सोमवार, 27 अप्रैल 2020

साढ़े तीन कुआरियां

कमरे में हलकी रोशनी थी, एक मोमबत्ती जल रही थी। जया, विजया, चैताली इस अलसाये माहौल में बैठी एक दूसरे का मुंह ताक रही थीं। चैताली की गोद में एक छोटा चौरस तकिया था जिसे वो कभी गोद में दबाती कभी छाती से लगाती।
जया जो इन दोनों में बड़ी थी अपने भारी सांवले चेहरे और कुछ थुलथुले बदन के कारण अलग ही नजर आ रही थी।
दीदी, आई की नहीं- चैताली की आवाज उठी।
आती होंगी-विजया ने आश्वासन दिया।
जया ने पीछे दरवाजे की ओर देखा।
दीदी... जया की भारी आवाज उस घुटन में घुट गई।
दीदी अंदर आई तो शांत माहौल में हलचल हुई। गर्मी की चढ़ी दोपहर ऊंघने का सबसे उपयुक्त समय होता है। तीनों अलसायी हुई थीं। तभी दीदी की आवाज आई- अम्मा की चिट्ठी आई है।
अम्मा की चिट्ठी- जया की आंखों के सामने जीवंत हो उठा एक दृश्यक्रम। अम्मा का भारी चेहरा, माथे पर बड़ा भारी बिंदा, फूले हुए होंठ। भारी हाथ उससे भी भारी आवाज-जया...ओ जया...भईया का बैग कहां है? वहीं होगा सोफे पर- जया की आवाज होती। अरे जरा आकर बता दे...उफ्फओ अम्मा...भाभी को बोल दो न..अरे वो रसोई में भात पका रही है...जरा देख दे न..आई मां- जया बालकनी से पाव पटकती भीतर आती। धम..धम, इस बीच उसके बड़े भारी पैरों में पड़ी मोटी पायजेब भी बज उठती।
भाभी के पीछे अम्मा कहती- तुझे काम के लिये बोलना पड़ता है वर्ना भाभी क्या समझेगी कि ननद तो मजा करे हम सजा भरें।
जया काली थी पर न जाने क्या गजब का आकर्षण था उसके अंदर। गली के लड़के उसे इस तरह घूरते कि पास पड़ोस की गोरी कन्याएं जलकर भस्म हो जाएं। जो लड़का उसे देखता उससे पहली ही बार में शादी करने को आतुर हो जाता पर जब कुछ समय बीतता, सारे मामले उठ खड़े होते। लड़की काली है, नौकरी नहीं करती, दान-दहेज क्या देंगे? लड़के वाले मुंह से थोड़े ही न मांगेंगे। लड़के को काया चाहिये, बाकी बातें वो न विचारेगा उसकी चिंता तो परिवार को ही करनी होगी न। लड़की एक अदद बदन है लड़के के लिये।
जया बनती-संवरती मुस्काती, किसी अंजान पर जाने-पहचाने स्पर्श का अनुभव कर लज्जातुर होती, यौवन मदमाता पर धीरे-धीरे समय बदला। लड़के के परिवार आते रहे जाते रहे। कोई कुछ बोले न बोले पर मां के चेहरे पर चिंता की लकीरें हर बार और से और स्पष्ट होती गईं। अब जया चोटी भी गूंथती तो भाभी मुस्की मारतीं- लो हो गईं अप्सरा तैयार, हाय री आज न जाने कौन मरेगा? भैया देखते और निकल लेते-इनका तो बस यही काम है। कुछ लड़के वाले हां करते तो मामले यह निकलते-कोई तलाकशुदा, कोई दुहेजु, कोई परित्यक्त, कोई विकलांग, कोई विधुर तो किसी की लुगाई भाग निकली, लोग मजाक करते ये तो मर्द ही नहीं था बेचारा। कोई-कोई तो कारण ही न बताते- न जाने क्या बात है कहीं कोई बीमारी तो नहीं है?
