शनिवार, 27 जनवरी 2018

एक खौफनाक अंजाम-2

आरिफ ने अपनी उम्र से बड़ी नूरजहां के साथ निकाह कर लिया और एक कपड़ों का छोटा सा कारोबार भी डाल लिया। आरिफ की मोहब्बत ने नूरजहां को पूरा कर दिया था। आरिफ रोज जब भी घर लौटता नूरजहां के लिए कुछ न कुछ लेकर ही लौटता, कभी पायजेब, कभी चूड़ियां, पायजेब और चूड़ियों के तो उसने पूरे सेट ही बना लिये थे। कभी वो उसे होंठलाली लाकर देता तो कभी मखमली नर्म पैरों के लिए चमकदार जूतियां, जब वो कुछ न ला पाता तो गजरा ही उठा लाता। महीने-पंद्रह दिन में वो एक लांछा या सूट तो उसे लाकर दे ही देता। भारी चमक और सलमा-सितारों से सजा। ऐसा लिबास न ला पाता तो इतनी सिलाई तो उसने सीख ही ली थी कि वो उसे खुद ही सिलकर जड़ाऊ बना देता। मिठाई की चाशनी से तो उसके गुलाबी होंठ रोज भीगते थे। उफ, ये मोहब्बत नूरजहां को कही ले न डूबे।
आरिफ नूरजहां के पैरों को चूमता और पाकीजा का रटा-रटाया डॉयलॉग बोलता। नूरजहां रोमांटिक अंदाज में कहती- जनाब आरिफ साहब इतनी मोहब्बत न दीजिए। कहीं हम सम्हाल न पाए तो? मत सम्हाल मेरी गुलबदन बस यूं ही अपने हुस्नो नूर की रहमत बरकरार रख मेरी तो खुदा भी तू करम भी तू। तौबा... ऐसा मत कहो...अरे मेरी रसमलाई खुदा के पास तो हजारों हूर हैं पर तुझसा तो उसके पास भी न होगा...मैं तो खुदा से भी ऊपर हो गया हूं। नूरजहां निहाल हो जाती। आरिफ का मजहब उसकी सुविधा के अनुसार था। नूरजहां ने ही उसे शुक्रवार के शुक्रवार नमाज के लिए भेजना शुरू किया। रोजे रखवाए और दरगाह ले गई। पर आरिफ कामचलाऊ कायदे मानता बाकी शेख साहब की नसीहतों से बगावत तो वो हर दिन ही कर देता था।
नूरजहां निकाह के डेढ़ महीने में ही उम्मीद से हो गई। उसने एक लड़के को जन्म दिया। जिसे नाम दिया माहताब। जब नूरजहां आंचल डालकर उसे दूध पिलाती तो आरिफ को वो बेहद उत्तेजक लगती। वो मुस्कुराती। वक्त गुजरता गया...गुजरता गया। आरिफ ने दिमाग लगाकर कारोबार को बढ़ा लिया। पुराने मकान को नया सा कर दिया। दो-तीन लड़के नौकरी पर रख लिए। नूरजहां अब आरिफ के तीन बच्चों की मां बन चुकी थी। डॉ. आदिल ने कह दिया था कि अब ये मां बनी तो मर जाएगी। उसकी उम्र पचासा पूरा कर रही थी। अब ऑपरेशन के जरिये उसकी मां बन जाने की फिक्र दूर कर दी।
नूरजहां से यूं तो कभी आरिफ ने पूछा नहीं पर उसने उससे कभी अपनी जिंदगी छिपाई नहीं। वो गायक इसलिए थी की उसकी मां ठुमरी बहुत अच्छी गाती थी। उसका नाम था राधा। जो कि बनारस के पंडित परिवार से थी। बदकिस्मती से गरीबी आई। वो जो कृष्ण भजन गाती थी, पैसे के लिए न पकड़हु राजा... गाने को विवश हो गई। अपनों ने ही बदनाम किया। किसी ने उसका हाथ न थामा। लोगों को उसकी ठुमरी में उतना रस न आता जितना उसके रूप रस का पान करने में। उसकी प्रशंसा सभी हिन्दुओं ने की शायद उसे भोगा भी हो पर किसी ने उससे शादी नहीं की। उसको हमसफर मिला हसन कव्वाल के रूप में वो उसकी तीसरी पत्नी बनी और.....भरे गले से अब नूरजहां कुछ न बोल पाती। उसका शादियाना जिंदगी भी दोजख से कमतर न रही। गरीबी के चलते वो भी गाने के कारोबार में उतरी। बदनाम हुई। बड़ी मुश्किल से दहेज देकर शादी हुई।
