बुधवार, 18 मार्च 2020

नाते का जनाजा

गांव में अजगर खान का बड़ा नाम था। अपने पठान समाज में तो वो मुखिया के जैसे ही थे, दूसरे समाजों में भी अच्छी पैठ थी। परिवार का सुख भी था, वो भी ऐसा कि हर कोई जलने लगे। सात बेटियों और पांच बेटों के बाप अजगर की खाना आबादी की बातें तो लोगों में अलिफ लैला के किस्सों की तरह फैली थीं। अजगर तो आज भी जवान थे और सरदार बेगम का शबाब भी कायम था, वो आज भी निकाह के दिन जैसी सज-संवर जाएं और लाल शरारा पहन लें तो उम्मीदें कम नहीं हों, उल्टी बेपनाह हो जाएं पर जमाना भी तो देखना पड़ता है। घर में जमाई हैं बहुएं भी हैं। खैर, अजगर की बेगम थी सरदार बेगम। ये गांव के जमीदार अली खानदान की थीं, जो खुद को मुगलों और नवाबों से भी ज्यादा ही बड़ा मानता था पर प्यार-मोहब्बत का मामला था, सो उस समय के गरीब अजगर से उनका निकाह बड़े विरोध के बाद हो पाया था। आज अजगर के पास खासा पैसा था।
बच्चों का दीदा पढ़ाई में था ही नहीं सो मदरसे की देहली तक किसी ने नहीं लांघी। बच्चों की हालत देखकर वो आवारा बनते उससे पहले ही अजगर ने उनको काम से लगा दिया अब तो बच्चे इतने होशियार हो गए थे कि चोरी की सायकल क्या और ट्रक क्या, दो मिनट में तिंयापांचा बराबर कर कब बाजार के हवाले कर देते मालिकों को भी पता न चलता था। लड़कियों का निकाह हो चुका था, बेटे भी अपनी गाड़ी पर लगे थे, बस एक यावर ही था जिसकी उन्हें चिंता थी। तीन निकाह, तीन बेइंतहां खूबसूरत बीवियां पर यावर ने तीनों को छोड़ दिया। वैसे, गांव की ललनाओं में यावर कुछ खास अहमियत रखता था, घूंघट की ओट से भी वो उसे निहार लेती थीं।
अजगर खान पठान होने के नाते अपनी बिरादरी में रुतबा रखते थे। रिश्तेदार भी पास ही थे। उन्होंने अपने लोगों को समझाया कि खान बाकी बिरादरियों से ऊंचे हैं और उनको आम लोगों के साथ सुपुर्दे खाक नहीं करना चाहिए। इस नेक काम के लिए वो अपनी कुछ जमीन लोगों को देंगे। हालांकि, ये जमीन भी उन्होंने अपने रिश्तेदारों के जनाजों के लिए ही दी थी। सभी लड़कों ने हल्का विरोध किया पर अब्बा सब पर भारी रहे। जमीन लोगों को दे दी, हालांकि लिखा-पढ़ी नहीं हुई। पठान की जबान को कानून की जरूरत क्या?
रिश्तेदारों ने अजगर खान की जमीन पर कब्रिस्तान बना डाला। वक्त तो वक्त है इसका क्या भरोसा अजगर ने यावर को समझाया कि मजहबी और मुकम्मल जिंदगी जियो। निकाह करो और खानाआबादी कर अपने काम से लगे रहो। इस दुनिया में नाम करो, फरिश्तों को आराम दो और एक सही जिंदगी जियो। पर गुस्सैल यावर को कुछ समझ न आया। वो मोटरसायकल उठाकर निकल गया। यावर छोटा-मोटा ठेकेदार था। यहां-वहां उसका आना-जाना लगा रहता था। उसने ठोंका-पीटी का पेशा नहीं अपनाया वरन वो तो भाइयों का भी मजाक उड़ता था और यहां-वहां लोगों से लड़ता-झगड़ता रहता था। उसके गुस्से और लड़ाइयों से किस्से हातिमताई की तरह मशहूर थे। तभी गांव की स्त्रियों में वो किसी हीरो से कम नहीं था। वैसे भी फिलम जगत में खान ही खान हैं आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान और अब यावर खान।
