मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

अथ गब्बर कथा:सीडी कांड पर गब्बर का क्षोभ और ठाकुर से संवाद

गब्बर लौट आया पर दिनभर वो डाकू गिरोह की तबाही के बारे में सोच-सोचकर परेशान हो जाता था। अब वसूली इतनी होती नहीं थी कि हिसाब-किताब रखा जाए। उसे परेशान देखकर जूनियर कालिया का दिल पसीज गया। वो एक सीडी लेकर उसके पास पहुंच गया। सरदार, आपके लिए ये आपके लिए है...इसमें क्या है रे...सरदार अभी-अभी आपके लिए लाया हूं बिलकुल एक्सक्लूसिव सीडी है...ये किस फिलम की सीडी है रे...सरदार ये फिलम की नहीं, ठाकुर की सीडी है...मतलब?...सरदार कुछ दिन पहले ठाकुर एक रात की नौटंकी पार्टी में गया था जहां उसने नचनिया की बांहों में बांहें डालकर नाच किया साथ ही खंबा नृत्य भी किया। खंबा नृत्य...ये क्या होता है कालिया...सरदार लड़की मेहबूबा की ड्रेसिंग में खंबा पकड़कर नाचती है, इसे पोल डांस कहा जाता है। पर कालिया ठाकुर तो हथकटा है...सरदार उसके हाथ फौलाद के है। अच्छा हुआ मैंने उसके हाथ काट दिए वर्ना वो न जाने क्या-क्या पाप करता। रुक जा कालिया, मैं अभी हथकटे ठाकुर की खबर लेता हूं। गब्बर ने बीएसएनएल के नेटवर्क से ठाकुर को फोन लगाया। ठाकुर शोले फिल्म देख रहा था और होली के गाने पर झूम रहा था। उसने फोन नहीं उठाया। जब गब्बर का गुस्सा खीज में बदल गया। तब ठाकुर को अहसास हुआ कि फोन बज रहा है। ठाकुर ने फोन उठाया। हैलो....ठाकुर स्पींकिंग
किंग हो कांग, सीडी बनाना बिलकुल है रांग....
कौन?
मैं हूं तेरी मौत।
मौत, कहीं तुम....
गब्बर बोल रहा हूं, तेरी सीडी मेरे पास पहुंच गई है हथकटे ठाकुर...
गब्बर वो सीडी फर्जी है, किसी ने मुझे बदनाम करने की कोशिश की है।
खामोश...तूने क्या सोचा था, देख फोन पर गाना बजने की आवाज आ रही है।
वो फिल्म चल रही है गब्बर... फिलम कौन सी?
शोले... शोले अब खोलेगी तेरी पोले, गब्बर बोले...अरे खामोश... तुझसे पहले भी बहुत सीडियां बनी और कई कांड हुए, बेणा और कंवरी, टांडा और इतिका कर्मा इन सबसे अलग लाघव जी और बाजकुमार।
गब्बर...राजनीति में ऐसा कीचड़ उछालना रोज की बात है।
ठाकुर तू कितनी भी बात कर ले पर तू संत की तरह सीधासाधा नहीं हो सकता। तू संत भी है तो बाबा कामकरीम की तरह जो फनीप्रीत से दिल लगा बैठा जो उसकी गोद ली बेटी थी।
गब्बर वो मेरी सीडी नहीं है, पर यदि होती तो भी तू मेरा क्या बिगाड़ लेगा? राजनीति में दो दिन बाद जनता सबकुछ भूल जाती है। घोटाला और स्केंडल।
पर अब जनता नहीं भूलेगी, नोटबंदी और जीएसटी...लोधीजी के हाथ से सत्ता वैसे ही जाएगी। जैसे हम तम्बाकू का कचरा झाड़ देते हैं। हथकटे ठाकुर अगर वो तेरी सीडी न हुई और क्लीनचिट मिल गई तो भी मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा। तेरी खटिया खड़ी कर दूंगा। समझ ले, आगे फ्यूचर में तरह-तरह की सीडियां आएंगी। तू खाना खाएगा तो सीडी, सोएगा तो सीडी, हंसेगा तो सीडी, रोएगा तो सीडी, यहां तक कि पाखाना।
गब्बर चुप करो। ठाकुर ने फोन काट दिया।
गब्बर ने फोन देखा और चिल्लाया- सीडी प्लेयर लाओ...हां।

मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

