शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

बिंदा का सहारा

(ये कहानी जिस सामाजिक वर्ग से संबंध रखती है। उसी की भाषा और मनोभावों का प्रकट करती है। ये मनोभाव आपके हिसाब से निम्र और घटिया हो सकते हैं पर ये किसी की मानसिकता का आधार हैं। )
गली में रहती थी बिंदा, इसका नाम वृंदा था पर न जाने क्यों? यही नाम प्रचलन में आ गया। अनिल और सुनील की मंझली सहोदरी थी बिंदा। जाति से पिछड़े वर्ग से संबंध रखने वाली बिंदा की कहानी बहुत अजीब थी। सामाजिक ढांचे में निम्र मध्यम वर्ग में आता था बिंदा का परिवार। गहरे सांवले रंग की लंबी-चौड़ी बिंदा बचपन से ही चिड़चिड़ी और झगड़ालू किस्म की लड़की थी। साथ ही उसकी आवाज बेहद कर्कश थी। अम्मा चिंता करतीं- न जाने इसे कौन ब्याहेगा? नहीं करनी मुझे शादी, तेरी छाती पर मूंग दलूंगी हां, ये होता था जवाब। कुछ सालों पहले बड़े भाई सुनील की शादी हुई। उसी मंडप में बिंदा के फेरे भी पड़वा दिए एक ही दावत में दोनों परिवार जीम गए।
बिंदा विदा होकर ससुराल पहुंची। दो-तीन दिन तक रिश्तेदारों से घिरी रही। चौथे दिन रिश्तेदार विदा हुए तो रात को बिंदा का दूल्हा बड़े अरमानों से बिंदा के पास पहुंचा। उसने इस दिन के लिए न जाने कितने सपने संजोए थे। फिल्मों में देखी सुहागरात आज खुद की जिंदगी में आ गई थी। वाह, दूल्हा दिनेश जिंदगी में देखे सारे रोमांटिक दृश्यों और मन लुभाने वाली कामुक बातों को लेक र बिंदा के पास पहुंचा पर बिंदा... वो तो न जाने किस मनोभाव में थी। हाथ पकड़ते ही बिफर गई.. दूर हटो सोने दो..तीन दिन से रिश्तेदारों ने परेशान कर दिया था। ऊपर से तेरे बुढ़वा-बुढ़वी, बहुरी ये बना बहुरी वो बना। हट। वो लेट गई। उसने लाल गंदाला सा लाल सूट पहन रखा था। मेहंदी और लाल चूडिय़ों से सजे सांवले हाथोंं ने दिनेश का खुमारी में ला दिया था। उन्हें ने चूम पाया तो क्या मेहंदी और पायल से सजे ये पैर क्या कम हैं? ये खुमार ही कुछ ऐसा था। बिंदा का भरापूरा बदन जैसे उसे आमंत्रण दे रहा था। हाथों से ढंकी उसकी आंखें। फूले-फूले गाल, गदराया वक्ष। दिनेश ने बिंदा के पैरों को देखा। मेहंदी आकर्षक नहीं थी पर दिनेश उसे आकर्षक मानना चाहता था। उसके सांवले मोटे पैरों में पहनी मोटी पायल। उसने भावों में भरकर पैरों का एक चुम्बन लिया पर बिंदा को उससे कोई मतलब नहीं था उसने तो और जोर से पैर उठाया। दिनेश के मुंह पर जोरदार लात लगी। अब दिनेश का मूड बिगड़ गया और वो बिंदा पर जोर आजमाने लगा। उसके पैरों पर बैठकर अपने हाथों से उसके दोनों हाथ दबा दिए- कब से प्यार से समझा रहा हूं। तू समझती नहीं है। पत्नी है तू मेरी...तुझे प्यार करना हक है मेरा...तू चाहे न चाहे वो बाद में पर मेरे प्यार का ऐसा जवाब ठीक नहीं है। आज तो मैं अपना हक पाकर रहूंगा। तेरा मर्द हूं मैं औरत है तू मेरी। सिंदूर भरा है तेरी मांग में मैने, मंगलसूत्र डाला है। तेरा सिंगार सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए है। तुझे पेट से करना मर्दानगी है मेरी।
