ठीखाने में डाकिया हूं।
तो तू तो वही रहा डाकिया डाक लाया..डाकिया डाक लाया- वो हंसा।
हां, हुकम..
और तेरी घरवाली..क्या नाम?
मंदाकिनी- दत्तू के मुंह से एकदम से निकला। इससे सिपाहीराम असहज हो गया। ठाकुर ने दत्तू को घूरा।
मंदा...मंदावती- ठाकुर बोला, हमारे बाड़े में जब भी भजन होता अम्मा मंदा को बुलातीं और ये राधा-किशन के रास में राधा बनकर नाचती थी और किशन बनती थी वो..
रसीली- दत्तू के मुंह से फिर निकला। सिपाहीराम फिर असहज हो गया। ठाकुर ने फिर से दत्तू को घूरा।
रसाल, अब तो वो हमारे चचेरे भाई की ब्याहता है और बाड़े के पीछे के मकान में रहती है। मंदा मिली के नहीं उससे- ठाकुर का सवाल था जिसके जवाब में मंदा सिर हिलाकर हलके से बोली- हूं।
अंधेरा हो रहा था। शराब को देखकर मंदा और सिपाहीराम कुछ असहज थे सो ठाकुर ने दत्तू को बोला- नीचे के मुसाफिरखाने में इनको ठहरा दे। दो गिलास दूध दे दे और कुछ मांगें तो दे देना। गादी, गोदड़ा, बिछावन वहीं हैं लालटेन वहां कर देना। नीम का धुआं अच्छे से देना।
दत्तू उन दोनों को लेकर सामने के कमरे पर पहुंचा और दोनों को अंदर ले गया। सिपाहीराम की नजर शराब और मुर्गे पर थी जिसको ठाकुर भांप गया था। कमरे में दत्तू ने जल्दी-जल्दी झाड़ू बुहारी। गोदड़ा झटकारा। मंदा गोदड़ा बिछाकर उसपर अपने दूधमूंहे बच्चे को लेकर बैठ गई अब तक बच्चा भी उठ कर रोने लग गया।
अलेलेले..हमार मुन्ना..हमार चुन्नू, ए...-मंदा अपने बच्चे को लाढ़कर दूध पिलाने लगी।
उसकी आवाज सुनकर ठाकुर के जमा पांच लोग हंसने लगे। जिनकी आवाज मंदा ने न सुनी। कुछ देर बाद सिपाहीराम दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया। उसका अंदाजा था कि उसे कबाब और शराब जरूर मिलेगी। यहां बोतलें खुल ही रही थीं कि सिपाही को देखकर वो लोग चौंके।
सिपाही झेंपी हंसी हंसकर बोला- हें..हें, पार्टी हो रही है।
पियोगे लाला..एक आवाज आई।
हूं..
जियो हो लाला जियो-बड़े छुपे रुस्तम निकले तुम तो।
आओ यहां बैठ जाओ।
सिपाही उनके बीच जा बैठा और मुर्गे की टंगड़ी शराब के साथ गुड़ककर वहीं टुन्न हो गया।
ठाकुर यह सब बैठकर देख रहा था। अब वो उठा और सामने मुसाफिरखाने की ओर चला गया।
सब खुश थे कि ठाकुर के बाद उनको भी मिलेगी मंदा। मंदा की जिस्मानी गर्म खुश्बू को महसूस कर सभी रोमांंचित हो रहे थे। ठाकुर ने उड़काया दरवाजा खोला तो देखा, गोदड़ा बिछा था जिस पर मंदा बैठी थी। बच्चा उसकी गोद में दूध पीते-पीते सो चुका था। ठाकुर को देखकर वो चौंकी।
ठाकुर सा. पैरन लागी अब छोड़ दे मने।
उसके गजरे की महक कमरे में फैले नीम के धुएं की सौंधी गंध में भी साफ आ रही थी।
बस.. भूल गई जब मैंने तेरा हाथ धरकर तुझे चिपटा लिया था अपने सरीर से। तब तो तूने कुछ कहा नहीं था। थारे होठन का जायका अब तक हमारे मुंह में रसता है। वो रस हम अब तक न भूलेे। तुझे लड़की से औरत बना दिया तब भी तू चुप ही रही।
ठाकुर तब में गांव की इज्जत थी पन अब में सिपाही की इज्जत हूं- मंदा बोली।
ठाकुर का नशा एकदम काफूर हो गया। वो बाहर आया और सांकल लगा दी हाथ में ल_ा उठाया और सीढिय़ों पर बैठ गया।
जो मंदा के साथ मजा करने का अरमान लिये उस ओर आने वाले थे, उनको धमकाते हुए ठाकुर ने कह डाला- अब यहां कोई पैर न धरे वर्ना सिर खोल डालूंगा। उसकी आवाज मंदा ने भी सुनी। ठाकुर नशे में था फिर भी वो अकेले दस के बराबर था। लट्ठ भी उसके हाथ में था।
धीरे-धीरे रात कटी सुबह सिपाही को होश आया तो उसने देखा कि सभी वहीं थे। ठाकुर सीढिय़ों पर उनींदा सा था। सिपाही को देखकर वो उठा और सांकल खोली देखा तो मंदा बच्चे साथ वहां सो रही थी जो हलचल सुनकर उठी। सिपाही न जाने क्या समझा और बोल पड़ा- घणी खम्मा, ठाकुर सा. आप हमारे देवान हो। इसके बाद सिपाही मंदा को लेकर वहां से निकलने लगा। जाते-जाते मंदा ने ठाकुर का मुंह देखा जिस पर एक अजीब सा संतोष था। उसने ठाकुर के पैर छू लिये। दत्तू वहां एक टांगा ले आया था जिसमें सिपाही और मंदा को बिठा दिया। सिपाही टांगा चलाने वाले के पास बैठा था। टांगा निकल गया। कुछ समय के लिये ठाकुर की आंखों के सामने भूतकाल का एक चित्र घूम गया। मंदा या मंदावती या मंदाकिनी..उसके घर आती थी ठाकुर मौका पाकर उसे छेड़ा करता था वो कुछ न कहती थी। उसने उसे हर उस स्तर तक प्रताडि़त कर दिया था जो कि असामाजिक था। ठाकुर ऐसा उसके साथ ही नहीं कई और लड़कियों के साथ भी कर चुका था। यह ठाकुर का वर्चस्व ही था कि वो या कि कोई भी गांव की लड़की जिसे उसने छेड़ा था वो उसके खिलाफ कभी बोल न सकी। जब तक मंदा गांव की इज्जत थीं, ठाकुर ने उसे छेड़ा पर अब वो अपने पति की इज्जत है उसके घर की इज्जत है जिस पर ठाकुर का कोई अधिकार नहीं था। ठाकुर आज बेहद गिरा हुआ महसूस कर रहा था। कुछ दूर मुड़ते समय तक ठाकुर उनको देखता रहा। जब टांगा मुडऩे लगा तब मंदा ने ठाकुर के हाथ जोड़े। फिर वो अदृश्य हो गये।
तीज का जागरण समाप्त हो चुका था औरतें लौट रही थीं और उनके गीत का स्वर दूर से ही सुनाई दे रहा था। ठाकुर के घर रातभर से जमें उसके दोस्त अब निकल रहे थे। उसका एक दोस्त बोला- रात को क्यों तूने इज्जत के खाखरे कर दिये? पूरे मजे की ऐसी की तैसी कर दी। अब वो गांव की नहीं किसी और की इज्जत है- इन शब्दों के साथ ठाकुर घर में वापस चला गया।