मौत से मुकाबला: भाग 1


हम सभी घबराए हुए थे। घबराएं भी क्यों नहीं हमारे चार साथी बीच समुद्र में हमारे छोटे से जहाज से गायब हो चुके थे वो भी बिना किसी सूचना के। अब जहाज पर खलासी के बतौर सिर्फ तीन लोग ही बचे थे मैं, एडम और जोनाथन। बाकी तीन हमारे मालिक जैसे थे, जहाज का और हमारा मालिक नेवल स्पार्ट, उसकी बेइंतहा खूबसूरत बेटी एंजिला और वो जिससे हमको सबसे ज्यादा डर लगता था, भगवान और शैतान से भी ज्यादा, बार्बरस बदनाम।
उस रात न जाने क्यों जहाज के मेन हॉल में कोई नहीं था। मौका देखकर जोनाथन एक चार्ट लेकर वहां आया। मैं और एडम जहाज के भविष्य और समुद्र के खूंखार मिजाज पर चर्चा कर रहे थे जो आज ज्यादा ही भयंकर लग रहा था। मानों हर लहर गा रही थी आओ मौत की बाहों में पुकारती तुमको आओ। हमें लग रहा था हमारे चारों साथी जो गायब थे हमको पुकार रहे थे और कह रहे थे आओ हमारे पास नर्क की गहराइयों में। जोनाथन से चार्ट बिछाया, आओ हम अपना भविष्य जानें। मैंने देखा वो एक प्लेन चैट का चार्ट था। समुद्र में आत्माएं धरती से सौगुना अधिक ताकतवर होती हैं। हे मजाक मत करो, एडम बोला। वो मेरी ही तरह परेशान था। नहीं यार तुम इसे मजाक ही मान लो पर एकबार मेरे साथ इस पर आत्मा को बुलाओ मुझे उससे कुछ पूछना है। मैं और एडम इस बात को पसंद नहीं कर रहे थे पर न जाने क्यों हम उसे साथ बैठ गए। शायद हमें आने वाली कयामत की खबर नहीं थी। हमनेे गोटी पर हाथ रखा। यहां एक आत्मा है...यहां एक आत्मा है....जोनाथन बुदबुदाया। हमने आंखें बंद कर रखी थीं। अचानक ऐसा लगा गोटी हमारी उंगली के नीचे नहीं है हमने आंखें खोलीं। गोटी चार्ट पर आ चुकी थी। हम चुप थे क्योंकि काम जोनाथन को था। फेथ..फेथ..फेथ आप यहां हैं? जोनाथन ने पूछा। गोटी यस पर टिक गई। जोनाथन ने विजेता की तरह हमारा मुंह देखा। फेथ..फेथ..फेथ आपका नाम। गोटी डी पर धीरे से जाकर रुकी और फिर ई, वी, आई और एल को तेजी से पार कर गई। जोनाथन ने हमारा मुंह देखा। आपका जन्म कब हुआ था फेथ..। गोटी एन पर धीरे से जाकर रुकी और फिर ई,वी,ई, आर को तेजी से पार कर गई फिर एक वाक्य उभरा नेवर डॉय नेवर बॉर्न। एक लहर ने पूरे समुद्र जहाज को कंपा दिया। आप कहां से आए हैं...डूम्स हेल। जोनाथन ने फीके और डर से पीले पड़े मुंह से मुझे और एडम को देखा। हम तीनों एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे। हमारे जहाज का भविष्य क्या है? जोनाथन ने बात बदलते हुए पूछा। चार्ट पर जो उभरा वो हमारे होश उड़ानेवाला था। डिस्ट्रक्शन..एंड...टोटल एपोक्लिप्स(विनाश..और..संपूर्ण महाविनाश)। हमारा भविष्य, जोनाथन का मुंह पीला पड़ चुका था। डेथ...ए डेथ वन नेवर एक्सपेक्ट टू बी हेप्पन....(मौत..