सोमवार, 22 जनवरी 2018

एक खौफनाक अंजाम-1

दौलतखाने में नगाड़ा बजता, जनखे कमरें लचकाकर, बलखाकर नाच-नाचकर अधमरे हो जाते। जनानियों के गुलाबी होंठ रसगुल्ले खा-खाकर से चाशनीदार हो जाते। दादी इतनी खुश हो जातीं कि लंबी हो जाती और उनको पंखा झलना पड़ता पर......ऐसा कुछ नहीं हुआ।
आरिफ, (जैसा कि अम्मी ने नाम दिया, अब्बा उस दिन न जाने कहां झक मार रहे थे) की पैदाइश निहायत ही गरीबी में हुई। दौलतखाना भूतखाने सा हो चुका था। जनखे कब्रों में सो रहे थे और इस बात का इंतजार कर रहे थे कि न जाने कब फरिश्ता आएगा और इंसाफ होगा, किसने अपनी बिरादरी के साथ कितनी दगा की है, खुदा के आने का सवाल नहीं उठता क्योंकि वो अधूरे हैं, न मर्द न कमजात औरत। जनानियां भुखमरी और गरीबी के चलते बीमारियों से जूझ रही थीं और दादी इलाज से महरूम होकर मरहूम हो चुकी थी।
आरिफ की नानी ने सदके में दुअन्नी निकाली तो अम्मी ने उसके बताशे मंगाकर खुद ही खा लिए, यूं हुआ आरिफ की पैदाइश का जश्र। आरिफ कुछ बड़ा हुआ तो मदरसे में गया। यहां टीचर मोहतरमा तो आती नहीं थी पर यहां धर-पकड़ और क्रिकेट खेलकर वो अच्छा रनर और निशानेबाज बन गया। वो अपने दुश्मन बच्चों के घरों के शीशे तोड़ता और हाथ आने से पहले भाग निकलता। एक बार हकीमुद्दीन ने उससे शर्तलगाकर उस पर कुत्ता छोड़ दिया तो कुत्ता हांफ-हांफकर अधमरा हो गया पर आरिफ को धर न पाया। मां दुआ करती- मेरा बेटा अफसर हो जाए। पर देखकर लगता था कि वो कुछ बने न बने चोर जरूर बन जाएगा। उसकी शिकायतें घर पहुंचती तो अम्मी माफी मांग लेती या लोगों को दिखाने के लिए उसके कान खींच देतीं। इंसाफ भाई जान आरिफ की अम्मी सकीना के जवानी से आशिक थे। दीदार के लिए वो यूं ही शिकायत के बहाने से उनके दौलतखाने जो अब पुरानी रौनकों का जिन्न बन चुका था, पहुंच जाते। कम से कम यहां हिजाब के बाहर चांद तो दिख ही जाता था। हाय...कुछ कहना मुहाल है।
इनकी जवानी के किस्से तो तिलिस्मे होशरुबा हो जाते हैं इसलिए इस बारे में बात नहीं करेंगे। तो किस्सागोई हो रही है जनाब आरिफ के बारे में, चलिए- आरिफ सोलह का हुआ। अब तक वो बताए गए हाल के मुताबिक चोर बन गया था। हम किसी नजूमी से कम नहीं कभी आजमाइये तो सही!
