मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

ये दोस्ती नहीं थी तो और क्या था?

अजय श्रीवास्तव
यह काम कॉपरेशन कम कंपलशन ज्यादा था। तीनों बेरोजगारों के स्वार्थ जुड़ गए थे। अक्सर दीक्षा को अकेला पाकर दानी कम तनख्वाह का रोना रोती और दीक्षा की दोस्ती का हवाला देती यद्यपि ये काम पूर्व वाले काम से बेहतर था। दीक्षा भी उसे बताती कि उसे कम पैसे मिलते हैं। प्रॉफिट हो न हो पर शायद सब उशी दबा जाती है। उशी, बुटिक में दीक्षा को अकेला पाकर दानी की अनुभवहीनता और दीक्षा से दोस्ती का हवाला देती पर उशी जानती थी कि दानी सस्ते में काम तो रही है। दीक्षा दोनों को झेलती, क्योंकि उसे भी नौकरी नहीं मिली थी। दानी दादी को कोसती जिसने पढऩा छुड़ाया शादी लगाई। दानी कहती पढ़ती-लिखती तो अच्छी नौकरी मिलती तो मिलती, टेलरिंग में मात्था न खबता।
उशी घर के बाहर निकली। दुपट्टा कंधे से करम तक कसकर बांधा। हेलमेट लगाया, गॉगल से आंखें ढांकी स्कूटी निकाली, गेट बंद किया और स्कूटी पर तेजी से उड़ चली। दानी ने आइनें में मुंह देखा फिर बाहर आई, दादी केे पाव छुए जो मुड्ढे पर बैठी थीं। जीती रे। दानी ने बस स्टाप की राह पकड़ी। दीक्षा ने बैग उठाया, कमरे के बाहर आई। भाभी मैं चलती हूं, जल्दी पहुंचना है। रुक मैं छोड़़ दूंगा, भाई ने कहा जो डाइनिंग कुर्सी पर बैठा बे्रड खा रहा था। आज नहीं कल छोड़ देना, वैसे भी रोज छोड़ते हो। आज उशी मुझे कलैक्ट कर लेगी। दीक्षा तुरत-फुरत निकल पड़ी।
दानी बस से उतर कर कॉलेज में आई ही थी कि पीछे से आवाज आई- दानी। वो मुड़ी पीछे कुछ कदमों की दूरी पर उशी की स्कूटी रुकी हुई थी और दीक्षा उतर कर उसके पास आ रही थी। सॉरी वो तुम, दानी कुछ अनमने ढंग से मुंह बनाकर पलटकर चल पड़ी। उशी स्कूटी स्टैंड की ओर ले गई। उशी और दानी एक दूसरे से उदासीन से थे। दीक्षा उनमें मध्यस्थता करती रहती थी।
दानी बीए फइनल की छात्रा थी। दीक्षा एमबीए मार्केटिंग की और उशी ड्रेस डिजाइनिंग की छात्रा थी। तीनों के जीवन स्तर में, समुदायों में और सपनों में बहुत फर्र्क था। दानी सिंधी मध्यमवर्ग की निम्र श्रेणी से संबंध रखती थी। दीक्षा शर्मा मध्यम वर्ग की मध्यश्रेणी से संबंध रखती थी। उशी अग्रवाल उच्च मध्यमवर्ग से ताल्लुक रखती थी। दानी बस सोचती थी अच्छा पति मिल जाए तो जिंदगी चैन से कट जाए। दीक्षा तो बस किसी तरह अमेरिका पहुंचना चाहती थी। उशी खुद की फैशन बुटीक बनाना चाहती थी। उशी कुछ अकड़ू थी। दीक्षा सामंजस्यवादी और व्यवहारिक स्वभाव की थी। दानी उदास रहने वाली लड़की थी। वैसे, दानी शादी के प्रति भी उदासीन थी। बस दो-तीन चीजें उनमें समान थीं जैसे लड़कों की ओर उदासीनता, कामचोरी, पढ़ाई की ओर उहु...ठीक है का रवैया। रिजर्ट आने के बाद दानी की शादी हो गई, उशी मुंबई और दीक्षा बेंगलुरु चली गई। समय बीतता गया बीतता गया।