एक ऐसी मौत जिसके बारेमें कोई सोच भी नहीं सकता)। जोनाथन एकदम खड़ा हो गया जो प्लेनचेट के नियम के बिलकुल विरुद्ध था। जोनाथन रुको, एडम चिल्लाया। जोनाथन भागा। उसके पीछे एडम और फिर मैं। एक भयंकर लहर आई और पूरा जहाज हिल उठा। हमें भयंकर रूप से गोलियां चलने की आवाज आई। हम तीनों बाहर निकलकर पीछे की ओर भागे। मैंने भागते हुए खिड़की से हॉल में देखा। एंजिला और बार्बरस बदनाम अब वहां थे। बार्बरस एंजिला की ओर बढ़ रहा था और वो पीछे जा रही थी। अब मैँ तुम्हे बताऊंगा कामुक कुतिया कि बारस, बार्बरस का छोटा नाम, क्या चीज है? मैं उसकी कोई मदद नहीं कर सकता था। हमें ये भी नहीं मालूम था कि नेवल कहां है? मैंने घबराकर एक हवा से भरा जीवनरक्षक गुब्बारा पकड़ा और अपने आप को समुद्र को सौंप दिया। दोस्तों इस छोटी सी कहानी को पढ़कर आपके मन उत्सुकता तो अवश्य ही जागी होगी। अगर आप जानना चाहते हैं कि ये पूरी रोमांचक कहानी क्या है? तो कमेंट्स के जरिये मुझे अवगत कराएं। मैं आपको पूरी कहानी सुनाऊंगा।

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो

मित्रों ये कहानी एक ऐसी सामाजिक बुराई पर आधारित है जो किसी की आँखों से छुपी नहीं है। ये कहानी एक कटु सत्य है। बेटी का जन्म, महिला की स्थिति और समाज में फैली सोच ने इस सत्यकथा को जन्म दिया। विक्रम प्रताप और सुंदरी को एक ऐसा जीवन मिला जो जीवन था या नहीं कोई नहीं कह सकता। ये दोनों कब पैदा हुए और कब इस दुनिया से कूच कर गए कोई नहीं जानता पर इनके जीवन ने जिन प्रश्नों को जन्म दिया वो आज भी इन्हें जन्म दे रहे हैं और कब तक जन्म देंगे कोई कह नहीं सकता। प्रस्तुत कहानी कई ज्वलंत प्रश्नों को हमारे सम्मुख उठाती है।
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ठकुराइन करीब सोलह साल बाद शहर से गांव जा रही थी। गांव में उनकी अपनी हवेली थी, खेत थे पर वो भी था जिसका साया सोलह साल से उन पर मंडरा रहा था। कार में बैठी ठकुराइन को याद आ रही थी सोलह पहले की एक तूफानी रात। एक रात जब कुछ ऐसा हुआ था, जिसका खौफ आज भी ठकुराइन को डरा देता था। ठकुराइन का नाम था विनीता। बीस साल पहले ठकुराइन ठाकुर श्याम सिंह की ब्याहता होकर गांव पहुंची। श्याम सिंह को देखकर ठकुराइन को न जाने कैसा डर लगता था। एक अज्ञात डर। ठाकुर के परिवार में थे पिता रामसिंह, मां बेला, दो ननदें राधा और कौशल्या, वैसे नियम से तीन और होतीं वो भी श्याम से बड़ीं पर वो भ्रूण हत्या का शिकार हो गईं। यही कहानी अब ठकुराइन के साथ बीतने वाली थी। हवेली में वो सभी से डरती थी। यहां सिर्फ मालिन दयावती से उसकी अच्छी घुटती थी। वो ही यहां उसकी एकमात्र सहेली थी। पहले साल ठकुराइन को बेटी पैदा हुई। सास बेला ने कह दिया कि माता आई हैं पर अब तो रामजी को आना होगा। दूसरे साल ठकुराइन को फिर बेटी ही पैदा हुई। पहले सास थी, जो वंश की बात करती थी पर अब ससुर भी गाहेबगाहे दूसरों की बहुओं की बात छेड़ देते जो लड़के पर लड़के पैदा कर रही थीं। लड़का पैदा करना था इसलिए मन्नतें हुईं, पूजाएं हुईं और वो सारे टोटके हुए जो हो सकते थे। इस बीच विनीता की ननदों की भी शादियां हो गईं। विनीता का दुर्भाग्य कहें या वक्त का खेल, ननदों को भी लड़के हुए। विनीता अब और डरने लगी। अब मालिन दयावती विनीता को समझाती कि भगवान पर भरोसा रखो सब अच्छा ही होगा। मालिन के पहले से एक बेटा था। विनीता का मन बहलाने को कभी-कभी दयावती उसे अपने पति और अपने अभिसार की बातें भी बता दिया करती थी कि कैसे कभी वो भीग जाती है कैसे तो बाबू जी (वो पति का नाम न लेकर उसे बाबूजी कहती थी) उसे कस कर पीछे से दबोच लेते हैं। कैसे उसे मिठाइयों नाम से संबोधित करते हैं और न जाने क्या-क्या जिसे विनीता ने कभी ध्यान से सुना ही नहीं।
