सोमवार, 19 फ़रवरी 2018
पकौड़ा: एक शेम कथा
मौत से मुकाबला: 7 महाआदमखोर से सामना
अथ गब्बर कथा: पकौड़ा पॉलिटिक्स पर गब्बर का भ्रम और ठाकुर से संवाद
शनिवार, 10 फ़रवरी 2018
एक मजदूरनी
पूरी दुनिया में कहीं भी दिहाड़ी मजदूरों का जीवन किसी संघर्ष से कम नहीं होता है। यूं तो मजदूर सभी जगह दु:ख ही पातें है, शायद रामराज में भी इनका भला न हुआ हो और अगर यही सच है तो अब कब और कैसे इनका भला हो सकता है? ये मजदूर दबंगों के खेतों और ईंट भट्टों सहित कई जगह काम करते हैं। वहां हर स्तर पर इनका शोषण होता है। सरकार.....वो तो पूरी ईमानदारी के साथ ताकतवरों की सेज पर महकती है। उसके मखमली पैर सख्त जमीन पर पड़ते ही कहां हैं?
इस कहानी की पृष्ठभूमि हमारे की देश के बिहार राज्य की है जहां कभी भी इन मजदूरी की जिंदगी में आशा की किरण जाने की उम्मीद नहीं के बराबर है।
नईम घर में घुसते से चिल्लाया- रजिया, बाहर भिखारी खड़ा है। दो रोट डाल दे। वो अंदर चला गया। बगल में रसोई से रजिया निकली और भिखारी के कटोरे में दो रोट डाले। दोनों ने एक-दूसरे का चेहरा देखा और भिखारी के मुंह से सिर्फ एक आवाज निकली-राधा....रजिया चौंकी पर चुप रही।
कहानी जाती है वक्त की कोख में उसकी गहराई में करीब पंद्रह साल पहले।
राधा यही नाम था उस मजदूरनी का। जो दिहाड़ी मजदूरी का काम करती थी। अपने पति और चार बच्चों के साथ वो यहां वहां घूमती, काम करती। राधा का पति था मांगीलाल। चार बच्चे, जिनमें एक कुपोषित था और किसी तरह जिंदा था। मांगीलाल शराबी और जुआरी था। वो शराब और जुएं के लिए कुछ भी कर सकता था। एक बार तो उसने राधा को ही दांव पर लगा दिया और हार भी गया। उसके दोनों दोस्त, कालू और रज्जाक नशे में राधा के पास जा पहुंचे। पसीने की तीखी गंध उसकी महक बन चुकी थी। बच्चे सो चुके थे और वो दरवाजा बंद ही कर रही थी। वो दोनों वहां जा पहुंचे- चल आज रात तू हमारी है। राधा ने मोटा मोगरा उठाया और उन दोनों को पीट डाला। देख लेंगे तुझे कहते हुए वो भाग निकले।
उन दोनों ने जाकर मांगीलाल को पीटा और दबाव बनाया कि वो या तो जुएं का पैसा चुकाए या राधा को उनको सौंप दे सात दिन के लिए। मांगीलाल राधा के पास गया। तू उनके पास जा...वर्ना हमारा गांव में रहना मुश्किल हो जाएगा। राधा कम नहीं थी वो उससे लड़ गई। मांगीलाल वैसे भी घर में क्या सहयोग करता था? वो पिटे या मर भी जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। तू दूसरा कर लेगी न....मांगी के आखरी शब्द थे।