बिंदा को गुस्सा आ गया। नींद में खलल डालता है। उसने दिनेश को धक्का दिया। वो गिर गया। ले तेरा सिंदूर- उसने सिंदूर पोंछ दिया। ले मंगलसूत्र, उसने मंगलसूत्र झपटकर तोड़ा और दिनेश पर फेंक दिया। आ मेरे पास अब। दोनों के बीच झूमा-झटकी हुई पर बिंदा हमेशा भारी पड़ी। दिनेश दरवाजा खोलकर बाहर आ गया। काफी विवाद हुआ। फिर बिंदा ने दरवाजा बंद कर लिया। दूसरे दिन उसकी मां और भाई वहां आ गए। उन्होंने समझाया पर बिंदा, वो नहीं मानी और महिला पुलिस स्टेशन पहुंच गई। पीछे-पीछे दिनेश और बिंदा के परिवारवाले भी पहुंच गए।
महिला पुलिस इंस्पेक्टर दो समझाइश देने वालों के साथ बिंदा और दिनेश को समझाने बैठी।
देखो, केस तो दर्ज हो जाएगा पर इससे किसी को कोई फायदा नहीं है। आराम से बैठकर बात कर लो।
दिनेश भड़क गया- इससे कौन बात करेगा?
शांति रखो, चिल्लाओ मत।
अरे कोई इससे शादी नहीं करता भैंस कहीं की। पास खड़े दो पुलिस वाले बोले- अरे शादी से पहले देखना था। गर्मी निकलाने की इतनी जल्दी क्या था? वो मुस्कुराने लगे। दिनेश को फिल्मी हीरो की तरह चिल्लाने का मौका लगा- अरे वो तो मैंने इससे शादी कर ली वर्ना इससे कौन शादी करता? मुझसे पूछो कैसा लगा होगा बिस्तर पर एक भैंस को पाकर। उसे बार-बार समझाने पर भी जब वो नहीं माना तो महिला इंस्पेक्टर ने उठकर उसे जोरदार तमाचा मार दिया। सोना है चल सो... सो मेरे साथ। दिनेश चाहता था कि बोल दे - उतार कर फेेंक दो ये वर्दी पर इसके अंजाम से वो वाकिफ था। अब कुछ बोला तो ये डंडा घुसेड़ दूंगी। महिला पुलिस ने उसे डंडा दिखाया। उसका मतलब मुंह से था पर दिनेश कुछ और ही समझ गया। परिवार वालों ने कहा- माफ कर दीजिए मैडम।
इसे समझा दो चिल्लाए नहीं हम कह रहे हैं न। कर रहे हैं न सबठीक।
अब बिंदा बोली- मैडम तीन दिन से इसके बुढ़वा-बुढ़वी।
देखी इसकी तमीज।
शांति रख।
ये मुझे जानवर की तरह काम में जोते हैं। कल रात सोने लगी तो ये ....क्कड़ मुझ पर चढ़ बैठा। इस पर दुष्कर्म और इसके परिवार पर दहेज प्रताडऩा का मामला दर्ज होना चाहिए।
दिनेश फिर चिल्लाने लगा। तो पुलिस वाली भड़क गई- अब तो इस पर मामला दर्ज करो।