मनीराम नाम के आदमी का तो किस्सा ही अनोखा निकला। ताई जी ने बताया- अरे ये तो नामर्द था, पहली तीन बीवियां वंशवृद्धि के लिये कभी तो देवर कभी जीजा के हवाले हुईं तीसरी पर तो इसके बाउजी ही पिल पड़े। तीनों भाग निकलीं। अखबार में भी तो मामला आया था। बड़ी मुश्किल से इसके परिवार ने पिंड छुड़ाया। अम्मा ने उससे हाथ जोड़ लिये पर अब अम्मा बोली- बेटी, नखरा न करना जो मिले उससे ब्याह ले। जया ने भी कह डाला- कुएं में ढकेल दो पर एैरे-गैरे से हम न ब्याह करेंगे।
भैया कहते- ताई तो घर में आग ही लगाना चाहती है। आप और उनकी बात को तवज्जो देते हो, ऐसे ही रहा तो ये रहेगी कुंआरी। लापरवाही और कुछ गुस्से में जया कहती- रहेंगे तो हम न कुंआरे तुमको क्या? भाभी धीरे से कहतीं- कुंआरी का लाढ़ कौन रखेगा? अम्मा जानती थीं उनके बाद जया का निबाह कैसे होगा? ऐसे में जब दीदी के गृह उद्योग और रहने के ठिकाने का पता चलने पर अम्मा ने जया को समझा-बुझाकर यहां दूसरे शहर भेज दिया। अब वो कुछ निश्चिंत थीं कि अगर वो ऊपर-नीचे होती हैं तो भी जया को दीदी का तो सहारा है ही न। थोड़ी-बहुत जो सिलाई-कढ़ाई जया ने सीखी थी वो यहां काम आई। अम्मा ने कहा था कि अब चिट्ठी तभी लिखेंगे जब बारात द्वार पर होगी। यहां रहते-रहते सबसे इतना अपनत्व हो गया था कि शादी की बात दुख ही देती।
कहानी वर्तमान में आई। चिट्ठी सबके लिये आई है- दीदी बोली। सबके लिये चिट्ठी- विजया के मन में तडि़तपात सा हुआ। अब वो अपने विचार क्रम से प्रत्यक्ष हुई।
विजया कॉलेज के होस्टल में रहकर होमसाइंस की पढ़ाई कर रही थी। वहां अन्य मित्रों के साथ उसकी भी चिट्ठी यूं ही आती थी पर चिट्ठी मां नहीं भाभी लिखती थी। भाभी सरकारी स्कूल में मास्टरनी थीं। भाई जब रोमांटिक होते तो उनसे कहते- हमें भी कुछ सिखाओ न, आज क्या सिखाओंगी वगैरह-वगैरह जिस पर भाभी का प्रतिउत्तर ऐसा ही बेमजा होता था जैसे जैन कुल्फी भंडार की ठंडी कुल्फी जिसमें दूध से ज्यादा पानी का स्वाद होता था। खैर , अम्मा थी काला अक्षर काजल टीकी बराबर इसलिये जो बात होती वो भाभी को बोल देती और वो उसे लिख देतीं जिसे वो समझकर कर पढ़ लेती। भाभी की हिंदी कमजोर थी न वो अंग्रेजी की अध्यापिका जो थीं। इसलिये उसे समझकर पढऩा होता था। ये कौन कहे कि वो जुगाड़ से लगी थीं, उनको कुछ न आता था पर अपने मटके को कौन कुम्हार फूटा कहता है।
एक दिन अम्मा ने लिखवाया कि श्रीवत्स जी के अग्रपुत्र शतांशु की मां ने सत्संग में पूछा है कि तुम्हारी पढ़ाई कहां तक पूरी हुई है? अब कितनी पढ़ाई बाकी है? एक अच्छी सी फोटो खिंचवाकर भेज दो न।
विजया की सखियों ने जब ये पोस्टकार्ड पढ़ा तो हंस-हंस कर पेट पकड़कर बैठ गईं। विजया ने कह रखा था कि ऐसी बातें हों तो इन्लेंड लेटर भेजा करो।