मांगीलाल गांव छोड़कर भाग गया। राधा ने अपनी सहेली कुरिया, जिसे कुतिया कहते थे, के सहारे किसी तरह एक महीना निकाला। कुरिया का पति भी चूना भट्टी का मजदूर था जो अब सिलिकोसिस से पीडि़त था और कभी भी मर सकता था। मांगीलाल शहर गया। वहां उसकी पहचान मोइन भाई से हुई। मोइन नचनिया का नाच करवाता था और इससे उसे गाढ़ी कमाई होती थी। नाच तो बहाना था...नाच के बाद जिस्मफरोशी होती थी जिसका पता सबको था पर ....मोइन के ग्राहक सिपाही से लेकर राजनेता तक थे। सैंया भये कुतवाल तो डर काहे का। लोगों को सिर्फ अच्छी बातें पसंद है आचरण नहीं। मांगीलाल ने मोइन को बताया कि उसकी पत्नी राधा चाशनी में पगा रबड़ी का गोला है गोला। उसने अपने पास रखी उसकी एक छोटी से फोटो दिखाई। मोइन ने कहा कि वो उसे लेकर आ जाए। उसे पैसे तभी मिलेंगे। मांगीलाल खुशी-खुशी वापस आ गया। वापस आकर उसने अपने आप को बदल लिया। और राधा को सपने दिखाए कि वो उसे शहर ले जाएगा। बच्चे का इलाज करवाएगा। उसे रानी तो नहीं पर उससे कमतर नहीं रखेगा। उसे नौकरी मिल गई है। राधा को शक हुआ पर यकीन तब हो गया जब शहर इलाज करवाने गये कुरिया के पति ने उसे बताया कि उसने शहर में मांगी को मोइन के साथ देखा था। खोजने पर पता चला कि मोइन बदनाम है। बस फिर क्या था? राधा और मांगी में जोरदार झगड़ा हो गया। मांगी ने कहा कि वो बच्चे उसे दे दे और चली जाए। राधा भी उससे लड़ी। मांगी ने गंडासा उठाकर उसे मारा जो उसके हाथ में लगा। घबराया मांगी भाग गया। इसके बाद वो यहां-वहां भटकता रहा। कुछ दिनों बाद वो गांव पहुंचा तो पता चला कि वहां आकाल पड़ा था और राधा उसके बच्चों के साथ जा चुकी थी। उसने उसे कई जगह तलाश पर वो नहीं मिली।
राधा भुखमरी से परेशान थी। चार बच्चों का लालन-पालन उस पर भी एक कुपोषित- मंदबुद्धि। आकाल की स्थिति बन रही थी। राधा कुरिया के साथ, जो अब विधवा थी, गुजरात जा पहुंची मजदूरी के चक्कर में। यहां उन्हें मिला रमणीक भाई ठेकेदार...रमणीक दिनभर मजदूरनियों से निर्माणाधीन टाउनशिप में मजदूरी करवाता। रात में उनका भोग करता। कुरिया भी उसके साथ सोई। पेट की आग हवस की आग में भस्म हो गई। राधा किसी तरह से बच रही थी। रमणीक दिलदार था खुद तो मजदूरनियों का भोग करता ही साथ में दोस्तों और अफसरों को भी परोस देता। रमणीक के साथ काम करता था-एहसान खान यानी बाबा पठान। ये हिस्सेदार तो था ही उसका गुंडा भी था। डरी राधा हमेशा घंूघट डाले रहती। एक रात रमणीक ने कुरिया को बुलाया, वो गई भी, पर वापस न लौटी उसकी बिना कपड़ों की, रक्त से सनी लाश मिक्सर के पास पड़ी मिली। रमणीक ने फोन बंद कर दिया था और कोई अन्य आने वाला ही नहीं था। केवल मैनेजर आया और सबको धमकाया- अरे ये लाश यहां से हटा दो। अगर पुलिस का मामला बना तो काम रुक जाएगा। तुम्हारी तनख्वाह भी। लोगों ने लाश को वहीं बने एक कच्चे मकानमें गाड़ दिया। इस घटना से औरतों में डर फैल गया। बाबा पठान का चचेरा भाई था नईम, रमणीक के प्रतिद्वंद्वी दिलदार खान ने उसे पैसे दिए कि वो काम रुकवा दे ताकि उसका काम चल निकले। उसने औरतों से कहा कि यदि वो जान बचाना चाहती हैं तो दिलदार खान की टाउनशिप में चलें। डरी औरतें जो दैनिक वेतन पर काम कर रही थी वहां भाग गईं हालांकि रमणीक पर उनका कर्ज था, पर जान बचाना भी तो जरूरी था। राधा भी नईम के पास गई। नईम ने उसे देखा तो उसका दिल डोल गया।
