रविवार, 29 अप्रैल 2018

मर्दानगी....

उस पायल की छनछनाहट ही कुछ ऐसी थी कि मन में खलबली मच गई। डॉ. अंसारी के मन में खलबली हुई तो दरवाजा खोल लिया। एक कमनीय सी काया दिखाई दी जो जीने पर जाकर गायब हो गई। छन-छन तो अंसारी की बेगम की मोटी पायजेब भी करती थी पर साथ में धम-धम की आवाज भी आती थी। जब कभी वो दूध पतीली में रखकर आग पर चढ़ाकर भूल जाती और दौड़कर अंदर जाती तो पूरा घर धम-धम और छम-छम हो जाता। उनका सांवला भरा बदन सिर्फ रात को सहारा था या कभी दिन में तलब हो जाए तो वर्ना....अंसारी चैनल और किताबों से दिल बहला लेते। अंसारी नखलिस्तान कॉलोनी की जन्नत अपार्टमेंट में रहते थे, चौथे माले पर। अंसारी ने फिर से सविता भाभी की चित्रकथा चुपचाप मेडिकल की किताबों के बीच से निकाली और पढऩे लगे। फिर से छनछन की आवाज आई तो वो फिर दौड़े दरवाजा खोला तो देखा कमनीय काया आगे की ओर जा रही है। आवाज सुनकर वो पलटी। उसे देखकर अंसारी मानों बुत बन गए। नमस्ते, गोरा रंग, कमनीय काया, पैरों में पतली सी लेडीज चप्पल। आंखें चौधिंयाती गोरे पैरों में सजी पायजेब, गुलाबी सी साड़ी उस पर चिकनी कमर। आंचल से झांकती नाभि, कजरारी आंखें, गुलाबी होंठ। भरपूर वक्षोभ लश्कारे मारती नाक की लौंग। माथे पर दमकती बिंदिया। मानों रबड़ी को चाशनी में पगाया गया हो। मैंने कहा जी नमस्ते। अंसारी हकीकत में आए। जी नमस्ते। हम आपके नए पड़ोसी हैं। श्रीवास्तव जी के फ्लैट में आए हैं किराए से। आपका नाम, कामिका राठौर। उफ....नाम से ही काम..। आज ही शिफ्ट हुए हैं। आज शाम को आइये न। न जाने क्यों उसका शरारती सा अंदाज अंसारी के दिल को भड़का रहा था। अब वो मुड़ी और मटकती-लहकती अंदर चली गई। पायल बजती रही। अंसारी ने दरवाजा बंद किया तो दूध जलने की गंध आई। अरे क्या हुआ? वो अंदर पहुंचा। देखा तो पतीली जलकर काली हो गई थी। देखा तो बालकनी में खड़ी उनकी बेगम हसीं जीनत पड़ोस की बनिया वधु सरोजा से बात कर रही थी। अरे मैं तो कपड़े गला लेती हूं जल्दी साफ होजाते हैं। जीनत भाभी हमारे यहां तो नौकरानी आती है न सारे कपड़ों को कूट डालती है। हां नौकरानियों का क्या भरोसा तभी मैंने नहीं लगवाई। हालांकि जीनत को मालूम था कि जनाब अंसारी की नियत का क्या भरोसा? अरे दूध जल गया...हें दूध जल गया। घर में फिर से धम-धम छम-छम हो गया।
अंसारी यूनानी दवाइयों के छोटे-मोटे डॉक्टर थे। हालांकि इन दवाइयों के नाम पर वो एलोपैथिक दवाइयां कूट-पीस कर भी दे देते थे। कभी वो इनको आयुर्वेदिक भी बता देते थे। अंसारी और जीनत के तीन बच्चे थे- मकसूदा, शाहिदा और जिशान। तीनों अपने-अपने ठिकाने से थे। मकसूदा, ड्रेस डिजाइनिंग की बुटिक खोलकर बैठी थी जहां से आमदनी अ_न्नी खर्चा रुपैया था। शाहिदा पढ़ रही थी पर क्या? ये आज तक समझ में नहीं आया। ये आठवीं की तैयारी कर रही है। जिशान में पठानी खून था वो लड़ता-भिड़ता था सो उसे कर्राटे की क्लास में डाला था। यहां से वो कुछ मैडिल ले आया था। ये स्कूल की पांचवी में था।