तो जनाब आरिफ चोर बन गए। यहां-वहां के लोहा-लंगड़ और रेल-पेशाबघरों से टोंटिया चुराने से अब वो कुछ ऊपर उठ गए अब मोबाइल, पर्स वगैरह पर हाथ साफ कर लेते। किस्मत थी कि पकड़े नहीं जाते थे और गए भी तो कोतवाल अजीज मामला सलटा देते। कभी-कभी तो फरियादी को ही गुनाहगार बना देते कभी धमकाते और कभी-कभी कोतवाली के इतने चक्कर लगवाते कि फरियादी आजिज आकर शिकायत आगे न बढ़ाता। अब ये अजीज कौन है? अजीज आरिफ के मामा भी हैं और चाचा भी। अब कैसे? ये सब छोड़ दो। हां तो अब आरिफ के शेर के मुंह में चोरी का खून लगा तो बार-बार चोरियां होने लगीं। अजीज चाचा ने कह दिया कि अब बीट बदल सकती है। सेटिंग नहीं हो पा रही है क्योंकि नया अफसर अपनी नई सेटिंग जमा रहा है। पैसे ज्यादा भी मांग रहा है। बीट कभी भी बदल सकती है। बीस साल से तो यहीं बैठा हूं पर अब कभी भी दूसरे थाने हो सकता हूं। मेरे बाद पकड़ा गया तो खुद तो खंदक में पड़ेगा ही मेरे नौकरी भी जाएगी। आरिफ कान खुजाता और मटरगर्ती पर निकल जाता।
शहर में शाह बाबा का उर्स हो रहा था। आरिफ यहां जेबकटी के लिए आया था। कल ही दो मोबाइल चुराए थे। बिलकुल स्मार्ट। आरिफ शिकार ढूंढते-ढूंढते कव्वाली के मंच के सामने आ गया। भीड़ बहुत थी। उसके आगे एक लंबा-चौड़ा पठान खड़ा था। आरिफ ने सोचा अब इसका माल उड़ाएंगे। तभी कुछ अजब हुआ- अब होगा अपने ही शहर की मोहतरमा नूरजहां और लखनऊ के जनाब हनफी हसन जैदी की कव्वाली का जंगी मुकाबला। चिलम यानी भोंपू में से फटे गले की बेसुरी आवाज आई। आयोजकों ने पैसे दिए थे और कहा था कि बस बोलते जाना रुकना मत, लगातार चिल्ला-चिल्लाकर बोलते जाना। चिल्ला-चिल्लाकर बोलने वाले मियां जो बुजुर्ग दिख रहे थे का गलाफट गया था। अब कुछ ही देर में पेश होगा कव्वाली का अजीमोशान मोकाबला, अब खांसी आ गई। आरिफ कुछ करता उससे पहले ही मंच पर आ गई- कव्वाल नूरजहां। सफेद संगमरमरी चमकदार लांछा- हाथ जो मेहंदी की रंगत में खो चुके थे। गोरा, भरापूरा बदन। उफ, कयामत का इंसानी रूप थी वो । पठान ने तभी एक लौंडे को पकड़ लिया और चोरी के शक में बाहर ले जाकर जानवरों की तरह पीटा। इससे अफरातफरी का माहौल बना- मारडालो इसे। अरे कोतवाली ले चलो। पोलीस के हवाले कर दो। आरिफ ने समझा कि अगर वो नूरजहां को देखने में न लगता तो ये हाल उसका होता। वो नूरजहां का दीवाना सा हो गया। कोने में जाकर कुछ और लौंडों के साथ बैठ गया। खामोशीहोने पर कव्वाली शुरू हुई। इतने में एक बशीर चाय वाला बिल लेकर मंच के पास पहुंचा। किसी ने समझा कि फरमाइश है। उसने ये पर्ची कबूतर को दे दी। कबूतर एक मंद बुद्धि लड़का था जो अब मंच का संचालन करने को चिलम के पास बैठा था। वो चिल्लाया- बीस कट स्पेशल चाय, चालीस कट सादी चाय, तीस प्लेट पोहा खास वाला बीस प्लेट आम वाला। कुल जमा चारसौबीस में अन्नी कम। बाकी जमा-खर्च-भूल-चूक-लेनी-देनी ऐतबार चायवाला। एक आदमी दौड़ा- अरे अद्धी के लौंडे। वो बिल है-बिल। फरमाइश नहीं। आयोजकों को इससे पता चल गया कि उनके माल से नाश्ता डकारा गया है। जगह पर कुछ देर के लिए मजाक और छींटाकशी का समां बंध गया। अफरा-तफरी भी लगे हाथ हो गई। मोहतरमाएं तो हिजाब और दुपट्टों में मुंह छिपाकर मुस्की मारती नजर आईं।
