गुरुवार, 10 मई 2018

चरित्र अब भी वही है

जब वो बचपन में छोटी थी मां काम पर जाती थी बाप यहां-वहां काम की तलाश में फिरता था। भाई अंटी खेलने में मसरूफ हो जाते। वो मां के थोड़े से मेकअप के सामान को लगाकर पुरानी अलमारी के धुंधले पड़ चुके आइने के सामने आकर सज-बन कर खूब नाचती। घर में मनोरंजन का एक मात्र साधन एक छोटा सा टीवी था। वो भी ब्लैक एंड वाईट इस पर जब कमर लचकाती उछलती-कूदती हिरोइन आती तो वो फूली न समाती। भाई उसे देखता तो उसे रुचि न होती। बाप उसे देखता और रात में उसी की कल्पना कर उसकी मां को प्यार करता।
जिसकी बात की जा रही है इसका नाम लावण्या था। इसकी मां का नाम कामिनी और पिता था ग्यारसीलाल। इसके दो भाई थे- इससे बड़ा नंदू यानी नंद किशोर और छोटा- परसू यानी पुष्कर। कामिनी का कोई बंधा काम नहीं था। कभी वो बर्तन मांजती तो कभी चमड़े के खिलौने के कारखाने में घोड़े-ऊंट घिसने पहुंच जाती। ग्यारसी को उसके चरित्र पर शंका होती थी पर वो इसे अनदेखा ही करता था। लोग यूं काम नहीं देते-कामिनी सजधजकर जाती, मीठी-मीठी बातें करती। मंद-मंद मुस्काती। लोग खासकर पुरुष आकर्षित हो जाते, इससे अगर कहीं काम न भी निकलता हो तो उसके लिए काम निकाला जाता था। कभी-कभी वो अपने किसी मित्र के साथ घूमने भी चली जाती थी। जो उसे घुमाने ले जाता वो उसे पैसे भी देता था। उसके चाहने वाले तो उसके घर को तमाम जरूरी चीजों से भर देना चाहते थे पर कामिनी ही मना करती थी कि पैसे दे दिया करो जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। सजना-संवरा उसकी पेशेगत मजबूरी थी शौक इसे समझना मुश्किल है।
लावण्या स्कूल तो जाती ही नहीं थी। भाइयों का ही पढऩे में दीदा नहीं था तो उसका मन भी होता तो वो जा न पाती। वो सुबह उठती तो पानी लेने हैंडपंप पर जाती वहां से पानी लेकर घर आती फिर जो काम मां अधूरा छोड़ जाती उसको पूरा करती। कपड़े धो लेती और कुछ काम हो तो वो कर लेती। खाना भले ही वो न बनाती हो पर कभी-कभार वो उसको गर्म कर देती थी। वक्त तेज रफ्तार घोड़ा है इसके साथ दौडऩा ही जिंदगी है वर्ना इसकी टापों के नीचे आकर बर्बाद होना तो निश्चित ही है। लावण्या की दादी पास की ही कॉलोनी में रहती थी। इसको सभी ददिया जी बोलते थे। ददिया के पांच बच्चे थे। जिसमें ग्यारसी मंझला था। उसकी दो बड़ी बहनें उसके बाद भाई फिर ग्यारसी उसके बाद एक और भाई था। ददिया पड़ोस की कॉलोनी में रहती थी पर ग्यारसी का परिवार वहां ज्यादा आता-जाता न था। ददिया कहती कामिनी तो धंधा करती है। पूरी रंडी है रंडी, दस खसम है कुतरी के।
कहते हैं कि शादी के पहले से ही कामिनी के कई लड़कों से संबंध थेे। नौकरी के बहाने कामिनी घर से निकलती थी, वो नौकरी तो करती ही थी साथ ही पार्ट टाइम में वो लड़कों के साथ घूमती-फिरती भी थी। वो लड़कों से पैसे लेती थी और रंगरलियां मनाती थी। ग्यारसी की मां को ये बात शादी के बाद पता चली जब उसने कामिनी को किसी दूसरे आदमी के साथ तालाब किनारे पाया। यहां कामिनी चौकीदार को ये कहकर आई थी कि साथ में आने वाला आदमी उसका पति है। वो यहां सुहाग का दिन मनाने आए थे। तभी उसकी सास का वहां से निकलना हुआ। वो वहीं पास की बस्ती में विवाह की रस्म मागर माटी में गीत गाने आई थीं और तालाब के रस्ते का शार्ट क ट लेकर जा रही थीं। कामिनी की सास को देखकर उसका साथी भाग निकला और कामिनी को लेकर उसकी सास वापस आ गई। उसे गाली दी गई और शादी तोडऩे की बात कही गई। कामिनी