सोमवार, 31 दिसंबर 2018

अधूरा कौन है

पायल...जब भी छनकती है दिलों को बेजार-बेकरार कर डालती है। छन..छन...छन...छन, घूंघट में मुखड़ा छिपा हो तो मन होता है कि एक बार तो उठे...मेहंदी लगे गोरे हाथों में जब लाल चूडिय़ां खनके तो... काले घनेरे बालों में गजरा महके तो...और अगर घूंघट उठे तो कजरारे नैनों का वार...होठों पर सुर्ख लाली...नींद चुराती बिंदिया मानों तो एक साथ हजारों हाथों से किसी से प्राण घातक आक्रमण कर डाला हो और ये सभी सोलह श्रृंगार अस्त्र-शस्त्र हो जाते हों। पर आदमी चौंकता तब है जब असलियत पता चलती है। पर कभी-कभी असलियत दुनियावी हकीकत को झुठला देती है।
उपनगर से शहर में आए तो आबिद को कुल जमा तीन ही दिन हुए पर ऐसा लगता है कि शहर से उसका पुराना नाता हो। उसके चचा के लड़के ने उसे कह दिया था कि शहर में जरा सम्हलकर चलना यहां का चलन तो अनोखा है। सच!....मुच उसने कह डाला।
चचा का लोहा-लंगड़ का काम था जिसमें न तो आबिद को दिलचस्पी थी और न ही चचा के लड़के...क्या नाम है उसका इकबाल की। अब आएं किस्सा-ए-खास पर आज जुमे का दिन था और वो नमाज अदा करके बाहर ही आए थे कि एक लालजोड़े में सजी दुल्हन से वो आमने-सामने हो गए। वो घूंघट डाले चली जा रही थी। पायल छनक रही थी और पूरे सोलह श्रृंगार उन पर हमला कर रहे थे। चेहरा तो ढंका था पर आंखें नजर आ ही थीं घूंघट में से। हाय ये काफिर हुस्न, इकबाल बोला। ये बला है कौन? आबिद का सवाल था। चल जाने दे काफिरा है...काफिर है तो क्या हुआ, हमारे यहां तो ये ज्यादा आशिकी पसंद मानी जाती हैं। हें..हां। एक मिनट...इकबाल यहां से वहां हुआ और आबिद उस हुस्नजाना के पीछे हो लिया। वो इठलाती-बलखाती एक शादी के मंडप में जा घुसी। आबिद ने देखा वो यहां-वहां होती उससे पहले ही वो वहां से निकली और जाने लगी। रास्ते में वो एक इमारत में घुसी जहां एक संकरी सी गली थी। आबिद ने वहां उसे पकड़ दिया। मोहतरमा...आप कौन है? कहां जा रही हैं? आबिद का ख्याल था कि वहां कोई है नहीं जो सही ही था कि बुरे हालत हों तो वो वहां से भाग निकले पकड़कर पीटने वाला हो ही नहीं। वो औरत रुकी और बोली- क्या चाहते हैं? आपसे पहली नजर में मुहोब्बत हो गई है। लगा कि आप काफिर हैं पर दिल न माना और मैं आपके पीछे यहां तक चला आया। उसने घूंघट खोला। उफ....ये हुस्न तो हूर को भी नसीब न हो। उसमें और आबिद में कुछ देर बातचीत हुई। फिर वो चली गई।
आबिद वापस लौटा तो इकबाल ने पूछ ही लिया- अरे जनाब, कहां थे? कहीं निकाह तो नहीं पढ़ डाला उसके साथ। अरे नहीं भाई.. वो मुस्कुराया। अब आबिद अचानक गायब हो जाता। कहां जाता किसी को भी पता नहीं था। आबिद के चचा ने पूछा तो वो टाल गया। इकबाल को भी पता न था कि वो जाता कहां था?
आखिर एक दिन उसने ठान लिया कि आज तो पता लगाकर ही रहेगा कि माजरा आखिर है क्या? जब से वो हुस्नजाना मिली है, आबिद आखिर गायब कहां हो जाता है? एक दिन आबिद चुपचाप घर से बाहर निकला और चंदन गली में चला गया। आबिद का पीछा करते हुए इकबाल भी चंदन गली में पहुंचा। इकबाल ने देखा वो एक कमरे में गया फिर करीब घंटे भर के बाद वो बाहर निकला। इकबाल ने पूरा मामला चचा को बताया।
दूसरे दिन चचा ने पूछ लिया कि भाई कहां जाते हो इतनी देर के लिए। कहीं नहीं जाता..चचा उसका जवाब था। चंदन गली में नहीं जाते..अब आबिद को काटो तो खून नहीं। क्यों भाई ऐसा क्या है उस गली में, दूसरा सवाल रूबरू था।
