गुरुवार, 26 मार्च 2020

एक प्रेतबाधित सवाल

वो जब घाघरा और चोली पहनकर गरबे के पंडाल में उतरती और गरबा रमती तो सब लोगों की आंखें उस पर ही टिक जाती। वो भी रोज नया श्रृंगार करके आती। उसका गोरा रंग तो पंडाल में दमकता ही था चूडिय़ों की खनक और पैरों की पायल की छनक तक कभी-कभी सुनाई दे जाती। हर दिन हाथों में नए-नए चूड़ले-नई कलाकारी की मेहंदी, पैरों में आलता, नए तरह की पायल, हर दिन नया नखरा हर दिन नई अदा। लड़के उसे देखकर ये सोचते कि किसी तरह से उससे पहचान हो जाए तो फ्रेंड की बात तो छोड़ो फिर तो सीधे शादी की ही बात पर वो आकर रुकेंगे पर वो लड़की कहां से आती और कहां को जाती पता ही न चलता था।
इस लड़की का नाम था पायल। परिवार वाले तो उसे आने ही न देते पर वो जिद करके यहां आ जाती थी। वो स्कूटी उठाती और फुर्र हो जाती। वो सिविल लाइंस के मकान नंबर 11 में रहती थी। पायल के पिता थे रमाकांत गुजराती, दो भाई और छोटी बहन सहित मां, यही उसका परिवार था। वो सबसे बड़ी थी। तनसुखभाई के सुंदरी इंटरप्राइजेस की वो रौनक थी और उनके बेटे जिग्रेश के दिल का चैन। जिग्रेश मुंह से तो कुछ न कहता पर पायल जानती थी कि उसकी पायल से जिग्रेश का दिल धड़क पड़ता है। बात कही तो न गई पर सभी जानते थे कि उसकी शादी जिग्रेश से ही होगी और पायल की और उसके परिवार की अबोली सहमति भी थी। अष्टमी की रात वो रात के बारह बजे तक घर न पहुंची। पिता को चिंता हुई। गरबा आयोजक किशोर भाई को फोन लगाया तो वो बोले, पायल तो दस बजे ही निकल गई थी। अब पूरा परिवार परेशान हो गया। जिग्रेश को फोन लगाया वो भी उसे खोजने निकला। साढ़े बारह बजे पायल घर लौटी। बाल बिखरे और कपड़े अस्त-व्यस्त। चेहरे पर शरीर पर चोटें। क्या हुआ पायल? पिता ने पूछा। पापा...कुछ लड़कों ने मेरे साथ छेड़छाड़ की है। अरे..रे जाने दे तू तो ठीक है न... पापा मैं तो ठीक पर मैं उनके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट करवाऊंगी- पायल ने जिद की। अरे बेटी रहने दे..बदनामी होगी- मां ने समझाया। न मां मैं तो रिपोर्ट करवाऊंगी। वो अंदर चली गई। दूसरे दिन वो पुलिस स्टेशन गई। रमाकांत भी साथ गए। मामला खंगाला तो पता चला कि समाजसेवी और नेता वसुभाई के बेटे सूरी, उसके दोस्त इकबाल और बाबा खान के साथ दो लड़कों के नाम सामने आए। पांचों की पृष्ठभूमि बेहद रसूखदार परिवारों से थी। पुलिस वालों ने कहा कि लिखित में आवेदन दे दो। पायल अड़ गई कि एफआईआर दर्ज करो। मामला बनते न देख पायल ने जिग्रेश को फोन लगाया। वो आया और पुलिस से पूछताछ की। फिर उसने पिता को फोन लगाया और मामला बताया। तनसुख ठहरे व्यापारी वो घबरा गए। अगर वसुभाई को पता चला तो ठीक है पर बाबा खान के अब्बा तक बात गई तो पूरी इंटरप्राइजेस तहस-नहस हो जाएगी। वो बोले कि जिग्रेश भई तू तो घर आ जा।
