शनिवार, 11 नवंबर 2017

अथ गब्बर कथा: रामगढ़ में चुनावी चकल्लस पर गब्बर-ठाकुर संवाद

कई सालों बाद गब्बर ने दातून की और नहाया। काली के मंदिर में पूजा भी की और फिर एक अच्छे सरदार की तरह अपनी बिग बॉस वाली चट्टान पर जा बैठा। सभी नए और पुराने डाकुओं की हाजिरी शुरू हो गई। तभी जूनियर कालिया वहां आ पहुंचा।
सरदार
बोल
मैंने आपका नमक खाया है
नमक तेरे बाप ने खाया था और कर्ज तू चुका रहा है
हां सरदार नमक खा-खाकर
बोल क्या बात है? हां
सरदार, डाकूगीरी में वैसे फ्यूचर नहीं रहा है जैसा पहले हुआ करता था।
अच्छा...
हां! सरदार अब तो फिल्मों में भी डाकू नहीं दिखते
बहुत बुरी बात है ये तो
सरदार, एक बात कहूं
बोल....
सरदार, अब जमाना हाईटेक हो गया है। डाकुओं का काम अब नेता लोग कर रहे हैं। आप एक काम करो आप भी नेता बन जाओ। हम आपके साथ है।
नेता, कैसे बनूं, इच्छा तो मेरी भी है
सरदार, ठाकुर भी रामगढ़़ में नेतागीरी ही कर रहा है। अभी रामगढ़ में चुनाव भी होने वाले हैं। सरदार....
वाह, मैं भी चुनाव लड़ूंगा
मुझे रामगढ़ की नीति... राज नीति समझाओ
सरदार, रामगढ़ में लोधी नेताजी की इज्जत दांव पर है। चुलबुल आंधी, पार्दिक और चुग्नेेश भैयाजी के साथ मिलकर आंधी चला रहा है। रामगढ़ के दूसरे क्षेत्रों में लोधी आंधी की आंधी को थामने की बात करते घूम रहे हैं। अल्प(पेश) मत थामेगा बहुमत,मत...दान में कर...दान।
कालिया, हम क्या करेंगे रे...कितने वोट मिलेंगे!
वोट नहीं नोट सरदार, वो भी खूब, हम तो वोट काट लेंगे इसके लिए लोधीजी या चुलबुल हमें पैसा दे देंगे।
वाह, कालिया, दिल खुश कर दिया। आज से तू दिन भर नमक खा। तेरे बाप से ज्यादा कर्ज तो तूने अदा कर दिया। जा जाकर प्रचार की तैयार कर।
पर सरदार, पार्टी का नाम और चुनावचिन्ह रजिस्टर में दर्ज करवाना पड़ेगा।
क्या नाम रखूं, भारतीय गब्बर पार्टी, इंडियन नेशनल चुलबुल पार्टी, क्या चुनाव चिन्ह बताऊं, डाकू पंजा, बंदूक, पंचर साइकिल, पेटू हाथी, खूनी हंसिया।... रुक जा कालिया पहले मैं ठाकुर की खबर लेता हूं।
गब्बर ने ठाकुर को फोन लगाया। ठाकुर चुलबुल के लिए भाषण लिख रहा था। उसने फोन उठा लिया।v हलो...
चुलबुल की आंधी या लोधी का भाषण हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।
अरे आप कहीं कायमसिंह जाधव तो नहीं बोल रहे हैं जिनको कुपुत्र ने कटप्पा बनकर पीठ में तलवार दे मारी।
मैं मुलायम नहीं कठोर, बंदर नहीं शेर बब्बर बोल रहा हूं।
अरे आपका कोई भविष्य नहीं है बाज बब्बर साहब, आपको डायलॉग ठीक से याद नहीं होते, राजनीति क्या समझेंगें?
अब तो गब्बर परेशान हो गया।
मैं गब्बर बोल रहा हूं।
गब्बर, अरे मैं तो कुछ और समझ रहा था। बेरोजगारों के बाहूबली...फोन रख। मुझे परेशान मत करो में चुलबुल के लिए भाषण लिख रहा हूं।
डूंडे ठाकुर, चुलबुल है मेरे जैसा सिंघम भी है।
चुलबुल आंधी है गब्बर... आंधी
आंधी...अरे फुकनूस के चुलबुल गुब्बारे जो राजनीति में एसी के रूम में बैठकर गूगल पर राजनीति करता हो, वो गब्बर सर्च इंजन में जीरो है जीरो।
गूगल...तुम गूगल कैसे समझते हो गब्बर
मैं उस पर मेहबूबा की नीली फिल्में देखता था ठाकुर।
नीली...नीली से स्मृति में आया कि अभी मन में विचार आ रहे हैं। परेशान मत करो।
ठाकुर ने फोन रख दिया।
अपनी पार्टी के बारे में गब्बर सोच ही रहा था कि सांभा वहां पर आ गया।
कालिया और गब्बर को देखकर वो समझ गया कि यहां कुछ गड़बड़ हुआ है।
क्या हुआ सरदार, सांभा ने पूछा।
गब्बर ने पूरी दास्तान उसे सुना डाली।
सांभा हंसने लगा- सरदार इस कालिया के बच्चे की बातों में मत आना। चुलबुल कितनी ही आंधी चला ले लोधी का कुछ बिगाड़ ही नहीं सकता। लोधी को तो केवल घर के विभीषणों से ही खतरा है और बाकी बचा उसके अपने किए कर्मों के कारण। रही अपनी बात तो सरदार हम भले ही डाकू हैं। लूटना हमारा धंधा है पर हमारे अपने उसूल कायदें हैं पर राजनीति में अवसर ही कायदा है, वही नियम सरदार। अपने ही अपनों का गलाकाट देते हैं।
गब्बर ने जूनियर कालिया का मुंह देखा। फिर रिवॉल्वर निकाली- अब तेरा क्या होगा कालिया के बच्चे।
कालिया भागते हुए बोला- सरदार रिवॉल्वर खाली है। कुआरे की साली है। बड़े जतन से पाली है। फिर भी देती गाली है। ये कुछ और नहीं राजनीति की नाली है।

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