उसने राधा को ईंटों से बना कच्चा मकान रहने को दिया और तनख्वाह भी बढ़वा दी। राधा यूं तो डरती थी पर नईम उससे मजाक करता उसे अपनत्व का अहसास करवाता। इधर राधा की बेटी की तबीयत खराब हुई। उसने नईम से कहा कि उसे मान करनी है तो वो उसे सायकल पर बिठाकर मंदिर ले गया। लोगों से घिरी रहने वाली राधा आज अकेली उसके साथ थी। मंदिर से लौटते में राधा ने उससे लघुशंका जाने को कहा। नईम वहीं खड़ा हो गया। वो झाड़ी में गई। अब नईम का खुला खेल था। वो अंदर जा घुसा। राधा कपड़े ठीक कर बैठ ही रही थी। नईम को देखकर वो चौंकी पर कुछ करने लायक रह नहीं गया था। नईम का उसने कोई विरोध नहीं किया। एक खामोश बलात्कार के कुछ देर बाद नईम उठा। राधा की ओर से कोई विरोध नहीं था। वो खुश हुआ और मर्दानगी की मन ही मन दाद दी। आखिर वो पठान है। वो उसे ले आया और रात को फिर उसके घर में चला गया। राधा की जरूरत थी या मजबूरी। वो कुछ नहीं बोली। सिलसिला चल पड़ा। राधा गर्भवती हो गई। नईम ने उससे कहा कि वो उसे अपनी चौथी पत्नी बना सकता है बशर्त वो मुसलमान हो जाए और बच्चों को मुसलमान बना ले। राधा राजी हो गई। धर्म से क्या फर्क पड़ता है? औरत लूटी तो हर धर्म में जाती ही है। राधा हो गई रजिया, दोनों बेटियां- सीता हुई सायरा, क ौशल्या बनी कम्मो, बेटा किशन बना कमरू और बीमार राम प्रसाद बना रशीद। नईम गुजरात छोड़ वापस बिहार आ गया। यहां उसकी तीनों पत्नियां पहले से थीं। रजिया को नईम ने अलग घर रखा था। ये घर खेत के पास था। नईम ने रजियों को तीन बार और गर्भवती बनाया। दुर्भाग्य, सभी बच्चे चेचक की भेंट चढ़ गए। राधा की बाकी मजदूरनियां मित्र जल्द ही दिलदार की हो गईं। दिलदार रमणीक से कम नहीं था। मजदूरिनों ने न सिर्फ उसके अवैध बच्चों को जन्म दिया बल्कि उनके मजबूर पतियों ने उनको अपनी कमाई से पाला-पोसा भी। वर्तमान में सभी दिलदार खान के यहां नील की खेती कर रही हैं। अब उनकी जो पौध तैयार हुई है वो उनका कर्ज चुकाने को तैयार है, हर स्तर पर। नईम उससे कहता तू मेरी होकर बच गई। तुझे मेरे साथ सोना है और उम्मीद से होना हैं। बाकी तो सबसे पेट से होंगी। राधा कुछ न कहती।
कहानी वर्तमान में आई। राधा...मांगी के मुंह से शब्द फूटा। वो चुप रही। ये भिखारी और कोई नहीं उसका पहला पति मांगी था। इतने में एक बिगड़ी आवाज आई...अममममी। देखा तो रसोई से एक विक्षिप्त बच्चा बाहर देख रहा था। राम प्रसाद, हां..., बेटियां.....! निकाह हो गए। किशन...उसने पूछा। तभी एक हुज्जड़ सा दिखने वाला किशोर घर के बाहर आया। अम्मी तू यहां खड़ी क्या कर रही है? रोट दे। ये किशन यानी कमरू था कहने की जरूरत नहीं थी। और तू ...फिर से उम्मीद से हूं। इसके बाद उसने अपना हाथ कुछ ऊपर किया। हवा से आस्तीन खुली और गंडासे का दाग दिखा- ये तुम्हारी निशानी है। ये सुनकर मांगी पलटकर भागा। अरे रोट तो लेते जाओ.... राधा यानी रजिया ने पुकारा। मांगी बिना जवाब दिए भागता चला गया। राधा ने रुक देखा। अम्मी कमरू भीतर से चिल्लाया। उसने बोझिल सांस छोड़ी और मुड़कर अंदर चली गई।