अब आपको बता दिया जाए कि चंदन गली में ऐसा क्या था कि वहां जाने को लेकर लोगों में कुछ शुबहा था। चंदन गली असल में हिजड़ों का निवास स्थान था, जब भी शहर में कहीं शादी होती लोग वहीं जाते और हिजड़ों को नाचने के लिए नेवता देते। आबिद खामोश रहा। बताओ बरखुरदार...वर्ना अब्बा जान को खबर हो जाएगी। अब आबिद बोल पड़ा- उस दिन एक हूर से इत्तेफाक से सामना हुआ। उससे अकेले में इमारत में मिला जहां उसने उसे बताया कि वो एक औरत नहीं बल्कि एक हिजड़ा है जो शादी में नाचने गया था। पर शक्लोसूरत से उसे कोई भी औरत ही जानेगा उसकी आवाज इतनी मीठी...किस का दिल उस पर फिदा न होगा। आबिद उसकी मुहोब्बत में दीवाना हो गया। वो उसीे से मिलने वहां जाता है। उसका नाम चमेली है कुछ लोग उसे गुलाबी तो कुछ पायल के नाम से भी जानते हैं। बहुतेरे लोग उसे देखकर कामुक भी हो जाते हैं। उसने उसका फोटो भी दिखाया जो उसकी पाकेट में था। चचा ने देखा- अरे ये तो बिलकुल औरत है और किसी औरत से भी ज्यादा खूबसूरत..अल्ला ने हुस्न तो बख्शा पर जिस्म में अधूरा बना दिया। अधूरा...क्यों? क्या उसमें जज्बात नहीं हैं। वो प्यार नहीं कर सकती या सकता। उसमें क्या किसी के साथ एक जिस्म होने की तमन्ना नहीं हो सकती? उसमें दिल में क्या बच्चा जनने का ख्याल नहीं हो सकता? आबिद ने कह डाला। मियां, क्या खामोख्वाह बाप के नाम को खाक में मिला रहे हो। लोग क्या कहेंगे? लोग क्या कहेंगे...अब सारी मुहोब्बत काफूर हो गई। दूसरे दिन आबिद सामान लेकर वापस घर लौट गया।
बात को बीस साल गुजर गए। आबिद ने निकाह किया और कुल जोड़ चार बच्चों को पैदा किया। सनम, जावेद, इकरा और सद्दाम। शहर के नखलिस्तान हॉल में सनम की सगाई थी। सभी लोग शामियाने में थे। तभी जाहिदा (आबिद की पत्नी) बोली- ये लो...और दुआएं दो। आबिद ने देखा तो वहां चमेली खड़ी थी। उसने आबिद को देखा फिर बोली- आज जीभरकर ढोल बजाओ खूब नाचूंगी मैं। पर इसके पैसे न दूंगी....जाहिदा ने कह डाला। यूं मानों मेरी बेटी की शादी हो...चमेली बोली। उस दिन चमेली खूब नाची। आबिद उससे नजरे न मिला सका। सगाई निपटी तो सभी ने एक बात कही चमेली का ऐसा नाच तो आज तक नहीं देखा और न कभी शायद देखने को भी न मिलेगा। कुछ लोगों ने इसका वीडियो तक बना डाला। सगाई में दूल्हा-दुल्हन तो एकतरफ कम रहे पर चमेली की खूब बढ़ाई हुई। इकबाल काइयां ढंग से मुस्कुराता रहा। दूसरे दिन आबिद चंदन गली गया। देखा तो एक जनाजा जा रहा था। पता चला कि चमेली विदा हो गई। उसको हाई ब्लड प्रेशर था। वो इतना बढ़ गया कि वो चल बसी। आबिद ने देखा तो बिंदिया वहां खड़ी सब देख रही थी। वो भी चमेली की जमात की थी। बिंदिया उसे कोने में ले गई। आबिद तुम उसे छोड़कर चले गए पर उसके लबों पर सिर्फ और सिर्फ एक ही दुआ रही कि आबिद हमेशा खुश रहे। उसे तुम्हारे घर से न जाने कौन शादी में आने का नेवता दे गया। वो बिना जाने वहां जा पहुंची। तुमको देखा तो वो हसीन लम्हात उसे बरबस याद हो आए। वो तुम्हे कभी न भूल पाई थी और कल रात बोल रही थी कि मेरा आबिद खुश है मैं खुश हुई। उसकी बेटी मेरी ही बेटी है। भले ही मेरी कोख न हो तो क्या हुआ? मैं पूरी हो गई..बिंदिया मैं पूरी हो गई। उसके प्राण निकल गए। ये बैंक की पास बुक तुमको देने को कहा है। करीब 15 लाख रुपए हैं इसमें तुम्हारे नाम दे गई है। चमेली को देखकर मेरा बेईमानी करने का मन न हुआ। वो मुस्लिम चमेली थी या हिंदू पायल..पर वो अधूरी नहीं थी। आबिद समझ गया कि नेवता इकबाल ने ही दिया होगा कि चमेली वहां आकर हंगामा खड़ा कर देगी पर उसने तो...
बदहवास आबिद जनाजे के पीछे दौड़ा और चिल्लाया- कोई उसकी कब्र पर जूते मत मारना वो तो पूरी थी हम ही अधूरे निकले।
30-31 दिसम्बर 18

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