सोमवार, 28 मई 2018

और कोठी गिर गई.....

कोठी में से लडऩे की आवाजें आ रही थीं। ये हमारी कोठी है। हमारा भी इस पर हक है। बेटी को भी बराबर का हक मिलता है नहीं दिया तो केस करेंगे। जाओ कर दो केस, किसी को एक कानी कौड़ी न मिलेगी। अचानक जर्जर कोठी भरभराकर गिर गई और सभी उसमें दब गए। घंटों तक खबर करने के बाद भी कोई नहीं आया। बाद में मलबा हटाकर अंतिम सांस लेते लोगों और लाशों को निकाला जाने लगा। लोगों में इस बात की चर्चा होने लगी।
आप लोगों को माजरा समझ में नहीं आ रहा होगा। चलिए...पूरा कथानक जानते हैं। ये कोठी बलवंतराय की थी। बलवंत राय, जिनका पूरा नाम था- रायराजा सूर्य बली बलवंत राय, इनके दादा के दादा ने कोठी का निर्माण करवाया था। इस कोठी में 150 से ज्यादा कमरे थे। पांच मंजिला इस कोठी को कभी पंचमहल के नाम से जाना जाता था। दादा को ये इमारत मिली और उन्होंने अपने 8 बच्चों, जो जिंदा बचे, वर्ना बाकी बीमारी के शिकार होकर बचपन में ही स्वर्ग सिधार गए, को ये कोठी दी। अब ये कोठी बलवंत राय और उसके पांच बच्चों के हवाले थे। बलवंत की मौत हुए हफ्ताभर ही हुआ होगा कि आज उनके पांचों बच्चे यहां इकठ्ठा हुए और हक को लेकर आपस में भिड़ गए।
बलवंत राय के परिवार में बड़के भैया शिशुपाल तो सन्यासी हो गए थे। अब वो बनारस में निरस हो चुके थे। उससे छोटे थे, कपिलनाथ जो अब उस इमारत में घुसे बैठे थे और लड़कर किसी को भी उसमें आने नहीं देते थे। इनसे छोटी थी सुवर्णा दीदी जो कभी झांकने नहीं आई पर अब जब हिस्से की बात आई तो वो कब्र फाड़कर बाहर आ गईं। इनके पति भी लडऩे को तैयार थे, वो वकील जो थे। अब आई सुहिता की बारी, सुहिता अनब्याही थी और जवानी का ठंडा जोश लड़कर निकाल रही थीं। ये बलवंत के साथ ही रहती थीं और बलवंत कपिलनाथ के आश्रित थे। कपिलनाथ से इनकी लड़ाई चलती ही रहती थी। अब बचे छुट्टन, वो सिपाही हो गए थे और पास गांव में थाने पर रहकर किस्मत को कोसते थे।
जब कभी त्यौहार पर ये परिवारजन यहां इकट्ठे होते तो इनमें लड़ाइयां होतीं। किराए की दुकानों के किराए को लेकर जो कोठी में ही थीं। किराएदार भी यहां थे, जिनमें से कइयों ने यहां कब्जा कर लिया था और छोडऩे के एवज में मोटी रकम मांग रहे थे। लड़ाइयों और स्वार्थों की आपसी दरारों ने इस इमारत की नींव कमजोर कर दी थी। मुसीबत तो तब हुई जब किराएदार मुसद्दी साहू ने आटा चक्की खोल डाली और चमन नॉवेल्टी ने यहां पिंजारे और सिलाई की मशीनें डाल दीं। वो दिन तो क्या रात में दनदनाती और इमारत का भुरकस रितरित कर यहां वहां गिरता।
आज सभी को पता चला कि कपिलनाथ ने इमारत के आधे हिस्से का सौदा कर दिया है और पैसा लेने वाले हैं। जाहिर सूचना मिली थी शायद। सुवर्णा अपने पति और सभी लोगों को लेकर वहां पहुंच गई। लड़ाई शुरू हो गई। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मकान का सौदा करने की। तू चुप कर कमजात। ढंग से बात करो। छुट्टन को छुट्टी न मिली तो उन्होंने सुवर्णा को ही अपना प्रतिनिधि बना दिया। हंगामा होता रहा और होता रहा जब इमारत इसे झेल न पाई तो गिर गई...गिर गई जैसे रिश्तों का अपनापन और स्वार्थों के बढऩे से एकता की अहमियत। जिन कबूतरों के घोसले यहां थे अब वो दूसरी इमारत पर बैठकर मलबे को ताक रहे थे। जमीन को सरकारी जांच में लिया गया। मकान खतरनाक की सूची में जो था। अब वो जमीन भी सरकारी थी। छुट्टन किस्मत को कोसते रहे, कोसते रहे और कोसते ही रह गए। अब फरिश्तों की रूह सिरधुन रही थी और जमीन नीलाम हो रही थी।
