शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

भैयाजी की उलझन

भैयाजी की जब से शादी हुई थी तब से परेशान ही थे। शादी को केवल 5 साल ही हुए थे पर पांच बच्चे थे। भौजी जब आई थीं तो भैयाजी के बड़े अरमान थे। ये अरमान ही थी कि भौजी की चिकचिक के बीच भैयाजी ने मौका निकाल ही लिया और घर में ललना-ललनी आ गए। भैयाजी तीन भाई पांच बहने थे। दद्दा का मन संन्यासी हो गया वर्ना...खैर भैयाजी तीसरे नंबर के थे, उनसे छोटी एक बहन ही थी जो अनब्याही थी। द्ददा बनारस गए थे पर मन नहीं रमा तो वापस आ गए। एक माला और गुरुजी से दीक्षा ले आए और वापस खेती सम्हाल ली। बताते थे कि गुरुजी को खोटेकाम करते देख दद्दा का मन टूट गया। दीक्षा ले ली थी तो मंतर तो जपना ही था। बड़े भैया खेती किसानी करते थे। मंझले वकील थे और ज्यादा वक्त खाली ही बैठे रहते थे। बाकी बची चार बहनें जो ब्याह दी गई थीं सो चिंता तो थी नहीं। सबसे छोटी थी सती जिसकी शादी बाकी थी। यूं तो भैयाजी का नाम रामानंद था पर उन्हें रम्मू कहा जाता था और भौजी का नाम था सत्यभामा, जिनको सत्ती कहा जाता था। अब आते हैं मूल प्रकरण पर...घर में तनाव का वातावरण है। सती का ब्याह पास गांव में जा लगा है। बाई (दद्दा की पत्नी और सबकी मां) अपनी पांच तोले सोने की करधनी और डेढ़-डेढ़ किलो की चांदी की झांझ सती को देना चाहती थीं पर इन जेवरों पर घर की बहुओं की नजर भी थी। परिवार के बड़े-बूढ़े आज भी आपस में दबी जुबान से कहते हैं कि जवानी में जब रूपकुंवर (बाई का नाम) अपनी कमर पर करधनी और झांझ पहनकर ठुमक-ठुमक कर चलती थी तो उस रूप का रसपीने के लिए सभी ललायित हो जाते थे। खैर, मुद्दे पर आएं, यूं बड़ी भौजी को इन बातों से कोई लेना देना न था मंझली, जो सरकारी नौकरी करती थी, अपनी परेशानियों से वैसे ही परेशान थीं जैसे भारत सरकार। बची छोटी यानी अपनी भौजी, उनको इस बात पर आपत्ति थी। उनका कहना था कि जब सबके ब्याह हुए तो बाई ने सबको अपने जेवर बांट दिए पर जो वो ब्याहकर आई तो उनको कुछ न दिया। नेग में सवा रुपए दिए और घर में बना मुठिया का लडï्डू खिला दिया। अब बहू होने के नाते उनका हक इन जेवरों पर है। वैसे भी घर के जेवर घर में ही रहें, बाहर घर क्यों जाएंï? बड़ी भौजी कहतीं बाई जो चाहे करे पर हिस्सा अगर होता है तो हमको भी मिलना चाहिए। मंझली की भी राय कुछ ऐसी थी तो क्या जेवर तुड़वा दें। बाई इस बात पर कहतीं- सारी दुलहिन एक नथनी, एक कांटा, बिछिया, पायल में घर आईं। घर की इज्जत की बात है सो उनको तो देना ही था। कुंवर साहब के घर की औरत नागड़ी घूमें ऐसा हो सकता है क्या? छोटी की दुहली तो सबकुछ लेकर आई। उसे क्या देना? अब एक धोबीपछाड़ तर्क-बड़ी दुलही घर का-किसानी का सारा काम देखती है। मंझली घर की सरस्वती है, जितना वो पढ़ी उतना कोई नहीं। सारा परिवार अंगूठाछाप। वो देव की किरपा थी