दिन ढल गया। रात को अंसारी बिस्तर पर लेटा, बार-बार कामिका का चेहरा, उसका अंदाज उसे बेचैन कर रहा था। क्या हुआ? जीनत ने पूछा। अंसारी पलटा- अब सिर्फ खामोशी से बात करो... जीनत में भी कामिका को सोचकर उसने जीनत को बाहों में कस लिया। एक मीठी सीहलकी आवाज आई छोड़ो न..छोड़ो...जो कुछ लम्हों में बंद हो गई। सिर्फ एक कामुक सी आवाज आती रही ऊहु...ऊहु। दूसरे दिन अंसारी हॉल में बैठकर पेपर पढ़ रहा था कि उसे ध्यान आया कि पड़ोस की बालकनी तो श्रीवास्तव की बालकनी है। हो सकता है कामिका वहां आ जाए। वो फौरन पीछे पहुंचा। घर पर अंसारी और जीनत अकेले ही थे। वो पीछे पहुंचा तो देखा जीनत धुले कपड़े टांग रही थी। अंसारी को देखकर वो ठाहका मारकर मुस्काई। उसका अंदाज था कि अंसारी आशिक मिजाज होकर आए हैं। वो इसके लिए तैयार भी थी। अंसारी ने पड़ोस की बालकनी में झांककर देखा और फिर वापस कमरे में चला गया। जीनत भी पीछे-पीछे अंदर चली गई। कुछ देर बाद दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो जीनत ने दरवाजा खोला। देखा तो सामने कामिका खड़ी थी। जीनत उसे जानती न थी। कौन...ऑटी मैं आपके पड़ोस में रहने आई हूं। कामिका की आवाज को पहचानकर अंसारी बाहर आया अरे हटो, हां क्या बात है? अंकल मेरे घर में दूध नहीं है, क्या आपके यहां से मिल सकता है? क्यों नहीं, क्यों नहीं। जीनत इनको दूध लाकर दो। कामिका ने एक गिलास दिया। मुंह बनाती जीनत अंदर चली गई। आप घर में अकेली हैं? नहीं अंकल क्या है? वो चले जाते हैं फिर मैं घर के काम में लग जाती हूं। क्लब चली जाती हूं। अरे वाह, क्लब, वहां तो सब कुछ मार्डन होगा। आप वहां क्या करती हैं? अंकल कभी सोशल वर्क, कभी कुछ क्रिएटिव कभी डांस प्रोग्राम। जीनत दूध लेकर बाहर आई। आप इनको भी कभी क्लब ले जाइये। जहां अच्छे लोगों में घुलेंगी मिलेंगी। कुछ प्रैक्टिकल बनेंगी। जीनत ने गुस्से से अंसारी का मुंह देखा। कामिका मुस्कुराई। बिलकुल सर, जरूर ले जाऊंगी। ऑटी डांस से लेकर मेकअप तक सबकुछ सीख जाएंगी। हां हां क्यों नहीं? कामिका दूध लेकर चली गई। अब मेरा मुंह क्या देख रही हो? अंदर जाओ। अंसारी ने जीनत को डपट दिया।
अब आपको अंसारी के बारे में कुछ बताया जाए। अंसारी का नाम शादाब अंसारी था। ये अपने आप को डॉक्टर बताते पर ये डॉक्टर थे नहीं। किस्मत ने इसको पहले होम्योपैथी डॉक्टर चतुर्वेदी, फिर यूनानी डॉक्टर नावेद बाबा और फिर फर्जी एलोपैथिक डॉक्टर आजम खान के यहां कम्पाउंडर का काम दिलवाया। इसके बाद इस बंदे ने नूरानी नगर में अपनी दुकान खोली और देखते ही देखते जुकाम से लेकर मर्दानगी बढऩे वाली दवाएं देने में ये माहिर हो गए। शादाब कुछ देर बाद