29 मई 2018

रविवार, 27 मई 2018

मौत से मुकाबला 13 : महाविनाश का पदार्पण

डेक पर हलचल की आवाज हुई। तो जोनाथन घबरा गया। वो हाथ जोड़कर बोला- प्लेसिट इरे प्लेनचिट जिसका मतलब था प्लेनचेट वापस जाइये। गोटी बोर्ड पर तेजी से घूमने लगी। मेरा और जोनाथन का ध्यान नहीं था पर एडम लगातार गोट को देख रहा था। कुछ क्षणों बाद गोट जोर से हवा में उछली और बगल में गिर गई। जोनाथन ने बोर्ड और गोट को समेटा और उठ गया। मैं भी उठ गया पर एडम वहीं बैठा कुछ सोचता रहा। क्या हुआ? मैंने और जोनाथन ने साथ में पूछा। वो बोला- क्या तुमने उस शब्दों को जोड़ा जो आखिर में गोट ने इंगित किये। नहीं तो- हमारा जवाब था। वो कुछ सोचने लगा। क्या बात है? जोनाथन घबराया। ये आत्मा किसकी थी? एडम ने पूछा। पता नहीं..पर क्या ये बात जानना जरूरी नहीं थी? क्यों= जोनाथन ने पूछा। वो जो कह रहा था वो जरूर खास था। वो क्या कह रहा था- मैंने पूछा। एडम ने हमारा मुंह देखा- वो कह रहा था कि ये यात्रा शुरू तो हुई है पर इसका अंत सबकी मौत पर होगा। एक जिंदा बचेगा पर वो भी न पूरी तरह जियेगा न पूरी तरह मरेगा। जोनाथन घबरा गया। मानों पूरा दृश्य उसकी आंखों में खो गया।
डेक पर आवाज किसकी थी ये पता न चला। दूसरे दिन सुबह बैन, जैमी और नोबल के साथ नेवल जहाज पर आया। नेवल के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ पढ़ी जा सकती थीं। बैन और जैमी ने आकर नोबल की हंसी उड़ानी शुरू कर दी। उनकी बातों से पता चला कि रात को वो लोग बदनाम शराब घर में गए उसके बाद सब एक-एक खूबसूरत लड़की के साथ कमरे में गए। सभी तो अय्याशी में लग गए पर नोबल लड़की को देखकर एक कोने में बैठ गया। वो युवती नोबल को देखकर हंसी फिर उसने उसके सामने कैबरे किया पर नोबल बुत बना बैठा रहा। जब कई जतन के बाद भी नोबल की रुचि उस लड़की में नहीं जागी तो वो लड़की भड़क गई और उसे गालियां देने लगी। उसका हंगामा सुनकर सब बाहर आ गए। पूरा माजरा जानकर सभी ने नोबल को फिर कमरे में घुसा दिया पर नोबल ने उस लड़की को छुआ तक नहीं। नोबल बोला कि उसने अपनी जिंदगी में सिर्फ एक से प्यार किया। एक को ही किस किया। वो ही उसकी हमसफर है। वो लड़की आज भी नार्थ शायर के बदनाम नाचघर में नाचती है और उसका रास्ता देखती है इस आस में कि किसी दिन वो प्रिंस की तरह आएगा और उसे ले जाएगा। उसने उसे कहा है कि वो उसका इंतजार करे पर यदि साल भर तक उसका उत्तर न आए तो समझ जाए कि वो शायद मर चुका है और वो अपना घर बसाने की जद्दोजहद शुरू कर दे। जोनाथन और मैंने एक दूसरे का मुंह देखा।
हमारे पास मौका था कि यहां का कस्बाई बाजार घूम लें अगर कुछ काम का लगे तो खरीद लें। एडम हमारे साथ था। मैं और जोनाथन तो थे ही। बैन और जैमी भी साथ हो लिये। रास्ते में चलते वक्त वो दोनों जोनाथन और मुझको परेशान भी कर रहे थे। ये उनके लिए मनोरंजन का एक रूप था। हम चलते-चलते एक तंबू के सामने रुके। ये तंबू बिलकुल वैसा ही था जैसा उस जिप्सी बुढिय़ा का था जहां कभी मैं अपने तीन दोस्तों के साथ गया था। तभी एक बेहद खूबसूरत लड़की बाहर आई और हम सबको देखकर ठिठककर रुक गई। बैन, जैमी उसे देखकर रुक गए। उस लड़की की नीली आंखों में गजब की गहराई थी। उसके गुलाबी होंठ उस जन्नत के रस से भरे थे जिसकी प्यास ज्यूस को भी होगी। उस लड़की ने चेहरे से जताया कि आओ, आओ, मेरी कुरबत में आओ। वो उलटी चलकर