सोमवार, 30 मार्च 2020

किसी और की इज्जत

सिपाहीराम अपनी पत्नी मंदा को लेकर को लेकर गलियों में फिर रहा था। शाम का धुंधलका पडऩे में कुछ ही समय बचा था। कहीं से कोई टांगा या बैलगाड़ी मिल जाये तो स्टेशन तक पहुंच जाये और फिर वहां से शहर निकल जायें पर ऐसा कहां होना था? वो बदहवास जा ही रहा था उसके पीछे उसके दूधमुंहे बच्चे को गोद में दबायें उसकी महरू यानी पत्नी मंदा। तभी उसे घर के सामने से जाते देखकर बड़े घर के दरवाजे पर खड़ा ठाकुर का नौकर दत्तू चिल्लाया- अरे आज गाड़ी न मिली हो, तीज है आज रात गुजारने को अंदर आ जा महरू को भी ले आ। मंदा अंदर जाना न चाहती थी पर सिपाहीराम अंदर जा घुसा। उसने भी सोचा गाड़ी न मिली तो कहां रात का निर्वाह होगा? अंदर ठाकुर बैठा था आंच पर मुर्गा था और शराब की दावत होने वाली थी। ठाकुर के घर की औरतें रतजगे को देस की सारी औरतों के साथ माता मंदिर पर थीं। ठाकुर का नौकर दत्तू यूं तो सिपाहीराम को रोकता नहीं पर मंदा को देखकर उसका मन डोल गया। ठाकुर कहता था- शराबियों के तीन बाब- एक भी न हो तो मजा खराब-सुन रे मनवा कर रख याद-शराब-कबाब और मस्त शबाब।
सुसराल जाती मंदा रीत के मुताबिक सोलह श्रृंगारों से सजी थी। खूबसूरत तो वो गजब की थी ही उस पर ये नखरा। ठाकुर खुश हो जायेगा।
दोनों अंदर पहुंचे। मंदा ठाकुर से पर्दा कर रही थी। कोन है रे तू। यहां से दसवीं गली में जो रूपवती काकी है न मैं उनका जमाई सिपाहीराम और ये...
पता है..पता है- उसने हुक्का गुडग़ुड़ाया। आज तो तीज थी फिर क्यों ले जा रहा है? मंदिर पर रतजगा था वहां ना भेजा। सासुरी ने कहा नहीं आज त्यौहार है नहीं जाना है। रात रुक जाता कल चला जाता।
जो बात तो सही ठाकुर सा. पन मेरी चाकरी की खातिर जाना जरूरी है।
के काम करता है तू?
हुकम, सहर के चिट्ठीखाने में डाकिया हूं।
तो तू तो वही रहा डाकिया डाक लाया..डाकिया डाक लाया- वो हंसा।
हां, हुकम..
और तेरी घरवाली..क्या नाम?
मंदाकिनी- दत्तू के मुंह से एकदम से निकला। इससे सिपाहीराम असहज हो गया। ठाकुर ने दत्तू को घूरा।
मंदा...मंदावती- ठाकुर बोला, हमारे बाड़े में जब भी भजन होता अम्मा मंदा को बुलातीं और ये राधा-किशन के रास में राधा बनकर नाचती थी और किशन बनती थी वो..
रसीली- दत्तू के मुंह से फिर निकला। सिपाहीराम फिर असहज हो गया। ठाकुर ने फिर से दत्तू को घूरा।
रसाल, अब तो वो हमारे चचेरे भाई की ब्याहता है और बाड़े के पीछे के मकान में रहती है। मंदा मिली के नहीं उससे- ठाकुर का सवाल था जिसके जवाब में मंदा सिर हिलाकर हलके से बोली- हूं।
अंधेरा हो रहा था। शराब को देखकर मंदा और सिपाहीराम कुछ असहज थे सो ठाकुर ने दत्तू को बोला- नीचे के मुसाफिरखाने में इनको ठहरा दे। दो गिलास दूध दे दे और कुछ मांगें तो दे देना। गादी, गोदड़ा, बिछावन वहीं हैं लालटेन वहां कर देना। नीम का धुआं अच्छे से देना।
दत्तू उन दोनों को लेकर सामने के कमरे पर पहुंचा और दोनों को अंदर ले गया। सिपाहीराम की नजर शराब और मुर्गे पर थी जिसको ठाकुर भांप गया था। कमरे में दत्तू ने जल्दी-जल्दी झाड़ू बुहारी। गोदड़ा झटकारा। मंदा गोदड़ा बिछाकर उसपर अपने दूधमूंहे बच्चे को लेकर बैठ गई अब तक बच्चा भी उठ कर रोने लग गया।
अलेलेले..हमार मुन्ना..हमार चुन्नू, ए...-मंदा अपने बच्चे को लाढ़कर दूध पिलाने लगी।
उसकी आवाज सुनकर ठाकुर के जमा पांच लोग हंसने लगे। जिनकी आवाज मंदा ने न सुनी। कुछ देर बाद सिपाहीराम दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया। उसका अंदाजा था कि उसे कबाब और शराब जरूर मिलेगी। यहां बोतलें खुल ही रही थीं कि सिपाही को देखकर वो लोग चौंके।