ने भी कह दिया कि वो दहेज के मामले में सबको जेल की हवा खिला देगी। सब बोलते रहे पर ग्यारसी चुप रहा। बिलकुल चुप। उसका पौरुष उसकी पत्नी को ही रास न आया। शायद वो उससे प्यार नहीं करता था सिर्फ हवस पूरी करने के लिए वो उसके पास आ जाता था। जब बात ज्यादा बढ़ी तो ग्यारसी ने कामिनी से कहा कि वो दोबारा ऐसा न करे। कामिनी से कहा गया कि वो काम छोड़कर घर बैठ जाए, इस पर ग्यारसी तो गुस्साया ही कामिनी ने भी कह दिया- ये (ग्यारसी) काम-धंधा तो करते नहीं हैं, मैं घर बैठ जाऊं तो कैसे चलेगा घर? बड़की भाभी कहेंगी, बस बैठे-बैठे खाते हैं। वैसे भी ताने मारने से वो बाज तो आती ही नहीं हैं। सास ने कहा- तू काम करेगी तो ग्यारसी तेरे साथ जाएगा। कामिनी भी भड़की- कहो तो चोली-बिलाउज में छुपाकर ले जाऊं इनको।
आखिरकार तय हुआ कि नियत समय पर कामिनी को लेने खुद ग्यारसी ही जाएगा। डेढ़ महीने बाद ग्यारसी और कामिनी घर से अलग हो गए। कामिनी की मां ने जच्चा-बच्चा यानी प्रसव करवाया। सास तो शक करती थी कि ये ग्यारसी के बच्चे हैं या.....लावण्या पंद्रह साल की हो गई। मां से उसको खूबसूरती तो मिली न मिली कह नहीं सकते पर वो सजना-संवरना खूब करती। कॉलोनी के लड़कों की आंखें उस पर जमने लगीं। कामिनी समझ गई कि अगर ये घर पर रही तो कुछ न कुछ गुल खिल जाएगा। उम्र नादान है। कहीं पेट से हो गई तो? अपने बच्चों पर भरोसा कौन करता है वो भी जब मां और पिता ही गलत रास्ते पर चलने लगें?
कामिनी, अपने साथ काम पर लावण्या को ले जाने लगी। लगे बखत लावण्या के भाई नंदू के लिए रिश्ता आया। ससुराल वाले ने अपनी हैसियत के हिसाब से एक सायकल, मेज का पंखा (टेबल फेन), अलमारी, गैस टंकी, एक पलंगपेटी, नगदी में 51सौ रुपए देने की बात कही। बाकी घर वालों की आवभगत, देनदारी, बारात का खर्च देने की बात कही। ग्यारसी ने सब कामिनी पर छोड़ दिया और कामिनी राजी हो गई। उसने सोचा कि बहू को भी काम पर ले जाएगी तो पैसे बनेंगे।
शादी का कार्यक्रम शुरू हुआ। लावण्या के लिए ये अपने आप को दिखाने का सुनहरा मौका था। वो खूब नाची, खूब नखरा बिखेरा (फैशन परस्ती दिखाई) लड़कों की नजरें उस पर जम गईं। कामिनी यहां वहां हुई कि आंखों-आंखों में इशारे होने लगे। यहां सब लड़कों में लावण्या को सब्जी वाले बनवारी का लड़का पसंद आया। वो भी फैशन परस्त था। रंगउड़ी जींस में उसकी पतली-पतली बीड़ी जैसी टांगे। विचित्र से भेस में वो बिलकुल हीरो जैसा लगता था। इसका नाम बनी था, जिसको जानने वाले बन्ना भी कहते थे।
शादी निपटी और लावण्या फिर से काम पर जाने लगी। भाभी अभी तो घर ही सम्हाल रही थी। भाई भी बंगले पर काम करता था। केवल ग्यारसी छोटे-मोटे मजदूरी के काम करता रहता कुछ पैसे बन जाते तो मुहूर्त करता और शराब पीता। जुआ भी खेल लेता जिसमें आज तक वो कभी जीता नहीं था। उसके साथी उसको कचोड़ी-समोसा खिला दिया करते थे। जिससे गदगद होकर वो खेल लिया करता था।
इधर, कामिनी सड़क से जा रही थी कि एक मोटर साइकल वाले ने उसे ठोंक दिया। वो गिर गई और चोटें आई। गाड़ी वाला भाग गया। पुलिस में शिकायत की तो पुलिस वाले बोले- ऐसा तो होता ही रहता है। निकल यहां से, अस्पताल जा। कामिनी को अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया। लावण्या अब अकेले मां का काम भी सम्हाल रही थी। एक दिन वो जा रही थी कि मोटरसाइकल पर बनी वहां आ गया। कहां जा रही है? काम पर...। अरे जरा रुक जा...जाने दे। सुन मैं तुझसे प्यार करता हूं, साथ चलेगी। काम कौन करेगा? तेरा बाप? मेरा बाप तो मां के साथ काम करता है। भाई भाभी और बहन जीजा के साथ एक मैं ही अकेला हूं? लावण्या हंस पड़ी। शाम को आना कितने बजे.. चार बजे तक काम निपटा लूंगी। यहीं आना। ठीक..वो निकल गया।