खैर, विजया खुद ही घर जा पहुंची। शतांशु पूरे परिवार सहित उसके घर आया। आज तो भाभी ने खुद विजया को सजाया। हाथों में मेहंदी, पैरों में आलता, बालों में गजरा मानों आज उसकी शादी ही हो। अरे आज मेरी शादी थोड़े ही है- विजया खिलखिलायी। हमारी बेटी है, सजेगी-संवरेगी नहीं तो बात ही क्या? तू तो बिना सिंगार के भी पार्वती सी सुंदर है-भाभी का जवाब था। फिर वो खुद ही बोलतीं- काजल लगा ले नहीं मेरी ही नजर न लग जाये।
सभी को पूरा विश्वास था कि शतांशु से ही विजया का विवाह होगा। शतांशु विजया को देखकर ही हां बोल गया पर होना कुछ और ही था। शादी की बात हुई ही थी कि अगले दिन से शतांशुु उनके घर आने लगा। विजया ने एक दो दिन तो हलके में लिया इसके बाद वो होस्टल जा पहुंची शतांशु वहां भी जा पहुंचा। विजया इस विश्वास के साथ शतांशु से प्रेम करने लगी कि यही उसका भावी वर है। वो उसके साथ घूमने चली जाती। प्रेम की सीमाओं के अंत पर हर तरह की दूरियां कम होने की स्थिति हो गई। यहां उसके परिवार वालों ने कुछ नगद और समान सहित गाड़ी की बात संकेतों में ही उन लोगों तक पहुंचा दी।
भाभी ने कुछ नहीं लिखा पर उसकी दोस्त जो वहीं रहती थी ने उसे यह सब बताया चूंकी उसकी मां भी सत्संग में उनके पास ही बैठती थी। यह जानकर विजया ने शतांशु से कहा कि अगर मुझ से प्यार करते हो तो दहेज क्यों? शतांशु ने आश्वासन तो खूब दिये पर मामला अटकता गया आखिर में विजया ने हिम्मत दिखाई और शतांशु से सीधे बात की तो वो अप्रत्यक्ष रूप से धमकी के लहेजे में बात करने लगा अब विजया ने उसे गार्ड के सामने थप्पड़ रसीद कर डाला। देख लूंगा-उसने धमकी दी फिर वो चलता बना।
विजया ने इस मामले को तवज्जो नहीं दी पर दूसरे दिन भईया का फोन आया। उन्होंने कहा कि शतांशु से माफी मांगो। विजया ने भी कह डाला कि उस गधे से माफी की बात क्या वो तो उसे चप्पल तक मारने के लायक नहीं समझती। फिर मुंह न दिखाना- भईया नाराज हो गये। विजया ने भी कह डाला अब उस घर का मुंह देखूं तो कोढ़ लग जाये।
विजया कुछ चिंतित होस्टल में बैठी ही थी कि उसकी दोस्त संतोषी वहां आई और उससे कहा कि उसकी एक दीदी को एक सहायक की जरूरत है। दीदी का घरेलू उद्योग है, कुछ ही महिलाएं और लड़कियां उनके साथ जुड़ी हैं। उनके घर में मुफ्त रहने का इंतजाम है, खाना भी मुफ्त ही समझो तनख्वाह ठीक-ठीक और समय पर मिलेगी। संतोषी जानती थी कि अब विजया का विवाह मजाक बनने वाला है।
विजया दीदी से मिली और नौकरी पक्की होने पर भाभी को फोन लगाकर बता दिया। तब से वो यहीं है। वर्ना उसकी शर्म उसे डुबो ही देती। प्रेम की पराकाष्ठा और फिर एक छल से विजया का मन द्रवित हो गया था। शादी को लेकर अब उसके मन में कोई विशेष तरंग न थी। भाभी ने लिखा था कि इन्लेंड लेटर तभी लिखेंगे जब शादी की बात होगी। वर्ना पोस्टकार्ड ही मुफीद होगा। अगर पोस्टकार्ड पर शादी की बात लिखी तो चिट्ठी मानो सबके लिये हो जायेगी...सबके लिये, एक मजाक। विजया के मन में बात खटकी कि अगर शादी की बात फिर सामने आ गई तो...वो दीदी का साथ छोडऩा चाहती ही नहीं थी।