कार्यक्रम तो निपट गया तो आरिफ मौका पाकर मंच के पीछे नूरजहां से मिलने चला गया। चलिये आपको नूरजहां से मिलवाएं। इस कव्वालन की उम्र उससे दो गुनी थी। आरिफ सोलह साल का था तो वो बत्तीस साल की भरीपूरी खातून। अपने जीवन में तीन बार तलाक झेल चुकी ये औरत दो बच्चों निसार और रुखसाना की मां थी। आरिफ मंच के पीछे पहुंचा और एक जगह तंबू में नूरजहां को पाकर अंदर घुस गया। तुम कौन? यहां आए कैसे? मोहतरमा रिसाइये (गुस्सा) मत मैंने आपकी आवाज सुनी और मुझे आपकी कव्वाली अच्छी लगी। मैं अपनी तरफ से आपको तोहफा देना चाहता हूं। ये लीजिए उसने सबसे बेशकीमती मोबाइल निकालकर उसे दे दिया। ये मोबाइल। चोरी का नहीं है-आरिफ झट से बोला। मेरा है। पर आपको तोहफे में देना चाहता हूं। नूरजहां ने फोन ले लिया। आपको मेरी आवाज अच्छी लगी। आपकी आवाज अलहदा बेहद अजीम है। शुक्रिया..आरिफ जाने लगा। जनाब...आरिफ...जी आरिफ आपका नंबर इसमें है...जी इसका नंबर इसमें है...उसने अपना मोबाइल दिखाया। नूरजहां मुस्कुराई। हाय..क्या कातिल अदा है? आरिफ ने सोचा। आरिफ देर रात घर लौटा तो देखा कि अम्मी बैठी राह देख रही है। बेटा आ खाना खा ले...आरिफ ने देखा अम्मी ने सिगड़ी सुलगाकर गर्म रोटियां बनाईं। गिलकी की सब्जी थी जिसमें उसके हिसाब का मसाला था। अम्मी मेरे लिए रुका न कर...फिक्र न किया कर...फिक्र न करूं, सोऊंगी चैन से पहले बहू ले आ...अम्मी वो भी आएगी और चाकरी बजाएगी...देखंूगी कहीं मैं न चाकर हो जाऊं। ऐसा न कह...चोटी खींचकर काम करवाऊंगा (हालांकि नूरजहां की चोटी तो आरिफ के फरिश्ते भी नहीं खींच सकते थे। वो ये जानता था पर मां का मन तो रखना ही बनता है।) देखें....अम्मी उठकर चली गईं। वो खाकर उठा ही था कि दरवाजा बजा। देखा तो अजीज चाचा थे। अबे कर्रमकल्ले कितनी बार कहा है कंट्रोल फेंक ले। तू माना नहीं, तूने जो महंगा मोबाइल चुराया था न, वो डीआईजी के रिश्तेदार का निकला। सीसीटीवी फुटेज निकलवाई हैं उसने, तू दिखा तो पिछवाड़ा खोल देंगे। मैं मरूंगा सो अलग। आरिफ कुछ न बोला। क्या हुआ चचा.. मैंने सिम बदल दी है... अबे सिम की सिमसिम, तीन दिन यहां मत फटकना मैं मामला दबाता हूं...और वो मोबाइल कहां है? वो गुम गया...अबे पाड़े की रान अब मुंह क्या देखता है। पहली गाड़ी पकड़ और उज्जैन वाली चाची के घर दफा हो जा। आरिफ जानता था वो मोबाइल नूरजहां के पास था। उसमें इंटरनेट भी है कहीं कोई ट्रैक न कर लें...बड़बड़ाते हुए चाचा मुड़े। हाय... आरिफ को तो नूरजहां का पता तक नहीं मालूम उसेे अभी फोन किया तो पोल खुल जाएगी। वो बाबा शाह से दुआ मांगता हुआ भाग निकला।
अम्मी को मालूम था कि आरिफ चोर है पर वो करता भी क्या? किसी भी नेक रास्ते से उसकी ख्वाहिशें कभी भी पूरी नहीं हो सकती थीं और वो सुनने वाला भी कहां था? खैर, तीन दिन बाद आरिफ वापस लौटा और शाम को तालाब किनारे नूरजहां को फोन लगाया। हलो बोलिये आरिफ मियां...आपको कैसे पता चला कि मैं हूं? अनजाने फोन पर अनजाना ही फोन कर सकता है। आपकी यही बात कायल करती है। मैं अनजाना, जाना हो सकता हूं। कैसे? एक बार मुलाकात कर लीजिए। भरोसा कर सकती हूं आप पर...दिल और रूह की सुनिये अगर आए तो बंदा छोटे तालाब के किनारे आपका इंतजार कर रहा है और दरिया पत्थरों से भर रहा है। आएंगी...सोचूंगी.. जल्दी आइएगा वर्ना तालाब बेचारा यूं ही सूख जाएगा। बड़ी दीवानगी है....आजमाकर तो देखिए मोहतरमा। अच्छा आई....। फोन कट गया और आरिफ का दिल धक-धक करने लगा। कुछ देर बाद नूरजहां वहां आई। गोरा गदराया बदन, चौड़ा चेहरा, गुलाबी भरेपूरे होंठ, पायजेब की छन-छन। मेहंदी के निशान उफ,। आदाब....