शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

एक मजदूरनी

पूरी दुनिया में कहीं भी दिहाड़ी मजदूरों का जीवन किसी संघर्ष से कम नहीं होता है। यूं तो मजदूर सभी जगह दु:ख ही पातें है, शायद रामराज में भी इनका भला न हुआ हो और अगर यही सच है तो अब कब और कैसे इनका भला हो सकता है? ये मजदूर दबंगों के खेतों और ईंट भट्टों सहित कई जगह काम करते हैं। वहां हर स्तर पर इनका शोषण होता है। सरकार.....वो तो पूरी ईमानदारी के साथ ताकतवरों की सेज पर महकती है। उसके मखमली पैर सख्त जमीन पर पड़ते ही कहां हैं? इस कहानी की पृष्ठभूमि हमारे की देश के बिहार राज्य की है जहां कभी भी इन मजदूरी की जिंदगी में आशा की किरण जाने की उम्मीद नहीं के बराबर है। नईम घर में घुसते से चिल्लाया- रजिया, बाहर भिखारी खड़ा है। दो रोट डाल दे। वो अंदर चला गया। बगल में रसोई से रजिया निकली और भिखारी के कटोरे में दो रोट डाले। दोनों ने एक-दूसरे का चेहरा देखा और भिखारी के मुंह से सिर्फ एक आवाज निकली-राधा....रजिया चौंकी पर चुप रही।
कहानी जाती है वक्त की कोख में उसकी गहराई में करीब पंद्रह साल पहले।
राधा यही नाम था उस मजदूरनी का। जो दिहाड़ी मजदूरी का काम करती थी। अपने पति और चार बच्चों के साथ वो यहां वहां घूमती, काम करती। राधा का पति था मांगीलाल। चार बच्चे, जिनमें एक कुपोषित था और किसी तरह जिंदा था। मांगीलाल शराबी और जुआरी था। वो शराब और जुएं के लिए कुछ भी कर सकता था। एक बार तो उसने राधा को ही दांव पर लगा दिया और हार भी गया। उसके दोनों दोस्त, कालू और रज्जाक नशे में राधा के पास जा पहुंचे। पसीने की तीखी गंध उसकी महक बन चुकी थी। बच्चे सो चुके थे और वो दरवाजा बंद ही कर रही थी। वो दोनों वहां जा पहुंचे- चल आज रात तू हमारी है। राधा ने मोटा मोगरा उठाया और उन दोनों को पीट डाला। देख लेंगे तुझे कहते हुए वो भाग निकले।
उन दोनों ने जाकर मांगीलाल को पीटा और दबाव बनाया कि वो या तो जुएं का पैसा चुकाए या राधा को उनको सौंप दे सात दिन के लिए। मांगीलाल राधा के पास गया। तू उनके पास जा...वर्ना हमारा गांव में रहना मुश्किल हो जाएगा। राधा कम नहीं थी वो उससे लड़ गई। मांगीलाल वैसे भी घर में क्या सहयोग करता था? वो पिटे या मर भी जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। तू दूसरा कर लेगी न....मांगी के आखरी शब्द थे।
मांगीलाल गांव छोड़कर भाग गया। राधा ने अपनी सहेली कुरिया, जिसे कुतिया कहते थे, के सहारे किसी तरह एक महीना निकाला। कुरिया का पति भी चूना भट्टी का मजदूर था जो अब सिलिकोसिस से पीडि़त था और कभी भी मर सकता था। मांगीलाल शहर गया। वहां उसकी पहचान मोइन भाई से हुई। मोइन नचनिया का नाच करवाता था और इससे उसे गाढ़ी कमाई होती थी। नाच तो बहाना था...नाच के बाद जिस्मफरोशी होती थी जिसका पता सबको था पर ....