अंदर चली गई। बैन-जैमी भी अंदर चले गए। वो उसे शायद वेश्या समझ रहे थे। कुछ क्षणों बाद वो बाहर निकले और तेजी से निकल गए। अब मैं, जोनाथन और एडम मंत्रमुग्ध से अंदर चले गए। अंदर एक बुढिय़ा बैठी थी। इसके सामने एक ग्लोब था। वो लड़की उसके पीछे खड़ी थी और हमको देख रही थी मानों कह रही हो कि अगर मुझे पाना है तो इनसे बात करो। आश्चर्यजनक रूप से अंदर तीन कुर्सियां थी। हम तीनों उन पर जा बैठे। बुढिय़ा रहस्यमय ढंग से मुस्काई। तुम तीनों फिर आ गए...फिर से हम आपसे पहली बार मिल रहे हैं...एडम बोला। अच्छा, कोई बात नहीं, जानते हो तुम तीनों कौन हो... नहीं-जोनाथन उस लड़की को घूर रहा था। तुम-एडम हो, तुम-एज और ये जोनाथन है। उसके मुंह से हमारे नाम सुनकर हम चौंक गए। आपको हमारे नाम... मैंने पूछा। पेरिस याद है न तुमको.... अब मैं पूरी तरह से पसीने से तर हो गया। आपको ये कैसे मालूम, अब मैं सवाल करना चाहता था। मुझे कु छ अजीब लगा। मैंने एडम का मुंह देखा तो वहां वही हब्शी दलाल बैठा था जो पेरिस को ले गया था। मैंने जोनाथन का मुंह देखा तो वहां भी वही हब्शी बैठा था। मैंने बुढिय़ा का मुंह देखा वो मुझ पर लपकी- शाप कभी खत्म नहीं होते मिस्टर। मैं वहां से भागने लगा इस प्रयास में मैं कुर्सी से सिर के बल गिरा और तेजी से भागकर बाहर आया। अब मैं तेजी से भागता जा रहा था। कोई राह नहीं सूझ रही थी। तभी किसी ने हिलाया- कहां हो एलेक्स दी ग्रेट। मैं यथार्थ में आया हम उस झोपड़े बाहर खड़े थे। मेरी अंदर जाने में रुचि नहीं थी सो एडम और जोनाथन भी मेरे साथ आगे बढ़ चले। हमको आश्चर्य था कि जैन और जैमी झोपड़े से निकलकर क्यों भागे? खैर, कुछ आगे जाने पर हमने एक होटल देखा और अंदर जा पहुंचे। इस लकड़ी के होटल में एक टेबल पर हम तीनों जा बैठे। एक बेहद दुबला आदमी आया और उसने हमसे पूछा कि हमें क्या खाना है? जोनाथन के मुंह से निकला-केकड़े का सूप। सालमन मछली की सब्जी, ब्रेड चिली सॉस के साथ ले आओ- एडम ने कहा। अब मेरी बारी थी- पुडिंग ले आओ। वाइन का ऑर्डर हम बाद में देते। हमारे पास एक आदमी और एक युवा प्रीस्ट बैठे थे। हमारे प्रभु कहते हैं कि कयामत आने वाली है..अपने पापों को सुधार लो-प्रीस्ट ने कहा। वो आदमी चुपचाप नूडल्स को हाथों से खाता रहा। उसका ढंग बेहद गंदा था। अपने पापों से मुक्ति के लिए तुमको प्रार्थना करनी चाहिए ऐसा प्रभु कहते हैं। अब वो आदमी भड़क गया- तुम मेरा दिमाग क्यों खा रहे हो? प्रीस्ट ने झेंपकर हमारा मुंह देखा तो वो एडम को पहचान गया। एडम...एडम ने भी उसे पहचाना- एफिल। एफिल हमारे पास आकर बैठ गया। सालों बाद मिले...हां ये अजीब संयोग है... अब हमारा परिचय हुआ। ये एज है- ये जोनाथन और ये है एफिल- बचपन में ये और मैं साथ में कुत्ते के पिल्ले लेकर आते थे और उनके साथ खेलते थे। बाद में वो वापस भाग जाते थे और हम दोबारा उनको लेकर आते थे। एक बार इस पर बिच ने एफिल के पुट्टे में काट भी लिया था। ये मेरे बचपन का दोस्त है। हम लड़कपन में चर्चा जाकर लड़कियों को घूरते थे और उनके रुमाल चुरा लेते थे। बाद में रुमाल पर कुछ उत्तेजक प्रेम कीबातें लिखकर वापस चर्च में उनकी टेबल के नीचे फेंक देते थे। इतने पर भी किसी लड़की ने हमें घास नहीं डाली। एफिल मुस्काया। हमने कई बार इसी चक्कर में फनरल भी अटेंड किये पर कुछ हुआ नहीं। अब एफिल की बारी थी- आप से मिलकर खुशी हुई। तुम यहां कैसे? अरे अपना यही धंधा है लोगों को पटाता हूं, प्रार्थना की बातें करता हूं-पैसे लेता हूं। घर बसा लिया क्या? जोनाथन ने एकदम से पूछा जो नितांत आवश्यक नहीं था। घरवाली मिली है पर घर नहीं। मतलब, मैंने पूछा। मुझे लड़की मिली तो है पर मेरे पास शादी लायक पैसे नहीं हैं। ओह...