घर से निकले और कामिका के घर की ओर देखा। दरवाजा बंद था। वो क्लीनिक चला गया। क्लीनिक में भी मरीज की खांसी में पायल की आवाज और मोहतरमाओं में कामिका के नक् शे दिखने लगे। खांसी वाले को बदहजमी और सिर दर्द वाले को दस्त की दवा देकर वो घर को निकल लिए। वो घर पहुंचे तो देखा कि कामिका के फ्लैट पर ताला है। वो बेल बजाने लगे। दरवाजा खुला, जीनत का वेलकम हमेशा जैसा ही फीका था। आ गए आप? अरे आ गया हूं तभी तो नजर आ रहा हूं, बेवकूफ औरत- अंसारी ने सोचा। वो अंदर आ गया। कपड़े बदलकर हॉफ पैट और टी शर्ट में वो हॉल में जम गया और कभी मैगजीन तो कभी रिमोट खंगालने लगा। तभी दरवाजा बजा, देखो जीनत जान, (जीनत जान- कभी-कभी इस नाम से अंसारी अपनी शरीकेहयात को बुला लिया करते थे।) अरे सुनो, जाने हयात हूर-ए- जन्नत, दरवाजे पर कोई है? मसरूफ हूं मैं -अंदर से आवाज आई। खुद को कुछ काम है नहीं, दरवाजा नहीं खोल सकते...अब अंसारी खुद उठा। दरवाजा खोला- सामने थी कामिका। बिना बाहों का ब्लाउज, होंठों पर लाली, माथे पर बारीक सा केसरिया चोले का तिलक और हाथ में लड्डू का डब्बा। हमारा गृह प्रवेश हुआ था न अंकल सो आज गणेश मंदिर गई थी, प्रसाद। इतने मेें जीनत भी अंदर से आई। हां..हां ये तो बहुत अच्छी बात है? आप प्रसाद लेते तो हैं न...कामिका को शक हुआ। हां..हां क्यों नहीं अल्ला-भगवान सब एक ही तो हैं, हम तो बचपन में भंडारे भी खा लेते थे और लंगर भी। जीनत जाओ कटोरी ले आओ..प्रसाद ले लो। जीनत ने अंसारी का मुंह देखा। हें...ये क्या हो गया है इनको? जाओ न...वो अंदर चली गईं। आप मंदिर अकेले ही गई थीं...जी अंकल वो क्या हुआ कि उनको काम से टाइम नहीं मिलता सो मैं अपनी आंटियों के साथ चली गई थी। येतो निहायत ही अच्छी बात है। जीनत कटोरी लेकर बाहर आई। मैं इनको कहता हूं, जरा दरगाह होए आया करो, पर ये हैं कि हिलती तक नहीं, सीखिए मोहतरमा इनसे सीखिए। जीनत ने मुंह बनाया। कामिका हमेशा की तरह मुस्कुराई। हाय क्या कयामत है? दो लड्डू ले लूं। हां क्यों नहीं, आप पूरा डब्बा ह ी रख लीजिए। उसने डब्बा ही पकड़ा दिया। ये तो खुद ही लड्डुओं का थाल हो रही है- अंसारी ने ऊपर से नीचे तक कामिका को देखा। सोने सी दमकती सुनहरी सेंडिल, गोरे-गोरे पैर, आंखों को चौधियाती पायल, गुलाबी साड़ी, आंचल से झलकती गहरी नाभि, चिकना बदन। भरी हुई मांग, बालों में महकता गजरा, दमकती बिंदिया।
अंकल मैं चलूं। वो मुस्कुरायी। घर का बहुत काम करना है, सामान जमाना है, खाना भी बनाना है, उनको खीर बहुत पसंद है वो बनानी है, पूड़ी, मसाले वाली शोरवेदार आलू की सब्जी, पूड़ी, पुलाव सभी कुछ बनाना है। अंसारी ने जीनत का मुंह सवाली निगाह से देखा। कभी मेरे लिये ऐसा सोचा है? देखो इस जन्नत की परी को, कैसे अपने पति के लिए उसकी पसंद का खाना बना रही है। उसके लिये सज रही है संवर रही है। जीनत कटोरी देकर समझ गई कि अब और बेइज्जती न करवाई जाए। वो भीतर चली गई साथ ही कामिका भी चली गई। सेंडिल और पायल की आवाज ऐसा संगीत पैदा कर रही थी मानों फरिश्ते हथौड़ा बजाकर दिलरुबा के तार छेड़ देते हों।