शनिवार, 28 मार्च 2020

एक थी नायिका

ये क्या मोल दिया?
दो रुपया...
रुक जा
उसने ब्लाउज में हाथ डाला। एक हथेली भर का पर्स निकाला। दो रुपया दिया और बिंदी के पैकेट को थैली में डाल लिया। सांवला भरापूरा बदन लटकते वक्ष और साड़ी से बाहर आने को मचलता पेट और निकलती नाभी। अरे चल..उसने अपने बच्चों को डपटा जो हाट में यहां-वहां मस्ता रहे थे। पैरों में मोटी पायल जो काली सी पड़ चुकी थी। भारी सी आवाज- जोक्या इधर चल। जोक्या यानी जोगिया और सुल्ला यानी समीर इस औरत के बच्चों का नाम था। इस औरत का नाम था-कामी। वैसे तो इसका नाम कामिनी था जिसे देखकर काम की आग पैदा हो जाए पर इसका नाम कामी हो गया जो कि इसके पिता ने इसे प्यार से दिया था। असल बात तो थी कि इसका नाम काली रखा गया था पर मां को शर्म आई और काली कामी हो गई। कामी पूरे बाजार-हाट घूमती और सामान सस्ता जो होता ले लेती।
इसका पति केवल एक अखबार में काम करता था। वो एक कंपोजर था जो कि अखबार के लिए खबरें चलाया करता था। वो जो शाम के छह बजे से जाता तो अखबार निकलने के बाद यानी ढाई-तीन बजे रात को ही लौट पाता था। जब वो लौटता तब वो दरवाजा, जो भेड़ा कर यानी अटका कर रखा जाता था, खोलता था और थककर चूर होकर कामी को उठाता वो उसे खाना परोसी और फिर लेट जाती। रात को जब काम न होता था तो वो अपने साथियों के साथ वयस्क फिल्में देखता और जब वो ऐसा करता तो रात में आकर बड़े प्यार से कामी के पैरों को सहलाकर उसे उठाता या उसके पैरों को चूम ही लेता। कभी गुदगुदी भी करता। कामी समझ जाती और सोने के बजाए जागती और फिर दोनों डूब जाते प्यार के समंदर में।
कामी एक कमरे के मकान में रहती थी। वहीं चौका वहीं सोना। एक पलंगपेटी थी जिस पर वो जोक्या और सुल्ला को सुला देती और खुद जमीन पर गंदला सा गद्दा जिसे आप गोदड़ा कह सकते हैं बिछाकर सो जाती। वहीं एक ड्रम जिसमें कपड़े और स्टोव सहित दूसरे जरूरत के सामान जो कम उपयोग में आते थे रखा होता था एक अद्दा सा टीवी जिस पर वो सास-बहू के सीरियल देखती और फिर वैसा ही फैशन करती, रखे होते थे। आज कामी खुश थी आज ही के दिन उसका और केवल का विवाह हुआ था। वो सोलह श्रृंगार से सजी थी, लाल घाघरा-ओढऩी, उसका ब्याह हुआ था, वो भी केवल के साथ। इश्......श कामी शर्म से और काली पड़ जाती। उसका रोम रोम सिंहर उठता। शाम को शादी और उसी रात सुहागरात....वो उसको याद करती और गीत गाती- साजना है मुझे सजना के लिए...जो कि बेहद बेसुरा लगता।
पर आज जो हुआ वो उसपर किसी वज्रपात से कम न था। आज केवल की छुट़्टी थी और वो घर पर नहीं था। इस पर कानू भैया ने बताया कि उसका तो किसी दूसरी औरत से चक्कर है और वो उसके साथ सिनेमा देखने गया है सिनेमा का नाम भी था- ये प्यास कब बुझेगी। हें...रातरानी टॉकीज, जिसमें ऐसी वयस्क फिल्में लगती थीं, पास में ही था। वो वहां जा पहुंची। सिनेमा छूटी तो देखा केवल सैव्या के साथ निकला। वो खुश था कुछ बोल रहा था और सैव्या भी हंस रही थी। सैव्या कामी की पुरानी दोस्त थी। वो इससे पहले जहां रहती थी वहीं सैव्या भी रहती थी। शायद वहीं से इनका चक्कर शुरू हो गया होगा। सैव्या ने तो वहीं अपने पति को छोड़ मारा था।
अब कामी उनके सामने जा पहुंची। उसे देखकर वो घबरा गए। कामी ने सैव्या को पकड़कर उसका जूड़ा नोच लिया। भरे हाथों से मुक्के और थप्पड़ रसीद किये। अपने पति को छोड़कर मेरे पति पर डोरे डालती है। सैव्या को पिटता देख। केवल आगे आया-उसे छोड़ दे...अब मैं उसके साथ रहूंगा। तुझे आधी तनख्वाह दे दिया करूंगा। और क्या मेरे बगैर सो सकोगे...कामी ने पूछ डाला। अब ज्यादा डेकोरेशन मत कर घर जा। इतने में वहां दो हवलदार आ गए। और दोनों पक्षों को कचहरी ले जाए। सैव्या को थानेदार जानता था। वो उसका भी चाहने वाला था। मामले में पति ने कह दिया कि कामी के साथ नहीं रहूंगा चाहो तो जान से मार डालो। कामी अधूरे मन से वापस आ गई। अपनी पत्नी से अलग रह रहा उसका भाई कानू उनके पास आ गया।
लोग कामी को देखते तो मुस्कियां मारते। उसने पुराना घर छोड़ दिया और नए टापरे में आ गई। उसने पति को तनख्वाह देने से भी मना कर दिया। कानू मार्केट में सब्जी का ठेला लगाता था उसकी मदद से कामी ने भी सड़क किनारे सब्जी बेचना शुरू कर दिया। सब्जी के व्यापार में उसे कई लोगों से दो-चार होना पड़ता। कुछ उससे अच्छे से पेश आते तो कुछ शब्दिक बलात्कार कर डालते। बदमाश किस्म के लोग उसके अंगों की तुलना रसीले फलों से करते और लार टपकाते पर वो भी धीरे-धीरे दुनियादारी सीख गई। वो दबंग की तरह व्यापार करती, गालियां देती और व्यापार में चोखापन लाती। मोलभाव और बतियाने के चलते महिलाओं में वो लोकप्रिय हो गई। उसके ठिये पर महिलाओं की भीड़ होती।
इस बीच पास की एक सब्जी बेचने वाली छबीली से उसका टंटा भी हुआ। छबीली सभी से मजाक मारी करती यहां तक कि उसके तो कई सब्जीवालों से अंतरंग संबंध भी थे सो सभी उसकी ओर बोलने लगे। ऐसे में उसको साथ मिला कन्हैया का जो उसके पास ही बैठकर धंधा करता था। वो उसकी मदद करता। कामी उसकी ओर आकर्षित होने लगी। कन्हैया का परिवार पास के गांव में था। एक दिन कामी ने उसकी मदद करने की गरज से उसका टोकना उठा लिया जिसमें सब्जी थी और वो उसे लेकर उसके एक कमरे के मकान पर पहुंची जहां वो किराए से रहता था। वो अंदर गई उसने टोकना रखा इस बीच कन्हैया पास के कॉमन बाथरूम में हाथ-मुंह धोने गया। कामी ने उसका कमरा देखा। एक लोहे का पलंग, पानी का मटका और दीवार पर भोजपुरी अभिनेत्री का घाघरा-चोली वाला बेहद कामुक पोस्टर। रात का समय था और आसपास कोई भी नहीं। कामी का मनमचलने लगा। इस पर पलंग उसकी बेचैनी बढ़ा रहा था। उसका मन हुआ कि वो इस पर लेट जाए साड़ी उघाड़ दे। कन्हैया के साथ मन की आग बुझाकर उसकी ही हो जाए। कन्हैया, उसका साथी...वो उसकी हो जाए..बिलकुल इस अभिनेत्री की तरह कपड़े ओढ़ ले। बेकार तकलीफ कर डाली...कन्हैया मुंह पोछता हुआ अंदर आया। उसे देखकर कामी बाहर की ओर भागी..पायल छनक उठी..मन मचलने लगा वो भागी और बेतहाशा भागी। सूनसान गलियों को पार कर वो अपने घर आई और सांस लेकर थम गई। रात को तकिया पर उसे कन्हैया के जैसा लगने लगा पहले तो उसने उसे हटा दिया पर फिर उसके मन में ख्याल आया। जब केवल धोखा दे सकता है तो वो तो फिर भी....उसने साड़ी हटाई और तकिये पर लेकर उसे चूमती गई। हर अंग पर उसकी छुअन। एक अनोखा सहवास था ये...उत्तेजना के चरम से उतर जब वो कुछ होश में आई तो बाहर आकर उसने बाल्टी से पानी ले खूब मुंह धोया। पूरा ब्लाउज गीला हो गया। जोक्या जो दरवाजे से बाहर सटकर खाट पर सो रहा था उठा उसने उसे देखा फिर सो गया। वो समझा नहीं कि ये क्या हुआ था।
