गुरुवार, 14 जून 2018

इनका क्या करना है?

क्यों बे...आवाज को सुनकर सलीम, अशरफ, बाबू और मजहर चौंके। देखा तो सामने थानेदार खड़ा था। सलीम बोला- साहब, मालक ने तो माल भिजवा दिया था। हां..पर उसने ही बताया कि यहां क्या हो रहा है? क्या हो रहा है साहब..? मजहर का सवाल था। अबे काली के .. मुर्गे की लड़ाई का जुआ खेल रहे हो- थानेदार तैश में था। नहीं साहब...अशरफ की बात बनाने की कोशिश की। तो ये तंदुरस्त मुर्गों को लेकर क्या दावत मनाने आए हो? थानेदार ने डंडे से इशारा किया। दो तगड़े मुर्गे एक बांस के टोकने से बंधे खड़े थे। सिगरेट फूंकता बाबू उठने लगा तो थानेदार चिल्लाया- वहीं बैठ पिल्लो... हर बार मौका देखकर भाग निकलता है। तेरे से तो गंजेडिय़ों और अफीमची लोगों को ब्यौरा भी लेना है। बाबू ने सिगरेट फेंक दिया। क्यों सिगरेट में क्या था, गांजा..नहीं..अफीम..नहीं... भांग होगी..नहीं-नहीं साहब.. तो क्या था? बाबू चुप रहा...अबे मुफलिसी में छिपकली का चूरा तो नहीं फूंक रहा था। बाबू शर्माया..धत्त...हनुमान...अबे कहां गया? यहां हूं साहब...हवलदार पीछे से आया। इनको अंदर डाल ये मुर्गें भी उठा ले।
जैसे ही हवलदार ने मुर्गों की ओर हाथ बढ़ाया वो चोंच मारने लगे। हाय... अबे हिम्मत कर-थानेदार ने हवलदार का हौसला बढ़ाया। साहब मुश्किल है...अब थानेदार को फिर आया तैश। बता इनको कैसे ले चलें..साहब गीला कपड़ा इन पर रख तो नीम बेहोश हो जाएंगे- मजहर बोला। अबे तो कपड़ा मैं लाऊं और डालूं क्या? एक मिंट(मिनट का देसी रूपांतर) बाबू ने वहां रखा एक कपड़ा उठाकर मुर्गों की गर्दन पकड़कर उनके मुंह पर डाला। घबरा मुर्गें कुड़के.. फिर उनको टोकरे में डाल कर कपड़ा ऊपर से डाल दिया।
सभी थाने पहुंचे। मुर्गों को चारों के साथ लॉक अप में डाल दिया। अब मुर्गों को होश आया तो वो कुड़कने लगे। इनको भूख लगी है- मजहर बोला। बाबू ने जेब से दाने निकालकर डाले। वो चुग गए। शाम तक धीरे-धीरे चारों के बीवी, भाई, दोस्त आकर उनकी जमानत करवाकर ले गए। रह गए तो मुर्गें शाम को फिर वो कुड़कने लगे। लॉकअप में कोई था नहीं मुर्गे आपस में भिड़ गए। वो चारों उनको अलग रखे बैठे थे। अब पंख यहां-वहां उडऩे लगे। अरे रामसिंह इनको ठंडाकर..। दूसरा हवलदार रामसिंह अंदर जाने से डर रहा था। मुर्गों ने लड़-लड़कर लॉकअप में बीट कर डाली, पंख बिखरा दिये। कुछ देर बाद थककर मुर्गें शांत होकर कुड़कने लगे। थानेदार ने देखा। हनुमान..जी साब..ये पैसे लेकर जा और कांगनी ले आ..डाल दे कुकड़ों को... इतने में सिपाही अबरार वहां आया। हुजूर कुकड़े देखकर तबीयत हरी हो गई। मैं इनको साफ करना जानता हूं आप कहें तो दावत...थानेदार का मुंह देखकर वो चुप हो गया।
अब थानेदार ने साहब को फोन लगाया- खान साब..जी, क्या खिदमत करूं। आपके लोग तो जमानत करवा गए। ये मुर्गें रह गए हैं...अरे सोलंकी साहब उनको कौन छुड़ाएगा? आप तो उनको घर ले जाइये। भाभी से कहियेगा, अच्छी नस्ल के हैं। लजीज बनेंगे और अगर आपके यहां मुर्गियां हों तो मेल करवा दीजिए। फोन करना बेकार रहा। जवाब को कुछ समझकर अबरार बोला- मैं तो पहले ही कह रहा था साहब। थानेदार ने देखा मुर्गें कांगनी खाकर फिर से लड़ रहे थे। एक काम कर अबरार इन पर गीला कपड़ा डाल, टोकनी में रख। मैं घर ले जाकर सरोजा से पूछता हूं इनका क्या करना है?

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