शनिवार, 27 जनवरी 2018

एक खौफनाक अंजाम-2

आरिफ ने अपनी उम्र से बड़ी नूरजहां के साथ निकाह कर लिया और एक कपड़ों का छोटा सा कारोबार भी डाल लिया। आरिफ की मोहब्बत ने नूरजहां को पूरा कर दिया था। आरिफ रोज जब भी घर लौटता नूरजहां के लिए कुछ न कुछ लेकर ही लौटता, कभी पायजेब, कभी चूड़ियां, पायजेब और चूड़ियों के तो उसने पूरे सेट ही बना लिये थे। कभी वो उसे होंठलाली लाकर देता तो कभी मखमली नर्म पैरों के लिए चमकदार जूतियां, जब वो कुछ न ला पाता तो गजरा ही उठा लाता। महीने-पंद्रह दिन में वो एक लांछा या सूट तो उसे लाकर दे ही देता। भारी चमक और सलमा-सितारों से सजा। ऐसा लिबास न ला पाता तो इतनी सिलाई तो उसने सीख ही ली थी कि वो उसे खुद ही सिलकर जड़ाऊ बना देता। मिठाई की चाशनी से तो उसके गुलाबी होंठ रोज भीगते थे। उफ, ये मोहब्बत नूरजहां को कही ले न डूबे।
आरिफ नूरजहां के पैरों को चूमता और पाकीजा का रटा-रटाया डॉयलॉग बोलता। नूरजहां रोमांटिक अंदाज में कहती- जनाब आरिफ साहब इतनी मोहब्बत न दीजिए। कहीं हम सम्हाल न पाए तो? मत सम्हाल मेरी गुलबदन बस यूं ही अपने हुस्नो नूर की रहमत बरकरार रख मेरी तो खुदा भी तू करम भी तू। तौबा... ऐसा मत कहो...अरे मेरी रसमलाई खुदा के पास तो हजारों हूर हैं पर तुझसा तो उसके पास भी न होगा...मैं तो खुदा से भी ऊपर हो गया हूं। नूरजहां निहाल हो जाती। आरिफ का मजहब उसकी सुविधा के अनुसार था। नूरजहां ने ही उसे शुक्रवार के शुक्रवार नमाज के लिए भेजना शुरू किया। रोजे रखवाए और दरगाह ले गई। पर आरिफ कामचलाऊ कायदे मानता बाकी शेख साहब की नसीहतों से बगावत तो वो हर दिन ही कर देता था।
नूरजहां निकाह के डेढ़ महीने में ही उम्मीद से हो गई। उसने एक लड़के को जन्म दिया। जिसे नाम दिया माहताब। जब नूरजहां आंचल डालकर उसे दूध पिलाती तो आरिफ को वो बेहद उत्तेजक लगती। वो मुस्कुराती। वक्त गुजरता गया...गुजरता गया। आरिफ ने दिमाग लगाकर कारोबार को बढ़ा लिया। पुराने मकान को नया सा कर दिया। दो-तीन लड़के नौकरी पर रख लिए। नूरजहां अब आरिफ के तीन बच्चों की मां बन चुकी थी। डॉ. आदिल ने कह दिया था कि अब ये मां बनी तो मर जाएगी। उसकी उम्र पचासा पूरा कर रही थी। अब ऑपरेशन के जरिये उसकी मां बन जाने की फिक्र दूर कर दी।
नूरजहां से यूं तो कभी आरिफ ने पूछा नहीं पर उसने उससे कभी अपनी जिंदगी छिपाई नहीं। वो गायक इसलिए थी की उसकी मां ठुमरी बहुत अच्छी गाती थी। उसका नाम था राधा। जो कि बनारस के पंडित परिवार से थी। बदकिस्मती से गरीबी आई। वो जो कृष्ण भजन गाती थी, पैसे के लिए न पकड़हु राजा... गाने को विवश हो गई। अपनों ने ही बदनाम किया। किसी ने उसका हाथ न थामा। लोगों को उसकी ठुमरी में उतना रस न आता जितना उसके रूप रस का पान करने में। उसकी प्रशंसा सभी हिन्दुओं ने की शायद उसे भोगा भी हो पर किसी ने उससे शादी नहीं की। उसको हमसफर मिला हसन कव्वाल के रूप में वो उसकी तीसरी पत्नी बनी और.....भरे गले से अब नूरजहां कुछ न बोल पाती। उसका शादियाना जिंदगी भी दोजख से कमतर न रही। गरीबी के चलते वो भी गाने के कारोबार में उतरी। बदनाम हुई। बड़ी मुश्किल से दहेज देकर शादी हुई।
उसका पहला पति शब्बीर एक कार मैकेनिक था। वो सिर्फ और सिर्फ शौहर ही रहा और निकाह के दस महीने बाद हादसे में मर गया और मरते-मरते उसे तलाक दे गया। ताकि वो विधवा न कहलाए या कि उसकी मिल्कियत में हिस्सा न मांग पाए, जो एक भुतहा मकान और कुछ पीतल के बर्तन थे। ये बाद में उसका देवर हड़प गया। साथ ही उसका दहेज भी।
दूसरा शौहर सलीम शराब पीता, उसे मारता-पीटता, गालियां देता। रुखसार पैदा हुई तो वो नाराज हो गया और तलाक दे मारा। यहां भी उसे कुछ न मिला। तीसरा शौहर वसीम वहशी था और उसे ही नहीं उसके ही परिवार की किसी औरत को नहीं छोड़ता था। एक रात उसने उसे कव्वाली न गाने को कहा। वो पैसे कमाता न था दूधमुंहे निसार और रुखसार की परवरिश कैसे होती? वो कव्ववाली गाने गई और लौटी तो तलाक मिला। मेहर के चंद रुपए भी उसे पूरे न मिले।
वो दुःखी होकर रोती तो आरिफ उसे सीने से लगा लेता। तुम तो कभी ऐसा नहीं करोगे न....कसम है खुदाए पाक की...कभी नहीं।
निसार अपने मामा के घर अलीगढ़ में पढ़ रहा था रुखसाना की तालीम हिसाब की हो चुकी थी और अब वो घर का काम सीख रही थी। पहचान के कादरी साहब की बहन मदरसा खोलने के लिए जुगाड़ लगा रही थी और उसमें उसे नौकरी देने की बात कही थी। टीचर बतौर। पढ़ाई-लिखाई की सब जगह जरूरत नहीं होती।
माहताब, के बाद परीना और अदा दो बेटियों को नूरजहां ने जन्म दिया। ये स्कूल में पढ़ रहे थे। एक दिन आरिफ घर में बैठा आराम फरमा रहा था कि रुखसाना सामने आ गई और खूंटे से कपड़े और हिजाब उतारने लगी। वो पैर से ऊंची हो रही थी। आरिफ की निगाह उस पर पड़ी। पैरों में पतली पायजेब, खूबसूरती से गठा बदन, जिस्मानी जीनत तो उसे नूरजहां से विरासत में मिली ही थी। वो उसे देखता रह गया। क्या कयामत है? आरिफ की निगाह उसे गड़ी तो उसने उसे देखकर मुस्कान भरी। हाय, ये तो नूरजहां से कमतर कातिल नहीं है। अरे रुखसार...जल्दी आ....आपा के यहां जाना है या नहीं। रुखसाना दौड़ गई। उसकी पायजेब के घुंघरुओं की आवाज उसके कानों में बजती गई...बजती गई...बजती....।
दूसरे दिन आरिफ को नूरजहां पूरे परिवार के साथ तकरीर में ले गई। तकरीर में आमिल साहब ने फरमाया- अपने से बड़ों की बात माननी चाहिए।
आरिफ रात को जब नूरजहां को बाहों में भरता तो उसे रुखसाना की याद आती। वो उसे रुखसाना समझकर ही प्यार करता। उसके दिल में आग जलने लगी, पर उसे अंजाम का डर सताता था।
एक दिन आरिफ घर में बैठा था। तभी नूरजहां ने रुखसाना को शक्कर लेने नादिया दीदी की दुकान पर भेजा। पता नहीं क्यों आरिफ भी पीछे निकला और दोस्त बाबा खान के घर की ओर चला। रुखसार कुछ आगे थी और आरिफ पीछे तभी उसने दिखा कि रुखसार एक बेहद संकरी गली में घुस गई। वो रुका और चुपचाप से अंदर झांका। वहां एक उसकी उम्र से कुछ बड़ा लड़का या कहो आदमी उसके साथ था। वो उसे दीवार से लगा चूम रहा था। जावेद...जावेद छोड़ो...देखों मैं आ गई। ऐसा मत करो, दुख रहा है। अरे...उफ, उम...हुम - वो दिलकश ढंग से बोली। मानों उसकी ना में भी हां हो। आरिफ पलट कर चला गया। आरिफ जावेद को जनता था। अगले दिन नूरजहां पड़ोस में गई थी रुखसार और आरिफ घर में अकेले थे। रुख...जरा इधर आना...जी...मेरे पैर दबा दोगी। जी...वो पैर दबाने लगी। बेदुपट्टा बैठी रुखसार का नक्शा उसकी आंखों में उतर रहा था। वो ये बात समझकर झेंप रही थी। तुम्हारा जिस्म पूरी तरह से मेरी खिदमत में नहीं है। जी....हाथ तो खिदमत कर रहे हैं पर ये जुल्फ, ये होंठ,। जी ....वो हड़बड़ा गई। ये जावेद कौन है? अब वो डर गई। बब्बू वो...वो... जावेद गुंडा है दो बीवियों को शौहर है, पांच औलादें..अगर ये बात अम्मी को...नहीं...नहीं...तो मेरे करीब आओ। वैसे भी याद है आमिल साहब ने क्या फरमाया था- अपने से बड़ों की बात माननी चाहिए। आओ और करीब। रुखसार को आरिफ ने बाहों में भर लिया और वो कुछ न बोली। ये सबकुछ एक खुला पर हिजाब से ढंका खेल था।
दूसरे दिन रुखसार अमीना चाची के घर जाने के लिए निकली ही थी कि वहीं गली में जावेद ने सुनसान देख उसे संकरी गली में खींच लिया। आ...मेरी परी मेहजबीं। रुखसार फूट-फूट कर रोने लगी। पूरी कहानी बताई। अच्छा तो ये बात है?
ये जुमे की शाम थी। आरिफ कुछ दोस्तों के साथ नमाज पढ़कर निकला ही था। वो गली में जा रहा था और उसके दोस्त उससे दावत देने की बात कहकर मजाक कर रहे थे तभी जावेद वहां आया और चाकू उसके पेट में घोंप दिया। आरिफ कुछ समझ पाता उससे पहले ही उसका सफेद कुर्ता खून से लाल हो गया। हरामी अपने बेटी को बेआबरू किया तूने। आरिफ कुछ बोल न पाया। लडख़ड़ता वो वहीं गिर पड़ा। भगदड़ मच गई।
पुलिस आई और छिपता जावेद पकड़ा गया। उसने बयान में सारी बात कह डाली। ऑफिसर करीम यूं तो मामले को रफादफा कर देते पर रुखसार पर उसकी नियत खराब हो गई। उसने उसे आरोपी बनाने की धमकी दी और डरी रुखसार उस 55 साल के बुजुर्ग की दूसरी शरीकेहयात हो गई। मामला दबाया गया पर बात लोगों की जुबां पर आ गई। नूरजहां को सदमा बैठ गया। परिवार की बेहद बनामी हुई। आखिर में वो घर बेचकर अलीगढ़ चले गए, हत्यारा जावेद जेल गया और रुखसार करीम के बिस्तर पर, इस तरह इस कहानी ने अपने खौफनाक अंजाम को पा लिया।

