शुक्रवार, 15 मई 2020

कहानी एक मंगनी प्रसंग की

गांव की एक वीथिका में एक घर में कुछ उत्सव का माहौल था। सामने कुछ चमकीली पन्नियां धागों में लटककर हवा के थपेड़े खा-खाकर निढाल होकर शुन्य में लटकी थीं। घर के सामने अनगढ़ रंगोली डली थी।
हवा में सौंधी-सौंधी सी गंध थी, अजीब सा आलस्य पसरा था यहां। अम्मा चमकीली लाल साड़ी में सजी यहां-वहां घर और घर के सामने डोल रही थीं। उनको देखकर ऐसा लग रहा था मानों हिंडिंबा को किसी ने लाली चुनरी में लपेट दिया हो।
पता नहीं हो तो आपको बता दूं कि आज राधा यानी इस घर की एकलौती बेटी को देखने के लिये लड़के वाले आने वाले थे, बात थी कि इसी वक्त मंगनी भी हो सकती थी। घरद्वार सजा था। अम्मा इस ठीकरे से घर की व्यवस्था का ऐसे मुआयना कर रही थीं कि मानों शायद इतनी कवायद तो बाबा आदम की शादी में फरिश्तों ने भी नहीं की होगी।
घर में दो भाभियां थीं छुटकी घर के अंदर तो बड़की बाहर की व्यवस्था सम्हाल रही थीं। कुल जमा ग्यारह लोग आयेंगे। सबके कपड़े-लत्ते, मिलनी-मिलानी तैयार है कि नहीं।
लड़के को ग्यारह सौ रुपये, एक अंगूठी, बुशर्ट-पतलून और कोट का पैसा सिलाई के साथ, एक घड़ी अच्छी वाली देने की बात तय थी। मोटर सायकल तो शादी के समय देना है। बाकी लोगों को एक सौ एक रुपये, मिठाई का डब्बा, शर्ट-पतलून का कपड़ा, साड़ी औरतों के लिये साथ ही साथ मेवे और कुछ नमकीन के पाकट देने हैं।
अब देखें भावी दुल्हन की कहानी, वो कमरे में दब-छुपकर नेहा के नाम से अपने प्रियवर से बातें कर रही थी।
तुम तो अम्मा के आंचल से बंध जाओ बस.. तुम्हारी उस फटफटी को आग लगा दो जिस पर हमको घुमाया करते थे। हम यहां मंगनी करेंगे वहां तुम कुएं में डूब मरो।
अरे ऐसा न बोल, चल किसी बहाने से घर के पीछे बछिया के बाड़े के पास कच्ची सड़क पर आजा शाम सात बजे। तुझे लेकर शहर चले चलता हूं। जो डर न करे तो आजा- प्रियवर का जवाब था।
राधा ने यहां-वहां देखा- अच्छा हम आते हैं पर कपड़े..।
उसकी फिकर न कर..कर लेंगे जुगाड़, वहीं माता मंदिर में हो जाएगा चटमंगनी पट ब्याह- व्याकुल नायिका के लिये यह आश्वासन उस समय उपयुक्त था।
यहां आंगन में छुटकी की मदद कर रही थी पार्वती, पार्वती जिसका महेश पर दिल था, जिसकी मंगनी राधा से हो रही थी। पार्वती ने महेश को गांव की वसुधा की शादी में देखा था वहीं से दिल में उसकी लगन लग गई पर आज उसका दिल जार-जार हो रहा था। मन तो होता था कि फूट-फूट कर रोये। महेश भी उसे ब्याह में पूरे समय घूरता रहा था फिर गा रहा था- सेज सजा दे सजनी। वो इस बात पर शर्मायी भी थी।
छुटकी की धरम की बहन और इस परिवार की धरमबेटी थी पार्वती। गरीब जातभाई की इस बेटी का अब तक का आधा जीवन इस घर में परिवार सदस्यों के बीच ही बीता था वो उसे घर का सदस्य ही मानते थे। सांझ को वो घर लौट जाती थी पर आज काम ज्यादा था इसलिये सांझ पड़े मदद के लिये बुला लिया था। खैर, महेश का परिवार आने वाला था रात आठ बजे। थककर पार्वती उठी- जाती हूं जीजी। अच्छा जा पर जब मंगनी हो तो आना जरूर।-छुटकी ने आमंत्रण दिया। बिना पावक के जलती पार्वती को वो गीत याद आया- राजा की आयेगी बारात..। हम देखेंगे जीजी घर में काम न हुआ तो आयेंगे। पार्वती दिल की जलन छुपाती निकल गई।
यहां घर के भीतर भावी दुल्हन का एक-एक पल भारी बीतता था। दुल्हन सी सजी राधा ने घड़ी देखी और सात बजने में पांच कम थे तब बड़की को चकमा देकर वो भाग निकली। उसके प्रियवर मधुसूदन शर्मा वहां इंतजार कर ही रहे थे झट बैठाया फटफटी पर फट से फुर्र हो गये दोनों।
जब राधा न आई तो ढुंढाई मची। खेत पर खेल रही मौसी की नन्हीं पोती ने तुतलाते हुए बताया कि लाधा दीदी एक ललके के थात गाड़ी पल बैतकर भाल गई...