तीसरे साल विनीता जब उम्मीद से हुई तो उसे डॉक्टर को दिखाया पता चला कि अब भी बेटी है तो गर्भ गिरा दिया गया। विनीता चुप रही पर इस खौफजदा चुप्पी में क्या था? कोई नहीं जानता। चौथे साल अजब संयोग था कि ससुर स्वर्ग सिधार गए और सास तीर्थ करने चली गईं। श्यामसिंह बंबई में था। इधर, विनीता और उधर दया दोनों उम्मीद से थीं। उधर, नियती का खेल था कि निश्चित दिन दया को एक बेटा हुआ और उसी शाम ठकुराइन फिर उसी दर्द से दो-चार हुई जिससे पिछले तीन बार से हो रही थी। वक्त नाजुक था और हवेली खाली थी। केवल विनीता और दयावती की मां जो दयावती के बच्चे को जन्म दिलवाने के लिए यहां आई हुई थी। उसने किसी तरह से दाई बनकर बच्चा पैदा करवाया। अब भी बेटी ही पैदा हुई थी। विनीता घबरा गई। दया की मां ने ये बात दया को बताई तो दया किसी तरह वहां पहुंची और अपना बेटा ठकुराइन को दे दिया और उसकी बेटी को अपना लिया। ये बात सिर्फ तीन लोगों के बीच रही विनीता, दया की मां, जो कुछ महीने बाद जन्नत नशीन हो गई और दया जो पन्ना दाई की तरह विनीता की नजरों में हो गई थी।
श्यामङ्क्षसह लौटा तो वंश का दीपक पाकर खुश हो गया। पूरा परिवार कुल देवी के मंदिर गया। जश्न हुआ और कुछ दिनों बाद विनीता शहर चली गई, दया को किए इस वादे के साथ कि दया का बेटा सुरक्षित रहेगा और इस वचन के साथ कि उसकी बेटी भी अच्छी रहेगी और इसकी शादी ठकुराइन वैसे ही करवाएगी जैसे ठाकुरों की होती है। विनीता ने श्यामसिंह से कहा कि वो दया की बेटी, जिसका नाम सुंदरी रखा गया था, की शिक्षा का जिम्मा उठाए क्योंकि वो उसकी सबसे करीब थी और उसकी दुआओं का असर है कि उसकी गोद में लालना खेल रहा है। श्याम ने वादा किया पर क्या सभी वादे पूरे होते हैं। एक दिन शहर में विनीता में पता चला कि गांव में बाढ़ आई और मालिन का घर बह गया। कोई जिंदा नहीं बचा, उस दिन विनीता के आंसू रोके न रुके। उसकी बेटी मर गई पर वो कहती तो किससे और कहती तो जो कयामत होती उसका अहसास ही उसे कंपा देता था। वक्त सबसे अच्छा मल्हम है और अब विनीता को मालिन को दिए वचन को पूरा करना था।
श्यामसिंह ने विनीता को गांव नहीं जाने दिया। आज वो बाहर गया था वो बिना किसी को कुछ बताए वहां आ गई। उसकी बेटी का क्या हाल है? उसे अब तक नहीं मालूम हां, उसका बेटा विजयप्रताप जरूर बड़ा हो गया है। उसकी दो बेटियां शादी के बंधन में बंध चुकी हैं। सबकुछ तो ठीक है पर वो विजयप्रताप को बिगडऩे से नहीं बचा पाई। विजयप्रताप को बुरी लतें थीं, हां पर एक बात जरूर अच्छी थी कि वो जो एक बार वचन दे देता था, उस पर कायम रहता था भले ही कयामत आ जाए।