सोमवार, 22 जनवरी 2018

एक खौफनाक अंजाम-1

दौलतखाने में नगाड़ा बजता, जनखे कमरें लचकाकर, बलखाकर नाच-नाचकर अधमरे हो जाते। जनानियों के गुलाबी होंठ रसगुल्ले खा-खाकर से चाशनीदार हो जाते। दादी इतनी खुश हो जातीं कि लंबी हो जाती और उनको पंखा झलना पड़ता पर......ऐसा कुछ नहीं हुआ।
आरिफ, (जैसा कि अम्मी ने नाम दिया, अब्बा उस दिन न जाने कहां झक मार रहे थे) की पैदाइश निहायत ही गरीबी में हुई। दौलतखाना भूतखाने सा हो चुका था। जनखे कब्रों में सो रहे थे और इस बात का इंतजार कर रहे थे कि न जाने कब फरिश्ता आएगा और इंसाफ होगा, किसने अपनी बिरादरी के साथ कितनी दगा की है, खुदा के आने का सवाल नहीं उठता क्योंकि वो अधूरे हैं, न मर्द न कमजात औरत। जनानियां भुखमरी और गरीबी के चलते बीमारियों से जूझ रही थीं और दादी इलाज से महरूम होकर मरहूम हो चुकी थी।
आरिफ की नानी ने सदके में दुअन्नी निकाली तो अम्मी ने उसके बताशे मंगाकर खुद ही खा लिए, यूं हुआ आरिफ की पैदाइश का जश्र। आरिफ कुछ बड़ा हुआ तो मदरसे में गया। यहां टीचर मोहतरमा तो आती नहीं थी पर यहां धर-पकड़ और क्रिकेट खेलकर वो अच्छा रनर और निशानेबाज बन गया। वो अपने दुश्मन बच्चों के घरों के शीशे तोड़ता और हाथ आने से पहले भाग निकलता। एक बार हकीमुद्दीन ने उससे शर्तलगाकर उस पर कुत्ता छोड़ दिया तो कुत्ता हांफ-हांफकर अधमरा हो गया पर आरिफ को धर न पाया। मां दुआ करती- मेरा बेटा अफसर हो जाए। पर देखकर लगता था कि वो कुछ बने न बने चोर जरूर बन जाएगा। उसकी शिकायतें घर पहुंचती तो अम्मी माफी मांग लेती या लोगों को दिखाने के लिए उसके कान खींच देतीं। इंसाफ भाई जान आरिफ की अम्मी सकीना के जवानी से आशिक थे। दीदार के लिए वो यूं ही शिकायत के बहाने से उनके दौलतखाने जो अब पुरानी रौनकों का जिन्न बन चुका था, पहुंच जाते। कम से कम यहां हिजाब के बाहर चांद तो दिख ही जाता था। हाय...कुछ कहना मुहाल है।
इनकी जवानी के किस्से तो तिलिस्मे होशरुबा हो जाते हैं इसलिए इस बारे में बात नहीं करेंगे। तो किस्सागोई हो रही है जनाब आरिफ के बारे में, चलिए- आरिफ सोलह का हुआ। अब तक वो बताए गए हाल के मुताबिक चोर बन गया था। हम किसी नजूमी से कम नहीं कभी आजमाइये तो सही!
तो जनाब आरिफ चोर बन गए। यहां-वहां के लोहा-लंगड़ और रेल-पेशाबघरों से टोंटिया चुराने से अब वो कुछ ऊपर उठ गए अब मोबाइल, पर्स वगैरह पर हाथ साफ कर लेते। किस्मत थी कि पकड़े नहीं जाते थे और गए भी तो कोतवाल अजीज मामला सलटा देते। कभी-कभी तो फरियादी को ही गुनाहगार बना देते कभी धमकाते और कभी-कभी कोतवाली के इतने चक्कर लगवाते कि फरियादी आजिज आकर शिकायत आगे न बढ़ाता। अब ये अजीज कौन है? अजीज आरिफ के मामा भी हैं और चाचा भी। अब कैसे? ये सब छोड़ दो। हां तो अब आरिफ के शेर के मुंह में चोरी का खून लगा तो बार-बार चोरियां होने लगीं। अजीज चाचा ने कह दिया कि अब बीट बदल सकती है। सेटिंग नहीं हो पा रही है क्योंकि नया अफसर अपनी नई सेटिंग जमा रहा है। पैसे ज्यादा भी मांग रहा है। बीट कभी भी बदल सकती है। बीस साल से तो यहीं बैठा हूं पर अब कभी भी दूसरे थाने हो सकता हूं। मेरे बाद पकड़ा गया तो खुद तो खंदक में पड़ेगा ही मेरे नौकरी भी जाएगी। आरिफ कान खुजाता और मटरगर्ती पर निकल जाता।
शहर में शाह बाबा का उर्स हो रहा था। आरिफ यहां जेबकटी के लिए आया था। कल ही दो मोबाइल चुराए थे। बिलकुल स्मार्ट। आरिफ शिकार ढूंढते-ढूंढते कव्वाली के मंच के सामने आ गया। भीड़ बहुत थी। उसके आगे एक लंबा-चौड़ा पठान खड़ा था। आरिफ ने सोचा अब इसका माल उड़ाएंगे। तभी कुछ अजब हुआ- अब होगा अपने ही शहर की मोहतरमा नूरजहां और लखनऊ के जनाब हनफी हसन जैदी की कव्वाली का जंगी मुकाबला। चिलम यानी भोंपू में से फटे गले की बेसुरी आवाज आई। आयोजकों ने पैसे दिए थे और कहा था कि बस बोलते जाना रुकना मत, लगातार चिल्ला-चिल्लाकर बोलते जाना। चिल्ला-चिल्लाकर बोलने वाले मियां जो बुजुर्ग दिख रहे थे का गलाफट गया था। अब कुछ ही देर में पेश होगा कव्वाली का अजीमोशान मोकाबला, अब खांसी आ गई। आरिफ कुछ करता उससे पहले ही मंच पर आ गई- कव्वाल नूरजहां। सफेद संगमरमरी चमकदार लांछा- हाथ जो मेहंदी की रंगत में खो चुके थे। गोरा, भरापूरा बदन। उफ, कयामत का इंसानी रूप थी वो । पठान ने तभी एक लौंडे को पकड़ लिया और चोरी के शक में बाहर ले जाकर जानवरों की तरह पीटा। इससे अफरातफरी का माहौल बना- मारडालो इसे। अरे कोतवाली ले चलो। पोलीस के हवाले कर दो। आरिफ ने समझा कि अगर वो नूरजहां को देखने में न लगता तो ये हाल उसका होता। वो नूरजहां का दीवाना सा हो गया। कोने में जाकर कुछ और लौंडों के साथ बैठ गया। खामोशीहोने पर कव्वाली शुरू हुई। इतने में एक बशीर चाय वाला बिल लेकर मंच के पास पहुंचा। किसी ने समझा कि फरमाइश है। उसने ये पर्ची कबूतर को दे दी। कबूतर एक मंद बुद्धि लड़का था जो अब मंच का संचालन करने को चिलम के पास बैठा था। वो चिल्लाया- बीस कट स्पेशल चाय, चालीस कट सादी चाय, तीस प्लेट पोहा खास वाला बीस प्लेट आम वाला। कुल जमा चारसौबीस में अन्नी कम। बाकी जमा-खर्च-भूल-चूक-लेनी-देनी ऐतबार चायवाला। एक आदमी दौड़ा- अरे अद्धी के लौंडे। वो बिल है-बिल। फरमाइश नहीं। आयोजकों को इससे पता चल गया कि उनके माल से नाश्ता डकारा गया है। जगह पर कुछ देर के लिए मजाक और छींटाकशी का समां बंध गया। अफरा-तफरी भी लगे हाथ हो गई। मोहतरमाएं तो हिजाब और दुपट्टों में मुंह छिपाकर मुस्की मारती नजर आईं।
कार्यक्रम तो निपट गया तो आरिफ मौका पाकर मंच के पीछे नूरजहां से मिलने चला गया। चलिये आपको नूरजहां से मिलवाएं। इस कव्वालन की उम्र उससे दो गुनी थी। आरिफ सोलह साल का था तो वो बत्तीस साल की भरीपूरी खातून। अपने जीवन में तीन बार तलाक झेल चुकी ये औरत दो बच्चों निसार और रुखसाना की मां थी। आरिफ मंच के पीछे पहुंचा और एक जगह तंबू में नूरजहां को पाकर अंदर घुस गया। तुम कौन? यहां आए कैसे? मोहतरमा रिसाइये (गुस्सा) मत मैंने आपकी आवाज सुनी और मुझे आपकी कव्वाली अच्छी लगी। मैं अपनी तरफ से आपको तोहफा देना चाहता हूं। ये लीजिए उसने सबसे बेशकीमती मोबाइल निकालकर उसे दे दिया। ये मोबाइल। चोरी का नहीं है-आरिफ झट से बोला। मेरा है। पर आपको तोहफे में देना चाहता हूं। नूरजहां ने फोन ले लिया। आपको मेरी आवाज अच्छी लगी। आपकी आवाज अलहदा बेहद अजीम है। शुक्रिया..आरिफ जाने लगा। जनाब...आरिफ...जी आरिफ आपका नंबर इसमें है...जी इसका नंबर इसमें है...उसने अपना मोबाइल दिखाया। नूरजहां मुस्कुराई। हाय..क्या कातिल अदा है? आरिफ ने सोचा। आरिफ देर रात घर लौटा तो देखा कि अम्मी बैठी राह देख रही है। बेटा आ खाना खा ले...आरिफ ने देखा अम्मी ने सिगड़ी सुलगाकर गर्म रोटियां बनाईं। गिलकी की सब्जी थी जिसमें उसके हिसाब का मसाला था। अम्मी मेरे लिए रुका न कर...फिक्र न किया कर...फिक्र न करूं, सोऊंगी चैन से पहले बहू ले आ...अम्मी वो भी आएगी और चाकरी बजाएगी...देखंूगी कहीं मैं न चाकर हो जाऊं। ऐसा न कह...चोटी खींचकर काम करवाऊंगा (हालांकि नूरजहां की चोटी तो आरिफ के फरिश्ते भी नहीं खींच सकते थे। वो ये जानता था पर मां का मन तो रखना ही बनता है।) देखें....अम्मी उठकर चली गईं। वो खाकर उठा ही था कि दरवाजा बजा। देखा तो अजीज चाचा थे। अबे कर्रमकल्ले कितनी बार कहा है कंट्रोल फेंक ले। तू माना नहीं, तूने जो महंगा मोबाइल चुराया था न, वो डीआईजी के रिश्तेदार का निकला। सीसीटीवी फुटेज निकलवाई हैं उसने, तू दिखा तो पिछवाड़ा खोल देंगे। मैं मरूंगा सो अलग। आरिफ कुछ न बोला। क्या हुआ चचा.. मैंने सिम बदल दी है... अबे सिम की सिमसिम, तीन दिन यहां मत फटकना मैं मामला दबाता हूं...और वो मोबाइल कहां है? वो गुम गया...अबे पाड़े की रान अब मुंह क्या देखता है। पहली गाड़ी पकड़ और उज्जैन वाली चाची के घर दफा हो जा। आरिफ जानता था वो मोबाइल नूरजहां के पास था। उसमें इंटरनेट भी है कहीं कोई ट्रैक न कर लें...बड़बड़ाते हुए चाचा मुड़े। हाय... आरिफ को तो नूरजहां का पता तक नहीं मालूम उसेे अभी फोन किया तो पोल खुल जाएगी। वो बाबा शाह से दुआ मांगता हुआ भाग निकला।
अम्मी को मालूम था कि आरिफ चोर है पर वो करता भी क्या? किसी भी नेक रास्ते से उसकी ख्वाहिशें कभी भी पूरी नहीं हो सकती थीं और वो सुनने वाला भी कहां था? खैर, तीन दिन बाद आरिफ वापस लौटा और शाम को तालाब किनारे नूरजहां को फोन लगाया। हलो बोलिये आरिफ मियां...आपको कैसे पता चला कि मैं हूं? अनजाने फोन पर अनजाना ही फोन कर सकता है। आपकी यही बात कायल करती है। मैं अनजाना, जाना हो सकता हूं। कैसे? एक बार मुलाकात कर लीजिए। भरोसा कर सकती हूं आप पर...दिल और रूह की सुनिये अगर आए तो बंदा छोटे तालाब के किनारे आपका इंतजार कर रहा है और दरिया पत्थरों से भर रहा है। आएंगी...सोचूंगी.. जल्दी आइएगा वर्ना तालाब बेचारा यूं ही सूख जाएगा। बड़ी दीवानगी है....आजमाकर तो देखिए मोहतरमा। अच्छा आई....। फोन कट गया और आरिफ का दिल धक-धक करने लगा। कुछ देर बाद नूरजहां वहां आई। गोरा गदराया बदन, चौड़ा चेहरा, गुलाबी भरेपूरे होंठ, पायजेब की छन-छन। मेहंदी के निशान उफ,। आदाब....उसने अदा से सलाम किया। आदाब... वो पास बैठ गई। जनाब आपका फोन कमाल था वो हम बच गए नेकी थी जो शाहबाज भाई के पास ले गए उसे और टै्रकिंग से बाहर करवाया। आप उन्हें जानती हैं....हां....ये भी जानती हूूं कि पूरे शहर के चोरी के मोबाइलों को ट्रेङ्क्षकग से वो ही बाहर करते हैं। आपके चोरी के मोबाइलों को भी...आरिफ शर्मा गया। मेरे दिल में कुछ अरमान हैं आपके लिए...बुरा ने मानें तो...कह दो कह दो मियां- वो खिलखिलाई। इस मियां की बीवी बनेंगीं....नूरजहां चुप रही। आरिफ ने मोबाइल निकाला और एक फिल्म उसे दिखाई। फिल्म में एक कमउम्र का लड़का पकी उम्र की औरत के साथ मोहब्बत कर रहा था और हमबिस्तर हो रहा था। अच्छा तो ये बात है। नहीं...नहीं...वो डरा। नूरजहां मजा लेने के मूड में थी। तो आप चाहते हैं कि...नहीं, आपसे निकाह करना चाहता हूं..ये तो इसलिए दिखाई कि आपको बता सकूं कि आपसे मुहब्बत करता हूं, कच्ची उम्र पकी उम्र को मोहब्बत नहीं देखती....क्या इस इकरार के बाद मुहब्बत कर सकता हूं। क्या चाहते हो...आपका हाथ चूमना चाहता हूं लो चूम लो। आरिफ नूरजहां के पास बैठकर उसके हाथों को चूमता रहा। उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ता रहा। देर शाम हो गई। अब नूरजहां ने उसका मुंह देखा...दूर तक कोई नहीं था। उसने आरिफ को चूम लिया और उसका मुंह सीने से लगा लिया। इत्र और उसके पसीने की गंध मादक हो रही थी। फिर वो उठकर जाने लगी। कल यहीं मिलोगी...नहीं...कहां? मुलतानी बाग में। वो कुछ तेजी से दौड़ गई। पायजेब बजती रही। आरिफ ने होंठों पर उसके हाठों की लाली को स्वाद पाया।
अब वो बार-बार यहां-वहां मिलने लगे। आरिफ बेकरारी में कभी लट हटाकरउसका माथा चूमता कभी पायजेब और पैर। उस के लबों पर एक ही बात थी...निकाह...निकाह और सिर्फ निकाह। जिंदगी में तीन पर तलाक के चांटे खाकर बर्बाद हुई नूरजहां के लिए ये ऐतबार करने का वक्त नहीं था। उससे उम्र में आधा नौजवान उसके लिए इतना दीवाना है। अगर हवस ही होती तो उस शाम तालाब पर वो अकेले थे। नूरजहां ने आरिफ को साफ बता दिया कि वो कव्वाली गाती थी कोई शक औ शुब्हा तो नहीं। निकाह के बाद बच्चे उनके साथ रहेंगे। आरिफ ने साफ कह दिया कि शक मोहब्बत में नहीं होता। बच्चे खुदा की देन...वैसे आगे भी होंगे ही...बाखुदा नूर अभी जवान है और आरिफ की शुरुआत ही है। उम्र मायने नहीं रखती, यूं तो आरिफ का इल्मो औ पढ़ाई से दूर तक का नाता नहीं था। पर उसे याद था कि मोहम्मद साहब और बादशाह अकबर की पहली पत्नियां उनसे उम्र में पड़ी थी। बाखुदा उनका घर तो खूब अच्छे से चला। नूरजहां आखिर राजी हो गई। ये दिन आरिफ के लिए यौमे आशुरा या मीठी ईद से कमतर नहीं था। नूरजहां का चांद आज उसकी जिंदगी के आसमान पर खिल रहा था। उसने रात को शेख साहब की नसीहतों से तौबा की और देसी कुत्ताछाप के जाम पिए। पर अब सबसे बड़ी मुश्किल थी। अम्मी को राजी करना। बालिगी कोई मामला नहीं है। आरिफ को सकीना चाची याद आईं। वो नूरजहां को लेकर उनके पास जा पहुंचा। खाला....तुम ही मदद कर सकती हो...अरे अहमक खुपडिय़ा उलट गई है क्या? कव्वालन से शादी करेगा। तेरा खानदान तो नवाबी है। नवाब....बह गए शराबीमूत में...तवायफों -लौडिंयो में दफन हो गया खानदान। तुमको अपना समझा था वर्ना इसे भगा ले जाऊंगा और जब उम्मीद से कर दूंगा तक लौटा लाऊंगा। फिर होगी खानदानी इज्जत। कैसी बात करता है...तुम तो औरतजात हो बात समझा करो....उससे बात न करो...बेगम है वो हमारी शरीकेहयात है....उसके साथ ही निकाह होगा वर्ना....हमारे नाते बिगड़ जाएंगे। नाते तो हम ही निबाहेंगे न....बालिगी....अरे पैदाइश के ही दस्तावेज नहीं हैं बालिगी क्या घास खाएगी? आप करवा दो वर्ना । अम्मी को पहले बता दें। हां बता दें और उनकी जान हलक में हो जाए...। काफी हुज्जत के बाद मामला ठहरा कि सारी जिम्मेदारी आरिफ की ही होगी। आरिफ तो तैयार ही था। बस, निकाह होना था।
निकाह के दिन आरिफ उठा और शनिश्चर के दिन दोबारा नहाया। अम्मी को हैरानी हुई कि आज फिर....फिर आरिफ ने अपने बदन पर सस्ता गुलाब का पाउडर मल डाला और केवड़े के इत्र से तो नहा ही लिया। फिर बाल बनाते हुए कमरे में दाखिल हुई अम्मी से पूछा कैसा लग रहा हूं। ठीक....पर आज ये सब....वक्त आने पर सब पता चल जाएगा। वो घर से निकला अपने एक दोस्त शकील बाबा और काजी नुसरत साहब को लेकर नूरजहां के घर जा पहुंचा। आरिफ ने नूरजहां से इल्तेजां की थी कि तू निकाह के वक्त वहीं सफेद लांछा पहनना जो उस दिन पहना था। जब तुझे पहली बार देखा था। पर नूरजहां ने इसके लिए पहले ही लाल लांछा तैयार करवा लिया था। उस पर तय हुआ था कि वो उसे रात को पहन ले। निकाह के दिन जब वो नूरजहां के घर पहुंचा तो उसके सभी नातेदार वहां इकट्ठा थे जो गर्दिशी में झांकने तक नहीं आए दावत उड़ाने घुस आए। काजी के कहने पर दो खूबसूरत लड़कियों ने पर्दा पकड़ा दूसरी ओर से नूरजहां आई। उस झीने पर्दा से दोनों ने एक दूसरे को देखा। काजी ने नूरजहां को देखा तो होश उड़ गए। ये लड़का इस औरत से निकाह कर रहा है। अजीब बात है। निकाह हुआ और आरिफ दो दिन तक अपनी ही शरीकेहयात के घर में जन्नत की सैर करता रहा फिर जब नूरजहां ने दबाव डाला तो वो उसको बच्चों के साथ अपने घर ले गया। अम्मी ने देखा हाय! ये क्या हो गया। अब्बू ने देखा पर वो शांत रहे। वहीं नौटंकी हुई जिसका डर था। अम्मी बेहोश हो गईं। खाट पर लेटाया, पानी, छींटा, पंखा झला। बेटा ये क्या कर डाला? अरे सब अच्छा है। नूरजहां सी बहू तुझे न मिलेगी। ये तेरी न सिर्फ खिदमत करेंगी बल्कि खानदान को आगे भी बढ़ाएंगी। सलाम....ठीक है।
नूरजहां और आरिफ एक हो गए। नूरजहां ने अपने पास रखे पैसों से रेडीमेड का छोटा व्यवसाय शुरू किया। जिसे आरिफ संभालने लगा। नूरजहां को वो मुहब्बत मिली जिसकी ख्वाबों में भी ख्वाहिश नहीं थी। वो बाबा शाह की दरगाह पर जाती मन्नते मांगती। बाबा तूने खुशियों से मेरी झोली भर दी। मेरे शौहर को नूर बख्शना। जब नूरजहां खाना बनाती तो आरिफ पीछे से जाकर उसे पकड़ लेता उसके हाथ बड़ी मुश्किल से उसे भर पाते। नूरजहां छोड़ देने की गुजारिश करती पर दिल से यही चाहती कि वो उसे प्यार करे...बस प्यार करे। उसकी छोटी बच्ची वहां घुस आती और देखती ये लड़का उसकी मां के साथ क्या कर रहा है....इनको अब्बू बोलो...बच्ची देखती पर कुछ न कहती और यदि उसने उसे कभी पुकारा भी तो बब्बू के नाम से। नूरजहां और आरिफ की मोहब्बत दिन-दूनी और चौगुनी बढ़ती जा रही थी पर मोहब्बत में अंधे इस जोड़े को ये नहीं पता था कि तूफान आने से पहले हमेशा खामोशी छाई रहती है।