उसका पहला पति शब्बीर एक कार मैकेनिक था। वो सिर्फ और सिर्फ शौहर ही रहा और निकाह के दस महीने बाद हादसे में मर गया और मरते-मरते उसे तलाक दे गया। ताकि वो विधवा न कहलाए या कि उसकी मिल्कियत में हिस्सा न मांग पाए, जो एक भुतहा मकान और कुछ पीतल के बर्तन थे। ये बाद में उसका देवर हड़प गया। साथ ही उसका दहेज भी।
दूसरा शौहर सलीम शराब पीता, उसे मारता-पीटता, गालियां देता। रुखसार पैदा हुई तो वो नाराज हो गया और तलाक दे मारा। यहां भी उसे कुछ न मिला। तीसरा शौहर वसीम वहशी था और उसे ही नहीं उसके ही परिवार की किसी औरत को नहीं छोड़ता था। एक रात उसने उसे कव्वाली न गाने को कहा। वो पैसे कमाता न था दूधमुंहे निसार और रुखसार की परवरिश कैसे होती? वो कव्ववाली गाने गई और लौटी तो तलाक मिला। मेहर के चंद रुपए भी उसे पूरे न मिले।
वो दुःखी होकर रोती तो आरिफ उसे सीने से लगा लेता। तुम तो कभी ऐसा नहीं करोगे न....कसम है खुदाए पाक की...कभी नहीं।
निसार अपने मामा के घर अलीगढ़ में पढ़ रहा था रुखसाना की तालीम हिसाब की हो चुकी थी और अब वो घर का काम सीख रही थी। पहचान के कादरी साहब की बहन मदरसा खोलने के लिए जुगाड़ लगा रही थी और उसमें उसे नौकरी देने की बात कही थी। टीचर बतौर। पढ़ाई-लिखाई की सब जगह जरूरत नहीं होती।
माहताब, के बाद परीना और अदा दो बेटियों को नूरजहां ने जन्म दिया। ये स्कूल में पढ़ रहे थे। एक दिन आरिफ घर में बैठा आराम फरमा रहा था कि रुखसाना सामने आ गई और खूंटे से कपड़े और हिजाब उतारने लगी। वो पैर से ऊंची हो रही थी। आरिफ की निगाह उस पर पड़ी। पैरों में पतली पायजेब, खूबसूरती से गठा बदन, जिस्मानी जीनत तो उसे नूरजहां से विरासत में मिली ही थी। वो उसे देखता रह गया। क्या कयामत है? आरिफ की निगाह उसे गड़ी तो उसने उसे देखकर मुस्कान भरी। हाय, ये तो नूरजहां से कमतर कातिल नहीं है। अरे रुखसार...जल्दी आ....आपा के यहां जाना है या नहीं। रुखसाना दौड़ गई। उसकी पायजेब के घुंघरुओं की आवाज उसके कानों में बजती गई...बजती गई...बजती....।
दूसरे दिन आरिफ को नूरजहां पूरे परिवार के साथ तकरीर में ले गई। तकरीर में आमिल साहब ने फरमाया- अपने से बड़ों की बात माननी चाहिए।
आरिफ रात को जब नूरजहां को बाहों में भरता तो उसे रुखसाना की याद आती। वो उसे रुखसाना समझकर ही प्यार करता। उसके दिल में आग जलने लगी, पर उसे अंजाम का डर सताता था।