उसने अदा से सलाम किया। आदाब... वो पास बैठ गई। जनाब आपका फोन कमाल था वो हम बच गए नेकी थी जो शाहबाज भाई के पास ले गए उसे और टै्रकिंग से बाहर करवाया। आप उन्हें जानती हैं....हां....ये भी जानती हूूं कि पूरे शहर के चोरी के मोबाइलों को ट्रेङ्क्षकग से वो ही बाहर करते हैं। आपके चोरी के मोबाइलों को भी...आरिफ शर्मा गया। मेरे दिल में कुछ अरमान हैं आपके लिए...बुरा ने मानें तो...कह दो कह दो मियां- वो खिलखिलाई। इस मियां की बीवी बनेंगीं....नूरजहां चुप रही। आरिफ ने मोबाइल निकाला और एक फिल्म उसे दिखाई। फिल्म में एक कमउम्र का लड़का पकी उम्र की औरत के साथ मोहब्बत कर रहा था और हमबिस्तर हो रहा था। अच्छा तो ये बात है। नहीं...नहीं...वो डरा। नूरजहां मजा लेने के मूड में थी। तो आप चाहते हैं कि...नहीं, आपसे निकाह करना चाहता हूं..ये तो इसलिए दिखाई कि आपको बता सकूं कि आपसे मुहब्बत करता हूं, कच्ची उम्र पकी उम्र को मोहब्बत नहीं देखती....क्या इस इकरार के बाद मुहब्बत कर सकता हूं। क्या चाहते हो...आपका हाथ चूमना चाहता हूं लो चूम लो। आरिफ नूरजहां के पास बैठकर उसके हाथों को चूमता रहा। उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ता रहा। देर शाम हो गई। अब नूरजहां ने उसका मुंह देखा...दूर तक कोई नहीं था। उसने आरिफ को चूम लिया और उसका मुंह सीने से लगा लिया। इत्र और उसके पसीने की गंध मादक हो रही थी। फिर वो उठकर जाने लगी। कल यहीं मिलोगी...नहीं...कहां? मुलतानी बाग में। वो कुछ तेजी से दौड़ गई। पायजेब बजती रही। आरिफ ने होंठों पर उसके हाठों की लाली को स्वाद पाया।
अब वो बार-बार यहां-वहां मिलने लगे। आरिफ बेकरारी में कभी लट हटाकरउसका माथा चूमता कभी पायजेब और पैर। उस के लबों पर एक ही बात थी...निकाह...निकाह और सिर्फ निकाह। जिंदगी में तीन पर तलाक के चांटे खाकर बर्बाद हुई नूरजहां के लिए ये ऐतबार करने का वक्त नहीं था। उससे उम्र में आधा नौजवान उसके लिए इतना दीवाना है। अगर हवस ही होती तो उस शाम तालाब पर वो अकेले थे। नूरजहां ने आरिफ को साफ बता दिया कि वो कव्वाली गाती थी कोई शक औ शुब्हा तो नहीं। निकाह के बाद बच्चे उनके साथ रहेंगे। आरिफ ने साफ कह दिया कि शक मोहब्बत में नहीं होता। बच्चे खुदा की देन...वैसे आगे भी होंगे ही...बाखुदा नूर अभी जवान है और आरिफ की शुरुआत ही है। उम्र मायने नहीं रखती, यूं तो आरिफ का इल्मो औ पढ़ाई से दूर तक का नाता नहीं था। पर उसे याद था कि मोहम्मद साहब और बादशाह अकबर की पहली पत्नियां उनसे उम्र में पड़ी थी। बाखुदा उनका घर तो खूब अच्छे से चला। नूरजहां आखिर राजी हो गई। ये दिन आरिफ के लिए यौमे आशुरा या मीठी ईद से कमतर नहीं था। नूरजहां का चांद आज उसकी जिंदगी के आसमान पर खिल रहा था। उसने रात को शेख साहब की नसीहतों से तौबा की और देसी कुत्ताछाप के जाम पिए। पर अब सबसे बड़ी मुश्किल थी। अम्मी को राजी करना। बालिगी कोई मामला नहीं है। आरिफ को सकीना चाची याद आईं। वो नूरजहां को लेकर उनके पास जा पहुंचा। खाला....तुम ही मदद कर सकती हो...अरे अहमक खुपडिय़ा उलट गई है क्या? कव्वालन से शादी करेगा। तेरा खानदान तो नवाबी है। नवाब....बह गए शराबीमूत में...