दूसरे दिन कन्हैया उससे मिला उसने पूछा कि वो रात को बिना कुछ बोले भाग क्यों निकली। इस पर कामी ने बहाना बयाना कि घर में जरूरी काम याद आ गया था। कन्हैया ने पोस्टर देखा था पर वो समझ नहीं पाया कि कामी ने कैसे अपने आप को टूटने से बचाया होगा। उसने ज्यादा ध्यान न दिया।
मंडी में ही व्यापार करता था जयजय बाबा। हवाई जहाज सा शरीर लंबे बाल, अजीब सी मूंछे और दाढ़ी। एक एकहरा आदमी वहां का दादाभाई था। उसने जब कामी को देखा तो देखता ही रह गया। जब उसका और छबीली का विवाद हुआ तो वो भी वहां आया और छबीली को चुप रहने की हिदायत दे गया। कामी को देखकर वो भी मचल गया। आदमी ने कैसे इसे छोड़ दिया...वो सोचता और अपने अंतरंग मित्रों से कहता- कितनी भरपूर है ये उफ...इसके आदमी ने कैसे इसे छोड़ दिया। अरे ... नहीं होता होगा साले का..उसके दोस्त कहते। ये एक रात का माल नहीं है हर रात...हर रात को ये रंगीन बना दे। ये ... से भरे वक्ष..ये भरापेट, ये रसीले होंठ, ये पूर से उफनता बदन। वो बात करने के बहाने कामी के पास आ जाता और उसकी छाती को देखता और ब्लाउज के अंदर झांकने की कोशिश करता जिसे कामी कभी समझ न पाई। वो सोचता एक दिन ये टूटेगी जरूर और उस दिन वो उसे अपनी बनाकर ही रहेगा। उसे छोड़ेगा नहीं...मांग में सिंदूर डालकर अपनी रखैल बनाकर रखेगा और कहीं एक कमरा दिलवाकर रखेगा। रोज उसके साथ दिन मंडी में और रात बिस्तर पर गुजारेगा। हालांकि जयजय बाबा ऐसा कुछ करता नहीं उसका तो खुद का परिवार था और एक खूबसूरत पत्नी भी थी पर उसका सपना था कि एक बार कामी उसे मौका दे। कामी को पता चला कि वो गुंडा-दादा है तो उसके पास राखी लेकर पहुंच गई। राखी देकर बाबा चमक (हैरान हो) गया उसने रखी तो नहीं बंधवाई पर वचन दिया कि वो उसकी रक्षा करेगा। कामी खुश हो गई। इसके साथ ही कामी पार्षद दादा दयावान को धार्मिक कार्यक्रम का सबसे ज्यादा चंदा देती और फोटो खिंचवाती। अंतत: छबीली मंडी छोड़कर ही भाग निकली। पांच साल बीत चुके थे। आज होली दहन की शाम थी, बाजार जल्दी उठ गया था। एक गेर निकली थी जिसने रामरज फैला दी थी। कामी का सामान समेटा जा चुका था वो बस ठिये को अगरबत्ती लगाकर घर जाने वाली थी। वो उठी और बोरा जिस पर वो बैठी उठाने लगी तो उसे याद आया शादी के बाद की पहली होली, जब केवल ने उसे रंग लगाया तो वो भागकर कमरे में चली गई केवल वहां आया-दरवाजा बंद किया और.....जो प्यार का रंग लगाया वो जोक्या के रूप में गर्भ में समाया। ऐसे ही करवाचौथ की रात को हुआ और सुल्ला होने को हो गया। ओए..होए....क्या क्या प्यार भरी यादें हैं जो अब याद करने लायक लगती नहीं।
खैर, वो उठी उसकी उम्र अब प्रौढ़ हो गई थी। कमर में दर्द भी रहता था। वो बोरा हिलाकर साफ कर ही रही थी कि आवाज आई। कामी...ये आवाज केवल की थी। उसके बाल बिखरे थे और वो बौराया सा था। कामी ने उसे देखा। क्या बात है? कामी....वो फूटफूट कर रोने लगा। कामी ने उसे पास ठिये पर बिठाया। कहो क्या बात है? केवल ने रोते हुए बताया- सैव्या को वह पहचाना नहीं। उसके कई पति थे और वो हर एक के साथ घूमती और मजा मारती थी। उसने आज उसे रंगेहाथों पकड़ा तो उसने और उसके साथी ने उसे पीटा और भगा दिया। वो एक ठेले पर बैठा था। कामी उसके सामने खड़ी थी। उसने उसका मुंह पकड़कर उसे अपनी छाती से लगा लिया। उसके वक्षों के बीच उसका पूरा चेहरा समा गया। कुछ क्षण वो ऐसे ही रहे। केवल के कानों पर पानी गिरा वो कुछ समझ गया। कामी के शरीर की गर्मी और पसीने की तीखी गंध को पाकर केवल यूं संतुष्ट हुआ मानों सर्दी की रात में अलाव मिल गया हो। फिर कामी ने उसे छोड़ दिया। मुझे माफ कर दे कामी। मुझसे भूल हो गई। उसने देखा कामी की आंखें गीली थीं। अब कामी गंभीर होकर बोली- आप छोड़कर गए। जिंदगी ने बहुत कुछ सिखा दिया। अब आप वापस भी आ जाओ तो भी मुझे वैसा न पाओगे। आप वैसे हो जाओ भले ही पर मैं पहले सी न हो पाऊंगी। आपको शायद मेरा शरीर मिले पर मेरी आत्मा की तो आप बहुत पहले ही हत्या कर चुके हो। आपने मेरी छाती को चूमा पर आंख से गिरते आंसुओं को आप जान न पाये। मेरा शरीर आपका था है और रहेगा। आप साथ चल सकते हो। रह सकते हो पर मेरी आत्मा इन आंसुओं के समान बहकर निकल चुकी है। केवल चुप रहा। कुछ देर बाद कामी ने जयजय बाबा को फोन लगाया और केवल का मामला बताया-बाबा, सैव्या इनका माल दबा गई है। बाबा, जो होली की पूजा करती महिलाओं से घिरा था वहां से निकलना नहीं चाहता था, उससे बोला कि वो रंगपंचमी तक रुक जाए उसके बाद वो सैव्या को पेलकर पूरा माल निकलवाएगा। पेलकर...।
आपको बता दें कि जयजयबाबा अपनी कॉलोनी या बस्ती का कथित दादा था जो हर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करता था जिसमें महिलाओं की भागीदारी होती थी वो उनके बीच जाता और ऊर्जा से भर जाता महिलाएं भी मुस्काकर उसका स्वागत करतीं। वो सुनहरा मौका छोडऩा चाहता ही नहीं था वर्ना उस रात ही केवल का माल उसके पास आ जाता। खैर, कामी केवल को अपने साथ ले गई। कानू ने उसे गालियां दी पर कामी के बीच में हस्तक्षेप करने पर वो बाहर रंग खेलने चला गया। जाहिरातौर पर वो दूसरे दिन भी घर नहीं आने वाला था जबतक कि कामी उसे न बुलाए। जोक्या और सुल्ला, जो अब बड़े हो गये थे, ने उससे बात नहीं की वो चुपचाप रोटी खाकर बाहर ही खाट पर सो गये। देर रात को कामी बाहर आई कंबल लेकर वो जानती थी केवल के लिये ऐसे रात काटना मुश्किल था। उसने उसे कंबल ओढ़ाया और भीतर चली गई। कामी मुझे माफ कर दे...एक आवाज उठी पर कामी भीतर चली गई। कुछ लोगों का कहना था कि कामी ने उसे कंबल ओढ़ाया और खुद भी उसमें समा गई। क्योंकि वो जानती थी केवल अकेले सो नहीं सकता। उसकी बाहों में खुद को समेट दिया। एक समर्पण था ये। क्या हुआ ये कोई नहीं जानता? आपको जैसा लगे वैसा इस कहानी का अंत समझ सकते हैं। पर मैं जानता हूं कि मेरी कहानी की नायिका विद्रोह करती है और वो समर्पण कर ही नहीं सकती वो भी गलत आदमी के सामने...मैं आश्चर्य करता हूं कि वो समर्पण कैसे कर सकती है? मेरे हिसाब से उसने समर्पण तो नहीं ही किया! वैसे कुछ दिन बाद कामी और केवल एक हो गये, सबकुछ पहले जैसा हो गया बस कामी पहले सी नहीं हो पाई...वो एक जिस्म हो गई पर आत्मा...वो तो पहले ही मर चुकी थी।

