गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

अथ गब्बर कथा: एकांत से व्यथित गब्बर का सांभा से संवाद

गब्बर रात को सो रहा था कि उसे हंसने की आवाज आई। उसने उठकर देखा तो उसे ठाकुर, वीरू, बसंती, जय के अक्स उस पर हंसते हुए नजर आए। हमेशा उदास रहने वाली ठाकुर की बहू जिसका नाम प्रचलित नाम उदासी हो गया था, भी उसे देखकर खिलखिलाकर हंस रही थी। गब्बर चाहता था कि पास में रखा कोई बर्तन उनको फेंककर मार दे पर मुफलिसी की मार थी कि उसके पास वहां कुछ भी नहीं था। कुछ पल हंस कर अक्स गायब हो गए। गब्बर के बदन में आग लगने लगी जैसी आग आडवाणी के बदन में लग रही थी। वो उठा और काली मंदिर में जा पहुंचा, उसने मंदिर के कपाट बंद कर लिए और तीन दिन तक भूखा-प्यासा मंदिर में बैठकर चिंतन करता रहा। उसे आशा थी कि वो जब दरवाजा खोलेगा तो परेशान डाकू उसे घेर लेंगे। हालचाल पूछेंगे। तीन दिन बाद जब वो दरवाजा खोलकर बाहर आया तो देखा कि वहां कोई नहीं था सिवाये सांभा के। क्या हुआ सरदार...कुछ नहीं सांभा....अगर सोचते हो कि बाकी हालचाल पूछने आएंगे तो भूल जाओ, तुम्हारी हालत वोटवाणी जी जैसी हो गई है। मैं, जूनियर कालिया जैसे कुछ सिम्हा है जो तुम्हें पूछ रहे है। सिम्हा-नरसिम्हा, बात समझ में नहीं आई सांभा.....सरदार सुनो तुम्हारा मन बहलाने के लिए तुमको कुछ बताता हूं...क्या सांभा? लोधी जी से वैर लेने वाले नरसिम्हों की टीम के बलवंत सिम्हा ने पहले ही बगावत कर रखी थी, अब उसने नई पार्टी बना ली है और लोधी जी की पीठ में छुरा मार दिया है। वो इस बात से नाराज था कि लोधी के इशारे पर मित्रघन सिम्हा का शौचालय तोड़ दिया गया। मित्रघन ने भी कह दिया है कि एक-एक हथौड़ा, जुगाड़ू पार्टी के ताबूत में एक-एक कील साबित होगा। सांभा लोधी जी तो कभी शौचालय के समर्थक हुआ करते थे और जुगाड़ू तो? हां सरदार पर मौका है। हुआ ये कि मित्रघन और बलवंत के गुरु बालकृष्ण वोटवाणी ने जुगाड़ूओं के लिए खूब वोट कबाड़े। हर बार जब भी जरूरत पड़ी। रामगढ़ से सुदूर यात्रा निकाली। रामगढ़ में अब्दुल चाचा की निजामी इमारत भी गिरा दी पर जब मौका आया तो निहारी जी को मौका दिया गया उसके बाद लोधी ने मक्खन का गोला झपट लिया। वोटवाणी जी का दर्द तो निकलना ही था। मौका देकर गुमनाम सरकारी टैक्स यानी जीएसटी पर बलवंत बाबा से हंगामा करवाया और....समझ गया सांभा...
हथकटा ठाकुर इस मामले में क्या सोचता है सांभा...सरदार ठाकुर उगते को प्रणाम कर लोधी के साथ है...कभी रामगढ़ यात्रा में वोटवाणी के साथ रहा ठाकुर अब लोधी जी के साथ देश-विदेश घूम रहा है सुना है कि वो मंत्री पंप की पुत्री की उम्र की पत्नी से नैन लड़ाने की कोशिश कर रहा है। वो कहता है कि लोधी को अपनी स्मृति से प्रिय कुछ नहीं है मैं उसी पथ में हूं।
ठहर सांभा उसकी खबर लेता हूं।
गब्बर ने ठाकुर को फोन लगाया।
ठाकुर ने कटे हाथ से फोन उठाया। हलो....शौचालय तोड़कर खुश हो रहा है....शौचालय नहीं अभी हम वॉल तोड़ रहे हैं। तुम कौन? गब्बर...कहो गब्बर हाल-चाल ठीक हैं न...हाल ठीक है चाल यहां आकर देख...कैसे फोन किया....मैं तुझे बताना चाहता हूं मैं वोटवाणी को उसका अधिकार दिलवाकर रहूंगा। हां.... हमने वोटवाणी को उसका हक दिया है...अब उनकी उम्र नहीं है कि वो सत्ता का जोखिम लें...अच्छा बाद में बात करते है....फोन कट गया। सांभा...कहो सरदार...हमें क्या करना चाहिए सांभा...सरदार सुना है कि लोधी जी वोटिंग मशीनों में सेंध लगा रहे हैं, अपना भला भी ऐसे ही होगा....कैसे सांभा? सुनों एक गीत सुनो...
ये ईवीएम अगर फिर से बिगड़ जाए तो अच्छा अपनी पार्टी की तकदीर संवर जाए तो अच्छा जिस तरह से पहले भी अपने पक्ष गई है फिर से उसी राह पे गुजर जाए तो अच्छा वोटर की निगाहों में बुरा-क्या है भला क्या गब्बर के दिल से ये बोझ उतर जाए तो अच्छा वैसे तो इसी ने आंधी को बर्बाद किया है इल्जाम किसी वाल पे आ जाए तो अच्छा
वाह! सांभा तू तो राजकुमार हो गया रे। सरदार दुआ करो कि अपने को राघव जी न मिले। जेल बाहर आने के बाद गब्बर पहली बार हंसा। दोनों हंसते हुए चट्टानों में गुम हो गए।

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