अब पायल को गुस्सा आ गया। उसने अपनी पत्रकार दोस्त वैभवी को फोन लगाया और जिग्रेश को बोल दिया कि घर लौट जाओ। पापा राह देखता होगा। वैभवी वहां आ गई और मामला मीडिया की नजर में आ गया। पुलिस ने दबाव में एफआईआर दर्ज तो कर ली आरोपियों पर कार्रवाई होने में शुबहा था। पायल घर आ गई। दूसरे दिन पेपरों मामला आ गया। पुलिस ने जैसा कि अंदाजा था कोई कार्रवाई न की। उल्टे पायल पर ही सवाल खड़े कर दिये। पूरी कॉलोनी में पायल का परिवार चर्चा का विषय बन गया। कुछ लोगों को उससे हमदर्दी थी तो कुछ उसके विरोध में थे। घर वालों ने तो बाहरी लोगों से बात करना और उनकी ओर देखना भी बंद कर दिया। पिता घूमने बाहर नहीं गए और बाकी लोग तो मौन व्रत पर हो गए। पूरे घर में मरघट की सी शांति छा गई।
पायल परेशान थी कि तभी वैभवी घर आ गई। उसके साथ जागो शक्ति जागो महिला संगठन की अध्यक्ष मणिबेन और प्रमुख कांता ताई भी आई थीं। उन लोगों ने पायल को ढांढस बंधाया। वॉट्सअप और फेसबुक सहित दूसरे माध्यमों पर लोगों ने पायल का साथ दिया और आंदोलन की पृष्ठभूमि बनने लगी। शाम तक पुलिस का प्रमुख घर आ गया और पायल का बयान ले लिया और आरोपियों को धरदबोचा। रात में ही पूछताछ शुरू हो गई। दशमी यानी दशहरे के दिन पुलिस को ऐसी हकीकत पता चली कि वो हैरान रह गई। अब पुलिस प्रमुख पायल के घर पहुंचा। जरा पायल को बुला देंगी, उसने मां से कहा। मां घबराई क्या हुआ? उसी से बात करनी है। इतने में पायल वहां आई। मां यहां-वहां हो गई। पायल रहस्यमय ढंग से मुस्काई फिर बोली- सर, हमारा समाज प्रेतबाधा से ग्रस्त है। हम कितने ही आधुनिक क्यों न हो जाएं हमारी सोच बदल ही नहीं सकती। आपको सूरी ने सब सच बता दिया न। अब पुलिस प्रमुख के पसीने छूटने लगे।
गरबा में सूरी ने मुझे देखा और कहा कि गर्लफ्रेंड बनोगी मैंने इंकार कर दिया, वो पीछे पड़ा तो झिड़क दिया। चिढ़कर उसने मुझे इकबाल और बाबा खान की मदद से उठा लिया। उन दोनों ने उसे मर्दानगी की दुहाई दी थी। कहा कि मर्द बन कर दिखा। वो तो अपनी बहनों तक को न छोड़ते थे। मैं तो फिर भी पराई थी। उसके दो दोस्त और भी थे वहां। मैं चिल्लाई और कुछ लोगों ने देखा पर किसी ने मदद नहीं की। उन्होंने बहुत कोशिश की पर जब काबू नहीं पा सके तो सूरी और इकबाल ने मुझे पकड़ा और बाबा खान ने मेरे सिर पर लोहे की रॉड मार कर मुझे मार डाला और लाश जमीन में दबा दी। मैं मर गई कुछ लेना-देना तो किसी से था नहीं पर इस समाज की प्रेतबाधा को दूर करने के लिए मैं वापस आई। मैं जानती हूं कि शायद मुझे न्याय न मिले पर मैंने समाज को इस बाधा से मुक्ति दिलवाने के लिए एक कदम बढ़ाया है। लोग आगे आएंगे। अब जाऊंगी सर पर एक बात का दु:ख रहेगा कि जो मेरी इज्जत बचाने और हरदम अपना बनाने को ललचता था वो मुझे ऐसे वक्त में छोड़ गया। आप जिग्रेश से मिलो तो कहना कि पायल उसे कभी नहीं भूलेगी। नहीं भूलेगी कि वो कैसा बेवफा निकला। मैं दाल-रोटी कमाने वाली नहीं थी (गुजरात में ऐसी महिलाएं जो वेश्यावृत्ति में लिप्त होती हैं और पूरा परिवार उनके इस पेशे को करने के लिए उनको बाध्य करता है यहां तक कि पति भी। उनको वहां आम भाषा में दाल-रोटी कमाने वाली के नाम से संबोधित किया जाता है)। जो वो मुझे यूं बेसहारा छोड़ गया।