गुरुवार, 26 मार्च 2020

एक प्रेतबाधित सवाल

वो जब घाघरा और चोली पहनकर गरबे के पंडाल में उतरती और गरबा रमती तो सब लोगों की आंखें उस पर ही टिक जाती। वो भी रोज नया श्रृंगार करके आती। उसका गोरा रंग तो पंडाल में दमकता ही था चूडिय़ों की खनक और पैरों की पायल की छनक तक कभी-कभी सुनाई दे जाती। हर दिन हाथों में नए-नए चूड़ले-नई कलाकारी की मेहंदी, पैरों में आलता, नए तरह की पायल, हर दिन नया नखरा हर दिन नई अदा। लड़के उसे देखकर ये सोचते कि किसी तरह से उससे पहचान हो जाए तो फ्रेंड की बात तो छोड़ो फिर तो सीधे शादी की ही बात पर वो आकर रुकेंगे पर वो लड़की कहां से आती और कहां को जाती पता ही न चलता था।
इस लड़की का नाम था पायल। परिवार वाले तो उसे आने ही न देते पर वो जिद करके यहां आ जाती थी। वो स्कूटी उठाती और फुर्र हो जाती। वो सिविल लाइंस के मकान नंबर 11 में रहती थी। पायल के पिता थे रमाकांत गुजराती, दो भाई और छोटी बहन सहित मां, यही उसका परिवार था। वो सबसे बड़ी थी। तनसुखभाई के सुंदरी इंटरप्राइजेस की वो रौनक थी और उनके बेटे जिग्रेश के दिल का चैन। जिग्रेश मुंह से तो कुछ न कहता पर पायल जानती थी कि उसकी पायल से जिग्रेश का दिल धड़क पड़ता है। बात कही तो न गई पर सभी जानते थे कि उसकी शादी जिग्रेश से ही होगी और पायल की और उसके परिवार की अबोली सहमति भी थी। अष्टमी की रात वो रात के बारह बजे तक घर न पहुंची। पिता को चिंता हुई। गरबा आयोजक किशोर भाई को फोन लगाया तो वो बोले, पायल तो दस बजे ही निकल गई थी। अब पूरा परिवार परेशान हो गया। जिग्रेश को फोन लगाया वो भी उसे खोजने निकला। साढ़े बारह बजे पायल घर लौटी। बाल बिखरे और कपड़े अस्त-व्यस्त। चेहरे पर शरीर पर चोटें। क्या हुआ पायल? पिता ने पूछा। पापा...कुछ लड़कों ने मेरे साथ छेड़छाड़ की है। अरे..रे जाने दे तू तो ठीक है न... पापा मैं तो ठीक पर मैं उनके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट करवाऊंगी- पायल ने जिद की। अरे बेटी रहने दे..बदनामी होगी- मां ने समझाया। न मां मैं तो रिपोर्ट करवाऊंगी। वो अंदर चली गई। दूसरे दिन वो पुलिस स्टेशन गई। रमाकांत भी साथ गए। मामला खंगाला तो पता चला कि समाजसेवी और नेता वसुभाई के बेटे सूरी, उसके दोस्त इकबाल और बाबा खान के साथ दो लड़कों के नाम सामने आए। पांचों की पृष्ठभूमि बेहद रसूखदार परिवारों से थी। पुलिस वालों ने कहा कि लिखित में आवेदन दे दो। पायल अड़ गई कि एफआईआर दर्ज करो। मामला बनते न देख पायल ने जिग्रेश को फोन लगाया। वो आया और पुलिस से पूछताछ की। फिर उसने पिता को फोन लगाया और मामला बताया। तनसुख ठहरे व्यापारी वो घबरा गए। अगर वसुभाई को पता चला तो ठीक है पर बाबा खान के अब्बा तक बात गई तो पूरी इंटरप्राइजेस तहस-नहस हो जाएगी। वो बोले कि जिग्रेश भई तू तो घर आ जा।
अब पायल को गुस्सा आ गया। उसने अपनी पत्रकार दोस्त वैभवी को फोन लगाया और जिग्रेश को बोल दिया कि घर लौट जाओ। पापा राह देखता होगा। वैभवी वहां आ गई और मामला मीडिया की नजर में आ गया। पुलिस ने दबाव में एफआईआर दर्ज तो कर ली आरोपियों पर कार्रवाई होने में शुबहा था। पायल घर आ गई। दूसरे दिन पेपरों मामला आ गया। पुलिस ने जैसा कि अंदाजा था कोई कार्रवाई न की। उल्टे पायल पर ही सवाल खड़े कर दिये। पूरी कॉलोनी में पायल का परिवार चर्चा का विषय बन गया। कुछ लोगों को उससे हमदर्दी थी तो कुछ उसके विरोध में थे। घर वालों ने तो बाहरी लोगों से बात करना और उनकी ओर देखना भी बंद कर दिया। पिता घूमने बाहर नहीं गए और बाकी लोग तो मौन व्रत पर हो गए। पूरे घर में मरघट की सी शांति छा गई।
पायल परेशान थी कि तभी वैभवी घर आ गई। उसके साथ जागो शक्ति जागो महिला संगठन की अध्यक्ष मणिबेन और प्रमुख कांता ताई भी आई थीं। उन लोगों ने पायल को ढांढस बंधाया। वॉट्सअप और फेसबुक सहित दूसरे माध्यमों पर लोगों ने पायल का साथ दिया और आंदोलन की पृष्ठभूमि बनने लगी। शाम तक पुलिस का प्रमुख घर आ गया और पायल का बयान ले लिया और आरोपियों को धरदबोचा। रात में ही पूछताछ शुरू हो गई। दशमी यानी दशहरे के दिन पुलिस को ऐसी हकीकत पता चली कि वो हैरान रह गई। अब पुलिस प्रमुख पायल के घर पहुंचा। जरा पायल को बुला देंगी, उसने मां से कहा। मां घबराई क्या हुआ? उसी से बात करनी है। इतने में पायल वहां आई। मां यहां-वहां हो गई। पायल रहस्यमय ढंग से मुस्काई फिर बोली- सर, हमारा समाज प्रेतबाधा से ग्रस्त है। हम कितने ही आधुनिक क्यों न हो जाएं हमारी सोच बदल ही नहीं सकती। आपको सूरी ने सब सच बता दिया न। अब पुलिस प्रमुख के पसीने छूटने लगे।