न जाने क्यों एडम मुस्कुरा रहा था। शायद हमारी बातों पर। जानते हो ब्रिटिश नेवल का खुफिया दस्ता यहां किसी चीज की खोज कर रहा है। उसने बताया। इस बात पर हमारी प्रतिक्रिया कुछ नहीं थी। एफिल भूखा था और ये बात एडम जानता था। सो उसने हमारे साथ खाना खाया और फिर मिलने की दुआ मांगते हुए रुखसत हो गया।
हम निकल ही रहे थे कि नोबल वहां आया- कितनी देर से तुमको ढूंढ रहा हूं। चलो मौसम साफ है। हमें निकलना है। हम वापस आए और जहाज निकल पड़ा। डेक पर खड़ा नेवल चिंतित था। हमने आज से पहले उसे कभी इतना चिंतित नहीं देखा था। सर आप चिंतित हैं...नोबल ने पूछा। नहीं कुछ नहीं...पर नोबल मानने वाला नहीं था। आखिर में उसने बताया जब वो रात में बदनाम शराब घर में थे। एक लड़का उसे एक चिट्ठी दे गया। चि_ी में बताया गया था कि थॉर से संबंधित लोगों को पकडऩे के लिए ब्रिटिश नेवल का खुफिया दस्ता यहां आ चुका है और एक आदमी हमारे बारे में उनको जानकारी दे सकता है। उसने हमारा साथ मांगा है। कौन है वो सर? एडम ने पूछा। वो चि_ी बार्बरस बदनाम की थी। एकाएक सबको सांप सा सूंघ गया। बार्बरस यहां फरारी काट रहा है। उसे यहां से निकलने के लिए हमारे जहाज की जरूरत है। हम इसीलिये निकल पड़े हैं। उसे अगर निकाला न गया तो वो थॉर के मामले में हमारा नाम ले लेगा। जिसके बाद हम सब बबार्द हो जाएंगे। एडम समझ चुका था कि प्लेनचेट की भविष्यवाणी सच होने वाली है पर इतनी जल्दी यकीन नहीं था। मैं येजानना चाहता था कि बार्बरस कौन है और ये चाहता क्या है? हम सब अलग-अलग सोच पर थे, किन्तु हम ये नहीं जानते थे कि कुछ दूर समुद्र में महाविनाश का पदार्पण हो चुका है।

गुरुवार, 10 मई 2018

चरित्र अब भी वही है

जब वो बचपन में छोटी थी मां काम पर जाती थी बाप यहां-वहां काम की तलाश में फिरता था। भाई अंटी खेलने में मसरूफ हो जाते। वो मां के थोड़े से मेकअप के सामान को लगाकर पुरानी अलमारी के धुंधले पड़ चुके आइने के सामने आकर सज-बन कर खूब नाचती। घर में मनोरंजन का एक मात्र साधन एक छोटा सा टीवी था। वो भी ब्लैक एंड वाईट इस पर जब कमर लचकाती उछलती-कूदती हिरोइन आती तो वो फूली न समाती। भाई उसे देखता तो उसे रुचि न होती। बाप उसे देखता और रात में उसी की कल्पना कर उसकी मां को प्यार करता।
जिसकी बात की जा रही है इसका नाम लावण्या था। इसकी मां का नाम कामिनी और पिता था ग्यारसीलाल। इसके दो भाई थे- इससे बड़ा नंदू यानी नंद किशोर और छोटा- परसू यानी पुष्कर। कामिनी का कोई बंधा काम नहीं था। कभी वो बर्तन मांजती तो कभी चमड़े के खिलौने के कारखाने में घोड़े-ऊंट घिसने पहुंच जाती। ग्यारसी को उसके चरित्र पर शंका होती थी पर वो इसे अनदेखा ही करता था। लोग यूं काम नहीं देते-कामिनी सजधजकर जाती, मीठी-मीठी बातें करती। मंद-मंद मुस्काती। लोग खासकर पुरुष आकर्षित हो जाते, इससे अगर कहीं काम न भी निकलता हो तो उसके लिए काम निकाला जाता था। कभी-कभी वो अपने किसी मित्र के साथ घूमने भी चली जाती थी। जो उसे घुमाने ले जाता वो उसे पैसे भी देता था। उसके चाहने वाले तो उसके घर को तमाम जरूरी चीजों से भर देना चाहते थे पर कामिनी ही मना करती थी कि पैसे दे दिया करो जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। सजना-संवरा उसकी पेशेगत मजबूरी थी शौक इसे समझना मुश्किल है।