बहुत विवाद हुआ। समझाइशें हुई। अंतत: बिंदा ने ससुराल जाने से इंकार कर दिया। शादी में दिया सामान वापस लेने की बात होने लगी। कुछ सामान घर में पहले से ही था। अंतत: कुछ सामान बेच दिया। जिसमें एक अंगूठी जो दिनेश को दी थी उसको लेकर भी विवाद हुआ और उसे वापस लेने के बाद बिंदा शांत हुई। कुल मिलाकर 75 हजार रुपए लेने के बाद मामला निपट। इससे बिंदा के परिवार की काफी बदनामी हुई।
अब बिंदा घर लौट आई। पैसे को बैंक में जमा करवा दिया जिससे साढ़े सात सौ का मासिक ब्याज मिल जाता था। गंदला लाल सूट पहनकर वो घर के बाहर लकड़ी की कुर्सी के हत्थे पर टांग रखकर बैठ जाती और आते-जाते लोगों को निहारती। इस बीच वो दुपट्टा नहीं डालती। लोग बुराई करते पर उसकी छाती को भूखों की तरह निहारते। उसकी बदनामी करते।
बिंदा का घर टीन का बना हुआ था। परिवार गरीब था और बिंदा के आ जाने से घर में भी कलह की सी स्थिति बनी रहती थी। इस बिंदा यही कहती थी कि मेरी मां का घर है जब तक वो जिंदा है मैं यहां रहूंगी। मां भी कलह से बचने को चुप रहती।
बिंदा के भतीजे गणेश-माताजी बिठाने का चंदा लेते। कुछ लोग फल- सब्जी भी दे देते भंडारे और रोज की प्रसादी के लिए। बिंदा ये भी खा जाती और बच्चे जो पैसे उसके पास रखते उसमें से भी वो थोड़े बहुत पैसे यहां-वहां कर देती। बच्चों की मजबूरी थी वो और कहीं पैसे जमा करवा नहीं सकते थे। ये मजबूरी कई कारणों से थी। इस पर बात करना बेमानी है।
एक बार कुछ बदमाश बच्चों ने बिंदा को लेकर काल्पनिक कहानियां बना दीं। जो कि अश्लील किस्म की थीं। वो सांकेतिक शब्द बोलते और बिंदा का मजाक उड़ाते। वो ये बात समझने लगी और एक दिन उन किशोरवय बच्चों के घर जा पहुंची- अपनी मां को भी ऐसा ही कहता है क्या? इस निम्रवर्ग की कॉलोनी में महीने में एक बार तो बिंदा लड़ती दिख ही जाती थी। उससे पूरा परिवार परेशान था। अब मां चिंता करती कि मेेरे बाद इसका क्या होगा? तो बिंदा कह देती- इस मकान में मेरा भी हिस्सा है कहां जाऊंगी? घर में आंतरिक तनाव फैल जाता। बूढ़ी मां परेशान रहती।
बिंदा इस बात को समझने लगी थी कि उसे एक अदद सहारे की जरूरत है किसी भी तरह। बिंदा के पड़ोस में यादव का मकान था। यादव के किराएदार ने उनके दो मंजिला मकान की रजिस्ट्री पर 10 लाख को लोन लिया। इस लोन में से 7 लाख यादव को दिये बाकी खुद के काम में ले दिए। न ब्याज भरा न मूल। मकान हो गया जब्त। नीलामी में समय और प्रक्रिया थी, सो मकान में एक चौकीदार नियुक्त किया गया। प्रौढ़ उम्र का चौकीदार। चौकीदार आया। वो घर के बाहर कुर्सी लगाकर बैठ गया और धूप सेंकने लगा। उसके पास घर की चाबी भी थी। बिंदा का भाई जमाने की फौजदारी के चलते उसके पास गया और यादव के इस कांड के बारे में पूछा। उसने पूरा कांड बताया साथ ही यह भी बताया कि वो सरकारी मुलाजिम है। चार बेटियों और तीन बेटों का भरापूरा परिवार है। पास सबर्ब का