मंगलवार, 16 जनवरी 2018

एक (नंगी ही सही ) सच्चाई ही तो है!

(ये कहानी वर्तमान में इंदौर में घटित एक सच्ची घटना पर आधारित है। )
किसी ऑफिस में बॉस एक कहानी सुना रहे थे। काम के बोझ तले दबे कर्मचारी उनकी इस कहानी को सुन रहे थे। ये मनोरंजन के लिए तो नहीं पर मन बहलाने को बुरी नहीं है। वर्ना फिल्मी गाने तो हैं ही जो रिपीट होकर बजते रहते हैं।
बात किस विषय पर हो रही थी ये बात तो याद नहीं है पर वो मजबूरी पर बात कर रहे थे शायद। उन्होंने जो सुनाया वो अफसाना पेशेनजर कर रहा हूं। तो किस्सा ये है कि बॉस उस दिन काम की वजह से बहुत लेट हो गए। देर रात जब सब बिस्तरों में दुबके थे। तब वो घर लौट रहे थे। घर से कुछ ही दूर कार बंद हो गई। वो बोनट खोलकर चेक करने लगे। पास ही चौकीदार भी आ गया। पहचाना- अरे साहब आप! कार खराब हो गई। उसने देखा। इतनी रात को मैकेनिक कहां मिलेगा साहब? लगता है पैदल ही जाना पड़ेगा। उसने टार्च से बोटन में देखा। बॉस ने उसका मुंह देखा- ये भी कोई कहने की बात है? उन्होंने सोचा। तभी कुत्तों के गुर्राने और भौंकने की आवाज आई। देखा तो एक कचरा बीनने वाली महिला यहां-वहां से पन्नी बीन रही थी और कुत्ते...कुत्ते उसके पीछे पड़े थे।
हट... बॉस ने कुत्तों को भगाया।
जाने दो साहब...ये इंसानों से तो कम ही नोचते हैं।
अप्रत्याशित प्रतिउत्तर पाकर बॉस और चौकीदार सन्न रह गए।
क्यों साहब चौंक गए...उसने पास से पन्नी बीते हुए कहा। कोई आवाज प्रतिउत्तर में न पाकर वो आगे बोली- चौंको मत साहब, हम तो बचपन से नुचते आ रहे हैं। भूखों की भूख ने हमको कितना जख्मी किया हम जानते हैं। बदन जलता है। मांस तो एक बार खाया जाता है पर बाबू जी यहां तो बार-बार खाया जाता है और फिर बाद फिर तैयार हो जाता है और खाने के लिए। आओ और टूट पड़ो, नोचो, काटो, भसको, धोंदा भर-भर के खाओ। दर्द दो और जितना दरद हो...तड़प हो....उतना हंसों-खुश हो जाओ। अब आदत हो गई है... बाबूजी।
वो कमर पर हाथ रखकर खड़ी हो गई। उसकी मैली साड़ी, सांवला, दुबला सा बदन उस रात की कालिख में भी महसूस हो सकता था। अंधेरे में उसकी आंखे, नाक की लौंग और कान की पहरावन मंद-मंद चमक रही थी। नंगे पैरों की पायल पर जमी मिट्टी, उसकी फिकी चमक बता रही थी कि इस सूखे मौसम में भी कीचड़ में सनी है। वो सुनने वाला जानकर अपना दर्द बांट रही थी।
साहब जानना चाहते हैपर बात नहीं करना चाहते सामाजिक स्तर से उपजी मानसिकता जो उनको रोक रही है। ये समझकर चौकीदार पूछता जा रहा था। शादी नहीं हुई तेरी -चौकीदार ने आगे पूछा। वो मंगलसूत्र पहनाकर नोचता है। बाद में नुचवाता है। बच्चे नहीं है-चौकीदार ने आगे पूछा। हैं साब, कई गरभ गिरे, कई अधे जनमे, कुछ मरे अब तीन जिंदा है। तेरा पति नहीं मदद करता? साब वो तो इनको अपना खून ही नहीं मानता। इससे जादा (ज्यादा) क्या बताऊं कि मेरा पति मुझे ...दी कहता है। बोलता है न जाने किस-किस कि गंदगी लेकर घूमती हूं मैं पेट में। मैं...मैं उनकी परवरिश करती, वो विचलित हो गई। बच्चियां सुबह और दिन में पन्नी बीनती हैं। उनपर नजर न पड़े इसको उनकी जगह मैं अपने को परोस देती हूं। बेटा भी पन्नी बीनता है। छोटी-मोटी मजदूरी करता है।
साब, ये कुत्ते, ये जानवर बदन नोचते हैं पर मानुस तो आत्मा तक नंगी कर देता है। कभी एक तो कभी कई भेडिय़ों की तरह टूट पड़ते हैं...बार-बार खाते हैं, छील देते हैं। मैं कहती कपड़े मत फाडऩा...कम है। भले ही उतार दो। नंगी कर दो। वो इंसान की तरह मुझे लूट भी लें तो गम नहीं, कई बार लुटी हूं, फिर सही, खुद ही अपने को लुटने दूं,नुचने दूं, दर्द की तड़प के साथ काम करती रहूं, रोज की तरह पर वो हैवान से भी गिरे हुए हैं। अब नहीं कह सकती बाबूजी, विशाद से गला अवरुद्ध हो गया। फिर रुक कर बोली- मैं इस जलन में भी खुशी लेेने की कोशिश करती हूं, मेरे बच्चे मेरा सहारा। रात में बीनती हूं दिन में बेचती हूं। अपनी तो ये ही जिंदगी है...आपका टाइम क्यों खोटी करूं। आगे जाऊं वर्ना वहां से गंदगी उठा ली जाएगी। वो चली गई उसका साया दिखाई देता रहा। बॉस और चौकीदार अवाक् रह गए।
कहानी वर्तमान में आई। बॉस ने कहानी सुनाकर मजबूरी के बारे में कहा। फिर लोगों का मुंह देखा एक-दो समर्थन में आवाजें आईं काम...तो वो चल रही रहा था।