मोइन के ग्राहक सिपाही से लेकर राजनेता तक थे। सैंया भये कुतवाल तो डर काहे का। लोगों को सिर्फ अच्छी बातें पसंद है आचरण नहीं। मांगीलाल ने मोइन को बताया कि उसकी पत्नी राधा चाशनी में पगा रबड़ी का गोला है गोला। उसने अपने पास रखी उसकी एक छोटी से फोटो दिखाई। मोइन ने कहा कि वो उसे लेकर आ जाए। उसे पैसे तभी मिलेंगे। मांगीलाल खुशी-खुशी वापस आ गया। वापस आकर उसने अपने आप को बदल लिया। और राधा को सपने दिखाए कि वो उसे शहर ले जाएगा। बच्चे का इलाज करवाएगा। उसे रानी तो नहीं पर उससे कमतर नहीं रखेगा। उसे नौकरी मिल गई है। राधा को शक हुआ पर यकीन तब हो गया जब शहर इलाज करवाने गये कुरिया के पति ने उसे बताया कि उसने शहर में मांगी को मोइन के साथ देखा था। खोजने पर पता चला कि मोइन बदनाम है। बस फिर क्या था? राधा और मांगी में जोरदार झगड़ा हो गया। मांगी ने कहा कि वो बच्चे उसे दे दे और चली जाए। राधा भी उससे लड़ी। मांगी ने गंडासा उठाकर उसे मारा जो उसके हाथ में लगा। घबराया मांगी भाग गया। इसके बाद वो यहां-वहां भटकता रहा। कुछ दिनों बाद वो गांव पहुंचा तो पता चला कि वहां आकाल पड़ा था और राधा उसके बच्चों के साथ जा चुकी थी। उसने उसे कई जगह तलाश पर वो नहीं मिली। राधा भुखमरी से परेशान थी। चार बच्चों का लालन-पालन उस पर भी एक कुपोषित- मंदबुद्धि। आकाल की स्थिति बन रही थी। राधा कुरिया के साथ, जो अब विधवा थी, गुजरात जा पहुंची मजदूरी के चक्कर में। यहां उन्हें मिला रमणीक भाई ठेकेदार...रमणीक दिनभर मजदूरनियों से निर्माणाधीन टाउनशिप में मजदूरी करवाता। रात में उनका भोग करता। कुरिया भी उसके साथ सोई। पेट की आग हवस की आग में भस्म हो गई। राधा किसी तरह से बच रही थी। रमणीक दिलदार था खुद तो मजदूरनियों का भोग करता ही साथ में दोस्तों और अफसरों को भी परोस देता। रमणीक के साथ काम करता था-एहसान खान यानी बाबा पठान। ये हिस्सेदार तो था ही उसका गुंडा भी था। डरी राधा हमेशा घंूघट डाले रहती। एक रात रमणीक ने कुरिया को बुलाया, वो गई भी, पर वापस न लौटी उसकी बिना कपड़ों की, रक्त से सनी लाश मिक्सर के पास पड़ी मिली। रमणीक ने फोन बंद कर दिया था और कोई अन्य आने वाला ही नहीं था। केवल मैनेजर आया और सबको धमकाया- अरे ये लाश यहां से हटा दो। अगर पुलिस का मामला बना तो काम रुक जाएगा। तुम्हारी तनख्वाह भी। लोगों ने लाश को वहीं बने एक कच्चे मकानमें गाड़ दिया। इस घटना से औरतों में डर फैल गया। बाबा पठान का चचेरा भाई था नईम, रमणीक के प्रतिद्वंद्वी दिलदार खान ने उसे पैसे दिए कि वो काम रुकवा दे ताकि उसका काम चल निकले। उसने औरतों से कहा कि यदि वो जान बचाना चाहती हैं तो दिलदार खान की टाउनशिप में चलें। डरी औरतें जो दैनिक वेतन पर काम कर रही थी वहां भाग गईं हालांकि रमणीक पर उनका कर्ज था, पर जान बचाना भी तो जरूरी था। राधा भी नईम के पास गई। नईम ने उसे देखा तो उसका दिल डोल गया।