रहने वाला है पर सरकारी बंगले में अकेला रहता है। पत्नी से अच्छी नहीं बनती। इसका नाम था- कामेश चौबे। अनिल ने ठंड के चलते चाय मंगाई। चाय छुटकी लेकर जा ही रही थी कि सारी बात छिपकर सुन रही बिंदा ने चाय उसके हाथ से ले ली। सिर पर दुपट्टा डालकर वो बड़ी ही सभ्यता से बाहर आई और चौकीदार को चाय दी। अनिल ने मुंह बनाया। चौकीदार ने बिंदा का मुंह देखा। बरसों पहले लगाए अनधुले काजल से काली सी आंखें, उन्हें देखने से ऐसा ही लगता था। भरा-पूरा चेहरा। बस, उसने चाय ली और सुड़प गया- बहुत अच्छी चाय बनाई है आपने।
थैंको, बिंदा ने अपनी ही अंग्रेजी में मुस्काकर कहा। अनिल ने सोचा कितनी दुष्ट है बिंदा। चौकीदार को यहां कुछ महीने रहना था। शाम को चौकीदार ने टिप्पन निकाला और पानी के लिये यहां-वहां देखा। बिंदा ये सब देख रही थी। उसने छोटी से जग भरकर पानी मंगवाया और जा पहुंची चौबे के पास। चौबे जात से ब्राम्हण थे सो बिंदा ने उनको पंडित जी कहना शुरू कर दिया। पंडित जी पानी। चौबे ने फिर उसका मुंह देखा। न जाने क्यों? बिंदा का रोम-रोम उसे आकर्षित करने लगा था। धन्यवाद। मिनिएशन नॉट। ये हर तरह की प्यास बुझा देगी, चौबे ने सोचा। पता नहीं क्यों येबात समझकर वो ठाहके के साथ बोल पड़ी- हर तरह की प्यास बुझा दूंगी। हालांकि ये बात उसके परिवार वालों या किसी अन्य ने नहीं सुनी। चौबे उसे देखता ही रह गया।
अब ये रोज का खेल हो गया। चौबे नहाने भर के लिए घर जाता और फिर वहीं आ जमता। लोगों में और घर में चर्चा थी पर इस बहाने बिंदा शांत तो थी और उसे छोडऩे से सब डरते और उसका अंजाम सोचकर डर जाते। चौबे बैठे-बैठे थक गए तो घर का बाहरी दरवाजा खोल बाहरी सीढिय़ों से टैरेस पर जा पहुंचे। बिंदा ने अपने घर में रखी प्लास्टिक की चटाई एक तकिया उसे दे दिया। अब वो बहुधा ऊपर ही मस्ताता, पांचवे दिन चौबे टिप्पन नहीं लाया। बिंदा थाली लेकर उसके पास ऊपर जा पहुंची उसे खाना खिलाया। अब बिंदा ने उसे कहा कि वो यही बैठा करे। वो चाय-नाश्ता-खाना और प्यास बुझाने को पानी ऊपर ही ला देगी। ये बात उसने किस अंदाज में कही होगी आप समझ ही सकते हैं। घर में जो कुछ बनता बिंदा अपने लिए एक बर्तन ज्यादा लेती और बाद में चौबे को खिला देती। बड़े प्यार से कहती- पंडित जी ओ पंडित जी। चौबे को ये बड़ा कामुक लगता। वो जब उसके पास जाती। सजसंवरकर जाती। चौबे की भावनाएं भड़कने को आतुर थीं पर अपने परिवार का और बिंदा का डर, कहीं वो ये यूं ही तो कर रही और कुछ कहने-करने पर भड़क जाए। डर कई थे और कई भांतिसे उसे डराते थे।