अंसारी ने दरवाजा बंद किया और लड्डू टेबल पर रख एक खाने लगा। जीनत हॉल में आई- क्या हो गया है आपको, प्रसाद खा रहे हो? और कब खाया आपने भंडारा, लंगर तक तो कभी चखा नहीं दरगाह पर। एक बार खाया था जाने मन पर उसके बाद नहीं खाया। तुम भी खा लो लड्डू, अरे मिठाई समझकर ही खाले मेरी गुलबदन। अंसारी ने जीनत को खुश करने की नाबामियाब कोशिश की ।
आपको बता दें कि जीनत अंसारी को अच्छे से जानती थी क्योंकि वो उसके पड़ोस में दो-तीन घर छोड़कर रहती थी। अंसारी बचपन में नंगे होकर उनके घर के सामने से कई बार दौड़कर निकल जाते थे। जीनत की अम्मी हंसती थी और कहती थीं कि ये आदमी का बच्चा है या कोयले का टुकड़ा जिसके हाथ-पैर निकल आए हैं? जीनत ने उसको जवानी तक घर के सामने से ही आते-जाते देखा था। वो कभी ये नौकरी करता तो कभी वो धंधा पर नफा तो कहीं से नहीं हुआ उलटा नुकसानी में उसका घर गिरवी चला गया। जिसको निकाह के बाद उसकी अम्मी ने छुड़वाया था। खैर, अंसारी दो-चार शुद्ध घी में पगे बारीक बूंदी के लड्डू गपक गया। कुछ देर में दरवाजा बजा और शाहिदा और जीशान ने आमद दर्ज की। दोनों थके हुए थे पर लड्डू देखकर उनके मुंह में पानी आ गया और एक-एक लड्डू दोनों ने ले लिया। वाह, ये तो बेहद लजीज हैं- जीशान बोला। अब्बू आप लाए क्या? शाहिदा ने शक से पूछा। क्योंकि अंसारी तो ईद को भी मिठाई नहीं लाता था। आज तो वैसा मौका भी नहीं था। तभी जीनत वहां आ गई। अरे छोड़ो इनको मत खाओ। क्यों क्या हुआ अम्मी- जीशान पूछ बैठा। अरे ये प्रसाद है प्रसाद, मंदिर का। अरे अम्मी तो उसमें क्या है? हम तो अपने ख्रीस्त दोस्तों के यहां का केक भी खा लेते हैं। ये तो उससे भी लजीज है- शाहिदा ने कहा। हाय अल्लाह, ये काफिरा हमारा मजहब ही न खा जाए। अरे मेरी लड्डू बी तू भी खा ले, गम न खा लड्डू खा- अंसारी की इस बात पर दोनों बच्चे खिलखिलाकर हंस पड़े। खीजती जीनत अंदर चली गई। दूसरे दिन 11 बजे के करीब अंसारी आईने के सामने खड़ा होकर अपने जिस्म को देख रहा था। डोलों में दम है या नहीं, कहीं बुजुर्ग तो नहीं दिख रहा हूं। तभी दरवाजा बजा। जरा देखना जी...जीनत की आवाज से पहले ही अंसारी दरवाजे पर था। दरवाजा खोला- सामने कामिका खड़ी थी। चमक चांदनी, जरी और सलमा सितारों से सजा घाघरा-चोली पहने, माथे पर चेन से बंधा टीका, बालों में गजरा, हाथों में डांडिया, कमर में करधनी, हाथों में कड़े, हथेली पर खूबसूरत मेहंदी,पैरों में घुघरों से भरी पायजेब, पैरों में जरी से सजी जूतियां । वो उसे नजरभर देखकर उस रूप को दिल में उतार लेना चाहता था। अंकल..