गुरुवार, 24 दिसंबर 2020
ग्वालिन का परमानंद
किसी गांव में एक ग्वालिन रहती थी। वह रोज एक पुरोहित के घर दूध देने जाया करती थी। पुरोहित का घर नदी के पार था। एक बार बारिश के मौसम में नदी ने रौद्र रूप ले लिया। इस कारण ग्वालिन पुरोहित के घर दूध देने नहीं जा सकी। दूसरे दिन जब ग्वालिन पुरोहित के घर गई तो पुरोहित ने उसे डांटा। इस बात पर ग्वालिन ने उसे बताया कि बारिश के कारण नदी का बहाव बहुत तेज था इसलिये वो नहीं आ पाई।
पुरोहित ने ग्वालिन से कहा कि भगवान श्रीहरि के नाम के सेतु (पुल) से लोग संसार के कष्टों की नदी पार कर जाते हैं तो इस उफनती नदी की क्या बात है? यह बात ग्वालिन के मन पर जम गई। अगले दिन फिर तेज बरसात हुई। नदी ने फिर रौद्र रूप ले लिया। पुरोहित को किसी काम से नदी पार जाना था पर वो उसके चरम बहाव को देखकर वापस लौट आया। कुछ देर बाद ग्वालिन उसके घर दूध देने आई। उसे आया देखकर पुरोहित को आश्चर्य हुआ। उसने उससे पूछा कि नदी का बहाव चरम पर है ऐसे में वो उसे पार कर उसके घर कैसे आई। उसी सेतु से जिसकी बात कल आपने बताई थी, ग्वालिन का सीधा सा उत्तर था। पुरोहित कुछ समझा नहीं इस पर ग्वालिन उसे लेकर नदी के पास पहुंची और श्रीहरि के नाम का जाप कर नदी के वेगवान पानी पर चलने लगी। यह देखकर पुरोहित ने भी ऐसा ही करने की कोशिश की पर वो असफल हो गया।
भगवान श्रीहरि विष्णु भावों के आग्रही हैं वह हृदय की पवित्रता और समर्पण देखते हैं स्तर नहीं इसलिये अपढ़ ग्वालिन भगवान की कृपा को प्राप्त कर गई वहीं ज्ञानी पुरोहित असफल हो गया।
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