लावण्या स्कूल तो जाती ही नहीं थी। भाइयों का ही पढऩे में दीदा नहीं था तो उसका मन भी होता तो वो जा न पाती। वो सुबह उठती तो पानी लेने हैंडपंप पर जाती वहां से पानी लेकर घर आती फिर जो काम मां अधूरा छोड़ जाती उसको पूरा करती। कपड़े धो लेती और कुछ काम हो तो वो कर लेती। खाना भले ही वो न बनाती हो पर कभी-कभार वो उसको गर्म कर देती थी। वक्त तेज रफ्तार घोड़ा है इसके साथ दौडऩा ही जिंदगी है वर्ना इसकी टापों के नीचे आकर बर्बाद होना तो निश्चित ही है। लावण्या की दादी पास की ही कॉलोनी में रहती थी। इसको सभी ददिया जी बोलते थे। ददिया के पांच बच्चे थे। जिसमें ग्यारसी मंझला था। उसकी दो बड़ी बहनें उसके बाद भाई फिर ग्यारसी उसके बाद एक और भाई था। ददिया पड़ोस की कॉलोनी में रहती थी पर ग्यारसी का परिवार वहां ज्यादा आता-जाता न था। ददिया कहती कामिनी तो धंधा करती है। पूरी रंडी है रंडी, दस खसम है कुतरी के।
कहते हैं कि शादी के पहले से ही कामिनी के कई लड़कों से संबंध थेे। नौकरी के बहाने कामिनी घर से निकलती थी, वो नौकरी तो करती ही थी साथ ही पार्ट टाइम में वो लड़कों के साथ घूमती-फिरती भी थी। वो लड़कों से पैसे लेती थी और रंगरलियां मनाती थी। ग्यारसी की मां को ये बात शादी के बाद पता चली जब उसने कामिनी को किसी दूसरे आदमी के साथ तालाब किनारे पाया। यहां कामिनी चौकीदार को ये कहकर आई थी कि साथ में आने वाला आदमी उसका पति है। वो यहां सुहाग का दिन मनाने आए थे। तभी उसकी सास का वहां से निकलना हुआ। वो वहीं पास की बस्ती में विवाह की रस्म मागर माटी में गीत गाने आई थीं और तालाब के रस्ते का शार्ट क ट लेकर जा रही थीं। कामिनी की सास को देखकर उसका साथी भाग निकला और कामिनी को लेकर उसकी सास वापस आ गई। उसे गाली दी गई और शादी तोडऩे की बात कही गई। कामिनी ने भी कह दिया कि वो दहेज के मामले में सबको जेल की हवा खिला देगी। सब बोलते रहे पर ग्यारसी चुप रहा। बिलकुल चुप। उसका पौरुष उसकी पत्नी को ही रास न आया। शायद वो उससे प्यार नहीं करता था सिर्फ हवस पूरी करने के लिए वो उसके पास आ जाता था। जब बात ज्यादा बढ़ी तो ग्यारसी ने कामिनी से कहा कि वो दोबारा ऐसा न करे। कामिनी से कहा गया कि वो काम छोड़कर घर बैठ जाए, इस पर ग्यारसी तो गुस्साया ही कामिनी ने भी कह दिया- ये (ग्यारसी) काम-धंधा तो करते नहीं हैं, मैं घर बैठ जाऊं तो कैसे चलेगा घर? बड़की भाभी कहेंगी, बस बैठे-बैठे खाते हैं। वैसे भी ताने मारने से वो बाज तो आती ही नहीं हैं। सास ने कहा- तू काम करेगी तो ग्यारसी तेरे साथ जाएगा। कामिनी भी भड़की- कहो तो चोली-बिलाउज में छुपाकर ले जाऊं इनको।
आखिरकार तय हुआ कि नियत समय पर कामिनी को लेने खुद ग्यारसी ही जाएगा। डेढ़ महीने बाद ग्यारसी और कामिनी घर से अलग हो गए। कामिनी की मां ने जच्चा-बच्चा यानी प्रसव करवाया। सास तो शक करती थी कि ये ग्यारसी के बच्चे हैं या.....लावण्या पंद्रह साल की हो गई। मां से उसको खूबसूरती तो मिली न मिली कह नहीं सकते पर वो सजना-संवरना खूब करती। कॉलोनी के लड़कों की आंखें उस पर जमने लगीं। कामिनी समझ गई कि अगर ये घर पर रही तो कुछ न कुछ गुल खिल जाएगा। उम्र नादान है। कहीं पेट से हो गई तो? अपने बच्चों पर भरोसा कौन करता है वो भी जब मां और पिता ही गलत रास्ते पर चलने लगें?