अंकल.. हूं हां हां कहिए क्या हो गया...आज आप इस लिबास में। वो मुस्कुराई। क्या है अंकल कि आज क्लब में सोशल प्रोग्राम है हमारा ग्रुप डांडिया करेगा। आप सोलो पर्फामेंस करेंगी...नहीं सर इस बार नहीं पर हां अकसर करती हूं मैं। मैं क्या खिदमत करूं आपकी...अरे कौन है? जीनत की आवाज आई। कामिका ने अंदर देखने की कोशिश की। अरे जाने भी दीजिए, आपको कुछ काम था न, हां अंकल मेरे घर की चाबी, उनको दे दीजिएगा। अब तक जीनत भी वहां आ गई। वो क्या है कि आज मैं लेट आऊंगी। वो आ जाएं तो उनको चाबी दे दीजिएगा। हां हां क्यों नहीं, जीनत ने फिर मुंह बनाया। वैसे आप के उनका नाम क्या है? अब कामिका कुछ लजाई, सर वो क्या है कि हम राजपूत हैं हमारे यहां पति का नाम नहीं लेते। तो उनको क्या कहकर बुलाती हैं ऐजी...अंसारी हंसा। नहीं सर..उनके प्यार का नाम मैडी है पर मैं उनको प्रीतम सा कहती हूं- उसने कुछ शर्माते हुए बताया। हमारे पूर्वज राजपूत क्षत्रियों के यहां पूजा-पाठ का काम करते थे। राजा सा ने हमको क्षत्रिय की उपाधि दी थी। हम सबको साहब कहते हैं आदर से साहब का शार्टफार्म है सा, मां सा- मां साहब, बा सा- बा साहब। और प्रीतम सा यानी प्रीतम साहब, अंसारी फिर हंसा। अच्छा सर मैं चलूं। ठीक है। वो उड़ गई। तेज इत्र की खुश्बू तो अब महसूस हुई जब होश आया। अंसारी मुड़ा जो जीनत के चिढ़े चेहरे से उसका सामना हुआ। अरे हटो..क्यों बीच में आती हो..अब जीनत चिढ़ गई। अब आएगा रात को...मेरी गुलबदन...छूने नहीं दूंगी। हु..अंसारी हॉल में आ गया। दरवाजा बंद कर मेहरू। जीनत ने जोर से दरवाजा भड़का और अंदर चली गई।
दिन ढला और रात हो गई। अंसारी ने खाना खाकर घड़ी देखी रात के साढ़े नौ बज रहे थे। बच्चे हॉल में टीवी देख रहे थे। अंसारी को घड़ी निहारता देख जीनत बोल पड़ी- देखो तो कैसी औरत है। देर रात तक घर के बाहर रहती है। आजकल शर्मो हया नाम की कोई चीज ही नहीं रह गई है। उसे अंसारी से जवाब की उम्मीद थी पर वो चुप किसी सोच में था। कामिका ने कहा था कि पति आए तो चाबी देना, पति तो आया नहीं...अंसारी ने कहा। कौन जाने माजरा क्या है? जीनत के मन में भी कुलबुलाहट थी। क्या तुमने कभी कामिका के पति को देखा है? जीनत खामोश रही फि र बोली- जुम्मा-जुम्मा दो दिन ही तो हुए हैं आए को पर उसका पति नहीं दिखा न कोई आहट न आवाज। तभी डोरबेल बजी। बच्चों ने दरवाजा देखा पर खोला नहीं अंसारी दरवाजे की ओर दौड़ा कि कहीं बच्चे न खोल दे। वहां पहुंच माजरा समझ उसने दरवाजा खोला। सामने एक महिला खड़ी थी। हालांकि वो भी कम खूबसूरत नहीं थी, गोरा चिट्टा भरापूरा बदन, भरा-भरा चेहरा, कुछ तीखी, छोटी पर नशीली आंखें, जरूरत से ज्यादा उभरे रस से भरे होंठ। आप...कामिका ने आपको चाबी दी है क्या? हां, अंसारी ने उसे चाबी दे दी। वो चाबी लेकर फ्लैट की ओर चली गई। अरे वो थी कौन? ये तो पूछ लेते...जीनत ने कहा। अरे हां ये तो मैं भूल ही गया..अंसारी ने कहा। जीनत ने गुस्से में उसका मुंह देखा सोचा..आ गए अपनी वाली पर औरत देखी नहीं कि हो गए बेताब।