गरबा में सूरी ने मुझे देखा और कहा कि गर्लफ्रेंड बनोगी मैंने इंकार कर दिया, वो पीछे पड़ा तो झिड़क दिया। चिढ़कर उसने मुझे इकबाल और बाबा खान की मदद से उठा लिया। उन दोनों ने उसे मर्दानगी की दुहाई दी थी। कहा कि मर्द बन कर दिखा। वो तो अपनी बहनों तक को न छोड़ते थे। मैं तो फिर भी पराई थी। उसके दो दोस्त और भी थे वहां। मैं चिल्लाई और कुछ लोगों ने देखा पर किसी ने मदद नहीं की। उन्होंने बहुत कोशिश की पर जब काबू नहीं पा सके तो सूरी और इकबाल ने मुझे पकड़ा और बाबा खान ने मेरे सिर पर लोहे की रॉड मार कर मुझे मार डाला और लाश जमीन में दबा दी। मैं मर गई कुछ लेना-देना तो किसी से था नहीं पर इस समाज की प्रेतबाधा को दूर करने के लिए मैं वापस आई। मैं जानती हूं कि शायद मुझे न्याय न मिले पर मैंने समाज को इस बाधा से मुक्ति दिलवाने के लिए एक कदम बढ़ाया है। लोग आगे आएंगे। अब जाऊंगी सर पर एक बात का दु:ख रहेगा कि जो मेरी इज्जत बचाने और हरदम अपना बनाने को ललचता था वो मुझे ऐसे वक्त में छोड़ गया। आप जिग्रेश से मिलो तो कहना कि पायल उसे कभी नहीं भूलेगी। नहीं भूलेगी कि वो कैसा बेवफा निकला। मैं दाल-रोटी कमाने वाली नहीं थी (गुजरात में ऐसी महिलाएं जो वेश्यावृत्ति में लिप्त होती हैं और पूरा परिवार उनके इस पेशे को करने के लिए उनको बाध्य करता है यहां तक कि पति भी। उनको वहां आम भाषा में दाल-रोटी कमाने वाली के नाम से संबोधित किया जाता है)। जो वो मुझे यूं बेसहारा छोड़ गया।
लोग कहते है कि डीकरी है घर में रह पर्दा कर पर अपने वहशी बेटों से नहीं कहते कि औरत की इज्जत कर। ये है प्रेतबाधा इस समाज की सर। बेटी हो तो सीता सी, राधा सी नहीं...भले भगवान हो जाए पर बदनाम तो होगी ही न।
गरबा करेगी नाचेगी तो नजर आएगी ही, कुछ होगा नहीं तो क्या होगा? क्यों घूमती है आवारा सी, लड़के तो छेड़ेंगे ही। उनका अधिकार है। चुपड़ी रोटी दिखी तो कुत्ता ललचाया। मर्दानगी दिखानी है तो औरत पर दिखा...कैसी कुंठा है? अरे मर्द हो तो मर्दानी देश की सीमा पर दिखाओ। लोगों के अधिकारों के लिए लड़ो। बदमाशों को मारो...नहीं, ऐसा करना तो मर्दानगी नहीं है, वहां तो सिर कटना पड़ेगा न, गुंडे धुन देंगे, यहां तो बस जोर दिखाना है, अबला को दबाना है जो जितना दबाएगा वो उतना मर्द, सच्चा मर्द। सर, समाज की ये प्रेतबाधा है, हमेशा रहेगी। हमारे देश में मर्दानगी को लेकर इतनी शंका है जिसका उदाहरण आपको दीवारों पर, अखबारों में कई जगह मिलेगा जहां मर्दानगी बढ़ाने की दवाइयों का जिक्र सबसे ज्यादा होता है।
खैर, आप लोगों ने मेरी लाश जब्त कर ही ली है और उनके भेडिय़ों के बयान भी हो गए हैं। कोशिश कीजिएगा कि उनको सजा मिले। वर्ना मैं तो हूं ही न...वो बोली। अष्टमी को दुर्गा जागी है, दशमी को महिषासुर का दलन होना चाहिए, नहीं होगा तो दीपावली अंधियारी हो जाएगी।
इसके बाद वो बाहर गई, मां से बोली-चिता को आग मत देना। गाड़ देना, मुझे मुक्ति नहीं चाहिए। मैं तो भटकूंगी...अतृप्त आत्मा सी पर एक उद्देश्य से, ऐसे बदमाशों को जिनको समाज सजा नहीं देगा, कानून सजा नहीं देगा उनको मैं सजा दूंगी। मैं वापस नहीं आऊंगी पर याद रखना कि बेटी थी और बदमाशों को सजा दिलवाना। मां कुछ समझती उससे पहले ही वो गायब हो गई। पायल की लाश को श्मशान में गाड़ दिया। जहां उसके परिवार वाले और कभी चोरी-छिपे से जिग्रेश जाकर फूल चढ़ा देता था। जिन लोगों को ये बात पता चली वो आश्चर्य में पड़ गए और पागल कहलाने के डर से पूरा मामला दबा दिया। लोग इस बात को कैसे पचाते कि एक आत्मा लोगों के बीच आई और इंसाफ मांगा।
कानून अंधा है कोर्ट से सामने मामला साबित नहीं हुआ और वो तीनों अपने दो दोस्तों के साथ छूट गए। दीपावली की वो तीनों मुख्य आरोपी रहस्यमय रूप से गायब हो गए और फिर उनका कोई पता नहीं चला। तीनों के घर वालों को एक मैसेज मिला मोबाइल पर.....मैं जिंदा हूं और जिंदा रहूंगी। बाकी एक को लकवा मार गया और दूसरा पागल हो गया। इसके बाद किसी को कुछ नहीं पता क्या हुआ? लोगों का कहना था कि जिग्रेश ने ही उन लोगों को ठिकाने लगाया था। वो पायल का बदला ले रहा था या फिर उसके परिवार के किसी ने उनको मार डाला। पुलिस ने जांच भी की पर कुछ पता नहीं चला। पर मन कहता है कि शायद पायल आज भी अतृप्त आत्मा के रूप में जिंदा है, जिंदा है एक सवाल बनकर कि समाज की प्रेतबाधा दूर होगी या नहीं। वर्ना वो तो है ही... न...एक भटकता सवाल बनकर।