कामिनी, अपने साथ काम पर लावण्या को ले जाने लगी। लगे बखत लावण्या के भाई नंदू के लिए रिश्ता आया। ससुराल वाले ने अपनी हैसियत के हिसाब से एक सायकल, मेज का पंखा (टेबल फेन), अलमारी, गैस टंकी, एक पलंगपेटी, नगदी में 51सौ रुपए देने की बात कही। बाकी घर वालों की आवभगत, देनदारी, बारात का खर्च देने की बात कही। ग्यारसी ने सब कामिनी पर छोड़ दिया और कामिनी राजी हो गई। उसने सोचा कि बहू को भी काम पर ले जाएगी तो पैसे बनेंगे।
शादी का कार्यक्रम शुरू हुआ। लावण्या के लिए ये अपने आप को दिखाने का सुनहरा मौका था। वो खूब नाची, खूब नखरा बिखेरा (फैशन परस्ती दिखाई) लड़कों की नजरें उस पर जम गईं। कामिनी यहां वहां हुई कि आंखों-आंखों में इशारे होने लगे। यहां सब लड़कों में लावण्या को सब्जी वाले बनवारी का लड़का पसंद आया। वो भी फैशन परस्त था। रंगउड़ी जींस में उसकी पतली-पतली बीड़ी जैसी टांगे। विचित्र से भेस में वो बिलकुल हीरो जैसा लगता था। इसका नाम बनी था, जिसको जानने वाले बन्ना भी कहते थे।
शादी निपटी और लावण्या फिर से काम पर जाने लगी। भाभी अभी तो घर ही सम्हाल रही थी। भाई भी बंगले पर काम करता था। केवल ग्यारसी छोटे-मोटे मजदूरी के काम करता रहता कुछ पैसे बन जाते तो मुहूर्त करता और शराब पीता। जुआ भी खेल लेता जिसमें आज तक वो कभी जीता नहीं था। उसके साथी उसको कचोड़ी-समोसा खिला दिया करते थे। जिससे गदगद होकर वो खेल लिया करता था।
इधर, कामिनी सड़क से जा रही थी कि एक मोटर साइकल वाले ने उसे ठोंक दिया। वो गिर गई और चोटें आई। गाड़ी वाला भाग गया। पुलिस में शिकायत की तो पुलिस वाले बोले- ऐसा तो होता ही रहता है। निकल यहां से, अस्पताल जा। कामिनी को अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया। लावण्या अब अकेले मां का काम भी सम्हाल रही थी। एक दिन वो जा रही थी कि मोटरसाइकल पर बनी वहां आ गया। कहां जा रही है? काम पर...। अरे जरा रुक जा...जाने दे। सुन मैं तुझसे प्यार करता हूं, साथ चलेगी। काम कौन करेगा? तेरा बाप? मेरा बाप तो मां के साथ काम करता है। भाई भाभी और बहन जीजा के साथ एक मैं ही अकेला हूं? लावण्या हंस पड़ी। शाम को आना कितने बजे.. चार बजे तक काम निपटा लूंगी। यहीं आना। ठीक..वो निकल गया।
चार बजे लावण्या वहां पहुंची तो देखा बनी वहीं गाड़ी लेकर बैठा था। लावण्या ने दुपट्टा मुंह बांधा और बनी के साथ गार्डन जा पहुंची। गार्डन खाली था। दोनों एक कोने में जाकर बैठ गए।
यहां कोई बातचीत करने तो वो आए नहीं थे। बनी ने लावण्या को बाहों में कस लिया। वो उसे प्यार करने लगा। लावण्या के लिए ये अजीब अहसास था। छह बजने वाला था। अब छोड़ दे....वो उठी और दुपट्टे से मुंह पोछने लगी। अरे इतनी जल्दी...कल फिर मिलेंगे। अरे यार....आज ही पूरी दावत खाएगा क्या? हां...धत्...