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

बिंदा का सहारा

(ये कहानी जिस सामाजिक वर्ग से संबंध रखती है। उसी की भाषा और मनोभावों का प्रकट करती है। ये मनोभाव आपके हिसाब से निम्र और घटिया हो सकते हैं पर ये किसी की मानसिकता का आधार हैं। )
गली में रहती थी बिंदा, इसका नाम वृंदा था पर न जाने क्यों? यही नाम प्रचलन में आ गया। अनिल और सुनील की मंझली सहोदरी थी बिंदा। जाति से पिछड़े वर्ग से संबंध रखने वाली बिंदा की कहानी बहुत अजीब थी। सामाजिक ढांचे में निम्र मध्यम वर्ग में आता था बिंदा का परिवार। गहरे सांवले रंग की लंबी-चौड़ी बिंदा बचपन से ही चिड़चिड़ी और झगड़ालू किस्म की लड़की थी। साथ ही उसकी आवाज बेहद कर्कश थी। अम्मा चिंता करतीं- न जाने इसे कौन ब्याहेगा? नहीं करनी मुझे शादी, तेरी छाती पर मूंग दलूंगी हां, ये होता था जवाब। कुछ सालों पहले बड़े भाई सुनील की शादी हुई। उसी मंडप में बिंदा के फेरे भी पड़वा दिए एक ही दावत में दोनों परिवार जीम गए।
बिंदा विदा होकर ससुराल पहुंची। दो-तीन दिन तक रिश्तेदारों से घिरी रही। चौथे दिन रिश्तेदार विदा हुए तो रात को बिंदा का दूल्हा बड़े अरमानों से बिंदा के पास पहुंचा। उसने इस दिन के लिए न जाने कितने सपने संजोए थे। फिल्मों में देखी सुहागरात आज खुद की जिंदगी में आ गई थी। वाह, दूल्हा दिनेश जिंदगी में देखे सारे रोमांटिक दृश्यों और मन लुभाने वाली कामुक बातों को लेक र बिंदा के पास पहुंचा पर बिंदा... वो तो न जाने किस मनोभाव में थी। हाथ पकड़ते ही बिफर गई.. दूर हटो सोने दो..तीन दिन से रिश्तेदारों ने परेशान कर दिया था। ऊपर से तेरे बुढ़वा-बुढ़वी, बहुरी ये बना बहुरी वो बना। हट। वो लेट गई। उसने लाल गंदाला सा लाल सूट पहन रखा था। मेहंदी और लाल चूडिय़ों से सजे सांवले हाथोंं ने दिनेश का खुमारी में ला दिया था। उन्हें ने चूम पाया तो क्या मेहंदी और पायल से सजे ये पैर क्या कम हैं? ये खुमार ही कुछ ऐसा था। बिंदा का भरापूरा बदन जैसे उसे आमंत्रण दे रहा था। हाथों से ढंकी उसकी आंखें। फूले-फूले गाल, गदराया वक्ष। दिनेश ने बिंदा के पैरों को देखा। मेहंदी आकर्षक नहीं थी पर दिनेश उसे आकर्षक मानना चाहता था। उसके सांवले मोटे पैरों में पहनी मोटी पायल। उसने भावों में भरकर पैरों का एक चुम्बन लिया पर बिंदा को उससे कोई मतलब नहीं था उसने तो और जोर से पैर उठाया। दिनेश के मुंह पर जोरदार लात लगी। अब दिनेश का मूड बिगड़ गया और वो बिंदा पर जोर आजमाने लगा। उसके पैरों पर बैठकर अपने हाथों से उसके दोनों हाथ दबा दिए- कब से प्यार से समझा रहा हूं। तू समझती नहीं है। पत्नी है तू मेरी...तुझे प्यार करना हक है मेरा...तू चाहे न चाहे वो बाद में पर मेरे प्यार का ऐसा जवाब ठीक नहीं है। आज तो मैं अपना हक पाकर रहूंगा। तेरा मर्द हूं मैं औरत है तू मेरी। सिंदूर भरा है तेरी मांग में मैने, मंगलसूत्र डाला है। तेरा सिंगार सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए है। तुझे पेट से करना मर्दानगी है मेरी।
बिंदा को गुस्सा आ गया। नींद में खलल डालता है। उसने दिनेश को धक्का दिया। वो गिर गया। ले तेरा सिंदूर- उसने सिंदूर पोंछ दिया। ले मंगलसूत्र, उसने मंगलसूत्र झपटकर तोड़ा और दिनेश पर फेंक दिया। आ मेरे पास अब। दोनों के बीच झूमा-झटकी हुई पर बिंदा हमेशा भारी पड़ी। दिनेश दरवाजा खोलकर बाहर आ गया। काफी विवाद हुआ। फिर बिंदा ने दरवाजा बंद कर लिया। दूसरे दिन उसकी मां और भाई वहां आ गए। उन्होंने समझाया पर बिंदा, वो नहीं मानी और महिला पुलिस स्टेशन पहुंच गई। पीछे-पीछे दिनेश और बिंदा के परिवारवाले भी पहुंच गए।
महिला पुलिस इंस्पेक्टर दो समझाइश देने वालों के साथ बिंदा और दिनेश को समझाने बैठी।
देखो, केस तो दर्ज हो जाएगा पर इससे किसी को कोई फायदा नहीं है। आराम से बैठकर बात कर लो।
दिनेश भड़क गया- इससे कौन बात करेगा?
शांति रखो, चिल्लाओ मत।
अरे कोई इससे शादी नहीं करता भैंस कहीं की। पास खड़े दो पुलिस वाले बोले- अरे शादी से पहले देखना था। गर्मी निकलाने की इतनी जल्दी क्या था? वो मुस्कुराने लगे। दिनेश को फिल्मी हीरो की तरह चिल्लाने का मौका लगा- अरे वो तो मैंने इससे शादी कर ली वर्ना इससे कौन शादी करता? मुझसे पूछो कैसा लगा होगा बिस्तर पर एक भैंस को पाकर। उसे बार-बार समझाने पर भी जब वो नहीं माना तो महिला इंस्पेक्टर ने उठकर उसे जोरदार तमाचा मार दिया। सोना है चल सो... सो मेरे साथ। दिनेश चाहता था कि बोल दे - उतार कर फेेंक दो ये वर्दी पर इसके अंजाम से वो वाकिफ था। अब कुछ बोला तो ये डंडा घुसेड़ दूंगी। महिला पुलिस ने उसे डंडा दिखाया। उसका मतलब मुंह से था पर दिनेश कुछ और ही समझ गया। परिवार वालों ने कहा- माफ कर दीजिए मैडम।
इसे समझा दो चिल्लाए नहीं हम कह रहे हैं न। कर रहे हैं न सबठीक।
अब बिंदा बोली- मैडम तीन दिन से इसके बुढ़वा-बुढ़वी।
देखी इसकी तमीज।
शांति रख।
ये मुझे जानवर की तरह काम में जोते हैं। कल रात सोने लगी तो ये ....क्कड़ मुझ पर चढ़ बैठा। इस पर दुष्कर्म और इसके परिवार पर दहेज प्रताडऩा का मामला दर्ज होना चाहिए।
दिनेश फिर चिल्लाने लगा। तो पुलिस वाली भड़क गई- अब तो इस पर मामला दर्ज करो।
बहुत विवाद हुआ। समझाइशें हुई। अंतत: बिंदा ने ससुराल जाने से इंकार कर दिया। शादी में दिया सामान वापस लेने की बात होने लगी। कुछ सामान घर में पहले से ही था। अंतत: कुछ सामान बेच दिया। जिसमें एक अंगूठी जो दिनेश को दी थी उसको लेकर भी विवाद हुआ और उसे वापस लेने के बाद बिंदा शांत हुई। कुल मिलाकर 75 हजार रुपए लेने के बाद मामला निपट। इससे बिंदा के परिवार की काफी बदनामी हुई।
अब बिंदा घर लौट आई। पैसे को बैंक में जमा करवा दिया जिससे साढ़े सात सौ का मासिक ब्याज मिल जाता था। गंदला लाल सूट पहनकर वो घर के बाहर लकड़ी की कुर्सी के हत्थे पर टांग रखकर बैठ जाती और आते-जाते लोगों को निहारती। इस बीच वो दुपट्टा नहीं डालती। लोग बुराई करते पर उसकी छाती को भूखों की तरह निहारते। उसकी बदनामी करते।
बिंदा का घर टीन का बना हुआ था। परिवार गरीब था और बिंदा के आ जाने से घर में भी कलह की सी स्थिति बनी रहती थी। इस बिंदा यही कहती थी कि मेरी मां का घर है जब तक वो जिंदा है मैं यहां रहूंगी। मां भी कलह से बचने को चुप रहती।
बिंदा के भतीजे गणेश-माताजी बिठाने का चंदा लेते। कुछ लोग फल- सब्जी भी दे देते भंडारे और रोज की प्रसादी के लिए। बिंदा ये भी खा जाती और बच्चे जो पैसे उसके पास रखते उसमें से भी वो थोड़े बहुत पैसे यहां-वहां कर देती। बच्चों की मजबूरी थी वो और कहीं पैसे जमा करवा नहीं सकते थे। ये मजबूरी कई कारणों से थी। इस पर बात करना बेमानी है।
एक बार कुछ बदमाश बच्चों ने बिंदा को लेकर काल्पनिक कहानियां बना दीं। जो कि अश्लील किस्म की थीं। वो सांकेतिक शब्द बोलते और बिंदा का मजाक उड़ाते। वो ये बात समझने लगी और एक दिन उन किशोरवय बच्चों के घर जा पहुंची- अपनी मां को भी ऐसा ही कहता है क्या? इस निम्रवर्ग की कॉलोनी में महीने में एक बार तो बिंदा लड़ती दिख ही जाती थी। उससे पूरा परिवार परेशान था। अब मां चिंता करती कि मेेरे बाद इसका क्या होगा? तो बिंदा कह देती- इस मकान में मेरा भी हिस्सा है कहां जाऊंगी? घर में आंतरिक तनाव फैल जाता। बूढ़ी मां परेशान रहती।
बिंदा इस बात को समझने लगी थी कि उसे एक अदद सहारे की जरूरत है किसी भी तरह। बिंदा के पड़ोस में यादव का मकान था। यादव के किराएदार ने उनके दो मंजिला मकान की रजिस्ट्री पर 10 लाख को लोन लिया। इस लोन में से 7 लाख यादव को दिये बाकी खुद के काम में ले दिए। न ब्याज भरा न मूल। मकान हो गया जब्त। नीलामी में समय और प्रक्रिया थी, सो मकान में एक चौकीदार नियुक्त किया गया। प्रौढ़ उम्र का चौकीदार। चौकीदार आया। वो घर के बाहर कुर्सी लगाकर बैठ गया और धूप सेंकने लगा। उसके पास घर की चाबी भी थी। बिंदा का भाई जमाने की फौजदारी के चलते उसके पास गया और यादव के इस कांड के बारे में पूछा। उसने पूरा कांड बताया साथ ही यह भी बताया कि वो सरकारी मुलाजिम है। चार बेटियों और तीन बेटों का भरापूरा परिवार है। पास सबर्ब का रहने वाला है पर सरकारी बंगले में अकेला रहता है। पत्नी से अच्छी नहीं बनती। इसका नाम था- कामेश चौबे। अनिल ने ठंड के चलते चाय मंगाई। चाय छुटकी लेकर जा ही रही थी कि सारी बात छिपकर सुन रही बिंदा ने चाय उसके हाथ से ले ली। सिर पर दुपट्टा डालकर वो बड़ी ही सभ्यता से बाहर आई और चौकीदार को चाय दी। अनिल ने मुंह बनाया। चौकीदार ने बिंदा का मुंह देखा। बरसों पहले लगाए अनधुले काजल से काली सी आंखें, उन्हें देखने से ऐसा ही लगता था। भरा-पूरा चेहरा। बस, उसने चाय ली और सुड़प गया- बहुत अच्छी चाय बनाई है आपने।