लोग कहते है कि डीकरी है घर में रह पर्दा कर पर अपने वहशी बेटों से नहीं कहते कि औरत की इज्जत कर। ये है प्रेतबाधा इस समाज की सर। बेटी हो तो सीता सी, राधा सी नहीं...भले भगवान हो जाए पर बदनाम तो होगी ही न।
गरबा करेगी नाचेगी तो नजर आएगी ही, कुछ होगा नहीं तो क्या होगा? क्यों घूमती है आवारा सी, लड़के तो छेड़ेंगे ही। उनका अधिकार है। चुपड़ी रोटी दिखी तो कुत्ता ललचाया। मर्दानगी दिखानी है तो औरत पर दिखा...कैसी कुंठा है? अरे मर्द हो तो मर्दानी देश की सीमा पर दिखाओ। लोगों के अधिकारों के लिए लड़ो। बदमाशों को मारो...नहीं, ऐसा करना तो मर्दानगी नहीं है, वहां तो सिर कटना पड़ेगा न, गुंडे धुन देंगे, यहां तो बस जोर दिखाना है, अबला को दबाना है जो जितना दबाएगा वो उतना मर्द, सच्चा मर्द। सर, समाज की ये प्रेतबाधा है, हमेशा रहेगी। हमारे देश में मर्दानगी को लेकर इतनी शंका है जिसका उदाहरण आपको दीवारों पर, अखबारों में कई जगह मिलेगा जहां मर्दानगी बढ़ाने की दवाइयों का जिक्र सबसे ज्यादा होता है।
खैर, आप लोगों ने मेरी लाश जब्त कर ही ली है और उनके भेडिय़ों के बयान भी हो गए हैं। कोशिश कीजिएगा कि उनको सजा मिले। वर्ना मैं तो हूं ही न...वो बोली। अष्टमी को दुर्गा जागी है, दशमी को महिषासुर का दलन होना चाहिए, नहीं होगा तो दीपावली अंधियारी हो जाएगी।
इसके बाद वो बाहर गई, मां से बोली-चिता को आग मत देना। गाड़ देना, मुझे मुक्ति नहीं चाहिए। मैं तो भटकूंगी...अतृप्त आत्मा सी पर एक उद्देश्य से, ऐसे बदमाशों को जिनको समाज सजा नहीं देगा, कानून सजा नहीं देगा उनको मैं सजा दूंगी। मैं वापस नहीं आऊंगी पर याद रखना कि बेटी थी और बदमाशों को सजा दिलवाना। मां कुछ समझती उससे पहले ही वो गायब हो गई। पायल की लाश को श्मशान में गाड़ दिया। जहां उसके परिवार वाले और कभी चोरी-छिपे से जिग्रेश जाकर फूल चढ़ा देता था। जिन लोगों को ये बात पता चली वो आश्चर्य में पड़ गए और पागल कहलाने के डर से पूरा मामला दबा दिया। लोग इस बात को कैसे पचाते कि एक आत्मा लोगों के बीच आई और इंसाफ मांगा।
कानून अंधा है कोर्ट से सामने मामला साबित नहीं हुआ और वो तीनों अपने दो दोस्तों के साथ छूट गए। दीपावली की वो तीनों मुख्य आरोपी रहस्यमय रूप से गायब हो गए और फिर उनका कोई पता नहीं चला। तीनों के घर वालों को एक मैसेज मिला मोबाइल पर.....मैं जिंदा हूं और जिंदा रहूंगी। बाकी एक को लकवा मार गया और दूसरा पागल हो गया। इसके बाद किसी को कुछ नहीं पता क्या हुआ? लोगों का कहना था कि जिग्रेश ने ही उन लोगों को ठिकाने लगाया था। वो पायल का बदला ले रहा था या फिर उसके परिवार के किसी ने उनको मार डाला। पुलिस ने जांच भी की पर कुछ पता नहीं चला। पर मन कहता है कि शायद पायल आज भी अतृप्त आत्मा के रूप में जिंदा है, जिंदा है एक सवाल बनकर कि समाज की प्रेतबाधा दूर होगी या नहीं। वर्ना वो तो है ही... न...एक भटकता सवाल बनकर।

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