दस दिन हो गए। बिंदा खाना लेकर ऊपर गई। चौबे ने खाना खाकर थाली में हाथ धो रहा था और बिंदा उससे बातें कर रही थी- आप बहुत अकेले लगते हैं। मैं आपका अकेलापन दूर कर दूंगी आपकी हर जरूरत पूरी कर दूंगी। चौकीदार चौबे ने अचरज से बिंदा का मुंह देखा। बिंदा के हाथ खुले बालों में थे। अधरों पर मुस्कुराहट। पांव जो वो लंबाकर उसके पास ही रखे हुए थी। उसकी पायल, होठों की लाली। अब चौबे के दिल का तूफान अपने हदें तोड़ कर बाहर आ गया। तुम्हारी पायल...उसके होठों ने उसके पैरों को छू लिया। तुम्हारी चूडिय़ां, ये सजसंवर। तुम मेरे लिए ही ये सब कर रही हो न, ये खाना-पानी-चाय-ये श्रृंगार-पटार। वो दोनों एक जिस्म एक जान हो गए। बिंदा को आज पूर्णता प्राप्त हो गई।
अब ये रोज का खेल हो गया। बिंदा घर से चिंदिया और खराब कपड़े लेकर छिपा लेती और प्यार की निशानियों का साफ कर देती। ठंड का ये मौसम बीतने लगा। बसंत आने लगा। दिल की कलियां फूल बनकर महकने लगीं। डेढ़ महीने बाद ही नीलामी हो गई और चौबे वहां से दफा हो गया पर जाते-जाते वो बिंदा को अपना मोबाइल नंबर दे गया। पता तो उसने उसके परिवार वालों को पहले ही बातों-बातों में बता दिया था।
चौबे चले गए। तीन-चार दिन बाद बिंदा का जी मचलने लगा। उल्टियां भी हुईं पर परिवार वालों ने ध्यान नहीं दिया। धीरे-धीरे कुछ महीने बीते। इस बीच चौबे आते-जाते उनके घर आ जाते दो बातें कर चले जाते। वो बिंदा को देखते-बिंदा उनको। उनके बीच जो कुछ हुआ वो महज टाइम पास नहीं था, वो दोनों एक-दूसरे को चाहने लगे थे। बिंदा ने उनका ख्याल रखा। हर तरह से। अपना सबकुछ समर्पित कर दिया। यहां तक कि कौमार्य भी, बिना किसी की परवाह किये। कितनी त्यागी है बिंदा।
इस बात को नौ महीने गुजरे ही थे कि बिंदा की फिर तबीयत बिगड़ गई। मन मचला, भाई न चाहते हुए भी उसे पास के क्लीनिक ले गए। वहां डॉक्टर ने बताया कि बिंदा मां बनने वाली है। भाई उसे लेकर घर आए और हंगामा शुरू हो गया। बिंदा ने बता दिया कि वो जानती थी कि वो मां बनने वाली है। ये पाप नहीं है। ये उसका सहारा है। क्या ये भाई उसके सहारे होते? जो उसे दुरुस्ती में घर से निकाल रहे हैं, वो उसके निढाल होने पर तो घर से ही बाहर फेंक देते क्या भरोसा मार ही देते? मोटी-तगड़ी बिंदा का डीलडौल ही ऐसा था कि ये समझ पाना मुश्किल था कि वो मां बनने वाली है।
अब भाई बाइक पर बैठकर चौबे से लडऩे पहुंचे। पीछे बिंदा निकली और पेट को सम्हालते हुए एक ऑटो वाले को बुलाया और पीछे से वो भी चौबे के घर जा पहुंची। सुबह 11 बजे का टाइम था। चौबे ताला लगाकर सायकल उठाने ही वाला था कि बिंदा के भाई वहां पहुंच गए।
अरे, हमने बिंदा को तेरे पास इस लिए भेजा था कि वो तेरी खाने से भूख मिटाए तूने तो उसे पेट से ही कर डाला। कोई और ही भूख मिटा ली तूने!
हम तुझे छोड़ेंगे नहीं!