थैंको, बिंदा ने अपनी ही अंग्रेजी में मुस्काकर कहा। अनिल ने सोचा कितनी दुष्ट है बिंदा। चौकीदार को यहां कुछ महीने रहना था। शाम को चौकीदार ने टिप्पन निकाला और पानी के लिये यहां-वहां देखा। बिंदा ये सब देख रही थी। उसने छोटी से जग भरकर पानी मंगवाया और जा पहुंची चौबे के पास। चौबे जात से ब्राम्हण थे सो बिंदा ने उनको पंडित जी कहना शुरू कर दिया। पंडित जी पानी। चौबे ने फिर उसका मुंह देखा। न जाने क्यों? बिंदा का रोम-रोम उसे आकर्षित करने लगा था। धन्यवाद। मिनिएशन नॉट। ये हर तरह की प्यास बुझा देगी, चौबे ने सोचा। पता नहीं क्यों येबात समझकर वो ठाहके के साथ बोल पड़ी- हर तरह की प्यास बुझा दूंगी। हालांकि ये बात उसके परिवार वालों या किसी अन्य ने नहीं सुनी। चौबे उसे देखता ही रह गया।
अब ये रोज का खेल हो गया। चौबे नहाने भर के लिए घर जाता और फिर वहीं आ जमता। लोगों में और घर में चर्चा थी पर इस बहाने बिंदा शांत तो थी और उसे छोडऩे से सब डरते और उसका अंजाम सोचकर डर जाते। चौबे बैठे-बैठे थक गए तो घर का बाहरी दरवाजा खोल बाहरी सीढिय़ों से टैरेस पर जा पहुंचे। बिंदा ने अपने घर में रखी प्लास्टिक की चटाई एक तकिया उसे दे दिया। अब वो बहुधा ऊपर ही मस्ताता, पांचवे दिन चौबे टिप्पन नहीं लाया। बिंदा थाली लेकर उसके पास ऊपर जा पहुंची उसे खाना खिलाया। अब बिंदा ने उसे कहा कि वो यही बैठा करे। वो चाय-नाश्ता-खाना और प्यास बुझाने को पानी ऊपर ही ला देगी। ये बात उसने किस अंदाज में कही होगी आप समझ ही सकते हैं। घर में जो कुछ बनता बिंदा अपने लिए एक बर्तन ज्यादा लेती और बाद में चौबे को खिला देती। बड़े प्यार से कहती- पंडित जी ओ पंडित जी। चौबे को ये बड़ा कामुक लगता। वो जब उसके पास जाती। सजसंवरकर जाती। चौबे की भावनाएं भड़कने को आतुर थीं पर अपने परिवार का और बिंदा का डर, कहीं वो ये यूं ही तो कर रही और कुछ कहने-करने पर भड़क जाए। डर कई थे और कई भांतिसे उसे डराते थे।
दस दिन हो गए। बिंदा खाना लेकर ऊपर गई। चौबे ने खाना खाकर थाली में हाथ धो रहा था और बिंदा उससे बातें कर रही थी- आप बहुत अकेले लगते हैं। मैं आपका अकेलापन दूर कर दूंगी आपकी हर जरूरत पूरी कर दूंगी। चौकीदार चौबे ने अचरज से बिंदा का मुंह देखा। बिंदा के हाथ खुले बालों में थे। अधरों पर मुस्कुराहट। पांव जो वो लंबाकर उसके पास ही रखे हुए थी। उसकी पायल, होठों की लाली। अब चौबे के दिल का तूफान अपने हदें तोड़ कर बाहर आ गया। तुम्हारी पायल...उसके होठों ने उसके पैरों को छू लिया। तुम्हारी चूडिय़ां, ये सजसंवर। तुम मेरे लिए ही ये सब कर रही हो न, ये खाना-पानी-चाय-ये श्रृंगार-पटार। वो दोनों एक जिस्म एक जान हो गए। बिंदा को आज पूर्णता प्राप्त हो गई।
अब ये रोज का खेल हो गया। बिंदा घर से चिंदिया और खराब कपड़े लेकर छिपा लेती और प्यार की निशानियों का साफ कर देती। ठंड का ये मौसम बीतने लगा। बसंत आने लगा। दिल की कलियां फूल बनकर महकने लगीं। डेढ़ महीने बाद ही नीलामी हो गई और चौबे वहां से दफा हो गया पर जाते-जाते वो बिंदा को अपना मोबाइल नंबर दे गया। पता तो उसने उसके परिवार वालों को पहले ही बातों-बातों में बता दिया था।
चौबे चले गए। तीन-चार दिन बाद बिंदा का जी मचलने लगा। उल्टियां भी हुईं पर परिवार वालों ने ध्यान नहीं दिया। धीरे-धीरे कुछ महीने बीते। इस बीच चौबे आते-जाते उनके घर आ जाते दो बातें कर चले जाते। वो बिंदा को देखते-बिंदा उनको। उनके बीच जो कुछ हुआ वो महज टाइम पास नहीं था, वो दोनों एक-दूसरे को चाहने लगे थे। बिंदा ने उनका ख्याल रखा। हर तरह से। अपना सबकुछ समर्पित कर दिया। यहां तक कि कौमार्य भी, बिना किसी की परवाह किये। कितनी त्यागी है बिंदा।
इस बात को नौ महीने गुजरे ही थे कि बिंदा की फिर तबीयत बिगड़ गई। मन मचला, भाई न चाहते हुए भी उसे पास के क्लीनिक ले गए। वहां डॉक्टर ने बताया कि बिंदा मां बनने वाली है। भाई उसे लेकर घर आए और हंगामा शुरू हो गया। बिंदा ने बता दिया कि वो जानती थी कि वो मां बनने वाली है। ये पाप नहीं है। ये उसका सहारा है। क्या ये भाई उसके सहारे होते? जो उसे दुरुस्ती में घर से निकाल रहे हैं, वो उसके निढाल होने पर तो घर से ही बाहर फेंक देते क्या भरोसा मार ही देते? मोटी-तगड़ी बिंदा का डीलडौल ही ऐसा था कि ये समझ पाना मुश्किल था कि वो मां बनने वाली है।
अब भाई बाइक पर बैठकर चौबे से लडऩे पहुंचे। पीछे बिंदा निकली और पेट को सम्हालते हुए एक ऑटो वाले को बुलाया और पीछे से वो भी चौबे के घर जा पहुंची। सुबह 11 बजे का टाइम था। चौबे ताला लगाकर सायकल उठाने ही वाला था कि बिंदा के भाई वहां पहुंच गए।
अरे, हमने बिंदा को तेरे पास इस लिए भेजा था कि वो तेरी खाने से भूख मिटाए तूने तो उसे पेट से ही कर डाला। कोई और ही भूख मिटा ली तूने!
हम तुझे छोड़ेंगे नहीं!
चौबे घबरा गया। मारापीटी होती उससे पहले ही बिंदा वहां जा पहुंची। कम पैसे देकर ऑटो वाले से लड़कर वो उनके पास पहुंची। दूर हटो...हाथ भी मत लगाना इनको...मेरे पति हैं ये? भाई हड़बड़ा गए। मैं इनकी पत्नी हूं। मर्जी से मैं पेट से हुई हूं। तुम किसके होने वाले हो ये तो मेरे हैं, ये सहारा तो मेरा है। उसने अपने पेट पर हाथ रखा। चौबे अब इस अवस्था में आ गए कि वो बिंदा के पैर में गिर पड़ें और स्तुतिगान करें, क्योंकि मजा तो चौबे ने भी लिया था बिंदा ने लिया न या नहीं वो नहीं जानते, पर इस सबको बिंदा ने एक अलग ही रूप दे दिया, पिटाई से भी बचाया पर उनको अपने परिवार का डर भी था। बोलते-बोलते बिंदा को प्रसव वेदना शुरू हो गई। दूर से साहब ये सब देख रहे थे- चौबे मेरी जीप ले जा। वो मुस्कुराए। चौबे और बिंदा के भाई उसे लेकर अस्पताल पहुंचे। जहां बिंदा ने एक लड़के को जन्म दिया। वो ठीक थी। उसने चौबे को आश्वस्त किया कि वो उसकी संपत्ति में हिस्सा नहीं चाहती वो सिर्फ और सिर्फ उसे चाहती है...उससे प्यार करती है..उसके साथ रहना चाहती है। उसके नाम का सिंदूर मांग में भरना चाहती है। उसने उसे वो चीज दी है जो अनमोल है वो है एक सहारा।
शाम तक तो बिंदा खड़ी हो गई और अपने बच्चे को लेकर घर आ गई। सब चिढ़ गए।
घर में मेरा भी हिस्सा है-वो बोल पड़ी। अब कोई उसे बोले तो बोले क्या? मासूम बच्चे की किलकारी में क्या दोष? वो तो ईश्वर की कृति है। अम्मा की तबीयत खराब हो गई थी, वो लेटी थी। बिंदा नवजात को जिसका नाम उसने रितेश रखा था, लेकर मां के पास पहुंची।
देख नानी ई....नानी। बिंदा की मां ने आंखें खोली। एक नवजात बिंदा की गोद में था- लाल-लाल सा सोया हुआ, चपटी सी नाक। उसके होंठों पर मुस्कान खिल गई। छुटकी ने उसे देखा। देख भैयू(को)...देख।
अब सूट पहनने वाली बिंदा साड़ी भी पहनने लगी। क्योंकि इससे स्तनपान में उसे सहजता होती। वो रहती तो मां के पास थी पर छुट्टी के दिन वो चौबे जी यानी पंडित जी के पास चली जाती। वहीं रहती दिनभर शाम पड़े वापस आ जाती। वो दुनिया भर से तिरछी चले पर चौबे के आगे वो पूरी तरह से समर्पित पत्नी है, चौबे जी भी उससे खुश थे, वो घूंघट लेती,सिर पर पल्ला रखती, मांग भरती, अपने पति के लिए सजती संवरती ऐसा तो चौबे जी की ब्याहता ने कभी नहीं किया। उसने उनकी पत्नी को अपनी बड़ी बहन बताया और संपत्ति पर किसी भी प्रकार के हक का विवाद नहीं होने की बातभी कही।
हालांकि चौबे के परिवार से जो उम्मीद थी वैसे ही उसने बिंदा को नहीं स्वीकारा पर वो रही एक पत्नी, एक मां पर ये न समझा जाए वो बदल गई है। आज भी वो उसी तरह लड़ती है जैसे पहले लड़ती थी फर्क बस ये है कि उसकी गोद में बच्चा होता है, जो उसकी कर्कश ध्वनि सुनकर रोने लगता है जिसे बाद में वो चुपाती है। मां कहती- कुछ न कहो उसे, अब उसे एक सहारा तो मिल गया है न। चौबेजी के प्रति उसका समर्पण शायद उस एक सहारे के कारण है जो उन्होंने उसे दिया। बिंदा और कई बार मां बनना चाहती थी..अपने गृहस्थी के स्वप्रिल अरमानों के साथ वो कहां तक पहुंची ये तो नहीं पता पर इतना जरूर है कि उसे सहारा मिल गया था।