उसने राधा को ईंटों से बना कच्चा मकान रहने को दिया और तनख्वाह भी बढ़वा दी। राधा यूं तो डरती थी पर नईम उससे मजाक करता उसे अपनत्व का अहसास करवाता। इधर राधा की बेटी की तबीयत खराब हुई। उसने नईम से कहा कि उसे मान करनी है तो वो उसे सायकल पर बिठाकर मंदिर ले गया। लोगों से घिरी रहने वाली राधा आज अकेली उसके साथ थी। मंदिर से लौटते में राधा ने उससे लघुशंका जाने को कहा। नईम वहीं खड़ा हो गया। वो झाड़ी में गई। अब नईम का खुला खेल था। वो अंदर जा घुसा। राधा कपड़े ठीक कर बैठ ही रही थी। नईम को देखकर वो चौंकी पर कुछ करने लायक रह नहीं गया था। नईम का उसने कोई विरोध नहीं किया। एक खामोश बलात्कार के कुछ देर बाद नईम उठा। राधा की ओर से कोई विरोध नहीं था। वो खुश हुआ और मर्दानगी की मन ही मन दाद दी। आखिर वो पठान है। वो उसे ले आया और रात को फिर उसके घर में चला गया। राधा की जरूरत थी या मजबूरी। वो कुछ नहीं बोली। सिलसिला चल पड़ा। राधा गर्भवती हो गई। नईम ने उससे कहा कि वो उसे अपनी चौथी पत्नी बना सकता है बशर्त वो मुसलमान हो जाए और बच्चों को मुसलमान बना ले। राधा राजी हो गई। धर्म से क्या फर्क पड़ता है? औरत लूटी तो हर धर्म में जाती ही है। राधा हो गई रजिया, दोनों बेटियां- सीता हुई सायरा, क ौशल्या बनी कम्मो, बेटा किशन बना कमरू और बीमार राम प्रसाद बना रशीद। नईम गुजरात छोड़ वापस बिहार आ गया। यहां उसकी तीनों पत्नियां पहले से थीं। रजिया को नईम ने अलग घर रखा था। ये घर खेत के पास था। नईम ने रजियों को तीन बार और गर्भवती बनाया। दुर्भाग्य, सभी बच्चे चेचक की भेंट चढ़ गए। राधा की बाकी मजदूरनियां मित्र जल्द ही दिलदार की हो गईं। दिलदार रमणीक से कम नहीं था। मजदूरिनों ने न सिर्फ उसके अवैध बच्चों को जन्म दिया बल्कि उनके मजबूर पतियों ने उनको अपनी कमाई से पाला-पोसा भी। वर्तमान में सभी दिलदार खान के यहां नील की खेती कर रही हैं। अब उनकी जो पौध तैयार हुई है वो उनका कर्ज चुकाने को तैयार है, हर स्तर पर। नईम उससे कहता तू मेरी होकर बच गई। तुझे मेरे साथ सोना है और उम्मीद से होना हैं। बाकी तो सबसे पेट से होंगी। राधा कुछ न कहती।
कहानी वर्तमान में आई। राधा...मांगी के मुंह से शब्द फूटा। वो चुप रही। ये भिखारी और कोई नहीं उसका पहला पति मांगी था। इतने में एक बिगड़ी आवाज आई...अममममी। देखा तो रसोई से एक विक्षिप्त बच्चा बाहर देख रहा था। राम प्रसाद, हां..., बेटियां.....! निकाह हो गए। किशन...उसने पूछा। तभी एक हुज्जड़ सा दिखने वाला किशोर घर के बाहर आया। अम्मी तू यहां खड़ी क्या कर रही है? रोट दे। ये किशन यानी कमरू था कहने की जरूरत नहीं थी। और तू ...फिर से उम्मीद से हूं। इसके बाद उसने अपना हाथ कुछ ऊपर किया। हवा से आस्तीन खुली और गंडासे का दाग दिखा- ये तुम्हारी निशानी है। ये सुनकर मांगी पलटकर भागा। अरे रोट तो लेते जाओ.... राधा यानी रजिया ने पुकारा। मांगी बिना जवाब दिए भागता चला गया। राधा ने रुक देखा। अम्मी कमरू भीतर से चिल्लाया। उसने बोझिल सांस छोड़ी और मुड़कर अंदर चली गई।

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