कि साक्छात सरस्वती दुलही बन आई। वो दसई फेल है तो क्या हुआ नौंई तो पास है। गांव के स्कूल में मास्टरनी है। भले ही दद्दा ने जुगाड़ से लगावा हो पर निभा तो रही है न, पैसा भी कमाती है। अब छुट्टन (भैयाजी का घरू नाम) की दुलही ना काम करे, न पढ़ी लिखि, दिनभर बस साजसिंगार और आराम-फरमान। अब परेशानी ये है कि मामला बहुत बढ़ गया। एक दिन भैयाजी ने चिकचिक से तैश में आकर भौजी को थप्पड़ जड़ दिया। भौजी अपने पांचों बच्चों को वहीं छोड़कर मईके चली गईं। यहां-वहां चर्चा फैल गई कि दद्दा के घर में फूट पड़ गई है। तीन-चार दिन किसी तरह कटे। फिर सभी ने भैयाजी से कहा कि भौजी को मना लाओ। कुछ जुगाड़ बिठा लेंगे। भैयाजी तो पहले ही सोचते थे कि वो खुद जेवर लेकर सत्यभामा को पहनाएंगे। उनको सजाएंगे फिर.....पर ये जेवर बाई के होंगे, ये बात पर वो सोच न रखते। भैयाजी बड़े रोमांटिक किस्म के इंसान थे पर भौजी ने पूरे रोमांस को धता बता दिया। निश्चित दिन भैयाजी भौजी को लेने चले गए। किसी तरह मनाया और बाईक पर बिठाकर वापस चले। रास्ते में भी भौजी की चिकचिक जारी रही। देखो, मुझे सिर्फ झांझ या करधनी में मत बहलाना मुझे दोनों चाहिए हां। कहे देती हूं, वर्ना रात को हाथ न लगाना। अब तो भैयाजी को गुस्सा आ ही गया। अपने मर्दाना हक पर डाका। अरे, जो मिल रहा है ले ले। आधी तेरस (धनतेरस) पर तुझे सोने से लाद दूंगा। बस तू ही बचेगी हाड़-मांस की। भौजी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। वो बाईक से नीचे कूद गई। भैयाजी ने बाईक रोकी। अरे कहीं सुकुमारी को चोट न लग जाए। गांव-खेड़ा था। कच्ची सड़क। बाईक की रफ्तार साइकिल से भी धीमी थी। कहीं झटके न लगें इस लिए। कुछ दूर पुलिया पर बैठे भैयालोग ये देखकर मामला जानने पास आ गए। वैसे भी भारत में फटे में टांग डालने की आदत होती है और मामला जब महिला या लड़की का हो तो आप जरूर ही जाएंगे। सामने वाले की गलती हो न हो आप महिला या लड़की ही पक्ष लेंगे। खैर, भैयालोग आ गए। भौजी भी खड़ी हो गईं। मैं इसी लिए आई कि दोनों मिलेंगे। समझे, भौजी गुर्राईं। अरे, मैंने कब मना किया पर बाई की बात भी तो रखों। बाई गई भाड़ में। देख तुझे पहले भी समझाया था ऐसे न बोल। एक रेपड़ा दूंगा। भैयालोग जब समझे कि मामला जोरू और घरू है वो इधर-उधर होने लगे। तभी पता नहीं कहां से दरोगा जीप समेत आ धमके। उन्होंने पूरी बात पूछी तो भौजी ने दहेज प्रताडऩा का मामला बता दिया। भैयाजी की बात सुनी नहीं गई और उनको थाने ले आए। थाने से भैयाजी ने मोबाइल लगाया। दूसरी तरफ से बाई ने फोन उठाया। क्या हुआ? अच्छा, रुक मैं मंझले को भेजती हूं। भैयाजी थाने में बैठे थे और आते जाते लोगों को देख रहे थे और इस उलझन में थे कि इनमें से कितने दहेज प्रताडऩा के मामले में उनकी तरह फंसे होंगे?

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