गाड़ी हवेली पर रुकी विनीता अंदर पहुंची। अंदर देखा तो एक बहुत खूबसूरत सी लड़की झाड़ू बुहार रही थी। उसकी मांग भरी थी। विनीता का मन हुआ कि वो राजपुतानी और अनब्याही होती तो विक्रमप्रताप की दुल्हन बना लेती। ठकुराइन ने सबसे पहले उससे दया के बारे में पूछा तो वो बोली कि मांं अब दुनिया में नही ंहै। विनीता चौंकी- तुम्हारा नाम क्या है? सुंदरी। अरे, विनीता चौक गई। तेरा घर तो.....घर तो बह गया पर मैं ही बच गई। माई और भाई, बापू के साथ बह गए। तेरा ब्याह कब हुआ, किससे हुआ? वो कुछ न बोली। हवेली खाली थी। तभी अंदर से उनका पुराना नौकर कन्हैया निकाला और ठकुराइन को देखकर घबरा गया। कन्हैया जो कहूं सच बताना वर्ना बाहर लठैत हैं। विनीता यूं तो डरती थी पर कमजोर पर सब दबाव रखते हैं। इसका पति कौन है? विनीता को कुछ शंका हुई। ठकुराइन जान की अमान पाऊं तो कहूं। बोल। ठकुराइन ये आपकी सौतन है। सौतन। हां, ठाकुर करीब सालभर पहले यहां आए थे वो इस पर रीझ गए। वो तो इसे पतुरिया की तरह रखते हैं पर ये उनको पति मानकर उनके नाम की मांग भरती है और उनको अपना पति मानती है।
ठकुराइन बिना कुछ बोले शहर आ गई। कुछ दिन बाद श्यामसिंह वापस आ गया। उसी रात विनीता ने श्यामसिंहको गांव जाने की बात बताई तो वो नाराज हो गया और विनीता को दो-तीन तमाचे मार दिए। कुछ ज्यादा नशा चढ़ा तो बकर ही दिया, अरे उसकी क्या बात है? उसकी मां भी तो हमारी रखैली ही तो थी। अब ठकुराइन को अहसास हुआ कि क्यों उसकी बच्ची को दयावती ने अपनाया। उसके दिल की एक ख्वाहिश थी कि ठाकुर का नाम उसके बच्चे को मिले जो शायद उसकी ही संतान थे पर ऐसा न हो पाया तो उसने उसकी बेटी को अपनाया ठाकुर की संतान को ही उसके हवाले किया जिसे शायद ठाकुर का नाम मिलना ही नहीं था पर उसे वो सबकुछ मिला। अब उसके सामने सारी कहानी दर्पण की तरह साफ हो रही थी। दयावती श्यामसिंह को बाबूजी कहती थी और उसने एक बार सुना था तो वो अपने पति को ऐजी कहकर ही संबोधित करती थी। तो क्या बाबूजी यानी श्याम और उसकी अभिसार कथाएँ ही वो उसे सुनाती थी? श्याम ने ही उसे ........न-न जिसेे वो नीची जात मानते थे उसे शैया पर भोगने में क्या पाप नहीं लगेगा? जात-पात का भेद वासना के आगे शून्य है? एक बात और जो उसके मन में खटकी वो थी कि एक दिन श्याम ने विक्रम को गोद में लेकर कहा था तू तो मेरा लड्डू है। रसमलाई थोड़े ही है।
अगर विक्रम प्रताप श्यामसिंह की संतान है तो सुंदरी भी तो उसकी की संतान है। ये कैसा अनर्थ हो गया? इस पर श्यामसिंह ने अपनी ही बेटी को अपनी रखैल बनाया। उसे अपने साथ......हे भगवान ये कैसा पाप हो गया? पर क्या वास्तव में विक्रम श्याम और दयावती की अवैध संतान है? पूरी तरह से विचार कर भी विनीता किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी। अंतत: उसने सबकुछ कुलदेवी पर छोड़ दिया और सोते हुए श्यामसिंह को पुश्तैनी तलवार घोंप दी और रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली। एक सुसाइड नोट लिखा- मेरे नाम के और मालिन के सगे बेटे विक्रम , हवेली की मालकिन सुंदरी से ब्याह कर ठाकुर खानदान की इज्जत बचा ले। एक मालिन के बेटे से एक खालिस खून वाली ठकुराइन की फरियाद। पता नहीं कि तू भी कहीं तेरे पिता और मालिन की अवैध संतान तो नहीं है। इसके बाद उसने पूरी कहानी लिख डाली। विक्रम गांव गया और कन्हैया से पूरी बात पूछी। वो परेशान हो गया। पहले तो उसने सोचा कि सुंदरी की