अंसारी सारी रात हॉल में बैठा रहा पर किसी के आने की आहट न मिली। सुबह वो सोफे पर नींद के आगोश में ऊंघ रहा था तभी दरवाजा बजा। अरे जरा देखना दरवाजे पर कौन है? जीनत की आवाज सुन वो उठा और उसने ऊंघते हुए दरवाजा खोला तो देखा कि सामने कामिका खड़ी थी। सफेद की हद तक गुलाबी गाउन में खड़ी कामिका आज कुछ गंभीर थी। उसने अंदर देखते हुए पूछा- सर आप दवाई देते हैं न...अंसारी की छाती चौड़ी हो गई। हां, आपको को जिस्मानी तकलीफ है क्या? अंसार ने सोचा इस बहाने कामिका को छूने का मौका तो मिलेगा। अब कामिका बोली। आप कुछ देर के लिए अकेले में मेरे घर आ सकते हैं। हां क्यों नहीं? तो सर आज प्लीज दोपहर में मेरे घर आजाइ्रएगा। आपसे कुछ बात करनी है। ठीक, मैं आ जाऊंगा...अंसारी ने कहा। कौन है? जीनत की आवाज आई। कोई नहीं बेगम पेपरवाला है? अंसारी की बात सुन कामिका हल्की मुस्काई फिर आश्वस्त होकर चली गई।
दोपहर में 1 बजे जीनत ऊंघने लगी। ये मौका बिलकुल सही था। वैसे भी इस वक्त अपार्टमेंट में सन्नाटा कुछ ज्यादा पसर जाता है। बेगम मैं क्लीनिक जा रहा हूं। जीनत कुछ कहती उससे पहले ही अंसारी ने दरवाजा खोला और बाहर आकर बंद कर दिया। जीनत ने कुंडी लगाई और सोने चली गई। अब अंसारी कामिका के दरवाजे पर पहुंचा। डोर बेल बजाई तो उसने दरवाजा खोला और उसे अंदर लेकर बंद कर लिया। अंसारी ने हॉल देखा कामिका के पास खजूराहो की मैथूनरत मूर्तियों का नायाब संग्रह था। दीवार पर चुम्बन लेते उत्तेजक वॉल पेपर भी लगे थे। सामने दीवार पर कामिका का एक फोटो था जिसमें वो दुल्हन के लिबास में सोलह श्रृंगार कर शर्माती हुई खड़ी थी। बैठिए सर...कामिका की आवाज सुन अंसारी सोफे पर बैठ गया। सर वैसे तो ये बात एक औरत कह नहीं सकती पर ये बहुत जरूरी है। कहिये, तकल्लुफ मत कीजिए...अंसारी ने आश्वस्त किया। पूरा कमरा भीनी भीनी खुश्बू से मह क रहा था। सर..मेरे पति रात को देर से घर लौटते हैं और थक जाते हैं। उनका मूड नहीं बनता। मैंने अपनी तरफ से पूरी-पूरी हर तरह की कोशिश की पर वो थके-मांदे सो जाते हैं। सारी रात बिस्तर पर कभी यहां से वहां तो कभी वहां से यहां करवटे लेती रहती हूं। बिस्तर मानों काटता है। अगर सर ऐसा ही चला तो ये रिलेशन जल्दी टूट जाएगा। अंसारी कामिका के रूप रस का पान पूरी तरह से करना चाहता था पर उसकी उदासी आड़े आ जाती थी। वो हकीकत में आया- नहीं नहीं ऐसा नहीं होगा। सर आप तो डॉक्टर हैं। क्या आप उन्हें इसके लिए कोई दवाई दे सकते हैं? हां-हां क्यों नहीं जरूर-जरूर...आपकी शादियाना जिंदगी पुरसुकून हो जाएगी। चिंता न करें। मैं आज से तैयारी शुरू कर दूंगा। आप मुझे कल सुबह रिमांड करवा दें। थैंक्यू सर...