बुधवार, 18 मार्च 2020

नाते का जनाजा

गांव में अजगर खान का बड़ा नाम था। अपने पठान समाज में तो वो मुखिया के जैसे ही थे, दूसरे समाजों में भी अच्छी पैठ थी। परिवार का सुख भी था, वो भी ऐसा कि हर कोई जलने लगे। सात बेटियों और पांच बेटों के बाप अजगर की खाना आबादी की बातें तो लोगों में अलिफ लैला के किस्सों की तरह फैली थीं। अजगर तो आज भी जवान थे और सरदार बेगम का शबाब भी कायम था, वो आज भी निकाह के दिन जैसी सज-संवर जाएं और लाल शरारा पहन लें तो उम्मीदें कम नहीं हों, उल्टी बेपनाह हो जाएं पर जमाना भी तो देखना पड़ता है। घर में जमाई हैं बहुएं भी हैं। खैर, अजगर की बेगम थी सरदार बेगम। ये गांव के जमीदार अली खानदान की थीं, जो खुद को मुगलों और नवाबों से भी ज्यादा ही बड़ा मानता था पर प्यार-मोहब्बत का मामला था, सो उस समय के गरीब अजगर से उनका निकाह बड़े विरोध के बाद हो पाया था। आज अजगर के पास खासा पैसा था।
बच्चों का दीदा पढ़ाई में था ही नहीं सो मदरसे की देहली तक किसी ने नहीं लांघी। बच्चों की हालत देखकर वो आवारा बनते उससे पहले ही अजगर ने उनको काम से लगा दिया अब तो बच्चे इतने होशियार हो गए थे कि चोरी की सायकल क्या और ट्रक क्या, दो मिनट में तिंयापांचा बराबर कर कब बाजार के हवाले कर देते मालिकों को भी पता न चलता था। लड़कियों का निकाह हो चुका था, बेटे भी अपनी गाड़ी पर लगे थे, बस एक यावर ही था जिसकी उन्हें चिंता थी। तीन निकाह, तीन बेइंतहां खूबसूरत बीवियां पर यावर ने तीनों को छोड़ दिया। वैसे, गांव की ललनाओं में यावर कुछ खास अहमियत रखता था, घूंघट की ओट से भी वो उसे निहार लेती थीं।
अजगर खान पठान होने के नाते अपनी बिरादरी में रुतबा रखते थे। रिश्तेदार भी पास ही थे। उन्होंने अपने लोगों को समझाया कि खान बाकी बिरादरियों से ऊंचे हैं और उनको आम लोगों के साथ सुपुर्दे खाक नहीं करना चाहिए। इस नेक काम के लिए वो अपनी कुछ जमीन लोगों को देंगे। हालांकि, ये जमीन भी उन्होंने अपने रिश्तेदारों के जनाजों के लिए ही दी थी। सभी लड़कों ने हल्का विरोध किया पर अब्बा सब पर भारी रहे। जमीन लोगों को दे दी, हालांकि लिखा-पढ़ी नहीं हुई। पठान की जबान को कानून की जरूरत क्या?
रिश्तेदारों ने अजगर खान की जमीन पर कब्रिस्तान बना डाला। वक्त तो वक्त है इसका क्या भरोसा अजगर ने यावर को समझाया कि मजहबी और मुकम्मल जिंदगी जियो। निकाह करो और खानाआबादी कर अपने काम से लगे रहो। इस दुनिया में नाम करो, फरिश्तों को आराम दो और एक सही जिंदगी जियो। पर गुस्सैल यावर को कुछ समझ न आया। वो मोटरसायकल उठाकर निकल गया। यावर छोटा-मोटा ठेकेदार था। यहां-वहां उसका आना-जाना लगा रहता था। उसने ठोंका-पीटी का पेशा नहीं अपनाया वरन वो तो भाइयों का भी मजाक उड़ता था और यहां-वहां लोगों से लड़ता-झगड़ता रहता था। उसके गुस्से और लड़ाइयों से किस्से हातिमताई की तरह मशहूर थे। तभी गांव की स्त्रियों में वो किसी हीरो से कम नहीं था। वैसे भी फिलम जगत में खान ही खान हैं आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान और अब यावर खान।
वक्त एक ऐसी शह है जिसे बादशाह हों या जहांपनाह कोई हस्ती जीत न सकी बल्कि उसके तकाजों ने तो सल्तनतों को तबाह कर डाला था। अजगर की तबियत बिगड़ी और उनका इंतकाल हो गया। बची सरदारी और लड़के, लड़कों ने वक्त रहते पिता की जमीन का बंटवारा करना ठीक समझा। इस वक्त तक यावर विशेष प्रतिक्रिया देने के या हुज्जत करने की सोच में नहीं था। भाइयों ने जल्दी-जल्दी बंटवारा कर लिया और कब्रिस्तान की विवाद पैदा करने वाली जमीन यावर को दे दी। भाइयों ने सोचा, अच्छा मौका है। वैसे भी ये हमारी परस्ती में रहा ही कब? हमारा मजाक ही बनाता था। अब मजा आएगा ऐसी जमीन दी है कि तीन पुश्तों की खालू याद न आ जाये तो नाम नहीं। बहुत बढिय़ा। नाफरमान। अब बनाओ ताजमहल।
अजगर को गुजरे पंद्रह दिन हो गए थे। अब सभी को अपने-अपने काम की लगी थी। सभी ने यावर को जमीन के बंटवारे के बारे में बताया और उसे उसकी जमीन दे दी। अब तो यावर का गुस्सा सातवें आसमां पर जा पहुंचा, अरे ये जमीन मुझे दे दी। भाइयों ने साफ कह दिया ये जमीन ही मिलेगी, लेना हो लो वर्ना निकलो। मां दु:खी हो गई। अरे नामुरादों बाप को गुजरे महीना ना हुआ और बात यहां तक पहुंच गई। यावर अब अम्मी पर पिल पड़ा, वाह अम्मी जब वो ये खटकरम कर रहे थे तब आपको पता ही नहीं था, बड़ी नाशुक्रायी है। यावर गुस्से में घर के बाहर निकल गया।
यावर भी ठेकेदार था और जमीन के खेलों में उससे माहिर कोई न था। उसने जाकर जमीन देखी और लोगों से कहा कि वो इसे खरीदें वो रियायत देगा काम भी करेगा, जब कोई राजी न हुआ तो यावर ने ही वहां दुकानें बनानी शुरू कर दीं और जमीन को मौके की जमीन बनाने और सोना कूटने की तैयार कर ली। एक दिन यावर दुकानों का काम देखने आया था और अब वो वापस लौटने के लिए बाइक उठाने आया ही था कि उसने देखा, उसके दूर के रिश्ते का चाचा बाबू साइकिलवाला, जिसकी सायकल का पंचर बनाने की दुकान थी, एक जनाजा लेकर वहां आ रहा था। यावर चिल्लाया, ऐ यहां कहां चले आ रहे हो। बाबू बोला, भाईजान जैसा कि आपके अब्बा ने कहा था, हम अपनी अम्मी और रिश्ते से आपकी दादी को यहां दफनाने लाए हैं। आज सुबह ही इनका इंतकाल हुआ है। वाह! बड़े आए जनाजा लेकर दफनाने। अब ये जमीन मेरी है और मैं यहां पर दुकानें बनवा रहा हूं। खबरदार! अगर किसी ने यहां मुर्दे सुपुर्दे खाक करने की कोशिश की। निकलो यहां से, रही बात अब्बा की तो उनसे सातवें फलक पर जाकर बात करो समझे! अब निकलो यहां से, मुंडो क्या दिखा रहे हो? बाबू ने लाचारगी से उसे और सब ओर देखा। भाई ये तो आपने अपने अब्बा की जबान और रिश्ते-नातों का जनाजा निकल दिया है। हां! निकाला है नाते का जनाजा। दादी ने तुम्हारे लिये क्या कुछ नहीं किया? तुम्हे अपना दूध तक पिलाया। घर में बनी हर चीज तुम्हे खिलाई। भूल गए तुम। निकलो यहां से, निकल गया नाते का जनाजा, अब जादा मगजमारी मत करो। चलो भई! दूसरी जगह चलते हैं। जनाजा पलट गया। संकरी सड़क से जाते जनाजे के पास से यावर बाइक लेकर निकला और रास्ते में आए छोकरे को डपटकर बोला- हट रस्ता छोड़। लड़का बगल में कूद गया। लोगों ने देखा नाते के जनाजे को बिना कंधा दिये यावर तेजी से चला जा रहा था।