रविवार, 7 जनवरी 2018

गुसरखाना

आबू गुसरखाने में देख रहा था। फातिमा यानी आबू की शरीकेहयात यानी उसकी बेगम यानी उसकी पत्नी जब से ब्याहकर आई है ये बात कहती रही है कि कम से कम दरवाजा तो लगवा दो कब तक गुसरखाने के दरवाजों को हाथों से उठाकर रख यहां-वहां रखते रहेंगे? यहां भारी सीलन भी है। नहाओ या पाखाना फिरो तो सिर पर पानी टपक पड़ता था। इससे सर्दी भी हो जाती थी भरी गर्मी हो या कंपकंपाती सर्दी, बारिश में तो हालत और खराब थी। गुसरखाने में ऊपर लगी टंकी से पानी रिसता था। दीवारों से लगातार पानी रिस रहा था। सीलन से पूरा गुसरखाना और पाखाना नमीदार हो रहा था। टंकी तो हटाई नहीं जा सकती थी। अब कुछ तो करना ही था सोचते तो वक्त ओ वक्त गुजर गए।
फातिमा जब ब्याहकर आई थी तो बाहर ही खुले में सब कुछ होता था। उसको अपने सांवले भरेपूरे बदन, जिसे वो गोरा बताती थी, को कुएं पर जाकर धोना पड़ता था और गांव के मियां अशरफ बहाने से छत पर चढ़कर उसको घूरा करते थे। बाद में ये बात जब आबू को पता चली तो पठानी खून में फौलादी उबाल आ गया और वो ऐसा न करने की बात कहने उसके घर जा पहुंचे। अशरफ ने भी कह दिया कि मेरी बेगम तो गुलाब का फूल है मैं क्यों तेरी भैंस जैसी बेगम को घूरूंगा। बात बढ़ गई और अशरफ ने आबू को धक्का मार दिया। तब अब्बा जान ने कोतवाल आजमी साहब से शिकायत की। आजमी ने अशरफ को कई दिनों तक धमकाया और वसूली की। अम्मी ने फातिमा को आश्वासन दिया- दुल्ही जल्दी गुसरखाना और पाखाना बनवा लेय हैं। बाद में ये बने।
खैर, फिलहाल तो मामला यह है कि गुसरखाने का क्या किया जाए? आबू गुसरखाने का निरीक्षण कर ही रहा था, जो वो पहले भी कई बार कर चुका था पर आज तो इसका निकाल करना ही था। बेटी जवान हो रही है उसे कुएं पर थोड़े ही भेजा जा सकता है। स्मार्ट फोन का जमाना है कहीं किसी ने चुपके से फोटो खींच ली या वीडिया (वीडियो) बना लिया तो! आबू का घर भी अकबर-बाबर के जमाने का था। तिस पर मोटे-मोटे चूहे, जिन्हें मूसा कहा जाता है, यहां-वहां धमा-चौकड़ी मचाते नजर आ जाते थे। बेटी शमीम चिल्लाती-पापीजी...पापीजी...मूस। आबू के घर गरीबी को ढोल पिटता था न जाने ये मूसे इतने मोटे-ताजे क्यों है? आबू का बेटा इकबाल कई बार कोशिश कर चुका था कि किसी तरह मूसे की पूंछ में धागा बांधकर खेल करे, पर वो सफल नहीं हुआ। वो जब हंसकर इन्हें हजरत कहता तो फातिमा उसे डांटती। मजहब का मजाक बनावत है। इसके साथ ही चिंतित होकर फातिमा कहती- बिट्टन मत छेड़ वाके काट लेय है।
मूसों को भी कहीं न कहीं घर बनाने का मौका मिल ही जाता था पिछले दिनों चूहों ने रोशनदान में ही बच्चे दे डाले। इकबाल ने ये बच्चे ले लिए और कुत्तों के सामने डाल दिये। कुत्ते इनको सूंघकर भाग गए और सूअर साफ कर गए। फातिमा ने इकबाल को इसके लिए डांटा। क्या करता है? वाकी मां बदुआ दे है तोके। यजीद कहीं का! इसके बाद गुस्साए मूसों ने फातिमा का गहरा लाल सलमा-सितारों से सजा, भारी जरी और चमक की लेसों से सजा सूट कुतर डाला। शमीम का बेस भी काट दिया। इसमें पैसों का नुकसान हुआ। आबू को याद है जब फातिमा उस सूट को पहनती थी तो कयामत ही लगती थी। वो तो फातिमा का मोटापा और उससे उपजा खून का दौरा था वर्ना वो पैदाइश को खुदा की देन मानता ही था।
आबू कुछ सोच रहा था कि फातिमा के चिल्लाने की आवाज आई। अरे हिया कचरा क्या डाल रहा है? आबू बाहर आया देखा तो अशरफ ने वहां गुटके का बड़ा पाउच फेंक दिया था। आबू बाहर आया- जनाब ऐसा मत करो। अशरफ ने उनकी बात सुनी तो वहां गुटके की उलटी ही कर डाली। अरे... ये क्या बात हुई। आबू को गुस्सा आ गया। तेरी....तेरी.... अशरफ ने आबू को गालियां दीं। आबू बाहर निकल आया। क्यों ये क्या बात है? अबे अभी तो थूका है...गाली भी दी है...हां वही गाली भी दी है, ज्यादा बोलेगा तो अंतडिय़ां निकाल दूंगा। आबू को गुस्सा आ गया तो अशरफ ने उसे धक्का मार दिया। आबू घर की सीढिय़ों पर गिर गया। सिर फूट गया, उसमें खरोच आई और खून बहने लगा। अशरफ तम्बाकू का जर्दा हथेलियों में मलता चला गया। अरे... फातिमा दौड़ी। आबू सम्हालते हुए उठा। घर शमीम के हवाले कर वो उसे लेकर पुलिस स्टेशन चली गई। इकबाल को मटरगश्र्ती करने से गुरेज था ही नहीं। वो दोनों अकेल ही चले। पुलिस स्टेशन में फातिमा और आबू को बिठा लिया। जब साहब आएंगे तब मेडिकल होगा, फिर रिपोर्ट लिखेंगे। अरे आजमी साहब कहां है? फातिमा यहां-वहां हुई। आबू बैठा था। आजमी साहब हो गए रिटायर अब सिसोदिया और खान साहब का जमाना है- सिपाही बोला। एक पुलिस वाले को दया आई- अरे शिकायत लिखवाकर रवाना कर दे। इलाज तो ये खुद ही करवा लेगा। खान या सिसोदिया के हवाले बैठा तो दिन निकल जाएगा। सिसोदिया साहब की लड़की शादी है मेहंदी होगी तो वो तो आएंगे नहीं। खान साहब तबीयत के आदमी हैं चाहें तो आए वर्ना गाड़ी में बैठकर फांकाबाजी करते फिरें। जलन बातों के साथ निकल आई। जान से मारने की धमकी दी है क्या? सिपाही ने यूं ही पूछ लिया पर आबू के मन में गुसरखाना और अशरफ के सिवा कुछ नहीं था। फातिमा परेशान थी। आबू को गुसरखाने में टपकती बूंदों की आवाज सुनाई दे रही थी।

