सोमवार, 19 मार्च 2018

आफत

तैयब को अब्बा समझाते थे कि अरे जरा काम किया करो। दिनभर दुकान पर बैठकर झक मारा करते हो। या तो सो जाते हो या टीवी सीरियलों में हसीनों को ताका करते हो। दुकान का काम नौकर जमाल सम्हाल लिया करता था। बस हिसाब देख लिया करो और दोपहर बाद जमात के लिए काम किया करो।
तैयब के अब्बा अलीक भाई अपनी जमात के खासमखास थे। वो जमात में अपनी गद्दी बड़ी मुश्किल से जमाए बैठे थे। अपने बाद वो वारिस के बतौर तैयब को उस गद्दी पर जमाना चाहते थे पर तैयब को जमात से कोई लेना-देना ही नहीं था। अलीक का बड़ा ख्वाब था कि तैयब इंजीनियरिंग करे पर तैयब कहता इंजीनियर बनूंगा तो आप लोहा-लंगड़ का कबाड़ खाना खोलकर दे देंगे। अलीक सोचते ये डॉक्टरी ही पढ़ ले। तैयब कहता हकीमीदवाखाना खुलवा दोगे।
तैयब के मन में सिर्फ एक ख्वाब था जैसे उसके दूसरे दोस्त अमेरिका और ब्रिटेन में तिजारत करते घूम रहे थे वो भी ऐसा ही करे पर अलीक को मालूम था कि ये जनाब अमेरिका जाएंगे भी तो फांकामस्ती ही करेंगे। वहां के जिस्मो के बाजार में जाएंगे और पैसे की ही नुमाइश करेंगे उसे लुटाएंगे ही। वो तो अलीक भाई का जमात में दबदबा था जो कमाल भाई ने अपनी कमसिन लड़की की पढ़ाई छुड़ाकर उसका निकाह तैयब से करवा दिया। वर्ना ऐसों को नामदार लोग अपनी बेटी न देते। खैर, अलीक ने तैयब को बहुत समझाया। बेटा, मेरा भरोसा क्या? शकर तो पहले से ही है, अब तो दिल की बीमारी की बात भी सुलेमान डॉक्टर कर रहे हैं। बेटा, वक्त रहते सम्हल जा। जिंदगी उतनी आसा न नहीं है जितनी तुझे महसूस हो रही है।
एक दिन वही हुआ जिसका डर था। अलीक को दिल का दौरा पड़ा। उनको अलनूरानी अस्पताल ले गए। हलका झटका था वो जल्द वापस आ गए पर तैयब को अब अक्ल आ गई। उसने जमात का एक बड़ा आयोजन रखा क्योंकि जल्द जमात के चुनाव होने वाले थे। इस बार जमात से किसी के सियासत में जाने का मौका भी था। नेता तिवारी और यादव दोनों जमात को सियासत में लाना चाह रहे थे।
ये आयोजन था, निकाह का, गरीब और मिडिल क्लास जमात की लड़कियों का निकाह होना था । तैयब ने यहां-वहां से पैसा जुटाया। चांदी की पायल से लेकर कूकर और दूल्हे को घड़ी से लेकर स्मार्ट फोन तक देने की कोशिशें की गईं। लकी ड्रॉ रखा गया। नाच-गाने के साथ जमात के नामकमाने वाले बच्चों और बुजुर्गों का सम्मान। दावत तो होनी ही थी। तैयब की बेगम हुस्ना को भी काम पर लगा दिया। उसने भी इसी दौरान जमात की महिलाओं का कार्यक्रम भी रख दिया। यानी जमात के हर दर्जे को खुश करने का इंतजाम था। वैसे, चिंता की खास बात थी नहीं जमात के लगभग हजार-पांच सौ लोग ही थे। इस मौके पर नेता तिवारी या यादव के आने की बात भी हो रही थी। जो नेता अलीक के खिलाफ थे उनकी इस आयोजन पर गिद्ध नजर थी।
खैर, कार्यक्रम तय दिन शुरू हुआ। गंजानंद की धर्मशाला किराए पर ली। अंदर ऐसा माहौल बनाया कि जन्नत भी शर्मा जाए। दुल्हनों को हसीन लिबासों और मेकअप से सजाया गया। इसके लिए फिरदौर ब्यूटी पार्लर वाली आब जहां और उनकी साथी मिस सुंदरी शर्मा थीं। मिस सुंदरी का भी शौएब से चक्कर चल रहा था। जल्द वो भी जमात का हिस्सा होने वाली थी।