सोमवार, 5 फ़रवरी 2018
मौत से मुकाबला: 6 अंजाने अभियान की तैयारी
अब्बासी नाम का हब्शी अपने दल के साथ मछली पकडऩे के लिए समुद्र में गया वहां वो अंध महासमुद्र के अंतरतम स्थान पर जा पहुंचा। एक दम से जाल तेजी से हिला। सभी ने उसे ऊपर खींचा देता तो हैरान रह गए। उस जाल में एक जलपरी फंसी थी। उन्होंने उसे डेक पर खींच लिया। मुझे जाने दो, उसकी करुण पुकार थी। अब्बासी ने उसे देखा वो कमनीय थी और उसके आंसू और मासूम सूरत उसे उत्तेजक बना रहे थे। सभी उसके करीब जाने को आतुर थे। अब्बासी ने सभी से कहा कि वो इसे बाजार में बेचेंगे। जहाज को मोड़ लो। इसे बेचना है कोई इसके जिस्म को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। वो जलपरी जाल के अंदर बैठकर बड़बड़ाती रही- कोई नहीं बचेगा तुम में से, ये मेरी बद्दुआ है। बद्दुआ...मैं बाजार तक पहुंचूंगी नहीं। तुम सब मरोगे। सभी उसे ललचायी नजरों से देखते रहे। धीरे-धीरे वो एक पत्थर में बदल गई। जब वो बंदरगाह पहुंचे तो देखा वहां जीवित जलपरी नहीं उसकी पाषाण मूरत थी।
इसके बाद जो कुछ हुआ वो भयानक था। सभी को हर जगह वही जलपरी दिखने लगी यहां तक कि पानी और शराब के जामों में उसका अक्स दिखने लगा। सब रहस्यमयी ढंग से गायब होने लगे। कोई बालटी में गिरकर तो कोई बिस्तर से ही। अब्बासी का दम घुटने लगा और धीरे-धीरे उसका चेहरा कैटफिश में बदल गया। जब उसे पूल में छोड़ा तो वो मछली की तरह तैरने लगा और तीन दिन बाद उसकी मौत हो गई। न्यौन नाम का उनका साथी भाग गया।
ये कहानी सुनाकर एडम ने हमें बताया कि वो मूर्ति इसी जहाज में पीछे रखी है। मुझे और जोनाथन को उसकी बात अजीब लगी तभी नोबल हमारे पास डेक पर आ गया। हमने उससे इस बाबत पूछा तो वो बोला, ये एकदम झूठ है। इस बात पर एडम से उसकी बहस हो गई। नोबल के अनुसार अब्बासी को समुद्र में एक अनोखी संगमरमरी शिला मिली। इससे उसने अपने दोस्त न्यौन को एक जलपरी की मूर्ति बनाने को कहा। अब्बासी सोचता था कि वो उसे बाजार में बेचेगा और ज्यूस के समान वैभववान बन जाएगा। आनाकानी करने पर न्यौन को अब्बासी ने धमकी दी। जहाज शुभेच्छा की टोपी यानी कैप ऑफ गुड होप के पास कहीं रुका। न्यौन, जो कि एक मूर्तिकार था, ने उस शिला से 40 दिन में एक खूबसूरत मूर्ति बनाई और एक दिन मौका देखकर वो मूर्ति जहाज समेत जहाजी अलादीन कोलंबिया को बेचकर और करीब 1750 सोने के सिक्कों को लेकर भाग निकला। मूर्ति अब्बासी के जहाज पर ही थी और मूर्ति बनाने के दौरान न्यौन वहां नजरबंद बतौर था। न्यौन ने उसका भरोसा जीता और पीठ में खंजर मार दिया। हालांकि अब्बासी बेईमान के साथ ये कुछ गलत नहीं था। अलादीन बंदर अब्बास का जहाजी था और वहां काम से आया था। अलादीन मूर्ति लेने जहाज पर पहुंचा तो अब्बासी से उसकी लड़ाई हो गई। मामला कंगारू कोर्ट पहुंचा जहां अब्बासी ने अलादीन पर हमला कर दिया। अलादीन ने उसे पीटा और उसके मुंह पर थूककर उसे बदबूदार कैटफिश कहा। कंगारू कोर्ट ने अब्बासी को मौत की सजा सुना दी और अलादीन ने उसे पानी में डुबा-डुबा कर मार डाला।
