बुधवार, 22 मई 2019
सुपारी
बशीरिये को कई बार बोला इतनी तंबाकू-सुपारी मत खा पर वो मानने वाला ही कहां था? कहता था ये लत तो मरकर ही छूटेगी। बीवी बन्नो कहती इनको कहां तक समझाओगे, मानने वाले थोड़े ही हैं। वो यूं मुस्काती मानो तुम तो निरे अहमक हो। कई दरगाहों पर मन्नत के धागे बंधे तब सात बेटियों पर एक बेटा हुआ। नाम रखा सिकंदर। लोग पूछते - ए बशीरिये तेरा बेटा अगर तंबाकू-सुपारी का लती निकला तो। वो हंसता- पठानी मर्द है वो ये नहीं खाएगा तो क्या खाएगा? मर्दों की पहचान ही है ये। दादी तो दिन भर यही चबाती। एक न जाने कहां से छोटे से सिकंदर के हाथ सुपारी का डब्बा लग गया और वो सुपारी के टुकड़े निगल गया। वो जा अड़े सांस नली में। बशीर उसे लेकर आजमी के क्लीनिक दौड़ा। दिनभर गलीभर में सनसनी रही। शाम को मसजिद से मातमी खबर मिली-बशीर खान वल्द जमील खान के बेटे का इंतकाल हो गया है। जनाजा शहर के पुराने कब्रिस्तान जाएगा। सारे स्यापे और सुपुर्दे खाक का काम होने के बाद रात को बशीर कमरे में बैठा था। घर में मातम पसरा था तभी दादी आई और टेबल पर रखा सुपारी का डब्बा उठाया जैसी की आदत थी पर अचानक कुछ सोच उसने बशीर का मुंह देखा। बशीर ने कुछ नहीं कहा और बाहर निकल गया।
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