बुधवार, 4 मार्च 2020

एक इंसान की वापसी

गधे ने अपनी वापसी की कहानी तो सुना दी जिसे कृष्णचंदर ने लिख मारा था पर अब बारी इंसान की थी जो अपनी वापसी कर रहा था। एक इंसान था वक्त का मारा। उसे वो सब कुछ नहीं मिल रहा था जो वो चाहता था। वो एकांत में गाता था, जिंदा हूं इस तरह के गमे जिंदगी नहीं.....किस हज्जाम ने उसकी हजामत बनाई थी कि वो आइना देखने से भी डरने लगा था।
किस्सा कुछ यूं है- एक आदमी था मिथुन चक्रवर्ती जैसा वो न जाने किसका बेटा था पर मां उसकी जरूर थी। मां कपड़े सिलती थी और आमदनी इतनी हो जाती थी कि घर खर्च तो चलता ही था साथ ही बेटे की फीस और डोनेशन भी चली जाती थी और वो कुछ पैसा जमा भी जमा कर लेती थी। वाकई में, बात में दम तो है....बेटा बड़ा हुआ और अचानक से उसे स्कूल/कॉलेज जो कुछ भी था, में अव्वल दर्जा मिला। स्कूल/ कॉलेज रजिस्टर्ड था भी या नहीं पर उसे छात्रवृत्ति मिली वो छात्रावास में पढऩे जा पहुंचा। मां रोती बिलखती पीछे रह गई। बेटे ने यहां भी झंडे गाड़े वो पढ़ता गया ...पढ़ता गया .....पढ़ता गया बेटा किस जात का था और उसे छात्रावृत्ति किस बिनाह पर मिली इस पर बातें फिजूल हैं, आरक्षण पर चर्चा न करें। अब पढ़ाई पूरी हो गई बेटा हर जगह अव्वल रहा खेल में, पढ़ाई में प्यार में भी उसे अमीर बाप की बिगड़ैल बेटी से मोहब्बत हो गई वो भी खासी हुज्जत के बाद। बेटा वापस लौटा छात्रवृत्ति से उसने कुछ पैसे बचाए थे जिससे मां के लिए साड़ी खरीद मारी। मां खुश हुई- जुग जुग जियो मेरे लाल। यहां बेटी के लिये भी ऐसी प्रार्थना होती विमेनिस्ट पूछते हैं।
बेटे को नौकरी भी पहले ही इंटरव्यू मे मिल गई और वो बड़े ओहदे पर बैठने को तैयार हो गया। शुक्रिया अदा करने वो जाहिरातौर पर मंदिर गया मां के पास नहीं? मंदिर में उसे एक और दुखिया मिल गया.. वो भी बेरोजगार बेटो को उस पर तरस आया और अपना नियुक्ति पत्र वो उसे देकर घर लौट आया। बेरोजगार बोला-भगवान तुम्हारा भला करे। अल्ला या ईसा नहीं। क्योंकि वो हिन्दू है समझे.!
अब बेटा नौकरी के लिए भटकने लगा जिसे पहली बार में ओहदे की नौकरी मिली अब उसे वॉच मैन तक की सलाम ठोंकू नौकरी के लाले पड़ गए। अचानक उसने गुंडो से एक आदमी की जान बचा ली। अब पता चला बेटा मारपीट में भी अव्वल है। आदमी शहर का डॉन था उसे बेटे का एहसान मानकर उसे गुंडा बना दिया बेटा एकाएक अमीर हो गया। मां को झोपड़े से महल में ले गया और अपनी मेहबूबा को कार में लेकर यहां-वहां भटकने लगा।
जल्द ही बेटे का मन बदल गया वो गुंडाई से तौबा करने लगा और पुलिस का मुखबिर बनकर सरकारी नौकरी के सपने देखने लगा। बस फिर क्या था गुंडे उसके खिलाफ हो गये। एक दिन गुंडो ने मां और मेहबूबा को उठा लिया। बेटा गुंडो से जा भिड़ा। उसने चंदमा की सत्ताईस और युद्ध की हजारों कलाएं दिखाई। अंत में सबको मार गिराया। सुप्रीमो गुंडे ने बेटे को तीन गोली मारी पर बेटा रुका नहीं उसने एक ही गोली में सुप्रीमो को ढेर कर दिया और भागते हुए अस्पताल जा पहुंचा। पुलिस सबसे आखिर में पहुंची। सरकारी अस्पताल में डॉक्टर नादारद रहते हैं पर आज न जाने क्यों वो सारे ऑपरेशन थियेटर में ही तैनात थे। बेटे की तीनों गोलियां निकाली और वो चंगा हो गया।
पर अब बात कुछ और हो गई...पुलिस बार-बार उसे पूछताछ के लिए बुला लेती है वो घंटों थाने में बैठा रहता है और मच्छरों को खून पिलाता है। नौकरी की तो बात ही छोड़ मारिये। मेहबूबा ने शादी तो कर ली पर वो एकता के सीरियल देखती थी सो बेटे की मां यानी सास से लड़कर बाप के घर लौट गई। सारी माया चली गई। बेटे ने नेता जी की बात मानकर उनको वोट दे मारा कि अच्छे दिन आएंगे पर उसे कुछ न मिला। बेटा तन्हा समुंदर किनारे बैठा, बिरादर मुकेश और रफी भाईजान के दर्द भरे गीत रेकरेंकर गा रहा था तभी उसका पालतू गधा जिसे उसने मालिक की मार से बचाया था तेरी मेहरबानियां की स्टाइल में, वहां आया और पूंछ केबाल उसके कान में डाले...क्या हुआ रेंकचंद...बेटा जी घर चले चलो मां की तबियत खराब है। अब वापसी ले लो... बेटा उठा और घर की ओर चल पड़ा। डूबते सूरज में दोनों के साए जाते दिख रहे थे। गीत बज रहा था- ओ जाने वाले हो सके तो.....

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