बात आई गई हो गई। इन दिनों हम एक नई चीज देख रहे थे। ड्यूरा नाम की एक शीमेल ऊपरी मंजिल पर खड़ी होकर एडम को घूरती रहती। हम मजाक करते कि एडम वो तुम में रुचि रखती है। ड्यूरा के साथ कुछ पल बिताना क्या आनंद दायक नहीं होगा? एडम उसे देखता। उसमें एक अनोखी कशिश थी।
दूसरे दिन हम नीचे से काम निपटाकर डेक पर काम करने पहुंचे तो देखा कि थॉर अपने लोगों के साथ एक आदमी को घेरकर खड़ा था। वो आदमी घुटनों के बल बैठकर उसे कुछ बता रहा था। एडम ने बताया कि सेवन स्क ल के आगे और पीछे थॉर के दो विशालकाय जहाज मदद के लिए चलते हैं। हमने यहां-वहां दूर तक देखा पर कुछ दिखा नहीं। थॉर ने उस आदमी की बात सुनकर जहाज के सभी लोगों को बुलाया। इनमें नेवल भी था। मैं और बाकी लोग भी। थॉर ने एक आदमी को नौका लेकर रवाना किया। उसने हमें बताया कि आगे एक बहुत बड़ा द्वीप है जिस पर महान सार्थियन लोगों के वंशज रह रहे हैं। वहां सोने का भंडार है। हम कल वहां लंगर डाल देंगे। आप तैयार हैं....। ये सार्थियन हैं या अफ्रीकी आदमखोर...शंकित नेवल ने पूछ लिया। सोने से मतलब रखो बर्खुरदार...तुम खुदगर्ज मत बनों। थॉर को ना कहना मतलब... हम सब न चाहते हुए भी तैयार हो गए। एक ऐसे अभियान के लिए जिसके बारे में हमें कुछ भी पता नहीं था।
गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018
अथ गब्बर कथा: एकांत से व्यथित गब्बर का सांभा से संवाद
गब्बर रात को सो रहा था कि उसे हंसने की आवाज आई। उसने उठकर देखा तो उसे ठाकुर, वीरू, बसंती, जय के अक्स उस पर हंसते हुए नजर आए। हमेशा उदास रहने वाली ठाकुर की बहू जिसका नाम प्रचलित नाम उदासी हो गया था, भी उसे देखकर खिलखिलाकर हंस रही थी। गब्बर चाहता था कि पास में रखा कोई बर्तन उनको फेंककर मार दे पर मुफलिसी की मार थी कि उसके पास वहां कुछ भी नहीं था। कुछ पल हंस कर अक्स गायब हो गए। गब्बर के बदन में आग लगने लगी जैसी आग आडवाणी के बदन में लग रही थी। वो उठा और काली मंदिर में जा पहुंचा, उसने मंदिर के कपाट बंद कर लिए और तीन दिन तक भूखा-प्यासा मंदिर में बैठकर चिंतन करता रहा। उसे आशा थी कि वो जब दरवाजा खोलेगा तो परेशान डाकू उसे घेर लेंगे। हालचाल पूछेंगे। तीन दिन बाद जब वो दरवाजा खोलकर बाहर आया तो देखा कि वहां कोई नहीं था सिवाये सांभा के। क्या हुआ सरदार...कुछ नहीं सांभा....अगर सोचते हो कि बाकी हालचाल पूछने आएंगे तो भूल जाओ, तुम्हारी हालत वोटवाणी जी जैसी हो गई है। मैं, जूनियर कालिया जैसे कुछ सिम्हा है जो तुम्हें पूछ रहे है। सिम्हा-नरसिम्हा, बात समझ में नहीं आई सांभा.....