रविवार, 8 मार्च 2020

फागुन के रंग में रंगी, विरह की आंच पर पगी 'एक प्रेम दुखांतिका'

फागुन माहों का राजा है। यह माह प्रकृति के नवतर स्वरूप से उपजे हर्षोल्लास को प्रकट करता है। इस ऋतु में चहुं ओर आनंद दृश्यमान हो जाता है। इसी कारण होली का रंगोत्सव इस समय आता है। इस रंगों से भरे माह में जब सब दिग-दिगांतों में उल्लास और हर्ष छा जाता है, तब बरबस इस ऋतुओं के इंद्रधनुष में काव्य के नवरसों के दर्शन सहज होने लगते हैं।
इन रसों में विरह रस का भी अपना महत्व है। इसी विरह रस को को प्रकट करती है लोकदेवता ईलोजी और होलिका की मर्मस्पर्शी प्रेमकथा। कहते हैं दैत्यराज हिरण्याकश्यप के समकालीन थे लोकदेवता ईलोजी। कहते हैं ईलोजी बहुत सुंदर थे। रंग से गोरे-चिट्टे और शरीर से गोल-मटोल। उस समय की सभी राजकुमारियां उनसे लगन (विवाह) करना चाहती थीं। इन्हीं राजकुमारियों में शामिल थी होलिका। हिरण्याकश्यप की बहन और प्रहलाद की बुआ, पर ईलोजी तो बहुत सुंदर थे और होलिका कुरूप थी, इसलिए होलिका ने तपस्या कर अग्रिदेव से वरदान पाया कि वो जब-जब अग्रि स्नान करेगी, उसकी कुरूपता स्वर्णिम सौंदर्य में परिवर्तित हो जाएगी।
वरदान प्राप्त होने के बाद होलिका और ईलोजी दोनों ने एक-दूसरे का प्रणय निवेदन स्वीकार कर लिया। निश्चित दिन ईलोजी की बारात होलिका को ब्याहने के लिए निकल पड़ी। बारात के प्रस्थान की बात सुनकर होलिका अग्रि स्नान को प्रवृत्त हुई। उचित अवसर जानकर हिरण्याकश्यप ने प्रहलाद को उसकी गोद में बिठा दिया। हिरण्याकश्यप का विचार था कि वरदान के चलते होलिका बच जाएगी और उसके शत्रु हरि का परमभक्त भस्म हो जाएगा।
कहते हैं कि हरिकृपा से होलिका भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया। ऐसी भी लोकोक्ति है कि होलिका प्रहलाद क ो हानि नहीं पहुंचाना चाहती थी। आखिरकार वो भी एक स्त्री थी और कयादु (प्रहलाद की मां) की पीड़ा को समझ सकती थी, पर वो भाई के वचन के आगे विवश भी थी, इसलिए उसने अग्रिदेव से प्रार्थना कर अपना वरदान प्रहलाद को दे दिया और स्वयं भस्म हो गई। बारात के नगर में प्रवेश करते ही प्रेमपाश में बंधे ईलोजी होलिका को देखने के लिए व्याकुल हो गए और वहां जा पहुंचे जहां होलिका भस्म हुई थी। ईलोजी ने व्याकुल होकर सभी से पूछा कि होलिका कहां है? सभी ने भस्म की ओर संकेत कर दिया। होलिका की मृत्यु को जानकर ईलोजी दुखित हो गए और दौड़कर होलिका की भस्म में कूद गए। उन्होंने होलिका की भस्म को शरीर पर मल-मलकर विलाप करना शुरू कर दिया। गोल-मटोल ईलोजी को भस्म मलकर विलाप करता देख लोगों को हंसी आ गई और सभी ने होलिका की राख उठाकर ईलोजी पर फेंकना शुरू कर दी। इस तरह से विरह के रंग में हास्य, (प्रहलाद के जीवित बचने के) आनंद और (भक्ति की विजय के) उत्सव के रंग मिल गए। इसके पश्चात ईलोजी होलिका को याद कर सदैव अविवाहित रहे।
आज भी राजस्थान में किसी की याद में कुंआरा रहने वाले या कि कुंआरों को चिढ़ाने के लिए ईलोजी कहा जाता है। ईलोजी को कहीं लोकदेवता तो कहीं नगर रक्षक भेरूजी के रूप में पूजा जाता है। ईलोजी और होलिका इस जीवन में तो नहीं मिल पाए पर उनकी प्रेमकथा सदैव के लिए अमर हो गई।