कामिका ने कहा और उसे दरवाजे तक छोडऩे आई। अंसारी घर पर आया और डोर बेल बजाई। जीनत ने दरवाजा खोला। वो अंदर आ गया और कपड़े बदल बिस्तर पर लेट गया। अब उसका दिमाग एक खुराफती युक्ति भिड़ाने लगा। बच्चे घर आ चुके थे। इतने में उसे जीनत के भाई का फोन आया-घर में उसकी पत्नी की तबीयत खराब हो गई थी। जीनत का मामला था सो उसे जीनत को लेकर ससुराल जाना पड़ा। वहां कुछ समझ में नहीं आने पर उसे साले की पत्नी को सलाईन लगा दिया और चूरन का फांका लगवा दिया। रात तक उसे राहत हो गई और फिर वो घर लौट आया। काफी समय बेकार हो चुका था और शरीर जवाब दे रहा था। वो सो गया। दूसरे दिन दरवाजा बजा। बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे। जीनत रसोई में थी और अंसारी ढाढ़ी बना रहा था। उसने जाकर दरवाजा खोला- दरवाजे पर कामिका खड़ी थी। हाथों में लगाई नई मेहंदी की भीनी खुश्बू और उसके चेहरे की रौनक ने अंसारी के अरमान जवां कर दिये। सर आपने कहा था-हां..हां बस दवाई तैयार हो गई है। शाम तक दे दूंगा। जी, कामिका मुंह बंद करके कुछ यूं मुस्कायी कि वो उसका फिर मुरीद हो गया।
अब अंसारी दवाई बनाने में पूरी शिद्दत से भिड़ गया। इतना गंभीर होकर वो कभी काम में नहीं भिड़ा था। जीनत ने सोचा - अरे आज तो सुबह से ही काम में लग गए। देख ही नहीं रहे न ब्रुश करने का ध्यान है न नहाने-धोने का। आज तो जुमा भी है। अरे आज जुमा है? तो क्या करूं? नमाज- पढ़ ली जाएगी। अब जाओ यहां से। जीनत डांट खाकर वापस काम में लग गई। कुछ देर में अंसारी ने दवाई की दो पुडिय़ाएं तैयार कर डालीं। नीली और पीली। नीली थी कामिका के पति के लिए जिसमें भारी नींद का असर था। पीली थी जरूरत से कुछ ज्यादा तेज उत्तेजना की कामिका के लिए। अंसारी का इरादा था कि जब कामिका का पति सो जाएगा तब कामिका की तलब जागेगी तेज दवाई से वो घबराएगी फिर वो उसके पास आएगी और वो उसे अपना लेगा। उसका यौवन उसका हो जाएगा। इसके बाद वो एक तरकीब लगाएगा कि कामिका हमेशा के लिए उसकी हो जाएगी। नाम उसके पति का और काम उसका होगा। दोपहर में जीनत सो गई तब अंसारी चुपके से कामिका के फ्लैट पर पहुंचा उसे पुडिय़ाएं दीं। ये लीजिए आपकी दवाइयां, बस एक बात का ध्यान रखिएगा-क्या?- नीली आपके पति के लिए है और पीली आपके लिए, अगर इसे खाकर घबराहट हो तो मुझे बुला लीजिएगा। चुपके से दरवाजा खटखटा देना मैं हॉल में ही सोऊंगा। ठीक है सर पर- नहीं घबराइये नहीं, दवाई जब असर करती है तो थोड़ा सा अजीब सा लगता जरूर है, पर इसके असर के बाद...