अब तो घर में हंगामा हो गया। साढ़े सात बज रहे थे। दोषारोपण में समय खराब करने से अच्छा था कि आपदा का समुचित प्रबंधन किया जाये। बड़के भैया ने तुरंत दिमाग लगाया। चाचा की बेटी कौशल्या को बुला लाओ बोल देना कि हम लगन करवा रहे हैं महेश के साथ। चाचा की हालत पतली है सो वो मना न करेंगे। सांप भी मर जायेगा घर की इज्जत भी न जायेगी। महेश को हम समझा लेंगे कि राधा न सही कौशल्या से ही कर लो ब्याह। मोटर सायकल के साथ 11 तोला सोना दे देंगे।
दोनों भाभियां तनती रह गईं।
चाचा घर पर नहीं थे। बात सुनकर चाची ने कौशल्या को छुट्टन के साथ भेज दिया। इसकी मंगनी करवा दो शादी भी करवा देना- चाची बोली।
वैसे भी भरीपूरी लौंडिया भाग गई है इज्जत बचाने के लिये हमारी लड़की का ब्याह तो करवाना ही पड़ेगा- उन्होंने सोचा। आज मौका पडऩे पर पुरानी शत्रुता की गांठ ढीली पड़ गई थी। जिसका चाची पूरा लाभ लेना चाहती थी। कौशल्या को ले आये। पौने आठ हो रहा था जल्दी-जल्दी उसे सजाया। भाभियों ने बाल सुलझाये जो महीनों से उलझे थे जुएं-लीखें भी निकालीं। वो नहायी भी न थी सो उसे पाउडर और खुश्बू से नहला दिया। क्रीम की परत पर परत चढ़ा दी।
बड़के दरवाजे से भीतर आये- कुसल्या को सजाया कि नहीं वो आते ही होंगे।
इतने में चाचा वहां आ धमके वो सीधे ठेके से ही निकल आये थे। घर पर जैसे ही पता चला कि कौशल्या को ले गये हैं तो वो नशें में वहां आ पहुंचे।
बड़के, हमारी बेटी हमारी बेटी है हम ही उसे ब्याहेंगे। भले ही दूल्हा निपट कंजरा ही हो। तुमने हिम्मत कैसे की हमारे घर आने की?- चाचा गुस्से में था।
बड़के ने बात सम्हाली- चाचा अभी घर जाओ। कौशल्या जैसे तुम्हारी बेटी वैसे ही हमारी बेटी। पुरानी बातें भूल जाओ।
अबे गधेड़े जो पुरानी बात भूले वो कुकर का मूत, कौशल्या हमारी बेटी है, उसे हम ही ब्याहेंगे, उसे वापस भेज -चाचा मानने को तैयार न था।
बड़के का मन हुआ कि पहले की तरह एक बार फिर से उसकी टांग तोड़ दें पर आज मामला नर्म था।
चल बेटी-चाचा कमरे में अंदर घुसने लगा। सबने सम्हाला पर वो न माना। जब ये नौटंकी चल रही थी पार्वती वहां आई। वो छुटकी से सिलाई-कढ़ाई सीख रही थी। उसी मामले में कुछ पूछने आई थी। उसने देखा चाचा कौशल्या को खींच कर ले गया। उसने पूछा तो किसी को न बताने की कसम देकर छुटकी ने सारी बात बतायी।
पार्वती बोली- जीजी, घर वालों का न बताओ तो बताऊं।
बोल परवा- छुटकी बोली। परवा पार्वती का घरु नाम था।
जीजी, मां से कहो, उनको मना लो तो हम महेश संग..-पार्वती की आधी बात सुनते ही छुटकी का मन शांत हुआ पूरी की बात ही छोड़ दो।
अरे छोड़ो शराबी को, पार्वती के घर जाओ और बोल दो कि हम पार्वती का लगन करवा रहे हैं। हमारी तो धरम बहन है ये-छुटकी की बात सुन छुट्टन पार्वती के घर की ओर दौड़ गये।
चल, परवा..छुटकी उसे कमरे में ले गई।
आठ पांच हो रहे थे। सभी घबराये हुए थे। न जाने कब महेश आ धमके।