शादी शहर में किसी से करवा दे पर एक बात तो सुंदरी पढ़ी-लिखी थी नहीं ऊपर से वो सीधी-साधी भी थी ऐसी लड़कियों का अंजाम हो सकता था उसे सोचकर वो परेशान हो जाता था। अब मां का वचन था सो उसने सुंदरी से शादी तो की पर जिंदगीभर वो कुंआरों सा ही रहा और सबकुछ जानकर सुंदरी भी हमेशा भीतर-भीतर सुलगती रही। एक रखी हुई औरत और अब एक ऐसी ब्याहता जिसको कभी पति का प्यार ही न मिलने वाला हो अपनी जाई संतान का सुख की बात ही छोड़ दी जाए। वो अनमनी जिंदा मुर्दो की तरह रहती गाहे बगाहे उसके सूखे होंठों से एक गीत फूट पड़ता- अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो।

शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

अथ गब्बर कथा : गब्बर की वापसी और जीएसटी पर ठाकुर से सम्वाद

अजय श्रीवास्तव
जिस तरह से गरीब की वॉट लगने से कोई नहीं रोक सकता उसी तरह से कोई भी जेल गब्बर को कैद नहीं कर सकती। जेल के अंदर से गब्बर वैसे ही निकल भागा जैसे रामरहीम के गिरफ्तार होने पर हनीप्रीत भाग निकली थी। भागने से पहले गब्बर ने जेल से सेटिंग कर सांभा को फोन लगा दिया था। वो साइकल पर गब्बर को रिसीव करने जा पहुंचा और गब्बर को पीछे बिठाकर वो रामगढ़ की पहाडिय़ों पर ले आया। सांभा ने साइकल पर ही बता दिया था कि रामगढ़ अब बदल गया है। ट्रेन में बसंती से मिलकर वीरू का मन बदल गया और वो वापस लौट आया। वो आज भी कुत्ते का खून पीने की नित-नई कसमें खाता है। जय को मरने के बाद मुक्ति नहीं मिली। वो भूत बनकर ठाकुर के घर के आसपास मंडराता है। वो सिर्फ ठाकुर की बहू को ही दिखाई देता है और एक छाप के सिक्के पर टॉस लगाता है कि अच्छे दिन अब कभी नहीं आएंगे। ठाकुर अब रामगढ़ का सरकारी आदमी बन गया है और वीरू उसका दाहिना पैर। हाथ तो आज भी कटे हुए हैं। वो दोनों रामगढ़ में राजनीति करते हैं और सरकारी माल की अफरा-तफरी करके अपना-अपना घर भरते हैं। उसकी बहू के अरमान अभी भी जवान हैं। वो सोचती है कि अगर ठाकुर किसी तरह से मान जाए तो वो जय के भूत के साथ जोड़ी बना ले। इसके बाद वो फिर से होली खेलेगी और जब ठाकुर होली की सैर पर निकलेगा तो वो फिर से टांगे के पीछे दौड़ेगी और रसियाओं की भंग में रंग डालकर रंग में भंग कर देगी। बसंती के पैर आज भी घायल हैं पर पेट की खातिर वो धन्नो का टांगा तो हांक ही लेती है। उसकी मौसी आज भी वैसी है जैसी पहले थी। वो सोचती है कि बसंंती के पांव चंगे हो जाएं तो वीरू से उसके फेरे पड़वा दें। बसंती ने वीरू के लिवइन के ऑफर को नकार दिया और अभी वो चाची के साथ ही लिव इन में रह रही है। गब्बर की छाती पर राहुल गांधी के भाषण लोटने लगे। अब्दुल चाचा का एक भतीजा और उनके पास आकर रहने लगा है। चाचा का कहना है अपनी कंपनी में मौत तक प्रोडक्शन चालू रहता है मारो कितने मारने हैं हम दो हमारे दस है दस के सौ। उनके घर में अब सन्नाटा नहीं है। चाचा का भतीजा भी राजनीति करता है और अल्पसंख्यकों में सर्वेसर्वा है। चाचा के अरमान आज भी जवान हैं वो चाहते हैं कि अगर बसंती की चाची राजी हो जाए तो वो भी खानाआबादी (बहुतकुछ बर्बादी) कर डालें। हालत खराब है तो बस गब्बर