सोमवार, 28 मई 2018

और कोठी गिर गई.....

कोठी में से लडऩे की आवाजें आ रही थीं। ये हमारी कोठी है। हमारा भी इस पर हक है। बेटी को भी बराबर का हक मिलता है नहीं दिया तो केस करेंगे। जाओ कर दो केस, किसी को एक कानी कौड़ी न मिलेगी। अचानक जर्जर कोठी भरभराकर गिर गई और सभी उसमें दब गए। घंटों तक खबर करने के बाद भी कोई नहीं आया। बाद में मलबा हटाकर अंतिम सांस लेते लोगों और लाशों को निकाला जाने लगा। लोगों में इस बात की चर्चा होने लगी।
आप लोगों को माजरा समझ में नहीं आ रहा होगा। चलिए...पूरा कथानक जानते हैं। ये कोठी बलवंतराय की थी। बलवंत राय, जिनका पूरा नाम था- रायराजा सूर्य बली बलवंत राय, इनके दादा के दादा ने कोठी का निर्माण करवाया था। इस कोठी में 150 से ज्यादा कमरे थे। पांच मंजिला इस कोठी को कभी पंचमहल के नाम से जाना जाता था। दादा को ये इमारत मिली और उन्होंने अपने 8 बच्चों, जो जिंदा बचे, वर्ना बाकी बीमारी के शिकार होकर बचपन में ही स्वर्ग सिधार गए, को ये कोठी दी। अब ये कोठी बलवंत राय और उसके पांच बच्चों के हवाले थे। बलवंत की मौत हुए हफ्ताभर ही हुआ होगा कि आज उनके पांचों बच्चे यहां इकठ्ठा हुए और हक को लेकर आपस में भिड़ गए।
बलवंत राय के परिवार में बड़के भैया शिशुपाल तो सन्यासी हो गए थे। अब वो बनारस में निरस हो चुके थे। उससे छोटे थे, कपिलनाथ जो अब उस इमारत में घुसे बैठे थे और लड़कर किसी को भी उसमें आने नहीं देते थे। इनसे छोटी थी सुवर्णा दीदी जो कभी झांकने नहीं आई पर अब जब हिस्से की बात आई तो वो कब्र फाड़कर बाहर आ गईं। इनके पति भी लडऩे को तैयार थे, वो वकील जो थे। अब आई सुहिता की बारी, सुहिता अनब्याही थी और जवानी का ठंडा जोश लड़कर निकाल रही थीं। ये बलवंत के साथ ही रहती थीं और बलवंत कपिलनाथ के आश्रित थे। कपिलनाथ से इनकी लड़ाई चलती ही रहती थी। अब बचे छुट्टन, वो सिपाही हो गए थे और पास गांव में थाने पर रहकर किस्मत को कोसते थे।
जब कभी त्यौहार पर ये परिवारजन यहां इकट्ठे होते तो इनमें लड़ाइयां होतीं। किराए की दुकानों के किराए को लेकर जो कोठी में ही थीं। किराएदार भी यहां थे, जिनमें से कइयों ने यहां कब्जा कर लिया था और छोडऩे के एवज में मोटी रकम मांग रहे थे। लड़ाइयों और स्वार्थों की आपसी दरारों ने इस इमारत की नींव कमजोर कर दी थी। मुसीबत तो तब हुई जब किराएदार मुसद्दी साहू ने आटा चक्की खोल डाली और चमन नॉवेल्टी ने यहां पिंजारे और सिलाई की मशीनें डाल दीं। वो दिन तो क्या रात में दनदनाती और इमारत का भुरकस रितरित कर यहां वहां गिरता।
आज सभी को पता चला कि कपिलनाथ ने इमारत के आधे हिस्से का सौदा कर दिया है और पैसा लेने वाले हैं। जाहिर सूचना मिली थी शायद। सुवर्णा अपने पति और सभी लोगों को लेकर वहां पहुंच गई। लड़ाई शुरू हो गई। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मकान का सौदा करने की। तू चुप कर कमजात। ढंग से बात करो। छुट्टन को छुट्टी न मिली तो उन्होंने सुवर्णा को ही अपना प्रतिनिधि बना दिया। हंगामा होता रहा और होता रहा जब इमारत इसे झेल न पाई तो गिर गई...गिर गई जैसे रिश्तों का अपनापन और स्वार्थों के बढऩे से एकता की अहमियत। जिन कबूतरों के घोसले यहां थे अब वो दूसरी इमारत पर बैठकर मलबे को ताक रहे थे। जमीन को सरकारी जांच में लिया गया। मकान खतरनाक की सूची में जो था। अब वो जमीन भी सरकारी थी। छुट्टन किस्मत को कोसते रहे, कोसते रहे और कोसते ही रह गए। अब फरिश्तों की रूह सिरधुन रही थी और जमीन नीलाम हो रही थी।
29 मई 2018

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