सरदार सुनो तुम्हारा मन बहलाने के लिए तुमको कुछ बताता हूं...क्या सांभा? लोधी जी से वैर लेने वाले नरसिम्हों की टीम के बलवंत सिम्हा ने पहले ही बगावत कर रखी थी, अब उसने नई पार्टी बना ली है और लोधी जी की पीठ में छुरा मार दिया है। वो इस बात से नाराज था कि लोधी के इशारे पर मित्रघन सिम्हा का शौचालय तोड़ दिया गया। मित्रघन ने भी कह दिया है कि एक-एक हथौड़ा, जुगाड़ू पार्टी के ताबूत में एक-एक कील साबित होगा। सांभा लोधी जी तो कभी शौचालय के समर्थक हुआ करते थे और जुगाड़ू तो? हां सरदार पर मौका है। हुआ ये कि मित्रघन और बलवंत के गुरु बालकृष्ण वोटवाणी ने जुगाड़ूओं के लिए खूब वोट कबाड़े। हर बार जब भी जरूरत पड़ी। रामगढ़ से सुदूर यात्रा निकाली। रामगढ़ में अब्दुल चाचा की निजामी इमारत भी गिरा दी पर जब मौका आया तो निहारी जी को मौका दिया गया उसके बाद लोधी ने मक्खन का गोला झपट लिया। वोटवाणी जी का दर्द तो निकलना ही था। मौका देकर गुमनाम सरकारी टैक्स यानी जीएसटी पर बलवंत बाबा से हंगामा करवाया और....समझ गया सांभा...
हथकटा ठाकुर इस मामले में क्या सोचता है सांभा...सरदार ठाकुर उगते को प्रणाम कर लोधी के साथ है...कभी रामगढ़ यात्रा में वोटवाणी के साथ रहा ठाकुर अब लोधी जी के साथ देश-विदेश घूम रहा है सुना है कि वो मंत्री पंप की पुत्री की उम्र की पत्नी से नैन लड़ाने की कोशिश कर रहा है। वो कहता है कि लोधी को अपनी स्मृति से प्रिय कुछ नहीं है मैं उसी पथ में हूं।
ठहर सांभा उसकी खबर लेता हूं।
गब्बर ने ठाकुर को फोन लगाया।
ठाकुर ने कटे हाथ से फोन उठाया। हलो....शौचालय तोड़कर खुश हो रहा है....शौचालय नहीं अभी हम वॉल तोड़ रहे हैं। तुम कौन? गब्बर...कहो गब्बर हाल-चाल ठीक हैं न...हाल ठीक है चाल यहां आकर देख...कैसे फोन किया....मैं तुझे बताना चाहता हूं मैं वोटवाणी को उसका अधिकार दिलवाकर रहूंगा। हां.... हमने वोटवाणी को उसका हक दिया है...अब उनकी उम्र नहीं है कि वो सत्ता का जोखिम लें...अच्छा बाद में बात करते है....फोन कट गया।
सांभा...कहो सरदार...हमें क्या करना चाहिए सांभा...सरदार सुना है कि लोधी जी वोटिंग मशीनों में सेंध लगा रहे हैं, अपना भला भी ऐसे ही होगा....कैसे सांभा? सुनों एक गीत सुनो...
ये ईवीएम अगर फिर से बिगड़ जाए तो अच्छा
अपनी पार्टी की तकदीर संवर जाए तो अच्छा
जिस तरह से पहले भी अपने पक्ष गई है
फिर से उसी राह पे गुजर जाए तो अच्छा
वोटर की निगाहों में बुरा-क्या है भला क्या
गब्बर के दिल से ये बोझ उतर जाए तो अच्छा
वैसे तो इसी ने आंधी को बर्बाद किया है
इल्जाम किसी वाल पे आ जाए तो अच्छा
वाह! सांभा तू तो राजकुमार हो गया रे। सरदार दुआ करो कि अपने को राघव जी न मिले। जेल बाहर आने के बाद गब्बर पहली बार हंसा। दोनों हंसते हुए चट्टानों में गुम हो गए।
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