एक दिन आरिफ घर में बैठा था। तभी नूरजहां ने रुखसाना को शक्कर लेने नादिया दीदी की दुकान पर भेजा। पता नहीं क्यों आरिफ भी पीछे निकला और दोस्त बाबा खान के घर की ओर चला। रुखसार कुछ आगे थी और आरिफ पीछे तभी उसने दिखा कि रुखसार एक बेहद संकरी गली में घुस गई। वो रुका और चुपचाप से अंदर झांका। वहां एक उसकी उम्र से कुछ बड़ा लड़का या कहो आदमी उसके साथ था। वो उसे दीवार से लगा चूम रहा था। जावेद...जावेद छोड़ो...देखों मैं आ गई। ऐसा मत करो, दुख रहा है। अरे...उफ, उम...हुम - वो दिलकश ढंग से बोली। मानों उसकी ना में भी हां हो। आरिफ पलट कर चला गया। आरिफ जावेद को जनता था। अगले दिन नूरजहां पड़ोस में गई थी रुखसार और आरिफ घर में अकेले थे। रुख...जरा इधर आना...जी...मेरे पैर दबा दोगी। जी...वो पैर दबाने लगी। बेदुपट्टा बैठी रुखसार का नक्शा उसकी आंखों में उतर रहा था। वो ये बात समझकर झेंप रही थी। तुम्हारा जिस्म पूरी तरह से मेरी खिदमत में नहीं है। जी....हाथ तो खिदमत कर रहे हैं पर ये जुल्फ, ये होंठ,। जी ....वो हड़बड़ा गई। ये जावेद कौन है? अब वो डर गई। बब्बू वो...वो... जावेद गुंडा है दो बीवियों को शौहर है, पांच औलादें..अगर ये बात अम्मी को...नहीं...नहीं...तो मेरे करीब आओ। वैसे भी याद है आमिल साहब ने क्या फरमाया था- अपने से बड़ों की बात माननी चाहिए। आओ और करीब। रुखसार को आरिफ ने बाहों में भर लिया और वो कुछ न बोली। ये सबकुछ एक खुला पर हिजाब से ढंका खेल था।
दूसरे दिन रुखसार अमीना चाची के घर जाने के लिए निकली ही थी कि वहीं गली में जावेद ने सुनसान देख उसे संकरी गली में खींच लिया। आ...मेरी परी मेहजबीं। रुखसार फूट-फूट कर रोने लगी। पूरी कहानी बताई। अच्छा तो ये बात है?
ये जुमे की शाम थी। आरिफ कुछ दोस्तों के साथ नमाज पढ़कर निकला ही था। वो गली में जा रहा था और उसके दोस्त उससे दावत देने की बात कहकर मजाक कर रहे थे तभी जावेद वहां आया और चाकू उसके पेट में घोंप दिया। आरिफ कुछ समझ पाता उससे पहले ही उसका सफेद कुर्ता खून से लाल हो गया। हरामी अपने बेटी को बेआबरू किया तूने। आरिफ कुछ बोल न पाया। लडख़ड़ता वो वहीं गिर पड़ा। भगदड़ मच गई।
पुलिस आई और छिपता जावेद पकड़ा गया। उसने बयान में सारी बात कह डाली। ऑफिसर करीम यूं तो मामले को रफादफा कर देते पर रुखसार पर उसकी नियत खराब हो गई। उसने उसे आरोपी बनाने की धमकी दी और डरी रुखसार उस 55 साल के बुजुर्ग की दूसरी शरीकेहयात हो गई। मामला दबाया गया पर बात लोगों की जुबां पर आ गई। नूरजहां को सदमा बैठ गया। परिवार की बेहद बनामी हुई। आखिर में वो घर बेचकर अलीगढ़ चले गए, हत्यारा जावेद जेल गया और रुखसार करीम के बिस्तर पर, इस तरह इस कहानी ने अपने खौफनाक अंजाम को पा लिया।

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