चार बजे लावण्या वहां पहुंची तो देखा बनी वहीं गाड़ी लेकर बैठा था। लावण्या ने दुपट्टा मुंह बांधा और बनी के साथ गार्डन जा पहुंची। गार्डन खाली था। दोनों एक कोने में जाकर बैठ गए।
यहां कोई बातचीत करने तो वो आए नहीं थे। बनी ने लावण्या को बाहों में कस लिया। वो उसे प्यार करने लगा। लावण्या के लिए ये अजीब अहसास था। छह बजने वाला था। अब छोड़ दे....वो उठी और दुपट्टे से मुंह पोछने लगी। अरे इतनी जल्दी...कल फिर मिलेंगे। अरे यार....आज ही पूरी दावत खाएगा क्या? हां...धत्...वो मुस्कुराई। उसने उसे चौराहे तक छोड़ दिया और प्यार की निशानी के तौर पर पावभर अंगूर खरीदकर दिये और एक पान भी खिलाया। शाम को लावण्या देर से घर पहुंची। भाभी को कहा कि बंगले पर पार्टी थी। ये अंगूर मालिक ने दिये और पान भी खिलाया। भाभी कुछ समझी पर चुप रही। दूसरे दिन बनी लावण्या को फिर से गार्डन ले गया। आज उसने उसे निरोध दिखाया। वो कुछ करता इससे पहले ही लावण्या वहां से निकल गई। लावण्या को ये उम्मीद नहीं थी कि बनी प्यार-मोहब्बत छोड़कर सीधे संभोग पर उतर जाएगा। बनी ने सोच लिया कि वो उसे छोड़ेगा नहीं। लावण्या ने जाते-जाते कह दिया कि अब पीछा न करना वर्ना ठीक नहीं होगा। वो आ तो गई पर उसे भविष्य को लेकर भय था। उसके भय को भाभी समझ गई। उसने उससे पूछा तो लावण्या टूट गई और रोते-रोते उसे सब बता दिया। भाई ने ये सब देखा तो पूछा- ये क्या हो रहा है? मां की याद आ रही है...भाभी ने उसे बचा लिया। अब भाभी ने त्वरित निर्णय लिया कि जब तक अम्मा न आ जाए तब तक वो लावण्या के साथ काम पर जाएगी। अम्मा का काम वो सम्हाल लेगी। भाइया की चाबी तो भाभी के हाथ थी। अब दूसरे दिन से लावण्या के साथ उसकी भाभी जिसका नाम काम्या था, जाने लगी। बनी उनको दूर से देखता पर भाभी का डर था कि वो पास न आता। एक दिन वो मौका देख लावण्या के करीब आ गया। उसने उसका हाथ पकड़ा और जबरदस्ती बाइक पर बिठाने लगा। तभी पीछे से काम्या आ गई। रुक साले...वो गाड़ी लेकर भागा पर काम्या ने एक बड़ा पत्थर उठाकर उसके सिर पर दे मारा। एक तो बाइक की रफ्तार दूसरा पत्थर का आघात, वो गाड़ी समेत फिसला और घिसटता हुआ एक मकान के बड़े गेट से जा टकराया। कॉलोनी सुनसान थी, काम्या लावण्या को लेकर चंपत हो गई। आवाज सुनकर जब तक लोग आए न तो वहां काम्या थी न लावण्या। वो घर ऐसे पहुंची जैसे कुछ हुआ ही न हो ऐसा काम्या ने ही समझाया था। देर रात तक बनी का पता चला वो सरकारी अस्पताल में भर्ती था। उसके सिर में गंभीर चोट थी और शरीर में कई फ्रैक्चर। उसका घर आना इतनी जल्दी संभव नहीं था।
अब कामिनी अस्पताल से घर लौटी तो गदगद हो गई। बहू हो तो ऐसी उसका काम तो सम्हाल ही लिया और कई नई जगहों पर उसे काम मिल गया। काम्या ने लावण्या और कामिनी को कमाई में पीछे छोड़ दिया। यहां तक कि कॉलोनी के सबसे बड़े बंगले में, जहां की किसी को नौकरी तो क्या झलक भी नहीं मिलनी थी वहां उसे नौकरी मिल गई। उसे उपहार भी कीमती मिलते, साडिय़ां ही करीब पांच से छह हजार की उसे मिलती। छोटे-मोटे जन्मदिन पर सोने-चांदी के सिक्के और पूरे घर का खाना। खाना तो वैसे भी उसे रोज मिल ही जाता था। कामिनी अब घर पर आराम करती। बस एक तमन्ना थी कि दादी बन जाए पर काम्या अभी मां नहीं बनना चाहती थी, वो कहती पहले पैसा तो इक_ा कर लें। काम्या का एक छोटा भाई था जो शहर में ही रहता था नाम था दामू। काम्या ने उसे और लावण्या को मिलवाया। दोनों में प्यार ही हुआ...