भई, सबसे खास तो चैताली की चिट्ठी लगती है- दीदी बोली। सबसे खास चिट्ठी- चैताली की आंखों में घर का दृश्य घूम गया। उसे चिट्ठी लिखने वाली थी उसकी बड़ी बहन भद्रिका जिसने खुद शादी नहीं की थी उसका एक एनजीओ था। माता-पिता का साया बचपन में ही उठ गया था। बहन ने उसे पाला-पोसा था, एक बार उनकी शादी का प्रकरण भी उठा था पर बात बन नहीं पाई। भद्रिका का क्रांतिकारी व्यवहार बहुधा उनके रिश्ते में बाधक बन जाता था। चालीस पार की इस महिला से शादी करने की बात सोचने वाला सबसे पहले यह सोचता था कि उनसे निभेगी कैसे? एक बार एक चैताली को खान नेताजी के भतीजे ने छेड़ दिया तो भद्रिका उसके पक्ष को लेकर पुलिस स्टेशन गईं पर जब बात न बनी तो उन्होंने ब्रम्हास्त्र का संधान कर डाला। ब्रम्हकुमार भट्ट नेता थे और एनजीओ के चक्कर में भद्रिका से दोचार होते रहते थे। उन्होंने भद्रिका के फोन करने पर पुलिस को लताड़ा और अपने खास गुंडों को भेजकर भतीजे को धमकाया। भतीजा शहर छोड़कर भाग गया।
चैताली भद्रिका के त्याग को समझती थी इसलिये उसने मर्यादा को कभी लांघा नहीं। दोस्ती रखी तो सिर्फ लड़कियों से लड़कों से उसका व्यवहार दूर से ही था। हालांकि उसके ही भीतर कहीं एक व्यक्तित्व था जो उससे विपरीत था पर वो उसकी बातों पर ध्यान न देती थी।
भद्रिका कहती- चैताली जब तेरे लायक लड़का मिल जायेगा तो उसका पूरा बायोडाटा चिट्ठी में लिख भेजूंगी। वो तेरे लिये सबसे खास चिट्ठी होगी। जब भद्रिका को लगा कि वो काम में ज्यादा मसरूफ होने वाली है तो उसने चैताली को दीदी के पास भेज दिया। भद्रिका के एनजीओ से सालों पहले दीदी के गृहउद्योग का पाला पड़ा था तब दोनों में दोस्ती हो गई थी जिसके परिणामस्वरूप अब वो दीदी के साथ थी। चैताली का मन भी यहां से जाने या शादी करने को था ही नहीं।
अब तीनों वर्तमान में थीं। हमारी छोडिय़े दीदी अपनी कहिये। अपनी कहिये- दीदी के कानों में बात गूंज उठी। दीदी जिनका नाम था विभाषा। दीदी की शादी सालों पहले हो चुकी थी। पति का नाम था देवकुमार। पर इनकी कथा भी विचित्र सी थी। शादी के बाद जब वो माता पूजन के लिये जा रही थीं तभी पूरे परिवार के सामने एक महिला प्रकट हो गई। उसने फोटो के साथ बताया कि वो देवकुमार की अनब्याही पत्नी है। दोनों परिवार के लोगों ने उसे डांट-धमका कर भगा दिया। वो पुलिस लेकर आ गई। हंगामा हो रहा था कुछ रिश्तेदार छुपकर मुस्कुरा रहे थे तो कुछ हंस रहे थे। बस, दीदी इस माहौल से निकलकर बाहर आ गई। वो अपनी एक टीचर के घर जा पहुंची। टीचर का दुनिया में कोई नहीं था। दीदी वहीं रही- माता-पिता, रिश्तेदार आये बहुत समझाया पर दीदी वापस नहीं गई। टीचर के घर से ही गृहउद्योग की नींव पड़ी। दीदी सबकी बात सुनती पर जब कोई त्रस्त कहता हम तो जगत-जमाने के मारे हैं हमारी छोडिय़े अपनी कहिये तो दीदी मुस्का देती। अम्मा ने कहा था- हम दिल के मरीज हैं अगर चिट्ठी लिखकर लड़का बताएं तो शादी कर ही डालना..वर्ना हम तो..दीदी का डर तीनों से अलग न था। अब तीनों ने अपनी-अपनी चिट्ठी पढ़ी।
जया ने सबसे पहले चिट्ठी पढ़ी और मुस्कायी।
अरे क्या हुआ?
