मंगलवार, 30 जून 2020

दिल बहलाने का सहारा

शर्मा जी दुखी होकर बालकनी से अंदर की ओर जा रहे थे। सामने वाली बालकनी में रहने वाली अमिता कमरा खाली करके चली गई थीं। यह फ्लेट अब बिक गया है और कल ही इसमें नये मालिक भी आ गये हैं। न जाने कैसे लोग हैं? अमिता जब भी आमने सामने होती थी तो एक दिलकश मुस्कान तो देती ही थी भले ही कुछ कहती न हो। दिल बहलाने को वो सहारा क्या कम था। अब न जाने क्या हो?
तभी बालकनी का दरवाजा खुला एक गोरी गदराई महिला बालों को सुलझाती हुई पैजन बजाती हुई बालकनी में आई और शर्मा जी को देखकर बोली- नमस्ते जी हमने ये फ्लेट खरीदा है। कल ही शिफ्ट हुए हैं आपका भी खुद का ही फ्लेट है न। उसने लाली लगे भरेपूरे होठों से एक ताजगीभरी मुस्कान बिखेरी। उसके हाथों में मेहंदी का रंग खिल रहा था इस पर लंबे घनेरे गेसुओं का ये अंधेरा। हाँ..हाँ.. शर्माजी से अब कुछ बोलते न बना वो तो बस उसमें ही खो गये थे। आज शाम को आइये न..ये भी घर पर हैं..। अब शर्माजी अंदर की ओर भागे। भाभीजी को साथ लाइयेगा..उसकी आवाज पीठ से आई जिस पर शर्माजी का ध्यान न था। वो अंदर जाकर शर्माइन से बोले- सामने की बालकनी में अच्छे पड़ोसी आये हैं। पड़ोसी या पड़ोसन..शर्माइन ने पूछा। तुम जो समझो..शर्माजी ड्राइंग रूम की ओर चले गये। शर्मा जी सोच रहे थे कुछ भी हो दिल बहलाने का सहारा तो मिल ही गया।

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