वो मुस्कुराई। उसने उसे चौराहे तक छोड़ दिया और प्यार की निशानी के तौर पर पावभर अंगूर खरीदकर दिये और एक पान भी खिलाया। शाम को लावण्या देर से घर पहुंची। भाभी को कहा कि बंगले पर पार्टी थी। ये अंगूर मालिक ने दिये और पान भी खिलाया। भाभी कुछ समझी पर चुप रही। दूसरे दिन बनी लावण्या को फिर से गार्डन ले गया। आज उसने उसे निरोध दिखाया। वो कुछ करता इससे पहले ही लावण्या वहां से निकल गई। लावण्या को ये उम्मीद नहीं थी कि बनी प्यार-मोहब्बत छोड़कर सीधे संभोग पर उतर जाएगा। बनी ने सोच लिया कि वो उसे छोड़ेगा नहीं। लावण्या ने जाते-जाते कह दिया कि अब पीछा न करना वर्ना ठीक नहीं होगा। वो आ तो गई पर उसे भविष्य को लेकर भय था। उसके भय को भाभी समझ गई। उसने उससे पूछा तो लावण्या टूट गई और रोते-रोते उसे सब बता दिया। भाई ने ये सब देखा तो पूछा- ये क्या हो रहा है? मां की याद आ रही है...भाभी ने उसे बचा लिया। अब भाभी ने त्वरित निर्णय लिया कि जब तक अम्मा न आ जाए तब तक वो लावण्या के साथ काम पर जाएगी। अम्मा का काम वो सम्हाल लेगी। भाइया की चाबी तो भाभी के हाथ थी। अब दूसरे दिन से लावण्या के साथ उसकी भाभी जिसका नाम काम्या था, जाने लगी। बनी उनको दूर से देखता पर भाभी का डर था कि वो पास न आता। एक दिन वो मौका देख लावण्या के करीब आ गया। उसने उसका हाथ पकड़ा और जबरदस्ती बाइक पर बिठाने लगा। तभी पीछे से काम्या आ गई। रुक साले...वो गाड़ी लेकर भागा पर काम्या ने एक बड़ा पत्थर उठाकर उसके सिर पर दे मारा। एक तो बाइक की रफ्तार दूसरा पत्थर का आघात, वो गाड़ी समेत फिसला और घिसटता हुआ एक मकान के बड़े गेट से जा टकराया। कॉलोनी सुनसान थी, काम्या लावण्या को लेकर चंपत हो गई। आवाज सुनकर जब तक लोग आए न तो वहां काम्या थी न लावण्या। वो घर ऐसे पहुंची जैसे कुछ हुआ ही न हो ऐसा काम्या ने ही समझाया था। देर रात तक बनी का पता चला वो सरकारी अस्पताल में भर्ती था। उसके सिर में गंभीर चोट थी और शरीर में कई फ्रैक्चर। उसका घर आना इतनी जल्दी संभव नहीं था।
अब कामिनी अस्पताल से घर लौटी तो गदगद हो गई। बहू हो तो ऐसी उसका काम तो सम्हाल ही लिया और कई नई जगहों पर उसे काम मिल गया। काम्या ने लावण्या और कामिनी को कमाई में पीछे छोड़ दिया। यहां तक कि कॉलोनी के सबसे बड़े बंगले में, जहां की किसी को नौकरी तो क्या झलक भी नहीं मिलनी थी वहां उसे नौकरी मिल गई। उसे उपहार भी कीमती मिलते, साडिय़ां ही करीब पांच से छह हजार की उसे मिलती। छोटे-मोटे जन्मदिन पर सोने-चांदी के सिक्के और पूरे घर का खाना। खाना तो वैसे भी उसे रोज मिल ही जाता था। कामिनी अब घर पर आराम करती। बस एक तमन्ना थी कि दादी बन जाए पर काम्या अभी मां नहीं बनना चाहती थी, वो कहती पहले पैसा तो इक_ा कर लें। काम्या का एक छोटा भाई था जो शहर में ही रहता था नाम था दामू। काम्या ने उसे और लावण्या को मिलवाया। दोनों में प्यार ही हुआ...दोनों साथ घूमने लगे। प्यार में डूबने लगे। लावण्या और दामू के इस प्रेम प्रसंग को घर से भी मान्यता मिली हुई थी सभी उसको लावण्या का भावी पति ही मानते थे और वो भी लावण्या को पत्नी ही मानता था। लावण्या को गर्भ चढ़ गया तो दामू ने उससे शादी कर ली।