सात साल बाद उशी मुंबई से लौट आई। उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा के चलते कुछ गुंडों से उसकी झड़प हो गई। उन्होंने उसकी गाड़ी के कांच फोड़े और धमकी दी। चोरी भी की। वैसे भी उशी को यही बेहतरीन कमाई के अवसर दिख रहे थे। सात साल बाद उसने शहर देखा कितना बदला है शहर। उशी को दीक्षा की याद आई। कुछ समय से उनका संपर्क टूट गया था। उशी दीक्षा के घर गई पता चला कि वो भी उशी की तरह वापस आ गई है परंतु वो घर पर थी नहीं। उशी ने उसे मोबाइल लगाया। दीक्षा ने उसे इंडियन कॉफी हाउस बुलाया। दोनों इंडियन कॉफी हाउस में मिले। दीक्षा ने उशी को बताया कि वो शहर में नौकरी ढूंढ रही है। साथ ही दानी भी यहीं है, उसका पता अभी कुछ ही दिन पहले चला। हुआ यूं कि दीक्षा महीनाभर पहले ही शहर आई। शहर घूम ही रही थी कि उसने देखा एक जानी पहचानी दुबली काया अपने पति के साथ एक सफेद पोटला सायकल पर लाकर जा रही है। देखा तो पता चला वो दानी थी। शादी हुई पति कपड़े की कतरन का छोटा-मोटा व्यवसाय करता था। एक बार अगजनी में दुकान मानों तो टप्पर का बड़ा खोखा राख हुआ। घरवालों ने साथ छोड़ा वैसे भी दानी की नौ ननदें ही हैं। वॉओ दमदार सास ससुर, क्या करें लड़के की चाहत। दानी का पति टेकमल चुहड़मल। बस..बस इतना इंट्रोडक् शन काफी है। यही रेडीमेड कपड़े लाता है, दानी सिलती है। वो सबसे छोटी सास-ससुर हैं नहीं बस दो बच्चे हैं। बिल्लो बड़ी आदिश छोटा। उशी को एक आइडिया आया जो उसने दीक्षा को बताया। सप्ताहांत तक हार्ट टॉवर में एक बुटीक खुली नाम था उदीनी। हेड बनी उशी, मार्के टिंग सम्हाली दीक्षा ने, टेलरिंग सम्हाली दानी ने।
यह काम कॉपरेशन कम कंपलशन ज्यादा था। तीनों बेरोजगारों के स्वार्थ जुड़ गए थे। अक्सर दीक्षा को अकेला पाकर दानी कम तनख्वाह का रोना रोती और दीक्षा की दोस्ती का हवाला देती यद्यपि ये काम पूर्व वाले काम से बेहतर था। दीक्षा भी उसे बताती कि उसे कम पैसे मिलते हैं। प्रॉफिट हो न हो पर शायद सब उशी दबा जाती है। उशी, बुटिक में दीक्षा को अकेला पाकर दानी की अनुभवहीनता और दीक्षा से दोस्ती का हवाला देती पर उशी जानती थी कि दानी सस्ते में काम तो रही है। दीक्षा दोनों को झेलती, क्योंकि उसे भी नौकरी नहीं मिली थी। दानी दादी को कोसती जिसने पढऩा छुड़ाया शादी लगाई। दानी कहती पढ़ती-लिखती तो अच्छी नौकरी मिलती तो मिलती, टेलरिंग में मात्था न खबता। शहर में बेस्ट बुटिक कॉम्पीटिशन के इन दिनों खूब चर्चे थे। कुछ बुटिक वाले या वालियां उशी का मजाक उड़ाती। भड़ककर उशी ने भी फर्म भर दिया। दीक्षा ने समझाया पर उशी समझने वाली ही कहां थी?
सप्ताह भर बाद परिणाम आया। बेस्ट प्राइज उदीनी को मिला था। तीनों ने स्टेज पर साथ में जाकर प्राइज लिया। तीनों अनपेक्षित परिणाम पाकर खुश थी और एक दूसरे को देखकर कुछ-कुछ शर्मिंदा भी। इसे क्या कहें? सहयोग का फल, समझौते का फल या मजबूरी और निर्भर स्वार्थों का परिणाम?
5 से 8 मई सन् 2008

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