अब कार्यक्रम शुरू हुआ। अलीक बाहर कुर्सी पर जा बैठे और तैयब खुद गुलाब के फूल देकर सबका इस्तकबाल करने दरवाजे पर जा खड़ा हुआ। लोग अंदर जाते बातें करते वाह, क्या अदब है, क्या खिदमत की है जमात की। जमात के यहां-वहां से कबाड़कर 51 जोड़े इकट्ठे किए थे। मौका देखकर कई तो अपने नाबालिगों को भी यहां ले आए थे। उनको पैसा बचाना था, इनको भी गिनती बढ़ानी थी। यहां सरकारी दबाव हो ही नहीं सकता था। बस...
तैयब ने दरवाजे से बाहर देखा। ममनून भाई का बाइक खड़ी करने को लेकर किसी से झगड़ा चल रहा था। तैयब वहां जा पहुंचा। नेतागीरी दिखाए। ऐ...यहां गाड़ी मत लगा। यहां जमात का प्रोग्राम है। जिससे झगड़ा हो रहा था वो भी कम नहीं थे। वो तीन-चार करीब थे। अबे हम रोज यहां बाइक लगाते हैं। जनाब अदब से बात कीजिए। अबे तमीज से .... तेरी....तेरे..... में ......घुसेड़ देंगे। अब झगड़ा बढ़ गया। तैयब के साथ दो-चार और आगए। मारपीट शुरू हो गई। वो तीन-चार तैयब और उसके साथियों पर भारी पड़ गए। किसी ने तैयब की खूबसूरत दाढ़ी पकड़कर उसे तमाचे ही तमाचे रसीद कर दिए तो किसी ने किसी की दाढ़ी ही नोच डाली। किसी के कपड़े फटे, किसी का चश्मा टूटा। जब इससे भी जी न भरपाया तो चाकू भी चल गया।
जब तक मामला समझ दूसरे लोग आते इसके पहले ही बदमाश भाग गए। तैयब को पुलिस स्टेशन ले गए। बहुत देर तक इस बात को लेकर विवाद हुआ कि मामला कौन साहब देखेंगे। अंत में तिवारी जी का नाम आया। वो देर में आए फिर साजिद, अकरम, अक्का और चक्का के खिलाफ मौखिक शिकायत ली और तैयब को मेडिकल के लिए अस्पताल भिजवाया जहां डॉक्टर नहीं मिला तो कंपाउंडर ने टिंचर-पट्टी कर उसे वापस भेज दिया। कार्यक्रम अब तक निपट चुका था। वो घर पहुंचा और रातभर सोचता रहा। दूसरे दिन वो फिर थाने जा पहुंचा। दो-चार जमात के फुकटिये लोग भी थे। थानेदार देर में आए। थोड़ी देर यहां-वहां फिरते रहे फिर कुर्सी सम्हाली। अब कार्रवाई कब करेंगे जनाब? देखिए इस मामले में मैं क्या कार्रवाई कर सकता हूं? अरे, ऐसा क्या, मारपीट हुई है, चाकू चला है। अरे भाई चाकू चला, कितना खून निकला, निकला भी या नहीं, जख्म लगा है या नहीं। चोट है भी या नहीं। तुमने मेडिकल भी कहां करवाया। एफआईआर कहां हुई है? अब तैयब भड़क गया। अरे आप ने एफआईआर नहीं लिखी, वहां डॉक्टर नहीं मिला। इससे क्या मतलब-तिवारी बोले। मतलब आप कार्रवाई नहीं करेंगे? अरे प्रकरण बनता ही नहीं। हें..आप जानते हैं मैं जमात प्रमुख का बेटा हूं, हम बड़े ऑफिसर तक जाएंगे। तो जाओ..कार्रवाई तो हमें ही करनी है न..जाओ। एक ने बात सम्हाली- अरे नाराज न होइये जनाब, कुछ तो कार्रवाई होती होगी। रोज थाने आओ देखेंगे मसला। अब जाओ...तोंद सम्हालते तिवारी उठे और निकल गए।
दर्द से दो-चार होता तैयब वापस लौटा। अरे ये पैसे खा गया होगा। नामुराद। मर जाएगा हराम की औलाद। अरे ये तो ठेलेवालों से भी वसूली करता है। हरामजादा। लोग बातें कर रहे थे।
तैयब घर पहुंचा अलीक पास आए। बेटा तिवारी जी का फोन आया था। तुझे जमात से टिकट मिल सकता है। लोगों का पहले तो जुड़ाव ही था अब हमदर्दी भी साथ है। तैयब ना कुछ बोल पाया ना ही सोचने में ही रहा। खामोशी से अंदर चला गया।

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