जरा हमें भी तो बताओ।
सारा मजा खुद ही मार लोगी क्या?
जया बोल पड़ी- अम्मा ने लिखा है, अपनी शादी तो तुम खुद ही जानों जो तुम्हे भाये या दीदी बताये उससे कर लो शादी, यहां तो हमारी नजर में अब कोई नहीं है। वाह, अब हम तो दीदी के साथ ही रहेंगे। पर दीदी ही ब्याह गईं तो? चैताली के सवाल पर तीनों असहज हो गईं।
अब विजया ने अपनी चिट्ठी खोली, पढ़ा फिर खिलखिलाकर हंसी।
इस हसीं का मायना क्या?
अरे, ये तो शादी की बात सुन बावली हो गई।
अरे जरा हमें भी तो कहो विजया दीदी।
हंसी को कुछ पल रोककर विजया बोली- अरे वो श्रीमान शतांशु को सजा हो गई, दहेज मांग रहे थे। भाभी ने लिखा है कि भईया तो कान के कच्चे थे जो कह दिया माफी मांग। तू सयानी है, सांवली सालोनी है सुंदर भी है तुझे तो कोई पोपटलाल ही न करेगा। अपने विवाह का तू स्वयं ही निर्णय ले और जब लड़का फाइनल कर ले तो यहां बता देना। फेरे की रस्म तो यही होगी न। इनके बाद चैताली ने उत्साह से चिट्ठी खोली, फिर मुस्काकर उत्साह से बोली- अरे कोई मुझे चिमटी खोड़ो.. क्या हो गया छुटकी?
जरूर शादी पक्की हो गई..वो भी धनपति से
धन..धना..धन..धनपति
अरे, ये बात नहीं है..भद्रिका दीदी शादी कर रही हैं।
वाह..
वाह...
हें...
अरे सुनो तो सही लिखा है, चैताली अब तू सयानी हो गई है शोडषी नहीं रही..तेरे प्रति मेरे बहुत कुछ कर्तव्य का निर्वाह हो चुका है..मैं अब अपने जीवन को कुछ सजाना चाहती हूं। अरे आगे बोल न।
शादी लगी भी तो लगी किससे?
किससे?
अरे वहीं भट्टजी से!
तीनों उत्सुक थीं।
आगे लिखा है- भट्ट जी के विचार और मेरे विचारों में काफी समानता है। हम काफी समय से साथ हैं। अब इस साथ को एक रिश्ते का नाम देना चाहते हैं अगर तू चाहे तो। अरे मेरा तो पूरा सपोर्ट है कर डालो शादी। तो कब चलें दावत खाने।
लो मैं तो लगे हाथ वाट्सअप कर देती हूं कि अभी कि अभी कर लो शादी।
ये हुई न बात..
अब तीनों ने खुशी-खुशी दीदी का मुंह देखा। चैताली ने फोन में कुछ टटोला। कुछ किया कि नहीं पता नहीं।
दीदी ने खत पढ़ा और उदास हो गईं।
क्या हुआ?
कहो न?
शादी की बात हो गई क्या?
तीनों के भय और उदासी को देख दीदी हंसी।
अच्छा तो हमारा मजा ले रही थीं।
ये क्या हो रहा है हूं...
ये तो गलत है दीदी
अब दीदी माहौल में हलचल पैदा करतेे हुए बोली- अरे, अम्मा के पास कुछ जमा पूंजी है उन्होंने लिखा है शादी के लिये रखी थी, तो शादी तुम जब करो तब करो ये पैसे आकर ले जाओ। अब तीनों निश्चिंत हो गईं।
खत एक ओर फेेंके। जया और विजया ने दीदी के कंधे पर सर रख लिया। चैताली दीदी की गोद में सिमट गई और दीदी ने आंखें बंद कर लीं। तीनों ऊंघने लगीं।

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

बेसहारा.....