बुधवार, 4 मार्च 2020

एक इंसान की वापसी

गधे ने अपनी वापसी की कहानी तो सुना दी जिसे कृष्णचंदर ने लिख मारा था पर अब बारी इंसान की थी जो अपनी वापसी कर रहा था। एक इंसान था वक्त का मारा। उसे वो सब कुछ नहीं मिल रहा था जो वो चाहता था। वो एकांत में गाता था, जिंदा हूं इस तरह के गमे जिंदगी नहीं.....किस हज्जाम ने उसकी हजामत बनाई थी कि वो आइना देखने से भी डरने लगा था।
किस्सा कुछ यूं है- एक आदमी था मिथुन चक्रवर्ती जैसा वो न जाने किसका बेटा था पर मां उसकी जरूर थी। मां कपड़े सिलती थी और आमदनी इतनी हो जाती थी कि घर खर्च तो चलता ही था साथ ही बेटे की फीस और डोनेशन भी चली जाती थी और वो कुछ पैसा जमा भी जमा कर लेती थी। वाकई में, बात में दम तो है....बेटा बड़ा हुआ और अचानक से उसे स्कूल/कॉलेज जो कुछ भी था, में अव्वल दर्जा मिला। स्कूल/ कॉलेज रजिस्टर्ड था भी या नहीं पर उसे छात्रवृत्ति मिली वो छात्रावास में पढऩे जा पहुंचा। मां रोती बिलखती पीछे रह गई। बेटे ने यहां भी झंडे गाड़े वो पढ़ता गया ...पढ़ता गया .....पढ़ता गया बेटा किस जात का था और उसे छात्रावृत्ति किस बिनाह पर मिली इस पर बातें फिजूल हैं, आरक्षण पर चर्चा न करें। अब पढ़ाई पूरी हो गई बेटा हर जगह अव्वल रहा खेल में, पढ़ाई में प्यार में भी उसे अमीर बाप की बिगड़ैल बेटी से मोहब्बत हो गई वो भी खासी हुज्जत के बाद। बेटा वापस लौटा छात्रवृत्ति से उसने कुछ पैसे बचाए थे जिससे मां के लिए साड़ी खरीद मारी। मां खुश हुई- जुग जुग जियो मेरे लाल। यहां बेटी के लिये भी ऐसी प्रार्थना होती विमेनिस्ट पूछते हैं।
बेटे को नौकरी भी पहले ही इंटरव्यू मे मिल गई और वो बड़े ओहदे पर बैठने को तैयार हो गया। शुक्रिया अदा करने वो जाहिरातौर पर मंदिर गया मां के पास नहीं? मंदिर में उसे एक और दुखिया मिल गया.. वो भी बेरोजगार बेटो को उस पर तरस आया और अपना नियुक्ति पत्र वो उसे देकर घर लौट आया। बेरोजगार बोला-भगवान तुम्हारा भला करे। अल्ला या ईसा नहीं। क्योंकि वो हिन्दू है समझे.!
अब बेटा नौकरी के लिए भटकने लगा जिसे पहली बार में ओहदे की नौकरी मिली अब उसे वॉच मैन तक की सलाम ठोंकू नौकरी के लाले पड़ गए। अचानक उसने गुंडो से एक आदमी की जान बचा ली। अब पता चला बेटा मारपीट में भी अव्वल है। आदमी शहर का डॉन था उसे बेटे का एहसान मानकर उसे गुंडा बना दिया बेटा एकाएक अमीर हो गया। मां को झोपड़े से महल में ले गया और अपनी मेहबूबा को कार में लेकर यहां-वहां भटकने लगा।
जल्द ही बेटे का मन बदल गया वो गुंडाई से तौबा करने लगा और पुलिस का मुखबिर बनकर सरकारी नौकरी के सपने देखने लगा। बस फिर क्या था गुंडे उसके खिलाफ हो गये। एक दिन गुंडो ने मां और मेहबूबा को उठा लिया। बेटा गुंडो से जा भिड़ा। उसने चंदमा की सत्ताईस और युद्ध की हजारों कलाएं दिखाई। अंत में सबको मार गिराया। सुप्रीमो गुंडे ने बेटे को तीन गोली मारी पर बेटा रुका नहीं उसने एक ही गोली में सुप्रीमो को ढेर कर दिया और भागते हुए अस्पताल जा पहुंचा। पुलिस सबसे आखिर में पहुंची। सरकारी अस्पताल में डॉक्टर नादारद रहते हैं पर आज न जाने क्यों वो सारे ऑपरेशन थियेटर में ही तैनात थे। बेटे की तीनों गोलियां निकाली और वो चंगा हो गया।
पर अब बात कुछ और हो गई...पुलिस बार-बार उसे पूछताछ के लिए बुला लेती है वो घंटों थाने में बैठा रहता है और मच्छरों को खून पिलाता है। नौकरी की तो बात ही छोड़ मारिये। मेहबूबा ने शादी तो कर ली पर वो एकता के सीरियल देखती थी सो बेटे की मां यानी सास से लड़कर बाप के घर लौट गई। सारी माया चली गई। बेटे ने नेता जी की बात मानकर उनको वोट दे मारा कि अच्छे दिन आएंगे पर उसे कुछ न मिला। बेटा तन्हा समुंदर किनारे बैठा, बिरादर मुकेश और रफी भाईजान के दर्द भरे गीत रेकरेंकर गा रहा था तभी उसका पालतू गधा जिसे उसने मालिक की मार से बचाया था तेरी मेहरबानियां की स्टाइल में, वहां आया और पूंछ केबाल उसके कान में डाले...क्या हुआ रेंकचंद...बेटा जी घर चले चलो मां की तबियत खराब है। अब वापसी ले लो... बेटा उठा और घर की ओर चल पड़ा। डूबते सूरज में दोनों के साए जाते दिख रहे थे। गीत बज रहा था- ओ जाने वाले हो सके तो.....

कुएं का रहस्य

दोनों लापता दोस्तों का आज तक पता नहीं चला है। पर लोगों को आज भी उस सड़क पर जाने में डर लगता है। कुछ दुस्साहसियों ने वहां से गुजरने की कोशिश ...