सिपाही झेंपी हंसी हंसकर बोला- हें..हें, पार्टी हो रही है।
पियोगे लाला..एक आवाज आई।
हूं..
जियो हो लाला जियो-बड़े छुपे रुस्तम निकले तुम तो।
आओ यहां बैठ जाओ।
सिपाही उनके बीच जा बैठा और मुर्गे की टंगड़ी शराब के साथ गुड़ककर वहीं टुन्न हो गया।
ठाकुर यह सब बैठकर देख रहा था। अब वो उठा और सामने मुसाफिरखाने की ओर चला गया।
सब खुश थे कि ठाकुर के बाद उनको भी मिलेगी मंदा। मंदा की जिस्मानी गर्म खुश्बू को महसूस कर सभी रोमांंचित हो रहे थे। ठाकुर ने उड़काया दरवाजा खोला तो देखा, गोदड़ा बिछा था जिस पर मंदा बैठी थी। बच्चा उसकी गोद में दूध पीते-पीते सो चुका था। ठाकुर को देखकर वो चौंकी।
ठाकुर सा. पैरन लागी अब छोड़ दे मने।
उसके गजरे की महक कमरे में फैले नीम के धुएं की सौंधी गंध में भी साफ आ रही थी।
बस.. भूल गई जब मैंने तेरा हाथ धरकर तुझे चिपटा लिया था अपने सरीर से। तब तो तूने कुछ कहा नहीं था। थारे होठन का जायका अब तक हमारे मुंह में रसता है। वो रस हम अब तक न भूलेे। तुझे लड़की से औरत बना दिया तब भी तू चुप ही रही।
ठाकुर तब में गांव की इज्जत थी पन अब में सिपाही की इज्जत हूं- मंदा बोली।
ठाकुर का नशा एकदम काफूर हो गया। वो बाहर आया और सांकल लगा दी हाथ में ल_ा उठाया और सीढिय़ों पर बैठ गया।
जो मंदा के साथ मजा करने का अरमान लिये उस ओर आने वाले थे, उनको धमकाते हुए ठाकुर ने कह डाला- अब यहां कोई पैर न धरे वर्ना सिर खोल डालूंगा। उसकी आवाज मंदा ने भी सुनी। ठाकुर नशे में था फिर भी वो अकेले दस के बराबर था। लट्ठ भी उसके हाथ में था।
धीरे-धीरे रात कटी सुबह सिपाही को होश आया तो उसने देखा कि सभी वहीं थे। ठाकुर सीढिय़ों पर उनींदा सा था। सिपाही को देखकर वो उठा और सांकल खोली देखा तो मंदा बच्चे साथ वहां सो रही थी जो हलचल सुनकर उठी। सिपाही न जाने क्या समझा और बोल पड़ा- घणी खम्मा, ठाकुर सा. आप हमारे देवान हो। इसके बाद सिपाही मंदा को लेकर वहां से निकलने लगा। जाते-जाते मंदा ने ठाकुर का मुंह देखा जिस पर एक अजीब सा संतोष था। उसने ठाकुर के पैर छू लिये। दत्तू वहां एक टांगा ले आया था जिसमें सिपाही और मंदा को बिठा दिया। सिपाही टांगा चलाने वाले के पास बैठा था। टांगा निकल गया। कुछ समय के लिये ठाकुर की आंखों के सामने भूतकाल का एक चित्र घूम गया। मंदा या मंदावती या मंदाकिनी..उसके घर आती थी ठाकुर मौका पाकर उसे छेड़ा करता था वो कुछ न कहती थी। उसने उसे हर उस स्तर तक प्रताडि़त कर दिया था जो कि असामाजिक था। ठाकुर ऐसा उसके साथ ही नहीं कई और लड़कियों के साथ भी कर चुका था। यह ठाकुर का वर्चस्व ही था कि वो या कि कोई भी गांव की लड़की जिसे उसने छेड़ा था वो उसके खिलाफ कभी बोल न सकी। जब तक मंदा गांव की इज्जत थीं, ठाकुर ने उसे छेड़ा पर अब वो अपने पति की इज्जत है उसके घर की इज्जत है जिस पर ठाकुर का कोई अधिकार नहीं था। ठाकुर आज बेहद गिरा हुआ महसूस कर रहा था। कुछ दूर मुड़ते समय तक ठाकुर उनको देखता रहा। जब टांगा मुडऩे लगा तब मंदा ने ठाकुर के हाथ जोड़े। फिर वो अदृश्य हो गये।
तीज का जागरण समाप्त हो चुका था औरतें लौट रही थीं और उनके गीत का स्वर दूर से ही सुनाई दे रहा था। ठाकुर के घर रातभर से जमें उसके दोस्त अब निकल रहे थे। उसका एक दोस्त बोला- रात को क्यों तूने इज्जत के खाखरे कर दिये? पूरे मजे की ऐसी की तैसी कर दी। अब वो गांव की नहीं किसी और की इज्जत है- इन शब्दों के साथ ठाकुर घर में वापस चला गया।

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