ईसा से 3000 साल पहले मिश्र की एक अनोखी कहानी। इस कहानी से पता चलता है कि मिश्र की सभ्यता और संस्कृति उस समय कैसी थी और लोगों का जीवन और उनके आचार-विचार कैसे थे।
जोराह और अरफा दोनों जुड़वां भाई मिश्र के एक उपनगर में रहते थे। मां थी मरियम पिता था जुराज जो मिश्र की सेना में सिपाही था युद्ध के दौरान मर चुका था। मरियम का प्रेम जुराज के छोटे भाई से था जिसका नाम था इकरा। इकरा एक नजूमी-ए-ख्वाब, स्वप्र ज्योतिष था। उसने मरियम को बता दिया था कि जुराज मारा जाएगा। जूराज का व्यवहार मरियम के लिए वाहियात था और वो उसे प्रताडि़त ही करता था। ऐसे में जब वो लड़ाई पर जाता था इकरा उसे प्यार देता और उसके जख्मों पर मल्हम लगाता। नगर के राजपर्व होने पर वो मरियम को लबादा ओढ़ाकर गधे पर बिठाकर यहां वहां घुमाता। मरियम का मासूम चेहरा गहरी आंखे। इस पर तीनों जहां और फेरोस की सारी दौलते भी कुर्बान हों। 11 आत्माएं (मिश्र के लोगों का मानना था कि इंसान के जिस्म में 11 आत्माएं होती हैं।) उसके एक बोसे से तृप्त हो जाएं और मन चाहा वर दें या फिनिक्स का तोहफा अदा कर दिया जाए तो भी मरियम को कोई समझदार इंसान नहीं छोडऩा चाहेगा।
मरियम का विवाह जूराज के साथ होना भी एक अजब संयोग था। मरियम को पैदा होते ही उसके माता-पिता ने बेटा होने की आस में उसे देवी नौहीद के मंदिर के पुरोहित को सौंप दिया। पुरोहित ने उसे पाला-पोसा। जूराज ने युद्ध में अद्वितीय साहस दिखाया था। इस पर पुरोहित ने उसका विवाह मरियम से करवा दिया या कहें तो उसे पुरस्कार के रूप में दे दिया। जूराज उसे पवित्र नहीं मानता था खैर, जूराज के मरने के बाद मरियम के पास एक ही रास्ता था कि वो नगर के हरम में चली जाए। वैसे भी ज्यादातर बेसहारा और खूबसूरत औरतों का यही ठिकाना था। देश-विदेश के लोगों का यहां आने का यह एक मुख्य कारण था। (मिश्र को विश्व की सबसे खूबसूरत वेश्याओं का नगर माना जाता था। यहां आने वाला हर एक शख्स उनके हरम में एक न एक बार जरूर जाता था। माना जाता था कि वहां की वेश्याएं संतुष्टि देने में सबसे अच्छी मानी जाती थीं। कुछ लोग तो यहां की यात्रा ही इसी कारण से करते थे जिनमें विश्वभर के अमीर लोग शामिल थे।) पर मरियम को मिला इकरा का साथ। इकरा और मरियम के रिश्ते को पाकिजदगी की वो हद मिली थी जहां जिस्म सीफर हो जाता है।
इन दिनों मरियम एक स्वप्र को लेकर परेशान थी। उसने देखा था कि फिनिक्स नील नदी पर उड़ रही है। उसके पंजों में फेरॉस और अन्न और रसों के थैले थे। इकरा ने जब यह सुना तो चिंतित हो गया। मिस्र को अपना दूध पिलाने वाली नाइल (नील नदी) अपना रास्ता बदलने वाली है। पूरा शहर उसकी धारा की ओर ही जाएगा। शहर कब्रगाह सा हो जाएगा। फेरॉस एक षड्यंत्र का शिकार होगा और कयामत आएगी। यह था इस स्वप्र का फल। पर जोराह और अरफा इस बात से खुश थे कि नगर में उत्सव होने वाला था। फेरॉस को बेटा हुआ था। नगर में उत्सव का माहौल था। जोराह और अरफा को इस बात का इल्म जरा भी नहीं था कि ये जश्र कयामत का जश्र होगा। नगर में नंदी निकलेंगे धूम मचेगी। मामथ (बालों वाला झबरा हाथी जो अब विलुप्त हो चुका है।) की खाल ओढ़कर नाच भी होगा।
