सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

पकौड़ा: एक शेम कथा


फिल्म की स्क्रिप्ट का हीरो पढ़ता-लिखता है पर उसे नौकरी नहीं मिलती। वो यहां- वहां मारा-मारा फिरता है। वो गीत गाता है- (अ) मित जी की शाम पकौड़ों के नाम, पीता हूं मैं बेरोजगारी के जाम। मित जी की शाम...। काम नहीं मिला तो हीरो परेशान होकर पकौड़ों के ठेले के पास बैठा रहता है। तभी नेताजी के गुंडे वहां आकर पकौड़े वाले से हफ्ता मांगते हैं। हीरो उनको झारों से पीटता है। वो भाग जाते हैं। खुश होकर पकौड़े वाला उसे ठेले पर नौकरी दे देता है। एक दिन हीरो पकौड़े तलता ही रहता है कि उसके दांत हीरोइन के दांत से 64 हो जाते हैं। इस दिल्लगी में पकौड़े जल जाते हैं वो गाता है- तला है कई बार जला है एक बार अब न जलेगा ये दोबारा। वो नायिका को थालभर पकौड़े वेलेंटाइन डे पर देता है। नायिका नाचती है और गाती है - ये पकौड़े..तले हैं ये प्यार से, जीएसटी के पार से, खाले इनको भले ही लगें ये बेस्वाद से...हीरोइन का बाप जो मुंगौड़े ठीक हीरो की दुकान के सामने तलता है... इस प्यार से जलता है। फिर भी हीरोइन हीरो से मिलती है गाती है- मैं तुझसे मिलने आई मार्केट करने के बहाने।
इतने में विलेन की एंट्री होती है वो हीरोइन से शादी करना चाहता है वो उसे निगेहबानी में लेकर पकौड़ा उत्सव में जा घुसता है- हीरो यहां आ टपकता है और गाता है- और मेरी जेब में क्या रखा है, तेरा ही बिल दबा रक्खा है(जो अभी तक चुकाया नहीं है)। हीरोइन प्रतिउत्तर में गाती है- और तेरे बिल क्या रक्खा है, मुंह में बेस्वाद (पकौड़ा) दबा रक्खा है।
ये दुनिया वाले राहुल गांधी और विपक्षियों की टीम होकर पकौड़ों के इन प्रेम दीवानों के दुश्मन हो जाते हैं। मगर उम्मीद अब भी बरकरार है.....हीरोइन के बाप को बाद में पता चलता है कि जिस विलेन को वो बेटी ब्याह रहा है वो तो नगर निगम की जब्ती गैंग का प्रमुख है और उसका ठेला जब्त कर वहां अपनी चाय की दुकान खोलना चाहता है। साथ ही पकौड़े का कारोबार करने से पढ़-लिख कर नौकरी करने को श्रेष्ठ मानता है जो कि केवल (अ)मित भाषियों का कारोबार है। वो विलेन से लड़ता है। विलेन मन की बात वाला रेडियो उसके सिर पर दे मारता है इसके बाद विलेन हीरोइन को कंडम बस में लेकर भगता है। हीरो कचरा गाड़ी लेकर हो हल्ला बजाते हुए पीछा करता है और जिस तरह से बड़े रोड डिवाइडर को लोग कूदकर पार करते हैं उसी तरह वो बस पर जा कूदता है। वहां वो विलेन से लड़ता है और हीरोइन को बचा लेता है। कंडम बस यहां-वहां कहीं भिड़ जाती है और विलेन मर जाता है। अब हीरो-हीरोइन एक हो जाते हैं। उसका ससुर उसे एक ठेला दहेज में देता है और हीरो खुद का कारोबार शुरू करता है। वो और नायिका एक ठेले पर साथ में पकौड़े तलते हैं और गाते हैं- ले पकौड़ हाथ...ले पकौड़े हाथ बेरोजगारों का सहारा है ले पकौड़ा हाथ। कुछ हॉट करना हो तो एक उत्तेज गीत भी बीच में स्क्रिप्ट में कहीं फिट कर देते हैं- (अमित) शाही पकौड़े तेरे, डीप फ्राय दिल मेरा, खाना मैं चाहता हूं, पर जीएसटी बिल तेरा। कभी मेरे साथ पकौड़े बना, एजुकेशन जैसे जला हुआ प्याज...हो हो हो। लोग पकौड़ा खाते हैं और नीरव की तरह डकार भी नहीं मारते हैं। धीरे-धीरे हीरो का व्यापार मल्टीनेशनल कंपनी में बदल जाता है कंपनी का नाम होता है मित-इंद्र पकौड़ा इंटरनेशनल। इस तरह एक ट्रेजिक कहानी का कॉमिक एंड होता है।

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