दोनों साथ घूमने लगे। प्यार में डूबने लगे। लावण्या और दामू के इस प्रेम प्रसंग को घर से भी मान्यता मिली हुई थी सभी उसको लावण्या का भावी पति ही मानते थे और वो भी लावण्या को पत्नी ही मानता था। लावण्या को गर्भ चढ़ गया तो दामू ने उससे शादी कर ली।
इधर, बनी घर लौटा तो उसका दिमाग खराब हो चुका था। वो किसी को पहचानता ही नहीं था। यहां तक कि वो खुद का नाम ही भूल जाता था। शादी के बाद लावण्या पास की ही कॉलोनी में जाकर रहने लगी। सप्ताह में दो-चार बार घर आ जाती। कामिनी के घर की हालत अब बदलने लगी थी। घर में काम्या क्या आई? घर स्वर्ग बन गया। पैसा तो इतना हो गया कि बैंक में खाता खुलवा लिया। कामिनी की खुश तो थी पर उसकी खुशी को तब ग्रहण लग गया जब उसे पता चला कि काम्या नौकरी की आड़ में धंधा कर रही है। कई बंगले के मालिकों से उसके संबंध हैं। सोलह साल के किशोर से लेकर साठ साल के बूढ़े तक उसके ग्राहक बन चुके हैं। काम्या भी खूबसूरत थी, कुछ लोगों का तो कहना था कि लावण्या और कामिनी भी उसके आगे कुछ न थीं। कामिनी ने सुनी-सुनाई बातों की तस्दीक करने की कोशिश की। उसे पता चला कि कामिनी तालाब के किनारे अक्सर बंगले के मालिकों के लड़कों के साथ जाती है। वहां वो सबकुछ होता है जो नहीं होना चाहिए। कामिनी ने अपने भाई के आवारा लड़के को तालाब पर तैनात कर दिया। एक दिन उसने मोबाइल पर बताया कि काम्या यहां कार में बैठकर एक किशोरवय लड़के के साथ आई है। बस फिर क्या था? कामिनी नंदू को लेकर वहां जा पहुंची। किशोर उसके रूप से मदहोशकर काम्या के अंगों को चूम ही रहा था कि वो दोनों वहां पहुंच गए। तालाब सुनसान था। हंगामा होने लगा। काम्या ने किशोर को बचाने की कोशिश की पर नंदू ने किशोर को थप्पड़ मार दिया। मेरी औरत के साथ मजा करेगा हां...अब किशोर चिल्लाया- तू जानता नहीं है मैं कौन हूं? अब किशोर भाग गया। कामिनी का हाथ उठता उससे पहले ही काम्या बोल पड़ी- अम्मा हाथ न उठाना। नंदू का हाथ भी रुक गया। अब वो तीनों घर आ गए। घर में भी हंगामा होने लगा। कामिनी ने उसे वेश्या कहा और घर की इज्जत पर बट्टा बताया। नंदू ने काम्या का बचाव किया तो उसे जोरू का गुलाम का खिताब मिला। लावण्या भी वहां आ पहुंची। वो चुप ही रही। अब काम्या की बारी थी। अरे मुझे बोल रही है डुकरिया (बुढिय़ा), तूने क्या कम गुल खिलाए हैं? लावण्या को तो मैने बचा लिया वर्ना ये तो....मैं जो कुछ करती हूं उससे पैसा आता है। जब पैसा आया तो अच्छा लगा पर जब पैसे का जरिया पता चला तो ये अंजाम...जो सासू ने किया अब मैं वहीं कर रही हूं तो इल्जाम क्यों? वाद-विवाद के बीच पता नहीं कहां से पुलिस आई और नंदू को पकड़कर ले गई। काम्या बंगले पर गई उसके बाद नंदू को छोड़ा गया। ये हंगामा खुसुर-पुसुर का विषय बन गया। कामिनी जहा ंसे निकलती लोग गुपचुप कहते- पहले जो जगह इसकी थी वो अब इसकी बहू ने ले ली है। अब काम्या सजती-संवरती, नखरा (फैशन) करती और काम पर जाती। उसके सभी आयु वर्ग के पुरुषों से संबंध बन चुके थे। शायद वो गर्भवती भी थी। लावण्या ने ये देखा फिर सोचा- सच ही तो कहते हैं, नाम बदल गए पर चरित्र अब भी वही हैं। ८-४-२०१८

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