शनिवार, 6 जनवरी 2018

मौत से मुकाबला 5 : सेवन स्कल का थॉर

मेरी आंखों के सामने था जलपरी का भयानक जबड़ा, तीखे दांत। मुझे काटने का अहसास हुआ और मैं उठ बैठा। जहाज के उस कैबिन में अंधकार था। मैं फिर सो गया। दूसरे दिन एडम ने मुझे उठाया। डेक पर मोटे रस्सों को उठाना था। मैं वहां पहुंचा तो किनारा देखकर अच्छा लगा पर किनारे पर अपने ही जैसे लोगों को देखकर अजीब लगा। एडम ने बताया कि ये हम किसी दूसरे देश में नहीं आए हैं। हम अपने ही देश के दूसरे तटीय क्षेत्र में हैं। मैंने सर पकड़ लिया। जोनाथन भी मेरे साथ था। एडम ने बताया कि नेवल का व्यापार बहुत बड़ा नहीं था। वो कभी-कभी बड़े जहाजों पर ठेेके पर सामान यहां से वहां ले जाया करता था। उसने कम ही बड़ी यात्राएं की थीं। एडम ने मुझसे कहा कि मुझे लंगर के बारे में जानकारी होनी चाहिए क्योंकि जल्द ही ये काम मुझे करना होगा। आज उसने ये काम कर दिया है।
हम बातें कर ही रहे थे कि नेवल वहां आया और हमें बताया कि इस बार हमें बड़े जहाज पर जाने का मौका मिला है। हमें जल्द ही निकलना है। नेवल ने जहाज को अपने विश्वस्त को सौंपा और हम निकल पड़े बड़े जहाज की ओर। एक बहुत बड़े जहाज पर हम पहुंचे। एडम जहाज को देखकर रोमांचित हो गया। हम सेवन स्कल पर हैं। ओह हम थॉर द थंडर के साथ हैं। थॉर - मुझे हैरत नहीं हुई। हम नेवल का सामान लादे हुए थे। यहां हम नीचे के कम्पार्टमेंट में पहुंचे। यहां एडम ने बताया कि सेवन स्कल जहाज समुद्रों का बादशाह माना जाता है। इस जहाज के सात कोनों में लकड़ी की खोपड़ी यानी स्कल लगी थीं इस लिए इसे सेवन स्कल कहा जाता था। थॉर इसका कप्तान था जो वीर और साहसी था। हालांकि अब उसकी उम्र 60 के पार थी पर वो आज भी थंडर के नाम से ही जाना जाता था। थॉर का नाम स्टीफन था। थॉर नाम उसे उसके मालिक ने दिया था। थॉर वीरों के सभी शौक रखता था और खास शौक था औरतों का। बंदरगाह की कोई ऐसी वेश्या नहीं थी जो उससे गर्भवती न हुई हो। आज भी बंदरगाह की सबसे पहली वेश्या उसी के पास भेजी जाती थी और वो इसके लिए बेशुमार पैसा खर्च करता था। समुद्री डाकुओं में उसका खौफ हुआ करता था। सेवन स्कल इसका नमूना था। इसकी सात खोपडिय़ां समुद्र के सात महान डाकुओं की प्रतीक थीं जिनको थॉर ने क्रूरता से खत्म किया था।
थॉर समुद्री डाकुओं को लूट लेता था और उनकी औरतों और बच्चों को बेचता था। औरतों और कभी कभी बच्चों को बेचने के पहला वो उसका शोषण करता था जो शायद अमानवीयता की पराकाष्ठा तक बुरा होता था। मुझे थॉर से नफरत होने लगी। जहाज निकल पड़ा। हम यहां पहुंचे तो पता चला कि नेवल ने माल पहले ही लदवा लिया था। हम ठेके पर दाल-चावल और लकडिय़ां ले जा रहे थे। मैंने जाकर सामान की सूची बनाई। कुछ देर बाद हम जहाज के विशाल डेक पर थे। तभी हमने देखा कि कुछ लोग एक बूढ़े को घेरकर खड़े हैं। क द में कुछ ठिंगना, गोरा, सुनहरी सी दाढ़ी वाला ये बूढ़ा ही थॉर था। उसकी आंखों बहुत चमकदार थीं। मैं नेवल को सूची देने ही वाला था वो थॉर की ओर बढ़ गया। थॉर ने हमारी ओर देखा। नेवल ने उसका अभिवादन किया जिस पर उसका जवाब था- ठीक है। कुछ देर बाद हम जहाज के नीचे पहुंच गए। हमने जोनाथन को अपने साथ नहीं पाया मैं उसे ढूंढता हुआ डेक पर आया तो देखा कि वहां बैन, फोरेसो और जैमी जोनाथन को परेशान कर रहे थे। मैंने उसे पुकारा और साथ चलने को कहा। जैमी न जाने क्यों मुझ पर बिफर गया- चुप कर बाल्टिक कुत्ते। मैंने उसे कहा कि मुझे गलत न कहे। इस पर बैन भी मुझसे लडऩे लगा इतने में एडम पीछे आया- चुप रह गुलाम कीड़े। बैन को एडम ने डांटा। एडम का संबंध यूनान से था और ब्रिटेन यूनान का गुलाम रहा था। गुलाम किसे कहा। बर्बाद सभ्यता के घटिया जीवाश्म। विवाद उग्र हो गया और वे तीनों एडम को मारने दौड़े। एडम ताकतवर था पर तीन सांडों से अकेले भिडऩा उसके बस का नहीं था। दोस्ती की बात थी और हमारा सम्मान भी दांव पर था। मैं बैन पर लपका और ये देखकर जोनाथन जैमी पर कूद पड़ा। मैं दौड़कर बैन की पीठ पर बैठ गया और कुछ न पाकर अपना होंठ ऊपर कर पूरी ताकत से अपने दांत उसके सिर में गड़ा दिये वो इस आकस्मिक हमले भौचक्का रह गया। ये देखकर जोनाथन ने जैमी के कान को दांतों से काट लिया। दुर्भाग्य से मेरा हाथ बैन के मुंह पर आ गया और उसने मेरी उंगलियों पर काट लिया और एक भारी भरकम हाथ मेरे सिर पर पड़ा और मैं नियंत्रण खोकर नीचे गिर गया। बैन ने दो जोरदार लातें मुझे मारी। वहां जोनाथन को दो-तीन मुक्के पड़ गए। एक अजीब आवाज सुनकर वो रुक गए। मैंने देखा एक हब्शी खड़ा था जिसने मेरे सिर पर भारी हाथ मारा था। वो बोला- तुम क्यों लड़ता? एक हाथ और मारेगा तो समंदर में जा गिरेगा। एडम को भी मुक्का पड़ गया था। उसका गाल सूज रहा था। जोनाथन की आंख सूजी थी और मेरी उंगलियां दु:ख रही थी लातों का दर्द भी था। हालांकि नोबल ने मामले को शांत करने के लिए उन्हें कहा था पर उसने बीच-बचाव करने या हमें बचाने की कोई कोशिश नहीं की। हमने ऊपर देखा वहां थॉर खड़ा होकर ये सब शांति से देख रहा था। वो तीनों हमें छोड़कर एक तरफ हो गए। बैन जरूर सिर पर हाथ फेर रहा था। थॉर ने हब्शी से कहा कि वो हमें ऊपर भेजे। हम डरते-डरते ऊपर पहुंचे। हम जब ऊपर जा रहे थे तो एडम धीरे से बोला- उसकी किसी भी बात को मना मत करना। ऊपर देखा तो बेइंतहा खूबसूरत लड़कियां यहां-वहां घूम रही थीं। उनके लिबास उत्तेजित करने वाले थे। एडम ने उनको घूरकर देखा फिर धीरे से बोला -शीमेल-शीमेेल। एक जगह उन शी मेल ने हमको घेर लिया। वो संख्या में सात थीं। हलो मेरे जानेमन। तुम कहा थे सारी रात बिस्तर काटता रहा। पहली की बात पर सब हंसने लगीं। हाय, सामने इतने लजीज पकवान और इतनी खूबसूरत दावत देखकर भी भूख नहीं जगी। हमारे साथ चलो भूख और प्यास जगा भी देंगे और मिटा कर बुझा भी देंगे- दूसरी ने कहा। जोनाथन डर के मारे मेरे पीछे हो गया। मैं भी घबराया हु आ था। तुम मर्द हो मर्दानगी दिखाओ- चौथी ने एडम को घूरते हुए कहा। मैं और जोनाथन तो भागने की ताक में थे। तभी वो सभी एक स्वर में बोलीं-आ गया नामर्द। देखा तो हमारे पीछे एक हब्शी खड़ा था। हट जाइये इन्हें जाने दीजिए। हब्शी ने शीमेल्स से कहा। शीमेल्स मुंह बनाकर वहां से चली गईं। हम ऊपर पहुंचे देखा तो वहां खाने की बड़ी टेबल पर शानदार खाना सजा हुआ था बड़ी विशाल कुर्सी पर थॉर बैठा था। यहां बैठ जाओ और खाने का आनंद लो। हम कुर्सियों पर जा बैठे। एक थाल में अनारी दानों से स्टफ्ड सूअर के बच्चे को देखकर मेरा मन भर गया। थॉर ये समझ गया- यहां हर तरह का लजीज खाना है। अपनी-अपनी रुचि के अनुसार खाओ। घबराकर जोनाथन और मैं तो सूप पीने लगे और एडम ने लजीज कबाबों को खाना शुरू कर दिया। तुम लोगोंको देखकर मुझे मेरी जवानी याद आ गई। जब कोई मुझे बुरा कहता था मैं उससे भिड़ जाता था। ये देखे बिना कि वो कितना ताकतवर है। तुम तीनों मुझे कुछ खास लगते हो। घबराते-घबराते हमारा खाना हो गया। वाइन पियोगे। थॉर ने वाइन वहीं मौजूद एक शीमेल से बढ़वाई। ये शीमेल बेइंतहा खूबसूरत थी। ये सौ साल पुरानी फ्रेंच बीयर है। क्या इसने कभी पी है। उसने मुझे इंगित किया। नहीं, चुस्किया लेते हुए एडम बोला। तो इसे मत दो, ये बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। जाम मेरे हाथों तक आते-आते चला गया। जोनाथन को मिलना था ही नहीं। मुझे ये बुरा लगा, जिंदगी में एक बार दुर्लभ वाइन पीने का मौका मिला वो भी चला गया। मुझे एडम पर क्रोध आया पर उसकी कोई गलती थी ही नहीं। हो सकता हो ये बात सही हो कि मैं उसे बर्दाश्त न कर पाता। थॉर ने उस हब्शी को बुलाया जिसने मेरे सिर पर वार किया था फिर उसे कहा कि उसकी ओर पीठ करके खड़ा होजाए। इसके बाद उसने उसके नितंब पर एक रॉड मारी। वो तड़पता हुआ नीचे गिर गया और पीठ के बल होते ही और जोर से चीखा।
एडम चाहता था कि उसे और मार पड़े पर मैंने और जोनाथन ने उसे रोक दिया क्योंकि वो उस वक्त थॉर के ही आदेश का पालन कर रहा था। इसके बाद हम उठे और जाने की इजाजत मांगी। थॉर मुझे और जोनाथन को देखकर मुस्काया। कुछ और खाना हो तो खा लो। हमने मनाकर दिया। वो हंसा- तुमने जो पिया है वो सूप नहीं एपीटाइज है। तुम्हारी भूख कम नहीं होगी बल्कि और बढ़कर लगेगी। हम चुप रहे। हम लौटे तो देखा बैन, फॉरेसो और जैमी डेक पर ही थे। वो हमारी ओर बढ़े। हम डर गए क्योंकि अब हम में लडऩे का साहस नहीं था। तभी हमारे पीछे से आवाज आई- नादर्दे, नादर्दे, नो हर्ट दॉम अदरवॉइस यू विल हर्ट थॉर। हमारे पीछे सीनियन नाम का हब्शी खड़ा था और ऊपर से थॉर ये सब देख रहा था। वो डर के मारे चले गए। हमने थॉर का अभिवादन किया और अपना रास्ता पकड़ा। एडम ने कहा कि थॉर के बारे में उसके पास बताने को बहुत कुछ है पर हमें अभी सुनने की कोई इच्छा नहीं थी।

मेरे साथ ही क्यों?

सुबह होते ही पादरी चर्चा जाते। इसके बाद वो बस्ती में जाते और लोगों को ईसा मसीह की शिक्षाएं देते। इन शिक्षाओं से प्रभावित होकर कुछ दलित किस्म के लोग ईसाई बन गए थे। पादरी का नाम रामदास कैरन था। हालांकि उनको स्थानीय भाषा नहीं के बराबर ही आती थी। वो मिली-जुली भाषा का इस्तेमाल करते थे। फिर भी ये उनकी सफलता ही थी कि वो लोगों का उद्धार कर रहे थे। बड़े लोग उनके काम से खुश थे। कुछ लोगों ने पादरी का विरोध किया पर ये बरसाती मेंढक चुनाव के समय बोलते थे बाकी समय या तो यहां-वहां अपनी राजनीति चमकाते या हर तरह का मजा लूटते।
दलितों ने पादरी को बताया था कि ईसाई बनने के बाद मसीहा और यीशु के पुत्र यशवंत की उन पर दया दृष्टि हुई है। अब बहुत से लोग उनको उनके जाति के नाम से नहीं बुलाते। कुछ लोगों ने कहा था कि उनके दूर के रिश्तेदार भी ईसाई धर्म में दीक्षित होना चाहते हैं। सभी अपने पापों का उद्धार चाहते हैं क्योंकि अगाड़ी जात के लोग कहा करते थे कि नीची जात में पैदा होना पाप है और उनको बराबर में बिठाना पाप है। मंदिर में तो वो घुस नहीं पाते थे पर चर्च में वो घुस जाते हैं। पादरी कच्ची-पक्की भाषा में कहते- यशवंत तुम्हारे उद्धार के लिए ही आई है। उसी के लिए वो क्रूस पर चढ़ी। सभी लोग हाथ जोड़कर उनकी बातें सुनते। प्रार्थना करते। वो विचित्र आवाजों में गीत गाते और कुछ शरारती बच्चे उनका अनुकरण करते और उनके न होने पर उनका मजाक उड़ाते। वो उनकी सुनाई कहानियों का माखौल बनाते क्योंकि वो भाषा सही नहीं बोल पाते थे। हालांकि पादरी कैरन को ये बात मालूम नहीं थी।
एक दिन कैरन को पता चला कि बड़े साहब आए हैं और इस बार उनको बड़ा ओहदा मिलेगा। जिसकी राह वो सालों से देख रहे थे। कट्टर अगाड़ी जाति के लोगों के खतरों के बीच वो आखिर काम तो कर ही रहे थे। उनके पहले के लोग तो भाग ही गए थे। लोग उनको कहते ये हमारे धर्म को खत्म करना चाहता है। ये विदेशियों का एजेंट है। कुछ लोग कहते-पीट डालो इसे। पादरी को अपना दोस्त रॉबर्ट याद आ जाता जो शहर में पहले तो प्रीस्ट बना अब वो प्रधान प्रीस्ट है वो साइकल पर आया था और किराये के मकान में रहता था अब उसके पास कार है और वो स्वयं के बड़े मकान में रहता है। अब शायद उनके भी दिन बदलेंगे, अच्छे दिन आएंगे।
बड़े साहब आए। पादरी उनको बस्ती की ओर लेकर जाने लगे। वो जा ही रहे थे कि एक जगह से उद्धार के गीत गाने की आवाज आई। बड़े साहब और पादरी ने वहां झांककर देखा कुछ बच्चे झूमझूम कर गीत गा रहे थे। ये मेरी शिक्षा का परिणाम है, पादरी बोले। हां दिख रहा है तुम्हारा काम। तुमको प्रशंसा और बहुत कुछ मिलेगा। बड़े साहब खुश होकर बोले। तभी एक बच्चा बोला- एई, तुम सब उद्धार चाहती। सभी बच्चे एक स्वर में बोले-चाहती। हम तुमको कहानी सुनाती। सुनाई-सुनाई। तो सुनी...बच्चा पादरी की तरह बोलकर उनकी कहानियों का मजाक उड़ाने लगा। ये सब क्या हे? बड़े साहब को गुस्सा आ गया। ये ही तुम्हारी शिक्षा है। नहीं साहब वो तो..। अब बच्चा बोला- तुम हमारे साथ गीत गाई। हां गाई- बच्चे खिलखिलाकर हंस पड़े। अच्छा तो ये हो रहा है यहां हैं...नहीं साहब..हमारा धर्म का मजाक हो रही है- बड़े साहब को भी स्थानीय भाषा यानी हिंदी बोलने में दिक्कत हो रही थी। साहब वो तो बच्चे हैं यहां आइये जहां काम हुआ है। बड़े साहब आगे जाने लगे थे कि उन्होंने देखा नारंगी रंग का कुर्ता-पैजामा पहने एक आदमी कुछ दूर दीवार से टिककर अपनी गुप्ती से नेपथ्य में निशाना लगा रहा था। बड़े साहब घबरा गए और बोले- बाद में देख लेंगे। वापस चलो। पर साहब काम नहीं देखोगे तो ओहदा कैसे दोगे? ओहदा देख लिया तुम्हारी काम जहा (यहां)। वापस चलो। हम तुम्हारे ओहदे की कोई सिफारिश नहीं करेगी। बड़े साहब वापस पलट कर चले गए। कैरन सोचने लगे- ये सब आज ही और मेरे ही साथ क्यों होना था?