चौबे घबरा गया। मारापीटी होती उससे पहले ही बिंदा वहां जा पहुंची। कम पैसे देकर ऑटो वाले से लड़कर वो उनके पास पहुंची। दूर हटो...हाथ भी मत लगाना इनको...मेरे पति हैं ये? भाई हड़बड़ा गए। मैं इनकी पत्नी हूं। मर्जी से मैं पेट से हुई हूं। तुम किसके होने वाले हो ये तो मेरे हैं, ये सहारा तो मेरा है। उसने अपने पेट पर हाथ रखा। चौबे अब इस अवस्था में आ गए कि वो बिंदा के पैर में गिर पड़ें और स्तुतिगान करें, क्योंकि मजा तो चौबे ने भी लिया था बिंदा ने लिया न या नहीं वो नहीं जानते, पर इस सबको बिंदा ने एक अलग ही रूप दे दिया, पिटाई से भी बचाया पर उनको अपने परिवार का डर भी था। बोलते-बोलते बिंदा को प्रसव वेदना शुरू हो गई। दूर से साहब ये सब देख रहे थे- चौबे मेरी जीप ले जा। वो मुस्कुराए। चौबे और बिंदा के भाई उसे लेकर अस्पताल पहुंचे। जहां बिंदा ने एक लड़के को जन्म दिया। वो ठीक थी। उसने चौबे को आश्वस्त किया कि वो उसकी संपत्ति में हिस्सा नहीं चाहती वो सिर्फ और सिर्फ उसे चाहती है...उससे प्यार करती है..उसके साथ रहना चाहती है। उसके नाम का सिंदूर मांग में भरना चाहती है। उसने उसे वो चीज दी है जो अनमोल है वो है एक सहारा।
शाम तक तो बिंदा खड़ी हो गई और अपने बच्चे को लेकर घर आ गई। सब चिढ़ गए।
घर में मेरा भी हिस्सा है-वो बोल पड़ी। अब कोई उसे बोले तो बोले क्या? मासूम बच्चे की किलकारी में क्या दोष? वो तो ईश्वर की कृति है। अम्मा की तबीयत खराब हो गई थी, वो लेटी थी। बिंदा नवजात को जिसका नाम उसने रितेश रखा था, लेकर मां के पास पहुंची।
देख नानी ई....नानी। बिंदा की मां ने आंखें खोली। एक नवजात बिंदा की गोद में था- लाल-लाल सा सोया हुआ, चपटी सी नाक। उसके होंठों पर मुस्कान खिल गई। छुटकी ने उसे देखा। देख भैयू(को)...देख।
अब सूट पहनने वाली बिंदा साड़ी भी पहनने लगी। क्योंकि इससे स्तनपान में उसे सहजता होती। वो रहती तो मां के पास थी पर छुट्टी के दिन वो चौबे जी यानी पंडित जी के पास चली जाती। वहीं रहती दिनभर शाम पड़े वापस आ जाती। वो दुनिया भर से तिरछी चले पर चौबे के आगे वो पूरी तरह से समर्पित पत्नी है, चौबे जी भी उससे खुश थे, वो घूंघट लेती,सिर पर पल्ला रखती, मांग भरती, अपने पति के लिए सजती संवरती ऐसा तो चौबे जी की ब्याहता ने कभी नहीं किया। उसने उनकी पत्नी को अपनी बड़ी बहन बताया और संपत्ति पर किसी भी प्रकार के हक का विवाद नहीं होने की बातभी कही।
हालांकि चौबे के परिवार से जो उम्मीद थी वैसे ही उसने बिंदा को नहीं स्वीकारा पर वो रही एक पत्नी, एक मां पर ये न समझा जाए वो बदल गई है। आज भी वो उसी तरह लड़ती है जैसे पहले लड़ती थी फर्क बस ये है कि उसकी गोद में बच्चा होता है, जो उसकी कर्कश ध्वनि सुनकर रोने लगता है जिसे बाद में वो चुपाती है। मां कहती- कुछ न कहो उसे, अब उसे एक सहारा तो मिल गया है न। चौबेजी के प्रति उसका समर्पण शायद उस एक सहारे के कारण है जो उन्होंने उसे दिया। बिंदा और कई बार मां बनना चाहती थी..अपने गृहस्थी के स्वप्रिल अरमानों के साथ वो कहां तक पहुंची ये तो नहीं पता पर इतना जरूर है कि उसे सहारा मिल गया था।

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