तवायफों -लौडिंयो में दफन हो गया खानदान। तुमको अपना समझा था वर्ना इसे भगा ले जाऊंगा और जब उम्मीद से कर दूंगा तक लौटा लाऊंगा। फिर होगी खानदानी इज्जत। कैसी बात करता है...तुम तो औरतजात हो बात समझा करो....उससे बात न करो...बेगम है वो हमारी शरीकेहयात है....उसके साथ ही निकाह होगा वर्ना....हमारे नाते बिगड़ जाएंगे। नाते तो हम ही निबाहेंगे न....बालिगी....अरे पैदाइश के ही दस्तावेज नहीं हैं बालिगी क्या घास खाएगी? आप करवा दो वर्ना । अम्मी को पहले बता दें। हां बता दें और उनकी जान हलक में हो जाए...। काफी हुज्जत के बाद मामला ठहरा कि सारी जिम्मेदारी आरिफ की ही होगी। आरिफ तो तैयार ही था। बस, निकाह होना था।
निकाह के दिन आरिफ उठा और शनिश्चर के दिन दोबारा नहाया। अम्मी को हैरानी हुई कि आज फिर....फिर आरिफ ने अपने बदन पर सस्ता गुलाब का पाउडर मल डाला और केवड़े के इत्र से तो नहा ही लिया। फिर बाल बनाते हुए कमरे में दाखिल हुई अम्मी से पूछा कैसा लग रहा हूं। ठीक....पर आज ये सब....वक्त आने पर सब पता चल जाएगा। वो घर से निकला अपने एक दोस्त शकील बाबा और काजी नुसरत साहब को लेकर नूरजहां के घर जा पहुंचा। आरिफ ने नूरजहां से इल्तेजां की थी कि तू निकाह के वक्त वहीं सफेद लांछा पहनना जो उस दिन पहना था। जब तुझे पहली बार देखा था। पर नूरजहां ने इसके लिए पहले ही लाल लांछा तैयार करवा लिया था। उस पर तय हुआ था कि वो उसे रात को पहन ले। निकाह के दिन जब वो नूरजहां के घर पहुंचा तो उसके सभी नातेदार वहां इकट्ठा थे जो गर्दिशी में झांकने तक नहीं आए दावत उड़ाने घुस आए। काजी के कहने पर दो खूबसूरत लड़कियों ने पर्दा पकड़ा दूसरी ओर से नूरजहां आई। उस झीने पर्दा से दोनों ने एक दूसरे को देखा। काजी ने नूरजहां को देखा तो होश उड़ गए। ये लड़का इस औरत से निकाह कर रहा है। अजीब बात है। निकाह हुआ और आरिफ दो दिन तक अपनी ही शरीकेहयात के घर में जन्नत की सैर करता रहा फिर जब नूरजहां ने दबाव डाला तो वो उसको बच्चों के साथ अपने घर ले गया। अम्मी ने देखा हाय! ये क्या हो गया। अब्बू ने देखा पर वो शांत रहे। वहीं नौटंकी हुई जिसका डर था। अम्मी बेहोश हो गईं। खाट पर लेटाया, पानी, छींटा, पंखा झला। बेटा ये क्या कर डाला? अरे सब अच्छा है। नूरजहां सी बहू तुझे न मिलेगी। ये तेरी न सिर्फ खिदमत करेंगी बल्कि खानदान को आगे भी बढ़ाएंगी। सलाम....ठीक है।
नूरजहां और आरिफ एक हो गए। नूरजहां ने अपने पास रखे पैसों से रेडीमेड का छोटा व्यवसाय शुरू किया। जिसे आरिफ संभालने लगा। नूरजहां को वो मुहब्बत मिली जिसकी ख्वाबों में भी ख्वाहिश नहीं थी। वो बाबा शाह की दरगाह पर जाती मन्नते मांगती। बाबा तूने खुशियों से मेरी झोली भर दी। मेरे शौहर को नूर बख्शना। जब नूरजहां खाना बनाती तो आरिफ पीछे से जाकर उसे पकड़ लेता उसके हाथ बड़ी मुश्किल से उसे भर पाते। नूरजहां छोड़ देने की गुजारिश करती पर दिल से यही चाहती कि वो उसे प्यार करे...बस प्यार करे। उसकी छोटी बच्ची वहां घुस आती और देखती ये लड़का उसकी मां के साथ क्या कर रहा है....इनको अब्बू बोलो...बच्ची देखती पर कुछ न कहती और यदि उसने उसे कभी पुकारा भी तो बब्बू के नाम से। नूरजहां और आरिफ की मोहब्बत दिन-दूनी और चौगुनी बढ़ती जा रही थी पर मोहब्बत में अंधे इस जोड़े को ये नहीं पता था कि तूफान आने से पहले हमेशा खामोशी छाई रहती है।

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