बुधवार, 3 जनवरी 2018

पूर्णा

पूर्णा ने यहां-वहां देखा, गली में कोई नहीं था और कालू के घर से जोर-जोर से बच्चे के रोने का आवाज आ रही थी। उसने निश्चित किया कि कोई गली में नहीं है और मौका पाकर कालू के घर में घुस गई। उसकी गोद में उसका बच्चा सो चुका था। कालू ने उसे देखा तो सकपका गया। वो बच्चे के रोने से परेशान था। पूर्णा उस पर ध्यान दिये बगैर अंदर चली गई और कुछ क्षणों में बच्चे के रोने की आवाज आनी बंद हो गई। कालू उठा और उसने अंदर देखा पूर्णा की गोद में उसका नवजात था जिसे वो अपना दूध पिला रही थी। कालू की ओर उसकी पीठ थी। कालू जानता था और ये हो भी रहा था कि पूर्णा के आंखों से आंसुओं का झरना भी बह रहा था। कालू बीती यादों में खो गया।
कुछ साल पहले- पूर्णा कालू के पास ही रहती थी। ये उम्र का उन्माद ही था कि कालू की नजरें पूर्णा को घूरने लगी। सांवली पर सुंदर नैन-नक्श वाली पूर्णा पर यौवन पूरे शबाब के साथ आ रहा था। गली में जब उसकी पायल की आवाज गूंजती तो कालू कहीं से भी उसे देखने आ ही जाता था। जब कभी उत्सव के समय वो चमकदार लाल घाघरा बेस पहन कर निकली तो कालू का दिल धड़क-धड़क कर अधमरा हो जाता। उस पर उसके घने काले बालों में गुंथा गजरा, आंखों का कजरा हाथों की मेहंदी या कि पैरों का महावर, उस पर उसकी चूडिय़ों की खनक -पायल की छनक। जब वो पैरों में मेहंदी लगाती तो महावर से उस पर कलाकारी कर देती। उसके आते-जाते हवाओं में घुलती गुलाब के सस्ते पाउडर की तेज महक। ये सब श्रृंगार कालू पर ऐसे हमला करते मानों एक बकरे पर कई भेडिय़ों ने हमला कर दिया हो। यहां तो बकरा खुद ही मर रहा था।
कालू ने मौका देखना शुरू कर दिया। वो यहां-वहां से उसे घूरता। एक दिन पूर्णा ने उसे देख लिया। वो उसे देखकर मुस्कुरायी। हंसी की फंसी। कालू ने एक दिन उसे अकेला पाकर कह दिया कि वो उससे शादी करना चाहता है। उससे ज्यादा खूबसूरत लड़की गली में तो क्या पूरी दुनिया में नहीं होगी। पूर्णा मुस्कायी। कालू का सब्र टूट गया और उसने उसे ओंष्ठबंधित चुम्बन कर ही डाला। एक ओंष्ठबंधित चुम्बन। पूर्णा फिर हंसी- मुंह झूठा कर दिया तूने। और तूने जो मेरा मुंह गंदा किया- कालू पलट कर बोला। जा...वो तो रस था। हाय अब कब? ब्याह ले फिर रोज पी- पूर्णा भाग गई। अब खेल खुला था। कालू मौका पाकर उसे यहां-वहां ले जाता, कभी गन्ने का रस पिलाता तो कभी पानीपूड़ी खिलाता जो पूर्णा को बहुत पसंद थी। फिर वसूली भी करता। पूर्णा बहाने बनाकर घर से निकलती और मुंह पर कपड़ा बांधकर कालू के साथ बाइक पर पीछे बैठकर यहां-वहां मौज मारती। कभी-कभी वो कपड़े भी बदल लेती जो कालू अपने घर से ले आता था ताकि कोई उसे पहचाने नहीं। ये प्यार का पागलपन था उन्माद था या वासना समझना मुश्किल है।
पर हुआ वहीं जो होता है-पूर्णा की शादी कहीं और हो गई और कालू की कहीं और। पूर्णा का पति शराबी था। उसे घर वालों ने घर से भगा दिया तो वो गली में ही एक खोली लेकर रहने लगा। पूर्णा घर-घर बर्तन मांजती। जो पैसे मिलते उससे घर चलता और पति की शराब भी। पैसे कम होते तो पति उसे मारता। जब गली इस हंगामें से गूंजती तो कालू का खून खौल उठता। गली में जब कभी वो आमने-सामने होते तो कालू पूर्णा से नजरे न मिला पाता। उसने कभी अपने आई-बापू को बताया ही नहीं था कि वो पूर्णा को चाहता है वर्ना पूर्णा के हाथों में उसके नाम की मेहंदी लगने से कौन रोक सकता था? कालू के माता-पिता को ये बात कालू की शादी के समय नहीं मालूम थी कि उसकी पत्नी के दिल में छेद था। वो बीमार ही रहती थी। शादी हो नहीं रही थी इस लिए झूठ बोलकर ये शादी करवाई गई। कालू के आई-बापू ने कहा कि ये शादी तोड़ दे पर तब तक उसकी पत्नी गर्भवती हो चुकी थी। कालू इतना अमानुष भी नहीं था। ये अद् भुत संयोग ही था कि एक ओर कालू की पत्नी तो वहीं दूसरी ओर पूर्णा भी गर्भवती हुई। कालू के यहां बच्चा हुआ, पर कोई खुशी नहीं थी क्योंकि उसकी पत्नी बीमार हो रही थी और वो चल बसी। अब बच्चा हो गया कालू के जिम्मे। जिसे नाम दिया गया सोनू। सोनू की जिम्मेदारी यूं तो आई सम्हाल लेती थी पर वो भी कालू की बहन का जापा (प्रसव ) करवाने गई है उम्र को देखते हुए बापू भी उनके साथ है। पूर्णा को भी बेटा हुआ पर यहां खुशी मनाता कौन? मां या शराबी पिता। ननिहाल में लड्डृ बंटे पर वो भी कम पड़ गए।
कालू यादों से बाहर आया। शिशु की क्षुधा का अनुभव पूर्णा कर सकती थी। अंतत: उसे चरम पर प्रतीत हुआ कि मानों वो इस देह से बाहर एक महान पूर्णता का प्राप्त कर चुकी है। बच्चे के सोने के बाद वो अपने बच्चे को लेकर बाहर जाने लगी तो कालू ने उसका हाथ पकड़ लिया। एक बार तुमको रोक न पाया पर आज तुम्हे रोकना चाहता हूं। इसलिए नहीं कि सोनू को मां चाहिए बल्कि इस लिए कि पहले मैं तुझे प्यार करता था पर अब तुझे पूजना चाहता हूं। छोड़ मुझे, एक बार गंवाया था तूने, अब भूल जा। मैं ब्याहता हूं। मेरा मर्द है और ये बच्चा भी है। वो हाथ छुड़ाकर चली गई।
उस रात बहुत तेज बरसात हुई। रात को चीखने-चिल्लाने की आवाज आई। कालू बाहर निकला। देखा तो पूर्णा के घर में हंगामा हो रहा था। वो वहां पहुंचा तो देखा पति उसे मार रहा था। बाहर कोई था ही नहीं। वो अंदर जा घुसा और उसके पति को दूर ढकेल दिया। पूर्णा चिल्लाई- जा यहां से, ये हमारा मामला है। पूर्णा के पति ने मौका देखा और कालू के हाथ में उस्तरा मारकर भाग निकला। कालू हाथ दबाकर जाने लगा तो पूर्णा ने उसे रोका पर वो घर आ गया। पीछे-पीछे पूर्णा अपने दूधमुंहे बच्चे को लेकर आई जो सो चुका था। उसने उसे वहां लेटाया। और साथ लाए कपड़े से कालू के हाथ पर पट्टी बांधी। इतने में सोनू उठ गया और रोने लगा। पूर्णा ने उसे गोद में लेटाया आंचल की आड़ कर वो उसे दूध पिलाने लगी। क्यों अपने आपको सजा दे रही है, अपने पति को छोड़कर यहां आजा, कालू ने पूर्णा से कहा। और लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे? तू उनकी परवाह करती है। तू क्या सोचेगा, क्या अबला समझकर अपनाएगा या तेरे बच्चे को मां चाहिए इसलिए या बिस्तर काट रहा है अकेले। नहीं... तू अब वो नहीं रही जिससे मुझे प्यार था। अब तू वो हो गई है जिसे मैं पूजता हूं। पाठकों को लग सकता है कि ये ऐसा मौका हो सकता है जब वो दोनों भावनाओं में बह जाएं। नैतिकता की हदें तोड़ दें पर ऐसा वास्तविक जीवन में होता नहीं है।
कालू नीचे झुका और पूर्णा के पैरों का चूम लिया। पूर्णा सकपका गई, उसकी पायल बज उठी। सोनू अब तक सो चुका था उसे वहां लेटाकर और अपने बच्चे को लेकर वो चली गई, बिना कुछ बोले।
दूसरे दिन एक आदमी दौड़ता हुआ गली में आया। उसने बताया कि पूर्णा के पति की लाश नाले में पड़ी है। पुलिस आई और कालू को उठाकर ले गई। पूर्णा का पति मर गया था पर उसकी आंखों में एक आंसू न था। बस वो चुप थी। कालू को थाने मे ं बिठा लिया। कालू को पता था कि अब पिटाई होगी। हालांकि उसने सारी बात पुलिस को बता दी थी पर पुलिस वो गुंडा गैंग है जिसे सरकारी लाइसेंस मिला है। किस मामले को दबाना है और किसे उठाना है। किसे छोडऩा है और किसे पीटना है या एनकाउंटर करना है उसे पता है और वो बेलगाम है।
थाने में बड़े साहब आए ये देखकर कालू को अपने जयजय दादा का नुस्खा याद आ गया। उसने पेंट में मूत्रत्याग कर दिया। ये देखकर बड़े साहब चिल्लाए- अरे इसे बाहर करो ये तो साला गंदा कर रहा है। सिपाही ने दो चांटे मारकर उसे निकाल दिया। वो बाहर आ गया और भूमिगत हो गया, उसे परिचित ने बता दिया कि आई और बापू लौट आए हैं। कालू सोनू की तरफ से निश्चिंत हो गया। शार्टपीएम रिपोर्ट में पता चला कि शराब पर ड्रग्स के हाईडोज से पूर्णा का पति मरा था। कालू अब लौटा और घर पहुंचा। आई ने बताया कि सोनू पूर्णा के पास है वो उसे अपना दूध पिलाती है देखभाल करती है और रात को यहां वापस दे जाती है। कालू पूर्णा के पास पहुंचा। पूर्णा वहां थी नहीं। पूछता-पाछता वो पूर्णा के पास पहुंचा। पूर्णा अब महिला सेवा नामक एनजीओ से जुड़ी थी। यहां वो सिलाई की ट्रेनिंग ले रही थी। कालू ने उससे मिन्नत की- अब क्यों विधवा का जीवन जी रही है। मैं तुझसे शादी करना चाहता हूं। तुझे सहारा देने के लिए नहीं बल्कि तेरी चेतना और श्रद्धा से अपना उद्धार करने के लिए। लोगों की नजर को पढ़। पूर्णा हल्का सा हंसी- कालू अब मैं अपना जीवन जीना चाहती हूं, मेरा नाम पूर्णा है पर पहले मैं पूर्ण नहीं थी। पहले तेरे प्यार ने मुझे को खुद को भुला दिया। पति ने जिंदगी का मोह खत्म कर दिया पर तेरे और मेरे शिशुओं ने मुझे नाम से ही नहीं मन और आत्मा से भी पूर्णा बनने को प्रेरित किया है। मैं नहीं कहती की शादी करूंगी या नहीं। तुझसे या किसी और से जो भाएगा पर अब मैं अपना जीवन जीना चाहती हूं । समाज का डर मुझे नहीं। गलत लोगों से निपटना मुझे आता है। तू मेरी चिंता मत कर अपनी जिंदगी बना। मैं तेरा इंतजार करूंगा, कालू ने चलते वक्त कहा। पूर्णा हमेशा की तरह केवल मुस्कुरायी।

कुएं का रहस्य

दोनों लापता दोस्तों का आज तक पता नहीं चला है। पर लोगों को आज भी उस सड़क पर जाने में डर लगता है। कुछ दुस्साहसियों ने वहां से गुजरने की कोशिश ...