इधर, बनी घर लौटा तो उसका दिमाग खराब हो चुका था। वो किसी को पहचानता ही नहीं था। यहां तक कि वो खुद का नाम ही भूल जाता था। शादी के बाद लावण्या पास की ही कॉलोनी में जाकर रहने लगी। सप्ताह में दो-चार बार घर आ जाती। कामिनी के घर की हालत अब बदलने लगी थी। घर में काम्या क्या आई? घर स्वर्ग बन गया। पैसा तो इतना हो गया कि बैंक में खाता खुलवा लिया। कामिनी की खुश तो थी पर उसकी खुशी को तब ग्रहण लग गया जब उसे पता चला कि काम्या नौकरी की आड़ में धंधा कर रही है। कई बंगले के मालिकों से उसके संबंध हैं। सोलह साल के किशोर से लेकर साठ साल के बूढ़े तक उसके ग्राहक बन चुके हैं। काम्या भी खूबसूरत थी, कुछ लोगों का तो कहना था कि लावण्या और कामिनी भी उसके आगे कुछ न थीं। कामिनी ने सुनी-सुनाई बातों की तस्दीक करने की कोशिश की। उसे पता चला कि कामिनी तालाब के किनारे अक्सर बंगले के मालिकों के लड़कों के साथ जाती है। वहां वो सबकुछ होता है जो नहीं होना चाहिए। कामिनी ने अपने भाई के आवारा लड़के को तालाब पर तैनात कर दिया। एक दिन उसने मोबाइल पर बताया कि काम्या यहां कार में बैठकर एक किशोरवय लड़के के साथ आई है। बस फिर क्या था? कामिनी नंदू को लेकर वहां जा पहुंची। किशोर उसके रूप से मदहोशकर काम्या के अंगों को चूम ही रहा था कि वो दोनों वहां पहुंच गए। तालाब सुनसान था। हंगामा होने लगा। काम्या ने किशोर को बचाने की कोशिश की पर नंदू ने किशोर को थप्पड़ मार दिया। मेरी औरत के साथ मजा करेगा हां...अब किशोर चिल्लाया- तू जानता नहीं है मैं कौन हूं? अब किशोर भाग गया। कामिनी का हाथ उठता उससे पहले ही काम्या बोल पड़ी- अम्मा हाथ न उठाना। नंदू का हाथ भी रुक गया। अब वो तीनों घर आ गए। घर में भी हंगामा होने लगा। कामिनी ने उसे वेश्या कहा और घर की इज्जत पर बट्टा बताया। नंदू ने काम्या का बचाव किया तो उसे जोरू का गुलाम का खिताब मिला। लावण्या भी वहां आ पहुंची। वो चुप ही रही। अब काम्या की बारी थी। अरे मुझे बोल रही है डुकरिया (बुढिय़ा), तूने क्या कम गुल खिलाए हैं? लावण्या को तो मैने बचा लिया वर्ना ये तो....मैं जो कुछ करती हूं उससे पैसा आता है। जब पैसा आया तो अच्छा लगा पर जब पैसे का जरिया पता चला तो ये अंजाम...जो सासू ने किया अब मैं वहीं कर रही हूं तो इल्जाम क्यों? वाद-विवाद के बीच पता नहीं कहां से पुलिस आई और नंदू को पकड़कर ले गई। काम्या बंगले पर गई उसके बाद नंदू को छोड़ा गया। ये हंगामा खुसुर-पुसुर का विषय बन गया। कामिनी जहा ंसे निकलती लोग गुपचुप कहते- पहले जो जगह इसकी थी वो अब इसकी बहू ने ले ली है। अब काम्या सजती-संवरती, नखरा (फैशन) करती और काम पर जाती। उसके सभी आयु वर्ग के पुरुषों से संबंध बन चुके थे। शायद वो गर्भवती भी थी। लावण्या ने ये देखा फिर सोचा- सच ही तो कहते हैं, नाम बदल गए पर चरित्र अब भी वही हैं। ८-४-२०१८

कुएं का रहस्य

दोनों लापता दोस्तों का आज तक पता नहीं चला है। पर लोगों को आज भी उस सड़क पर जाने में डर लगता है। कुछ दुस्साहसियों ने वहां से गुजरने की कोशिश ...