की डाकू गैंग की। डाकूगीरी में कैरियर और ब्राइट फ्यूचर न पाकर नए डाकू आए नहीं और पुराने पेंशन की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं रहे तो जूनियर कालिया और पांच-सात जिनको कहीं जगह नहीं मिली। रामगढ़ पहुंचकर गब्बर अपनी चट्टान पर जा चढ़ा। सांभा डाकुओं को बुलाने चला गया ताकि गब्बर से सभी मिल लें। पुराने रो लें और नए (अगर हैं तो ) से उसका इंट्रोडकशन करवा दिया जाए ताकि वो उसे पहचानें और याद रखें। चट्टान पर बैठा गब्बर परेशान था तभी सांभा वहां आ पहुंचा और उसकी परेशानी और बढ़ा दी। सरदार, एक बुरी खबर है। सुना दे.....। सरदार ठाकुर ने रामगढ़ में जीएसटी लगा दिया है और अब हमको रसद जो पहले ही कम थी, वो भी नहीं मिल रही है। जीएसटी बोले तो.....गब्बर मुन्ना स्टाइल में बोला। जीएसटी बोले तो भाई गुड्स एंड सर्विस टैक्स। मतलब इसी को समझने अपने डाकू साथी मेहबूबा के डेरे पर लगी वर्कशॉप में गए हैं। वैसे सुना है कि जीएसटी से अपना धंधा बंद हो जाएगा। सांभा क्या हमको भी जीएसटी देना होगा? शायद हां सरदार। गब्बर परेशान हो गया। गब्बर थक गया था सो नहाने के बाद मध्यान्ह भोजन जैसी रोटी-सब्जी खाकर वो सो गया। शाम को उसने सांभा से कहा कि वो ठाकुर स ेउसकी फोन पर बात करवाए। सांभा ने बीएसएनएल नेटवर्क से ठाकुर को फोन मिलाया। जब गब्बर का गुस्सा खीज में बदलने लगा तब फोन लगा। दूसरी ओर ठाकुर वीरू के साथ जीएसटी पर वर्कशॉप में लोगों को जीएसटी के बारे में समझा रहा था हालांकि उसे खुद ये समझ में नहीं आ रहा था। ठाकुर ने कटे हुए हाथ से फोन उठाया- हैलो कौन हाहाहाहा.......... कौन, लोधी जी, आप हंसते रहिए मैं लोगों को समझा रहा हूं ठाकुर तेरे लोधी, के केश मेरे पंजे में हैं अरे ये कैसे हुआ? वो तो सबकुछ के शलैस करे रहे हैं। मैं गब्बर बोल रहा हूं.... गब्बर को दुनिया की कोई जेल कैद नहीं कर सकती। अरे गब्बर तुम, मैं समझा लोधी जी का फोन है। लुटेरा इब्राहिम लोधी हो या दलबदलू स्वामी......मैं इनका बाप हूं। गब्बर तुम तो कुआरे थे न, या मेहबूबा से ...... अरे खामोश......(सांभा का बैलेंस कम होने की बात समझते हुए बोला) मैंने तुझे इस लिए फोन किया है कि तुझे बता दूं मैं जीएसटी नहीं दूंगा। पहले मुझे जीएसटी समझ लेने दो फिर बात करते हैं। फोन मत रखना डूंडे ठाकुर, मैंने तुझे ये बताने के लिए फोन किया है कि मैं जीएसटी नहीं दूंगा बल्कि लूंगा। मतलब अब गब्बर वसूलेगा, जीएसटी यानी गब्बर सर्विस टैक्स। वीरू भड़क गया- कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा। अब गब्बर लौट आया है अपने कैरियर पर लगा दाग मिटाने के लिए, गब्बर सर्विस टैक्स। सारे रूल्स एण्ड रेग्यूलेशंस तैयार करता हूं फिर भेजता हूं। तभी फोन कट गया और आवाज आई- लाइन कटने वार्तालाप बाधित हो रहा है। सुधार कार्य प्रगति पर है। खेद के लिए क्षमा, धन्यवाद। गब्बर ने आश्चर्य से मोबाइल देखा और सांभा को ढूंढने चला गया।

कुएं का रहस्य

दोनों लापता दोस्तों का आज तक पता नहीं चला है। पर लोगों को आज भी उस सड़क पर जाने में डर लगता है। कुछ दुस्साहसियों ने वहां से गुजरने की कोशिश ...