फेरॉस महल के ऊंचे हिस्से बच्चे को लोगों को दिखाएगा। कीमती पत्थर और मुद्राओं की बारिश होगी। पर मरियम ने उनको पहले की कह दिया था कि नगर से बाहर न जाएं खासकर वहां जहां संगतराशी हो रही थी पिरामिडों के लिए वर्ना पता चलेगा कि उनको भी गुलाम बनाकर संगकारी में लगा देंगे। उन दोनों ने कहा कि वो वहां नहीं जाएंगे पर जब पिरामिड बनेगा वो उसे देखने जरूर जाएंगे पर वो दिन कभी नहीं आने वाला था। निश्चित दिन से एक रात पहले अचानक शहर में कोहराम मच गया। सड़कों पर घोड़े दौडऩे लगे और लोगों को पता चला कि हब्शी सेनापति हेथाडॉरस ने फेरॉस की हत्या कर दी है। राजरानी और उनका शिशु अब उसके कब्जे में हैं। अब से हेथाडॉरस ने लोगों को कहा कि वो राजधानी बदले वाला है। समुद्र की मां नील नदी मार्ग बदल रही है। फेरॉस की पत्नी अब हेथाडॉरस की हयात में शरीक थी। वो अब उससे उम्मीद से थी। एक यंत्रवत सी उसकी अपनी कोई हस्ती ही नहीं थी।
भयभीत लोगों ने शहर छोडऩा शुरू कर दिया। मरियम ने भी शहर छोड़कर नील की नई धाराओं की ओर जाने का फैसला लिया। इकरा ने मरियम को कहा कि वो नहीं जाए क्योंकि तीन दिन और तीन रात की कयामत होगी। पर वो नहीं मानी और निकल गई। उसने वादा किया कि वो व्यापारी की पत्नी अलम्मा की कनीज बनकर बगदाद जा रही है और वो उसे वहां जरूर मिलेगी। अगर वो आता है तो। उसकी इल्तेजा थी कि वो भी साथ चले। वहां उसका काम भी अच्छा चलेगा। पर इकरा नहीं गया। कारवां निकल गया पर बीच रास्ते में पर्शियन हमलावरों ने इन पर धावा बोल दिया। जोराह और अरफा भगदड़ में फंस गए अफरा तो किसी तरह उसे मिल गया पर जोराह नहीं मिला। मरियम अरफा को लेकर छिप गई। हमलावरों ने लोगों को गुलाम मनाया और सामान लेकर भाग निकले। इसके बाद रेगिस्तान की रेत में तेज बवंडर उठा और तीन दिन तक मरियम लाशों के बीच जोराह को ढूंढती रही। जोराह नहीं मिला वो गुलाम बनाकर ले जाया जा चुका था। आखिर में वो अरफा को लेकर लौट आई। इकरा मरने की कगार पर था। उसे खांसी चल रही थी। मरियम वहां पहुंची तब तक उसके हाथ में भूख-प्यास से मर चुके अरफा का मृत देह था। इकरा ने उसे देखा और आखरी मुस्कान के साथ बोला- काश तुम्हारे लबों पर लुकमान का लेह होता। शहर में वीराना था और हरम की लौंडिया भी नई धाराओं की ओर जा रही थी। मरियम ने इकरा की मृत देह को देखा और फिर अकेली निकल पड़ी। वो कहां गई किसी को पता नहीं चला बस रह गई उसकी खुशियों की कब्र और आंसुओं का मातम।

कुएं का रहस्य

दोनों लापता दोस्तों का आज तक पता नहीं चला है। पर लोगों को आज भी उस सड़क पर जाने में डर लगता है। कुछ दुस्साहसियों ने वहां से गुजरने की कोशिश ...