रविवार, 25 मार्च 2018
मौत से मुकाबला 9: महाविनाश की आहट
जिंदगी और समुद्र यात्रा में बहुत सी समानताएं हैं। दोनों में ही कल क्या होगा इसका कोई पता नहीं रहता। मौत से मुकाबला दोनों ही सूरतों में करना ही होता है। मैं वापस लौटा तो पता चला कि हमारा जहाज बेचा जा चुका है। वहां मुझे जोनाथन मिला जो मेरी ही तरह भ्रमित था। वो भी गांव से हाल ही में आया था। तभी वहां एडम आया। वो हमें हमारे नए जहाज की ओर ले गया। नेवल को गत यात्रा से बहुत लाभ था। उसके कई कर्ज चुकाए जा चुके थे। एडम ने बताया कि जो कटोरा मैंने चुराया था वो एक प्राचीन शिल्प था। जिसको बेच पाना आसान नहीं था। उसे काले बाजार में बेच गया। जहां उसकी कीमत इतनी मिली कि दो जहाज खरीदे जा सकते थे। यही हाल उस छड़ी और अंगूठी का था जो उसने और जोनाथन ने चुराई थी।
खैर, वो हमारे ही माल से धनवान हो गए और हम वही रह गए, हम्माल, पर हम कर ही क्या सकते थे? हम नए जहाज पर पहुंचे। नेवल ने हमारा कोई खास वेलकम नहीं किया। पहुंचते ही काम में लगा दिया। नेवल का व्यवहार काफी बदल गया था। वो घमंडी हो गया था। अब उसके पास पर्याप्त पैसा था। वो समुद्र के बीच में जाकर मछली पकडऩा चाहता था। जो उसका स्वयं का व्यवसाय था। विशाल जालों को सुलझते हुए हम लोगों ने एक राइजिंग लूनर फोर्टनाइट यानी पंद्रह दिन का शुक्ल पक्ष का अभियान शुरू किया। जहाज अब एक ऐसे अभियान पर था जो हम सबके लिए बेहद अंजान था। हम गहरे समुद्र में ध्रुव की ओर जा रहे थे। नेवल ने हम से कह दिया था कि अब मौसम बदल रहा है और हम समुद्र की पहली बारिश से मुकाबला करेंगे। जहाज में मैं, एडम, जोनाथन के साथ बैन, जैमी, नोबल और फॉरेसो भी थे। शाम होते-होते हम समुद्र में हवाओं की सहायता से पांच सौ मील से भी ज्यादा आ चुके थे। आसमान में बादल जुट रहे थे। ये काफी भयानक लग रहा था। एक ओर चांद बढ़ रहा था दूसरी ओर मौसम खराब हो रहा था। हमने जाल फैलाकर समुद्र में फेेंका और कुछ देर रुकने के बाद एक यंत्र की सहायता से उसे खींचा। जाल में एकसाथ कई मछलियां फंस गई थीं। हमने कुछ खास मछलियों को छांटा जिनके बारे में नेवल ने हमें बता रखा था। अभियान पूरा किए बगैर ही जहाज को वापस लौटा लिया। देर रात हम किनारे पर पहुंचे। समुद्र उफन रहा था। नींद खराब कर हमने काम किया इसके बावजूद जोनाथन मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था कि देखो हमारी मजबूरी। एडम काम में जुटा था। हम सब काम में जुटे थे पर ये नहीं जानते थे कि हम अगला अभियान हमारा आखरी अभियान होगा। हम शायद महाविनाश की आहट को सुन नहीं पा रहे थे पर मौत को इससे कोई मतलब था ही नहीं।
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