वक्त एक ऐसी शह है जिसे बादशाह हों या जहांपनाह कोई हस्ती जीत न सकी बल्कि उसके तकाजों ने तो सल्तनतों को तबाह कर डाला था। अजगर की तबियत बिगड़ी और उनका इंतकाल हो गया। बची सरदारी और लड़के, लड़कों ने वक्त रहते पिता की जमीन का बंटवारा करना ठीक समझा। इस वक्त तक यावर विशेष प्रतिक्रिया देने के या हुज्जत करने की सोच में नहीं था। भाइयों ने जल्दी-जल्दी बंटवारा कर लिया और कब्रिस्तान की विवाद पैदा करने वाली जमीन यावर को दे दी। भाइयों ने सोचा, अच्छा मौका है। वैसे भी ये हमारी परस्ती में रहा ही कब? हमारा मजाक ही बनाता था। अब मजा आएगा ऐसी जमीन दी है कि तीन पुश्तों की खालू याद न आ जाये तो नाम नहीं। बहुत बढिय़ा। नाफरमान। अब बनाओ ताजमहल।
अजगर को गुजरे पंद्रह दिन हो गए थे। अब सभी को अपने-अपने काम की लगी थी। सभी ने यावर को जमीन के बंटवारे के बारे में बताया और उसे उसकी जमीन दे दी। अब तो यावर का गुस्सा सातवें आसमां पर जा पहुंचा, अरे ये जमीन मुझे दे दी। भाइयों ने साफ कह दिया ये जमीन ही मिलेगी, लेना हो लो वर्ना निकलो। मां दु:खी हो गई। अरे नामुरादों बाप को गुजरे महीना ना हुआ और बात यहां तक पहुंच गई। यावर अब अम्मी पर पिल पड़ा, वाह अम्मी जब वो ये खटकरम कर रहे थे तब आपको पता ही नहीं था, बड़ी नाशुक्रायी है। यावर गुस्से में घर के बाहर निकल गया।
यावर भी ठेकेदार था और जमीन के खेलों में उससे माहिर कोई न था। उसने जाकर जमीन देखी और लोगों से कहा कि वो इसे खरीदें वो रियायत देगा काम भी करेगा, जब कोई राजी न हुआ तो यावर ने ही वहां दुकानें बनानी शुरू कर दीं और जमीन को मौके की जमीन बनाने और सोना कूटने की तैयार कर ली। एक दिन यावर दुकानों का काम देखने आया था और अब वो वापस लौटने के लिए बाइक उठाने आया ही था कि उसने देखा, उसके दूर के रिश्ते का चाचा बाबू साइकिलवाला, जिसकी सायकल का पंचर बनाने की दुकान थी, एक जनाजा लेकर वहां आ रहा था। यावर चिल्लाया, ऐ यहां कहां चले आ रहे हो। बाबू बोला, भाईजान जैसा कि आपके अब्बा ने कहा था, हम अपनी अम्मी और रिश्ते से आपकी दादी को यहां दफनाने लाए हैं। आज सुबह ही इनका इंतकाल हुआ है। वाह! बड़े आए जनाजा लेकर दफनाने। अब ये जमीन मेरी है और मैं यहां पर दुकानें बनवा रहा हूं। खबरदार! अगर किसी ने यहां मुर्दे सुपुर्दे खाक करने की कोशिश की। निकलो यहां से, रही बात अब्बा की तो उनसे सातवें फलक पर जाकर बात करो समझे! अब निकलो यहां से, मुंडो क्या दिखा रहे हो? बाबू ने लाचारगी से उसे और सब ओर देखा। भाई ये तो आपने अपने अब्बा की जबान और रिश्ते-नातों का जनाजा निकल दिया है। हां! निकाला है नाते का जनाजा। दादी ने तुम्हारे लिये क्या कुछ नहीं किया? तुम्हे अपना दूध तक पिलाया। घर में बनी हर चीज तुम्हे खिलाई। भूल गए तुम। निकलो यहां से, निकल गया नाते का जनाजा, अब जादा मगजमारी मत करो। चलो भई! दूसरी जगह चलते हैं। जनाजा पलट गया। संकरी सड़क से जाते जनाजे के पास से यावर बाइक लेकर निकला और रास्ते में आए छोकरे को डपटकर बोला- हट रस्ता छोड़। लड़का बगल में कूद गया। लोगों ने देखा नाते के जनाजे को बिना कंधा दिये यावर तेजी से चला जा रहा था।

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