गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

राजा-रानी, मंत्री, चोर सिपाही तंत्री

ये कहानी सच है या झूठ इस बात से ज्यादा इस बात को समझना जरूरी है कि ऐसा क्योंकर हुआ।
राजा अपने सिंहासन पर मदिरा के मद में चूर होकर बैठा था तभी मंत्री वहां आया। महाराज......महाराज....। क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहा है। राजन हमने अभी एक चोर को पकड़ा है, ये राजमहल से कुछ चोरी करके ले जा रहा था। प्रस्तुत करो....। चोर को लाए। वो डरा नहीं। बोल क्या चुरा रहा था? चोर ने अकड़कर कहा- जरा मंत्री से एकांत में बात करवाइये। राजा बोला- कर ले। मंत्री और चोर एकांत में आए। सुन भई मंत्री...मेरी घुमाफिराकर बात करने की आदत नहीं है। तू महारानी के साथ जो कक्ष में कर रहा था और वो जो चाहकर भी कह रही थीं ना ना रे ना। वो अगर बोल दूं तो। मंत्री चकराया-अरे ये तो बाप निकला। हे क्या सोच रहा है, बचना चाहता है तो अभी कि अभी सवालाख स्वर्ण मुद्राएं दे और राजकीय मुद्रा लगाकर सातकुएं और खेती की जमीन मेरे नाम लिख। मंत्री चालाक था वो बोला- मित्र मैं तो रानी से प्रेम करता हूं। राजा तो कांटा है कांटा ऊपर से कापुरुष भी तू राजा का वधकर दे। मैं तुझे राजा बना देता हूं। रानी को लेकर मैं आधा राज्य ले लूंगा आधा तेरा। चोर सोचने लगा। फिर बोला- रानी से बात करवा वो भी अकेले में तुझ पर यकीन नहीं है।
अब मंत्री सोच में पड़ गया फिर वो उसे लेकर रानी के कक्ष में गया। चोर की पूरी कहानी रानी को सुनाई और कहा कि वो चोर उससे इस बात का प्रमाण चाहता है कि वो भी उसकी प्रेमिका है या नहीं। रानी अकेले मेंं चोर के सामने थी। चोर के आधेनंगे बदन, विशाल भुजाओं और प्रबल पौरुष को देखकर वो मचल उठी। उसने उसे कमनीय अदाएं दिखायी। चोर न पिघला-देखो रानी ये देखकर तो हर कोई रीझ जाएगा मैं जो कहता हूं ध्यान से सुनो। रानी दौड़कर बाहर मंत्री के पास आई। वो मान गया। वो राजा का वध करेगा फिर तुम उसका फिर तुम राजा और मैं रानी। वाह, ये हुई न बात..जानता हूं तुम्हारे वशीकरण से तो साक्षात ब्रम्हदेव भी न बच पाएं। पर एक शर्त है मेरी...। बोलो रानी। मैं उस राजा का वध और इस नीच चोर का वध अपनी आंखों से देखना चाहती हूं। तो चलो जल्दी शुभस्य शीघ्रम्। वो राजा के कक्ष में पहुंचे। राजा कुछ होश में था- आए गए मंत्री...बहुत देर में आए। चोर ने एक चाकू फेंककर राजा को मारा तो वो उसके सीने के आर-पार हो गया। मंत्री ने तुरंत कृपाण से चोर की पीठ पर आघात किया पर वो दर्द से कर्राहकर वहीं गिर गया। राजरानी ने उसकी पीठ में कृपाण उतार दी थी अब चतुर रानी ने कृपाण घायल चोर को फेंककर मार दी। चोर घबरा गया। रानी तुमने तो कुछ और ही कहा था, चोर बोल पड़ा। चोर की आंखों के सामने रानी के कक्ष का दृश्य घूम गया। चोर ने रानी से कहा- मेरी बात ध्यान से सुनों क्यों इस मद्यपायी राजा या पौरुषहीन मंत्री से संबंध रखती हो। तुम मुझे अपने गले में पड़ा नौलखा हार दे दो तो मैं इन दोनों को मारकर तुमको इनके बंधन से मुक्त कर दूंगा। पर यहां तो कुछ और ही हो गया।
अब रानी मुस्कुरायी- क्या तुम पुरुष ही नारी से खेल सकते हो, कभी सीता बनाकर गर्भकाल में वन भेज देते हो तो कभी द्रोपदी के रूप में भरी सभा में उसका शीलहरण होते देखते रहते हो। कभी विधर्मी के रूप में उनको पवित्र करने के उद्देश्य से उनसे दुष्कर्म करते हो कहते हो इनमें आत्मा ही नहीं है और इसे धर्म का अंग बताते हो तो कभी जोधा के रूप में उपहार दे देते हो। चोर और न सह सका और वहीं गिर गया। रानी ने अपने खास सिपाही को बुलाया। जो बाहर ही खड़ा था, उसने चोर और रानी सहित मंत्री और रानी का पूरा वार्तालाप सुना था। जब मंत्री नहीं होता था तो यह सिपाही ही रानी का प्रेमपात्र होता था। चोर मर चुका था और दोनों हत्याएं उसके सिर थीं। अब रानी मुक्त थी। एक दिन बाद रात्रि को रानी शयनकक्ष में थी उसने बाहर से सिपाही को बुलाया वो कक्ष में आ गया। वो कक्ष के कपाट बंद करता उससे पहले रानी की मदपूर्ण आवाज आई- देखना कहीं कोई चोर न हो। सिपाही बोला-राजरानी अबकी मेरी बारी न हो। रानी ने प्याला लेकर अ_हास किया- अभी मुझे तुम्हारी आवश्यकता है। इस सब को जानकर इतिहास तंत्र के तंत्री ने लिखा-
किसी बात का गिला नहीं, शर्म नहीं हया नहीं, किरदार बदले मगर फसाना नया नहीं।
मोहरे अब मात देती हैं खिलाड़ी को, अब खेल भी बाहया नहीं।।

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