कामिका शर्मा गई। अंसारी हंसा। तो ये लीजिए। दवाई देकर अंसारी घर आ गया। शाम को उसने खीर बनवाई और चुपके से उसमें नींद की गोली डाल दी। पूरा परिवार गहरी नींद में सो गया। बस जाग रहा था तो सिर्फ अंसारी। वो हॉल में बैठा था और इस इंतजार में था कि कामिका वहां आए और उसकी उत्तेजना का वो फायदा उठाए, पर रात बीतने लगी वो नहीं आई। तड़के अंसारी की आंखें भारी हो गईं और वो गहरी नींद में सो गया। सुबह 10 बजे उसकी नींद खुली। जीनत वहां आई। पता है क्या हुआ? क्या हुआ कामिका को- अंसारी ने फौरन पूछा। आपको कैसे पता कि बात उसकी है- जीनत ने पूछा। अब अंसारी सकपका गया। नहीं वो तो तुम्हारे बोलने के अंदाज से लगा। बताओ तो हुआ क्या? क्या बताऊं आज सुबह उसका पति उसको गोद में उठाकर ऑटो में बिठाकर कहीं ले गया।
अंसारी घबरा गया। हटो मुझे क्लीनिक जाना है। क्लीनिक... पर शनीचर को आप तो कभी-कभी क्लीनिक जाते है। उस कभी-कभी में आज का दिन शुमार है। अंसारी तेजी से जाने की तैयारी करने लगा। वो तैयार हो ही रहा था कि डोरबेल बजी। जीनत ने दरवाजा खोला। देखा तो तीन लोग खड़े थे। अंसारी कहां है? मैं हूं अंसारी- वो बाहर आया तो बीच में खड़े आदमी ने उसकी कॉलर पकड़ ली। कामिका को कौन सी दवाई दी थी तूने। अरे जनाब आप खामोख्वाह हमें पकड़ रहे हैं। छोड़ों इनको मरदूद। जीनत चिल्लाई। इसकी करतूत पता चलेगी तो थूकोगी इस पर..आदमी गुर्राया। तू है कौन..कामिका का पति...हंगामा होने लगा। चल...उस आदमी ने अंसारी को बाहर निकाल लिया। चल थाने...ये इमारत भाईजानों की थी। जीनत चिल्लाई तो सभी बाहर निकल आए। झूमाझटकी शुरू हो गई। किन्हीं लोगों ने कामिका के पति के कपड़े फाड़ दिये। उसके साथियों का पीट डाला। कोई नहले पर दहला निकला उसने पुलिस को फोन लगा दिया। पुलिस आई और उनको लेकर थाने आ गई। कामिका के पति और उसके दोस्तों को मेडिकल करवान के नाम पर अस्पताल भेज दिया। जहां डॉक्टर थे ही नहीं और अंसारी पर फर्जी डॉक्टर का मामला दर्ज कर लिया। अंसारी ने बाबा खान नेताजी को फोन लगाया। नेताजी ने कहा तो पुलिस उनको छोडऩे को तैयार हो गई। मामला कमजोर और बेहद हलकी धाराओं का बनाया गया। अंसारी समझ गया कि शायद कामिका न ेतो सही दवाई पी ली पर उसका पति किसी कारण से दवाई नहीं पाया होगा। रात को कामिका का अंदाज बदल गया होगा। फिर उसकी तबीयत खराब हो गई होगी। बस फिर वहीं हुआ जो होना था। अस्पताल में डॉक्टर ने हालत देखकर तजुर्बे की बिना पर सबकुछ बकर दिया होगा। कामिका ने मेरा नाम लिया होगा..सबकुछ बताया होगा। इसके बाद मारे गए गुलफाम..
रात को साढ़े दस बजे अंसारी को कह दिया कि घर चले जाइए। वो निकलता उससे पहले ही थानेदार उसके पास आया। अरे जाते-जाते एक बात सुनते जाइये...कहिए..आखिर वो दवाई कौन सी थी जो अपने बनाई थी। अगर आप बुरा न मानें तो ऐसी और दवाइयां भी बनाइये बाजार में इनकी बहुत डिमांड है। ये बिजनेस है बिजनेस, मेरी एडवाइस पर गौरजरूर फरमाइएगा। अंसारी ने सोचा- ये धंधा भी बुरा नहीं है...पर हकीकत में मर्दानगी है क्या?

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