कुछ देर बाद छुट्टन आये, वो शांत थे, पार्वती की अम्मा गौरी ने कहा है कि जैसे हमारी बेटी वैसे तुम्हारी...। बस बात पक्की करने से पहले इनको (पार्वती के पिताजी) लड़के वालों से जरूर मिलवा देना। आखरी फैसला तो इनका ही होगा।
अब कुछ राहत थी। पार्वती के बाबूजी को मनाना आसान ही था। गरीब वो थे ही और यदि शादी का खर्च उनकी जेब से न जाये तो पार्वती की खुशी में वो अपनी खुशी ही देखते थे। वैसे भी पार्वती उनकी भी धरमबेटी थी। उसने अब तक का आधा जीवन उनके साथ ही बिताया था। बस बात थी तो महेश को मनाने की। रात साढ़े आठ बजे महेश पधारे। साथ में पिता, मां और कुछ बंधु-बांधव थे।
घर में सबने तय किया था कि पहले महेश और पार्वती एक-दूसरे को देख लें फिर वो मान-मनौव्वत करेंगे। पार्वती को छुटकी लेकर आईं तो महेश चौंक गया। ये तो वो न थी जिसकी तस्वीर भेजी गई थी। बड़के बोले- वो क्या है कि आप क्षमा करें। राधा का दाखिला शहर के बड़े कॉलेज में हो गया है आज दोपहर को ही खबर मिली। वो पढऩे को अड़ गई और शहर निकल गई। अपनी बात रखनी थी इसलिये हम चाहते हैं कि आप छुटकी की धरम बहन और हमारी धरमबेटी पार्वती को हमारी बेटी राधा की तरह ही मान दें।
बड़के सोच रहे थे कि अगर बात न बनी तो पर महेश के बाबूजी तो खुद उसकी अम्मा को भगाकर लाये थे। उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी? महेश के बड़के भैया के तो घर के सामने झाड़ू बुहारती मेतरानी से ही नैना चार हो गये थे। वो उसे ही ब्याह लाये..वो कुछ बोलेंगे या नहीं...। कुछ क्षणों के मौन के बाद महेश के बाबूजी बोले-भई, ब्याह तो महेश को करना है वो जाने..
महेश तो बाबूजी की इस बात का इंतजार ही कर रहे थे। पर वो जानते थे कि बात टाली तो मुसीबत हो सकती है, उनका बस चलता तो वो आज ही पार्वती को ब्याहकर ले जाते, सीधे-सीधे बोलना भी ठीक नहीं है। उसने बात बड़के भैया पर डालते हुए कहा- भैया जो बोलें।
आपको बता दें कि छुटकी भौजी महेश के बड़के भैया की किसी समय में प्रेमिका रही थीं ये और बात है कि बड़के का चंचल मन मेतरानी पर स्थिर हुआ और वो उसे ब्याह लाये पर प्रेम तो प्रेम है नयन से नयन में ही सारी बातें कर लेता है। महेश भी इस बात को जानता था और उसे यकीन था कि भैया हां ही करेंगे। छुटकी की नाराजगी दूर करने और पुराने प्रेम को जगाने का यह भला मौका जान पड़ा महेश के बड़के भैया को वो बोले- आप हमारे परिचित हैं खानदानी हैं इसलिये आपकी धरम बेटी हमारे घर की बेटी। हमारी ओर से तो बात पक्की आगे आप जो जानें.. पार्वती की जान जो सांसत में थी वो खिल गई।
तो भई देर किस बात की..आवाज उठी। अरे, जाकर पार्वती के बाबूजी और अम्मा को भी बुला लाओ। वो आये और इसके साथ ही रस्म अदायगी होने लगी।

कुएं का रहस्य

दोनों लापता दोस्तों का आज तक पता नहीं चला है। पर लोगों को आज भी उस सड़क पर जाने में डर लगता है। कुछ दुस्साहसियों ने वहां से गुजरने की कोशिश ...